उदन्तपुरी (द लैंड ऑफ मिरेकल्स) पुस्तक का विमोचन साहित्यकारों ने किया ...!!
बिहारशरीफ, 15 सितम्बर 2024 : रविवार को शंखनाद के तत्वावधान में स्थानीय बिहारशरीफ के राजाकुआँ स्थित एस.पी.वर्मा कॉलेज स्थित सभागार में शंखनाद साहित्यिक मंडली के अध्यक्ष व प्रदेश के प्रख्यात इतिहासज्ञ व पुरातत्ववेत्ता डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह एवं प्रो. डॉ.सच्चिदानंद प्रसाद वर्मा द्वारा लिखित ऐतिहासिक शोध पुस्तक “उदन्तपुरी (द लैंड ऑफ मिरेकल्स)” का विमोचन किया गया।
विमोचन समारोह के मुख्य अतिथि बिहार प्रशासनिक सेवा के अधिकारी साहित्यकार सुबोध कुमार सिंह, लक्ष्मण भगत, पूर्व जिला सत्र न्यायाधीश दामोदर प्रसाद, बिहार के सूचना एवं जन-सम्पर्क उप निदेशक लाल बाबू सिंह एवं शंखनाद परिवार द्वारा किया गया। समारोह की अध्यक्षता पूर्व जिला एवं सत्र न्यायाधीश नालन्दा दामोदर प्रसाद ने किया।
पुस्तक विमोचन के मौके पर विषय प्रवेश कराते हुए शंखनाद के महासचिव साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा ने लोकार्पित पुस्तक और शंखनाद के उपलब्धियों के बारे में बताते हुए कहा कि शंखनाद नालन्दा ने अपने स्थापना काल से कई ऐतिहासिक, साहित्यिक कृतियों के सृजन के क्षेत्र में निरंतर अग्रसर है। इस कड़ी में आज पुरातत्ववेत्ता डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह एवं प्रो. डॉ.सच्चिदानंद प्रसाद वर्मा की “उदन्तपुरी (द लैंड ऑफ मिरेकल्स)” पुस्तक का विमोचन किया गया। उन्होंने पुस्तक के बारे में बताते हुए कहा कि उदंतपुरी (द लैंड ऑफ मिरेकल्स) एक ऐतिहासिक पुस्तक है, जो पूर्णतः प्रामाणिक शोध पर आधारित है।
समारोह में अध्यक्षता करते हुए न्यायाधीश दामोदर प्रसाद ने बताया कि इस किताब में बिहार शब्द के उद्भव से लेकर वर्तमान तक का क्रमबद्ध इतिहास है। उदन्तपुरी एक राजा की राजधानी, एक प्राकारवेष्ठित (किलेबंद) नगर तथा एक अन्तर्राष्ट्रीय बौद्ध विहार की ऐतिहासिक भूमि है। इसका निर्माण राजा विशाल ने लगभग नौवीं शताब्दी ईसा पूर्व में कराया था। जबकि गुप्तवंश की उपराजधानी थी, जिसकि शिलालेख ब्रॉडले द्वारा कराई खुदाई में प्राप्त हुआ था।
समारोह के मुख्य अतिथि बिहार प्रशासनिक सेवा के अधिकारी साहित्यकार सुबोध कुमार सिंह ने कहा कि इतिहासज्ञ डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह की यह ऐतिहासिक पुस्तक बहुत ही दुर्लभ है। यह ऐतिहासिक पुस्तक वर्षों की क्रमिक अनुसंधान का प्रतिफल है। उन्होंने कहा- उदंतपुरी की मिट्टी में भारत के प्राचीन राजवंशों का इतिहास छिपा हुआ था, जिसे इस ऐतिहासिक पुस्तक “उदन्तपुरी (द लैंड ऑफ मिरेकल्स)” के द्वारा विश्व पटल पर लाया गया है। सूचना एवं जन-सम्पर्क उप निदेशक लाल बाबू सिंह ने कहा कि इस पुस्तक में इतिहासज्ञ द्वय ने उदंतपुरी से संबंधित सभी प्राचीन ऐतिहासिक तथ्यों एवं साक्ष्यों को संग्रहित कर लिखा है। शंखनाद साहित्यिक मंडली के सौजन्य से लोकार्पण के इस कार्यक्रम को देखकर बहुत प्रसन्नता हो रही है। उम्मीद है डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह का अनुगमन कर शोधार्थी, युवा लेखक, साहित्य लेखन की परंपरा को उत्साह के साथ सदैव आगे बढ़ाते रहेंगे।
पूर्व प्रशासनिक अधिकारी लक्ष्मण भगत ने कहा कि उदंतपुरी (बिहारशरीफ) के ऊपर शोध ग्रंथ लिखना लेखक डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह एवं प्रो.सच्चिदानन्द प्रसाद वर्मा की बहुत बड़ी उपलब्धि है, जो आने वाले समय में संदर्भ ग्रंथ के रूप में लिया जाएगा इनकी यह पुस्तक मील का पत्थर साबित होगीं।
समारोह के सम्मानित अतिथि साहित्यकार शैलेन्द्र कुमार ने कहा कि डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह की यह पुस्तक भारत के प्राचीन ऐतिहासिक संदर्भों को रोचकता के साथ चिंहित किया गया है। इस पुस्तक में उन कमियों को उजागर किया गया है जिसे पूर्ववर्ती इतिहासकारों ने छोड़ दिया है।
इस समारोह में उपस्थित पूर्व पुलिस उपाधीक्षक मुंद्रिका प्रसाद ने कहा कि इस पुस्तक को पूरा पढ़ने का मौका नही मिला है लेकिन कुछ पन्नों को पढ़कर लगता है कि लेखक डॉ लक्ष्मीकांत सिंह ने उदंतपुरी के इतिहास को इस पुस्तक में शोधकर्ताओं के लिए प्रस्तुत किया है।
हिन्दी के उद्भट विद्वान प्रो शकील अहमद अंसारी ने कहा कि उदन्तपुरी का इतिहास मगध की राजधानी राजगीर के समकालीन है। यहाँ पर प्राचीन नगर के साइक्लोपीयन दीवार (बृहत्पाषाण प्राचीर) के अवशेष और राजगीर पहाड़ी पर बने साइक्लोपीयन दीवार की बनावट में तकनीकी समानता है।
मो. जाहिद हुसैन ने बताया कि उदन्तपुरी महाविहार को अन्तर्राष्ट्रीय शिक्षा संस्थान की ख्याति मिली थी, जिसका मॉडल तिब्बत में साम-ये विहार बना हुआ है। यह भारत का ही नहीं विश्व का पहला विश्वविद्यालय है, जिसकी प्रतिकृति तिब्बत में मौजूद है। उर्दू व फारसी के विद्वान बेनाम गिलानी ने कहा कि इस ऐतिहासिक पुस्तक “उदन्तपुरी (द लैंड ऑफ मिरेकल्स)” में सिर्फ़ जमी हुई धूल और छाए हुए कोहरे को हटाया गया है, ताकि इसके स्वर्णिम अतीत की झलक से लोग परिचित हो सकें।
मौके पर इतिहासज्ञ लेखक डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह ने बताया कि यह ऐतिहासिक शोध ग्रंथ है। इसमें ईसा पूर्व 9वीं से लेकर वर्तमान बीसवीं शताब्दी की अप्रकाशित तथ्यों एवं ऐतिहासिक सबूतों को पेश किया गया है। उदंतपुरी का संबंध भगवान बुद्ध, सम्राट अशोक, गुप्तवंश के साथ पालवंश से जुड़ा हुआ है। ब्रिटिश अनुसंधानकर्ताओं ने इसके इतिहास को खोजने काफी रूचि लिया था, जिसके कारण आज हम उदन्तपुरी को जान पा रहे हैं।
वैज्ञानिक डॉ. आनंद वर्द्धन ने कहा कि उदन्तपुरी का इतिहास, नालंदा से भी प्राचीन है। पाँचवी शताब्दी में यहाँ फाहियान आया था और उसने यात्रावृत्तांत में लिखा है कि भगवान बुद्ध इस पहाड़ी के गुफा में बैठे थे।
पुस्तक के लेखक प्रोफेसर सच्चिदानंद प्रसाद वर्मा ने समारोह में पधारे तमाम लोगों के प्रति आभार व्यक्त करते हुए धन्यवाद ज्ञापित किया।
इस समारोह में प्रोफेसर जितेंद्र कुमार सिंह, समाज सेवी शिवकुमार कुशवाहा, पुरषोत्तम कुमार पाण्डेय, धनञ्जय कुमार, राजहंश कुमार, राजीव रंजन पाण्डेय, रामसागर राम, शायर तंग अय्यूवी, रणजीत कुमार पासवान, जयंत कुमार अमृत, एस.पी.वर्मा कॉलेज के प्रोफेसर, कर्मचारी सहित शहर के गणमान्य प्रबुद्धजन, शिक्षाविद् , साहित्यकार आदि लोग काफी संख्या में मौजूद थे।
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