हावड़ा ब्रिज के बीच में कोई पाया नहीं है और न ही नट-बोल्ट..!!

लेखक :- साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा, महासचिव शंखनाद साहित्यिक मंडली
हावड़ा का इतिहास समृद्ध और पुराना है। यह पश्चिम बंगाल का एक प्रमुख शहर है और हावड़ा ज़िले का मुख्यालय है। हावड़ा कोलकाता महानगर क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और हुगली नदी के पश्चिमी तट पर स्थित है। हावड़ा का इतिहास मुख्य रूप से औपनिवेशिक काल से जुड़ा हुआ है। 17वीं और 18वीं शताब्दी में, जब ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत में अपने कदम बढ़ाए, हावड़ा का क्षेत्र एक महत्वपूर्ण व्यापारिक केंद्र बन गया। 1854 में, हावड़ा रेलवे स्टेशन की स्थापना हुई, जो भारत का पहला रेलवे स्टेशन था। इसने हावड़ा को व्यापार और उद्योग के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र बना दिया। आधुनिक समय में, हावड़ा कोलकाता से हावड़ा ब्रिज (रवींद्र सेतु) द्वारा जुड़ा हुआ है, जो हुगली नदी पर बना एक प्रसिद्ध पुल है। यह पुल हावड़ा और कोलकाता के बीच यातायात का मुख्य साधन है और इसे इंजीनियरिंग का एक अद्भुत नमूना माना जाता है। हावड़ा का औद्योगिक विकास भी महत्वपूर्ण है। यहां कई बड़े-बड़े कारखाने और उद्योग स्थापित हैं, जिनमें से कई भारत की स्वतंत्रता से पहले के हैं। हावड़ा का सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन भी विविधतापूर्ण है, जिसमें बंगाली संस्कृति का महत्वपूर्ण योगदान है। समग्र रूप से, हावड़ा का इतिहास आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण है और यह शहर आज भी पश्चिम बंगाल और भारत के विकास में एक प्रमुख भूमिका निभाता है।

गेटवे आफ कोलकाता के नाम से मशहूर हावड़ा ब्रिज :

गेटवे आफ कोलकाता के नाम से मशहूर इस हावड़ा ब्रिज को नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्र नाथ टैगोर के नाम पर रवींद्र सेतु कहा जाता है। हावड़ा ब्रिज का निर्माण वर्ष 1986 में पूरा हुआ था, इसलिए ब्रिज को बने हुए आज 38 वर्ष पूरे हो चुके हैं। हाउड़ा ब्रिज कोलकाता पश्चिम बंगाल, भारत में स्थित एक प्रमुख सेतु है। यह कोलकाता के हुगली नदी पर बना हुआ है और भारतीय राष्ट्रीय सड़क 2 (NH2) को जोड़ता है। हाउड़ा ब्रिज अपनी अद्वितीय इमारती शैली और इंजीनियरिंग की वजह से प्रसिद्ध है। यह ब्रिज ब्रिटिश शासनकाल में बनाया गया था और उस समय कोलकाता के नाम से जाना जाता था। यह ब्रिज अस्थायी ढांचे पर निर्मित था, लेकिन इसकी अद्यतन और मजबूती कार्यक्रमों द्वारा इसे स्थायी ढांचे पर बदल दिया गया है।

हाउड़ा ब्रिज और कोलकाता का अनुपम इतिहास :

हावड़ा वास्तव में एक समृद्धशाली शहर रहा है। यह अपनी विविधतापूर्ण आर्थिक, सांस्कृतिक, और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के कारण महत्वपूर्ण है। इसके प्रमुख बिंदुओं में शामिल हैं:

हावड़ा एक औद्योगिक केंद्र: 

हावड़ा ने औद्योगिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। यहां कई प्रमुख उद्योग और कारखाने स्थापित हैं, जैसे लोहे और इस्पात, जूट, रसायन, और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में। हावड़ा के कई उद्योग भारत की स्वतंत्रता से पहले से सक्रिय हैं।

परिवहन केंद्र : 

हावड़ा रेलवे स्टेशन भारत का सबसे पुराना और सबसे व्यस्त रेलवे स्टेशन है। यह स्टेशन पूर्वी भारत को देश के अन्य हिस्सों से जोड़ता है। इसके अलावा, हावड़ा ब्रिज (रवींद्र सेतु) कोलकाता और हावड़ा के बीच एक महत्वपूर्ण संपर्क साधन है।

हावड़ा एक सांस्कृतिक धरोहर: 

हावड़ा का सांस्कृतिक जीवन बहुत समृद्ध है। यहां विभिन्न त्योहार, नृत्य, संगीत और कला के अन्य रूपों का प्रदर्शन होता है। बंगाली संस्कृति का यहां गहरा प्रभाव है।

शैक्षणिक और स्वास्थ्य सुविधाएं: 

हावड़ा में कई प्रमुख शैक्षणिक संस्थान और स्वास्थ्य सुविधाएं हैं जो इसे एक प्रमुख शिक्षा और स्वास्थ्य केंद्र बनाते हैं।
हावड़ा वाणिज्यिक केंद्र: 

हावड़ा का व्यापारिक क्षेत्र भी बहुत विस्तृत है, जिसमें विभिन्न प्रकार की व्यापारिक गतिविधियाँ होती हैं। हावड़ा का बाजार, विशेष रूप से, विभिन्न वस्तुओं और सेवाओं का प्रमुख केंद्र है। समग्र रूप से, हावड़ा ने अपने आर्थिक, सांस्कृतिक और सामाजिक विकास के कारण एक समृद्धशाली शहर के रूप में अपनी पहचान बनाई है।

हावड़ा ब्रिज पश्चिम बंगाल, कोलकाता और हावड़ा को जोड़ने ब्रिज :

हावड़ा ब्रिज पश्चिम बंगाल के कोलकाता और हावड़ा को जोड़ने वाला एक ब्रिज है। यह असल में एक "कैंटिलिवर पुल" यानी झूले जैसा पुल है जो केवल 4 खंबों पर टिका है। इस पुल में एक भी नट बोल्ट नहीं है और यह अपनी तरह का छठा सबसे बड़ा पुल है। इस पुल का मूल नाम "न्यू हावड़ा ब्रिज" था पर 14 जून 1965 में इसका नाम महाकवि रबीन्द्रनाथ टैगोर की स्मृति में रवींद्र ब्रिज रख दिया गया। आज भी यह हावड़ा ब्रिज के नाम से ज़्यादा जाना जाता है। वर्ष 1937 से 1942 के बीच बने इस ब्रिज को आम लोगों के लिए 3 फरवरी 1943 को खोला गया था। लेकिन जापानी सेना की बमबारी के डर से उस दिन कोई बड़ा समारोह आयोजित नहीं किया गया। पहले हावड़ा व कोलकाता के बीच ठीक उसी जगह एक पीपे का पुल था। 14 जून, 1965 को इस ब्रिज का नाम बदल कर रवींद्र सेतु कर रखा गया था। 18वीं सदी में हुगली नदी पार करने के लिए कोई ब्रिज नहीं था। तब नावें ही नदी पार करने का एकमात्र जरिया थीं। बंगाल सरकार ने 1862 में ईस्ट इंडिया रेलवे कंपनी के चीफ इंजीनियर जार्ज टर्नबुल को हुगली पर ब्रिज की संभावनाओं का पता लगाने का काम सौंपा था। हावड़ा ब्रिज बंगाल सरकार की ओर से वर्ष 1871 में हावड़ा ब्रिज अधिनियम पारित होने के बाद वर्ष 1874 में सर ब्रेडफोर्ड लेसली ने नदी पर पीपे के पुल का निर्माण कराया था। उससे पहले जार्ज ने ही हावड़ा में कंपनी का रेलवे टर्मिनस तैयार किया था। वर्ष 1874 में 22 लाख रुपए की लागत से नदी पर पीपे का एक पुल बनाया गया जिसकी लंबाई 1528 फीट और चौड़ाई 62 फीट थी।
वर्ष 1906 में हावड़ा स्टेशन बनने के बाद धीरे-धीरे ट्रैफिक और लोगों की आवा-जाही बढ़ने पर इस पुल की जगह एक फ्लोटिंग ब्रिज बनाने का फैसला हुआ। लेकिन तब तक पहला विश्वयुद्ध शुरू हो गया था। नतीजतन काम ठप हो गया। वर्ष 1922 में न्यू हावड़ा ब्रिज कमीशन का गठन करने के कुछ साल बाद इसके लिए निविदाएं आमंत्रित की गईं। तब जर्मनी की एक फर्म ने सबसे कम दर की निविदा जमा की थी। लेकिन वर्ष 1935 के दौरान जर्मनी व ग्रेट ब्रिटेन के आपसी संबंधों में भारी तनाव रहने की वजह से जर्मनी की फर्म को ठेका नहीं दिया गया। बाद में वह काम ब्रेथवेट, बर्न एंड जोसेप कंस्ट्रक्शन कंपनी को सौंपा गया। इसके लिए ब्रिज निर्माण अधिनियम में संशोधन किया गया।
कोलकाता का हावड़ा ब्रिज एक नायाब नमूना :

इस कैंटरलीवर पुल को बनाने में 26 हजार 500 टन स्टील का इस्तेमाल किया गया है। इसमें से 23 हजार पांच सौ टन स्टील की सप्लाई टाटा स्टील ने की थी। बन कर तैयार होने के बाद यह दुनिया में अपनी तरह का तीसरा सबसे लंबा ब्रिज था। पूरा ब्रिज महज नदी के दोनों किनारों पर बने 280 फीट ऊंचे दो पायों पर टिका हुआ है। 2150 फीट लंबा यह ब्रिज इंजीनियरिंग का एक नायाब नमूना है। इसके दोनों पायों के बीच की दूरी 1500 फीट है। इसकी खासिय़त यह है कि इसके निर्माण में स्टील की प्लेटों को जोड़ने के लिए नट-बोल्ट की बजाय धातु की बनी कीलों यानी रिवेट्स का इस्तेमाल किया गया है।
हाउड़ा ब्रिज का लंबाई 705 मीटर है और इसका अद्यतित नाम "रबिन्द्र सेतु" है, जो बांगला रचनाकार रबीन्द्रनाथ टैगोर के नाम पर रखा गया है। यह ब्रिज पर्यटन स्थल के रूप में भी प्रसिद्ध है और कोलकाता का प्रतीक माना जाता है। हाउड़ा ब्रिज की अद्यतन और महत्वपूर्णता के कारण यह एक महत्वपूर्ण इंजीनियरिंग उपलब्धि का प्रतीक बना हुआ है।
हाउड़ा ब्रिज का निर्माण इंजीनियरिंग महाशय रामरतन बागची के नेतृत्व में ब्रिटिश कंपनी रीड एंड स्ट्रापलर इंजीनियर्स द्वारा किया गया था। इस ब्रिज की योजना और निर्माण में अनेक अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों और इंजीनियरों का सहयोग लिया गया। यह निर्माण कार्य 1936 में पूरा हुआ।
हाउड़ा ब्रिज का निर्माण करने के लिए पहले इसकी विस्तृत योजना तैयार की गई। इसके लिए इंजीनियरों ने विशेष ध्यान देते हुए ब्रिज के आधारभूत ढांचे का निर्धारण किया और तकनीकी विवरण तैयार किए। इसके बाद, भूमिगत अध्ययन और मापदंडों का अनुसरण करके उपयुक्त स्थान चयनित किया गया।
निर्माण कार्य के दौरान, ब्रिज के स्थापना के लिए स्थूल कच्चे मटेरियल का उपयोग किया गया, जिसमें इस्पात और बेतने का प्रयोग नहीं हुआ। इसके लिए धातु और इतर सामग्री को गर्म करके उन्हें एक साथ मिलाया गया और निर्मित ढांचे पर तारों की वेवर प्रणाली लगाई गई। इस तरीके से, एक अद्वितीय ढांचा निर्मित किया गया जो आधुनिक इंजीनियरिंग का उदाहरण है।
हाउड़ा ब्रिज का निर्माण मुख्य रूप से माटीले सवार और तार लगाने के प्रक्रिया के माध्यम से हुआ। निर्माण के दौरान ब्रिज की ऊँचाई और ट्रेलरों के बारे में सावधानी बरती गई। निर्माण कार्य के दौरान तकनीकी समस्याओं का समाधान किया गया और सुरक्षा पर खास ध्यान दिया गया। आज, हाउड़ा ब्रिज एक प्रमुख पर्यटन स्थल है और यह भारतीय इंजीनियरिंग की महानता का प्रतीक माना जाता है।
अब इससे रोजाना लगभग सवा लाख वाहन औऱ पांच लाख से ज्यादा पैदल यात्री गुजरते हैं। ब्रिज बनने के बाद इस पर पहली बार एक ट्राम गुजरी थी। वर्ष 1993 में ट्रैफिक काफी बढ़ जाने के बाद ब्रिज पर ट्रामों की आवाजाही बंद कर दी गई। द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान जापानी सेना ने इस ब्रिज को नष्ट करने के लिए भारी बमबारी की थी। लेकिन संयोग से इसे कोई नुकसान नहीं पहुंचा। उस बमबारी को ध्यान में रखते हुए ब्रिज के तैयार होने के बाद कोई उद्घाटन समारोह आयोजित नहीं किया गया। जापानी सेना ने 1941 में पर्ल हार्बर पर हमला किया था। इससे अंग्रेज डरे हुए थे।

हावड़ा ब्रिज से कोलकाता शहर की पहचान :

साल 1936 में इसका निर्माण कार्य शुरू हुआ था और 1942 में ये पूरा हो गया। 3 फ़रवरी 1943 को इसे जनता के लिए खोल दिया था। 2018 में इसके 75 साल पूरे होने के मौके पर इसके संरक्षक कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट और इसे बनाने के लिए स्टील की सप्लाई करने वाली टाटा स्टील ने मिल कर यहां एक भव्य कार्यक्रम आयोजित किया। इस ब्रिज को रंग-बिरंगे प्रकाश से सजाया गया। हावड़ा ब्रिज इंजीनियरिंग का महज एक नायाब नमूना ही नहीं है। यह ब्रिज देश और दुनिया के लोगों के लिए कोलकाता की पहचान है। 
द्वितीय विश्वयुद्ध ने टाटा स्टील को पूरी दुनिया के अलावा खुद के समक्ष भी यह साबित करने का मौका दिया कि 1940 के दौर में भी उसके पास टिसक्रोम नामक एलाय स्टील बनाने की तकनीक है।  कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट इस ब्रिज की देखरेख करने के साथ ही नियमित रूप से मरम्मत भी करता रहता है। इसके अलावा समय-समय पर ब्रिज की स्थिति का पता लगाने के लिए विभिन्न शोध संस्थानों की ओर से अध्ययन भी कराए जाते हैं।
साल 2011 में एक रिपोर्ट में यह बात सामने आई थी कि तंबाकू थूकने की वजह से ब्रिज के पायों की मोटाई कम हो रही है। इसके बाद इस पुल को बचाने के लिए स्टील के पायों को नीचे फाइबर ग्लास से ढंक दिया गया। इसमें लगभग 20 लाख रुपये खर्च हुए थे।

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