अंगदान करने का संकल्प लें और दूसरों को भी प्रेरित करें...!!
लेखक :- साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा, महासचिव शंखनाद साहित्यिक मंडली
तमाम लोग अपने लिए जी लेते हैं, कुछ लोग हैं दुनिया में जो जीते जी और मरने के बाद भी दूसरों के लिए जीवनदान देने का कार्य करते हैं। मतलब अंगदान से यह संभव है। भारत में परोपकार की बहुत पुरानी परम्परा रही है। महाराज शिवि, दधीचि और तमाम देवता कहे जाने वाले व्यक्तियों ने दूसरों को जीवन देने के लिए अपनी जिंदगी का दान कर दिया। हालांकि अंगदान के लिए प्रोत्साहित करना एक बड़ी चुनौती है। मौत जिंदगी का अंतिम सच है। यदि मौत को खूबसूरत बनाया जा सके तो जिंदगी के लिए इससे बड़ा उपहार किसी भी व्यक्ति के लिए नहीं हो सकता। और वह सबसे बड़ा उपहार है मरने के बाद या जीते जी जरूरत पड़ने पर अपने अंगों को दान देने का संकल्प लेना। किसी को जीवन देने का संकल्प इंसानियत का वह खूबसूरत विचार है जिसकी तस्वीर बेहद सुंदर है, जो धरती को स्वर्ग बनाने और दुखों से छुटकारा दिलाने का कार्य करता है। एक पौराणिक संदर्भ है कि ऋषि दधीचि और पुरूवंशी महाराज शिबि ने किसी की जान बचाने और समाज की भलाई के लिए अपना शरीर दान दे दिया था। इसी तरह के तमाम और भी संदर्भ या मिथक हिन्दू पुराणों में वर्णित हैं जहां जीवित रहते शरीर दान देना सबसे बड़ा दान बताया गया है। पौराणिक मिथकों या पौराणिक संदर्भ दोनों को समझने की जरूरत है। खासकर हिन्दू, जैन, बौद्ध आदि की मान्यताओं को मानने वाले लोगों को। क्योंकि इसमें वर्णन किए गए संदर्भ आध्यात्मिक और रहस्यमय हैं। आम आदमी साधारण ढंग से इनका मतलब नहीं समझ पाता है। विश्व अंगदान दिवस एक महत्वपूर्ण वैश्विक आयोजन है जो 1954 में संयुक्त राज्य अमेरिका में किए गए पहले जीवित दाता अंग प्रत्यारोपण की याद दिलाता है। यह दिन हर साल अंगदान के बारे में जागरूकता बढ़ाने और अधिक लोगों को अंगदान करने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए मनाया जाता है। भारत में पहला सफल मृतक अंग दान 3 अगस्त 1994 को हुआ था। इसलिए, भारत में अंगदान दिवस 2023 से 3 अगस्त को मनाया जाने लगा है। 2023 से पहले, राष्ट्रीय अंगदान दिवस 27 नवंबर को मनाया जाता था, जिसकी शुरुआत 2010 में हुई थी। विश्व अंगदान दिवस प्रतिवर्ष 13 अगस्त को मनाया जाता है। किसी व्यक्ति के जीवन में अंगदान के महत्व को समझने के साथ ही अंगदान करने के लिये आम इंसान को प्रोत्साहित करने के लिये सरकारी संगठनों, सार्वजनिक संस्थानों और दूसरे व्यवसायों से संबंधित लोगों द्वारा हर वर्ष यह दिवस मनाया जाता है ताकि अंगदान के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाई जा सके और लोगों को अंगदान से जुड़ी गलतफहमियों से अवगत कराया जा सके। इस दिवस का एकमात्र उद्देश्य मुख्य रूप से लोगों को मृत्यु के बाद अंगदान के महत्व के बारे में प्रोत्साहित करना और शिक्षित करना है ताकि अधिक से अधिक लोगों की जान बचाई जा सके, जरूरतमंदों की जीवन मुस्कान लौटायी जा सके। गुर्दे, हृदय, अग्न्याशय, आंखें और फेफड़े जैसे अंग दान से पुरानी बीमारियों से पीड़ित लोगों की जान बचाई जा सकती है। इंसान की सम्पत्ति का कोई मतलब नहीं अगर उसे बांटा और उपयोग में नहीं लाया जाए, चाहे वे शरीर के अंग ही क्यों न हो। इस दृष्टि से अंगदान एक महान् दान है, जो हमें स्वर्ग-पथ की ओर अग्रसर करता है। ऐसा दानदाता समाज, सृष्टि एवं परमेश्वर के प्रति अपना कर्त्तव्य पालन करता है। अंग दान-दाता कोई भी हो सकता है, जिसका अंग किसी अत्यधिक जरुरतमंद मरीज को दिया जा सकता है। किसी के द्वारा दिये गये अंग से किसी को नया जीवन मिल सकता है, उसकी जिन्दगी में बहार आ जाती है। इस दिन को मनाने का मुख्य उद्देश्य लोगों को मृत्यु के बाद अंगदान करने का संकल्प दिलाना है। एक मृतक दाता 8 लोगों की जान बचा सकता है और 75 लोगों के जीवन को बेहतर बना सकता है। विश्व अंगदान दिवस की थीम मुख्य रूप से इस पर केंद्रित है। वर्ष 2024 की इस दिवस की थीम है ‘आज किसी की मुस्कान का कारण बनें!’ ‘अंगदान दिवस‘ पूरे विश्व एवं भारत में मनाये जाने वाले महत्त्वपूर्ण दिवसों में से एक है। कोई भी व्यक्ति चाहे, वह किसी भी उम्र, जाति, धर्म और समुदाय का हों, वह अंगदान कर सकता है। भारत ऋषि-मुनियों का देश है, जिन्होंने एक कबूतर के प्राणों व असुरों से जन सामान्य की रक्षा के लिये अपना देहदान कर दिया था। परंतु समय के साथ भारत में अंगदान की प्रवृत्ति में गिरावट देखी गई। निश्चित तौर पर अंगदान करके किसी अन्य व्यक्ति की जिंदगी में नई उम्मीदों का सवेरा लाया जा सकता है। इस तरह अंगदान करने से एक प्रेरणादायी शक्ति पैदा होती है, जो अद्भुत होती है, यह ईश्वर के प्रति सच्ची प्रार्थना है। इस तरह की उदारता व्यक्ति की महानता का द्योतक है, जो न केवल आपको बल्कि दूसरे को भी प्रसन्नता, जीवनऊर्जा प्रदान करती है। अंगदान ऐसी प्रक्रिया है जिसमें किसी जीवित या मृत, दोनों तरह के व्यक्तियों से स्वस्थ अंगों और ऊतकों को लेकर किसी अन्य ज़रूरतमंद व्यक्ति के शरीर में प्रत्यारोपित कर दिया जाता है। प्रत्यारोपित होने वाले अंगों में दोनों गुर्दे (किडनी), यकृत (लीवर), हृदय, फेफड़े, आंत और अग्न्याशय शामिल होते हैं। जबकि ऊतकों के रूप में कॉर्निया, त्वचा, हृदय वाल्व कार्टिलेज, हड्डियों और वेसेल्स का प्रत्यारोपण होता है। आँख, पाचक ग्रंथि, आँत, अस्थि ऊतक, हृदय छिद्र, नसें आदि अंगों का भी दान किया जा सकता है। पूरे देश में ज्यादातर अंग दान अपने परिजनों के बीच में ही होता है अर्थात् कोई व्यक्ति सिर्फ अपने रिश्तेदारों को ही अंग दान करता है। विश्व स्तर पर और भारत जैसे विकासशील देशों में अंग की बढ़ती आवश्यकता को रोकने में मृत दाता महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, क्योंकि एक मृत दाता आठ व्यक्तियों को बचा सकता है। 2021 में, वैश्विक स्तर पर 1,44,302 अंग प्रत्यारोपण हुए, जिनमें से 26.44 प्रतिशत (38,156) मृतक अंग दान के हैं। भारत ने कुल 12,259 प्रत्यारोपण किए, जो वैश्विक प्रत्यारोपण में 8 प्रतिशत का योगदान देता है, जिसमें प्रमुख प्रत्यारोपण गुर्दे (74.27 प्रतिशत), उसके बाद लीवर (23.22 प्रतिशत), हृदय (1.23 प्रतिशत), फेफड़े (1.08 प्रतिशत), अग्न्याशय (0.15 प्रतिशत) और छोटी आंत (0.03 प्रतिशत) के हैं। एक शोध रिपोर्ट के अनुसार, 2021 की तुलना में, भारत में क्रमशः किडनी (759), लिवर (279) और हृदय (99) में 1137 अधिक मृत अंग प्रत्यारोपण की सूचना मिली है। हालांकि, भारतीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुमान के अनुसार, मांग को पूरा करने के लिए लगभग 175,000 किडनी, 50,000 लिवर, हृदय और फेफड़े और 2,500 अग्न्याशय की आवश्यकता है। प्रत्यारोपण की संख्या और अंग उपलब्ध होने की संख्या के बीच एक बड़ा अंतराल है। अंगदान जीवन के लिये अमूल्य उपहार है। अंगदान उन व्यक्तियों को किया जाता है, जिनकी बीमारियाँ अंतिम अवस्था में होती हैं तथा जिन्हें अंग प्रत्यारोपण की आवश्यकता होती है। जीवित व्यक्ति के लिये अंगदान के समय न्यूनतम आयु 18 वर्ष होना अनिवार्य है। साथ ही अधिकांश अंगों के प्रत्यारोपण का निर्णायक कारक व्यक्ति की शारीरिक स्थिति होती है, उसकी आयु नहीं। जीवित अंगदाता द्वारा एक किडनी, अग्न्याशय, और यकृत के कुछ हिस्से दान किये जा सकते हैं। कॉर्निया, हृदय वाल्व, हड्डी और त्वचा जैसे ऊतकों को प्राकृतिक मृत्यु के पश्चात् दान किया जा सकता है, परंतु हृदय, यकृत, गुर्दे, फेफड़े और अग्न्याशय जैसे अन्य महत्त्वपूर्ण अंगों को केवल ब्रेन डेड के मामले में ही दान किया जा सकता है। अंगदान और प्रत्यारोपण ‘मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम (टीएचओए) 1994 के अंतर्गत आता है, जो फरवरी 1995 से लागू हुआ। इस अधिनियम के अनुसार अंगदान सिर्फ उसी अस्पताल में ही किया जा सकता है, जहां उसे ट्रांसप्लांट करने की भी सुविधा हो। यह अपने आप में बेहद मुश्किल नियम था। इस नियम से दूर-दराज के इलाकों के लोगों का अंगदान तो हो ही नहीं पाता था। इस समस्या को देखते हुए सरकार द्वारा 2011 में इस अधिनियम को संशोधित किया गया। नए नियम के मुताबिक अंगदान अब किसी भी आईसीयू में किया जा सकता है अर्थात उस अस्पताल में ट्रांसप्लांट न भी होता हो, लेकिन आईसीयू है, तो वहां भी अंगदान किया जा सकता है। केवल भारत में ही नहीं दुनिया में हर साल लाखों लोगों के शरीर के अंग खराब होने के कारण मृत्यु हो जाती है। दुनियाभर में रक्तदान के प्रति जागरूकता की वजह से बड़े पैमाने पर लोगों ने इसका महत्व समझा और आगे आकर स्वेच्छा से रक्तदान करने लगे हैं, उसी प्रकार अंगदान के प्रति वैश्विक जागरूकता की महत्ती आवश्यकता है। रक्तदान के बाद दूसरे स्थान पर है नेत्रदान। लोग अब नेत्रदान के लिए भी आगे आने लगे हैं। तथ्य बताते हैं कि वैश्विक स्तर पर अंगदान में भारत की हिस्सेदारी बहुत ही कम है। यहाँ प्रति 10 लाख पर मात्र 0.15 लोगों द्वारा ही अंगदान किया जाता है। जब की प्रति 10 लाख पर अमेरिका में 27, क्रोएशिया में 35 एवं स्पेन में 36 लोग अंगदान करते हैं। अंगदान का पूरा रिकार्ड संधारित किया जाता है जिसकी जानकारी ‘‘नेशनल ऑर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट ऑर्गेनाइजेशन‘‘ को दी जाती है। 65 वर्ष उम्र तक के वे व्यक्ति जिनका ब्रेन डेड घोषित कर दिया गया हैं वे अंगदान कर सकते हैं। ऐसे व्यक्ति का 4 घंटे तक दिल एवं फेफड़े, 6 से 12 घंटे तक किडनी, 6 घंटे तक लिवर, 24 घंटे तक पेनक्रियाज एवं 5 साल तक टिश्यू को सुरक्षित रख जा सकता है। प्राकृतिक मौत पर दिल के वाल्व, कॉर्निया, त्वचा एवं हड्डी जैसे ऊतकों का दान किया जा सकता है। भारत के आम नागरिकों में अंगदान को लेकर उचित शिक्षा और जागरूकता का अभाव है। अधिकांश लोग मृत्यु के बाद जीवन एवं पारलौकिक विश्वासों में जीता है। अतः शरीर के अंगों में काट-छाँट उन्हें प्रकृति व धर्म के विपरीत लगता है। इसके अलावा समाज में व्याप्त अंधविश्वास, अंगदान के प्रति लोगों में स्पष्ट अवधारणा का अभाव में भय एवं मिथक, दूर दराज क्षेत्रों में सुविधाओं का अभाव, मानसिक तौर पर मृत व्यक्ति के परिजनों की सहमति नहीं मिल पाना, अस्पताल में अंग लेने के साधनों का अभाव और सबसे ऊपर जागरूकता का अभाव ऐसी चुनौतियां है जिन पर गहन चिंतन-मनन करते हुए अंगदान को व्यापक बनाया जा सकता हैं। लोगों को खासकर ब्रेन डेड मरीज के परिजनों को समझना होगा कि अंगदान सबसे बड़ा दान एवं पुण्य का काम है। अंगदान कर आप किसी जरूरतमंद व्यक्ति का जीवन बचा कर उसके जीवन में मुस्कान लाकर, पुण्य कमाने में पहल कर समाज में उदाहरण बन सकते हैं। भारत में तो शिक्षित और अशिक्षित दोनों वर्गों में अंगदान करने की आदत या स्थिर विचार बेहद कम हैं। केंद्र और राज्य सरकारें जो जागरूकता अभियान इस बाबत चलाती रहीं हैं वे लोगों को प्रभावित करने में बहुत कम असरदायक रहे हैं।
यदि हम अंगदान को इंसान का सबसे पवित्र कर्तव्य मानें तो इसके प्रति हममें पल रहीं तमाम तरह की गलत या उल्टी सोच को बदलने में सहूलियत होगी। क्योंकि अंगदान धर्म, जाति, क्षेत्र, देश, उम्र और वर्ण से हट कर किया जाता है। कोई भी व्यक्ति अपना कोई भी अंग दुनिया के किसी भी जगह दान कर सकता है। अंगदान तो जीवनदान का ही हिस्सा है। फिर यह धर्म के विरुद्ध कैसे हो गया? क्या ईश्वर अपने किसी संतान को बेहतर स्थिति में नहीं देखना चाहता? सेवा को मानवता का सबसे बड़ा धर्म कहा गया है, उसे यदि हम किसी को जीवन देने के लिए समर्पित कर दें तो, मानवता के लिए इससे बड़ी सेवा क्या हो सकती है? हमारी जिंदगी भी यदि इसी तरह खूबसूरत बगैर किसी को एहसान जताए काम आ जाए तो, इससे अच्छा जिंदगी का मकसद क्या कोई हो सकता है? इस पर विचार करेंगे तो इस बार अंगदान दिवस पर आप भी अंगदान करने का संकल्प लेंगे ही नहीं, बल्कि दूसरों को भी इसके लिए प्रेरित करेंगे।
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