गणेश जी का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक महत्व..!

लेखक :- साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा, महासचिव शंखनाद साहित्यिक मंडली

गणेश पुराण के अनुसार भगवान गणेश का जन्म भाद्रमास की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को हुआ था। इसलिए हर साल भाद्र मास में शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को गणेश उत्सव मनाया जाता है। 
भगवान गणेश ज्ञान और आनंद के अवतार हैं। वह ब्रह्मचारियों में सबसे अग्रणी हैं। वह आध्यात्मिक मार्ग में सभी बाधाओं को दूर करते हैं और सांसारिक सफलता भी दिलाते हैं। सभी बाधाओं को दूर करने वाले, प्रणव स्वरूपी, ज्ञान के अवतार। मूलाधार चक्र के देवता! हे भगवान विनायक। सुख देने वाले, जिनके हाथों में मोदक है!
जब भी हम कोई पूजा या अनुष्ठान करते हैं तो सर्वप्रथम गौरी नंदन गणेशजी की उपासना करते हैं। सभी देवताओं में प्रथम पूज्य माने जाने वाले गणेश जी का अवतरण दिवस गणेश चतुर्थी का पावन पर्व देश ही नहीं। अपितु विश्वभर के सनातन धर्मावलम्बियों द्वारा बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। चारों तरफ उत्सव ही उत्सव, बस सबके मन में एक ही इच्छा कि हे विघ्नहर्ता हमारे भी बिगड़े काम बनाओ। जो भी भक्ति भाव से इन्हें पुकारता है गणपति उनकी मनोकामना अवश्य ही पूरी करते हैं। बड़े ही मनमोहक से दिखने वाले गणेश जी के भव्य और दिव्य स्वरुपए शारीरिक संरचना में भी विशिष्ट व गहरा अर्थ निहित है। गणेश जी का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक महत्व दोनों ही गहरे और व्यापक हैं। गणपति उपासना दरअसल स्व जागरण की एक तकनीकी और वैज्ञानिक प्रक्रिया है।
वैज्ञानिक महत्व :
 मस्तिष्क और शरीर के संतुलन का प्रतीक : गणेश जी का बड़ा सिर और छोटा शरीर वैज्ञानिक रूप से मस्तिष्क और शरीर के बीच सही संतुलन का प्रतीक है। यह इस बात का प्रतीक है कि बुद्धि (इंटेलिजेंस) का सही उपयोग करके जीवन की समस्याओं को हल किया जा सकता है।
गणेश जी का बड़ा मस्तक : गणेश जी का मस्तक काफी बड़ा है। अंग विज्ञान के अनुसार बड़े सिर वाले व्यक्ति नेतृत्व करने में योग्य होते हैं। इनकी बुद्घि कुशाग्र होती है। गणेश जी का बड़ा सिर यह भी ज्ञान देता है कि अपनी सोच को बड़ा बनाए रखना चाहिए।
गणेश की छोटी आंखें : गणेश की आंखें छोटी हैं। अंग विज्ञान के अनुसार छोटी आंखों वाले व्यक्ति चिंतनशील और गंभीर प्रकृति के होते हैं। गणेश जी की छोटी आंखें यह ज्ञान देती है कि हर चीज को सूक्ष्मता से देख-परख कर ही कोई निर्णय लेना चाहिए। ऐसा करने वाला व्यक्ति कभी धोखा नहीं खाता।
सूंड का आकार : गणेश जी की सूंड बहुत लचीली होती है, जो हर स्थिति में आसानी से मुड़ सकती है। यह हमारे मस्तिष्क की न्यूरोप्लास्टीसिटी का प्रतीक है, जो जीवन की चुनौतियों के अनुसार ढलने और खुद को पुनर्संरचित करने की क्षमता रखता है।
गणेश जी के बड़े कान : यह इस बात का प्रतीक है कि व्यक्ति को सुनने की क्षमता को विकसित करना चाहिए। सुनना वैज्ञानिक दृष्टिकोण से बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह मस्तिष्क को सही जानकारी ग्रहण करने और विश्लेषण करने में मदद करता है।
 गणेश जी के चार हाथ : चार हाथों का होना वैज्ञानिक दृष्टि से हमारे जीवन के चार प्रमुख पहलुओं का संकेत करता है – मन, बुद्धि, आत्मा और शरीर। इन चारों के बीच तालमेल बैठाकर ही मनुष्य जीवन में संतुलन बना सकता है।
 गणेश जी के मूषक वाहन : मूषक (चूहा) को गणेश जी का वाहन माना जाता है, जो सूक्ष्मता और धैर्य का प्रतीक है। चूहा हर छोटी दरार में प्रवेश कर सकता है, ठीक उसी प्रकार हमें भी जीवन की हर छोटी समस्या को ध्यान से देखना और समझना चाहिए।

आध्यात्मिक महत्व :

 गणेश जी विघ्नहर्ता : गणेश जी को विघ्नहर्ता यानी बाधाओं को दूर करने वाला माना जाता है। आध्यात्मिक दृष्टिकोण से, यह इस बात का संकेत है कि जब हम अपने अंदर के अवरोधों को दूर करते हैं, तब ही हम अपने आध्यात्मिक पथ पर आगे बढ़ सकते हैं।
 आध्यात्मिक जागरूकता का प्रतीक : गणेश जी की बड़ी आँखें और लंबी सूंड यह दर्शाती हैं कि व्यक्ति को जीवन में सूक्ष्म दृष्टिकोण से देखना चाहिए और गहराई से चीजों को समझना चाहिए। यह आध्यात्मिक जागरूकता को बढ़ाने में सहायक है।
 गणेश जी की मुद्रा (अभय मुद्रा) : गणेश जी के हाथ की अभय मुद्रा यह दर्शाती है कि व्यक्ति को निडर रहकर अपने जीवन की चुनौतियों का सामना करना चाहिए। यह आध्यात्मिक दृष्टिकोण से मानसिक शांति और स्थिरता का प्रतीक है।
प्रसन्नता और संतोष का प्रतीक : गणेश जी का हंसमुख चेहरा हमें यह सिखाता है कि जीवन में चाहे कितनी भी समस्याएं क्यों न आएं, हमें हमेशा सकारात्मक और प्रसन्नचित्त रहना चाहिए। यह आध्यात्मिक विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
आध्यात्मिक ध्यान और साधना : गणेश जी का बड़ा पेट यह दर्शाता है कि व्यक्ति को अपने जीवन में धैर्य और सहनशीलता का अभ्यास करना चाहिए, और हर अनुभव को समाहित करके आध्यात्मिक मार्ग पर आगे बढ़ना चाहिए। गणेश जी का वैज्ञानिक और आध्यात्मिक महत्व हमें सिखाता है कि जीवन में समस्याओं से लड़ने के लिए केवल बाहरी प्रयास ही नहीं, बल्कि आंतरिक समझ, संतुलन, और मानसिक शांति की भी आवश्यकता होती है। गणेश जी का स्वरूप हमें यही संदेश देता है कि जीवन में सही दिशा में आगे बढ़ने के लिए बुद्धि, धैर्य, और ध्यान का समन्वय आवश्यक है।
अंग विज्ञान के अनुसार गणेश : अंग विज्ञान के अनुसार बड़ा उदर खुशहाली और समृद्धि का प्रतीक होता है। गणेश जी का बड़ा उदर सुखपूर्वक जिंदगी जीने के लिए अच्छी और बुरी सभी बातों को पचाने का संकेत देता है। इससे ये भी सन्देश मिलता है क़ि मनुष्य को हर बात अपने अंदर रखकर किसी भी बात का निर्णय बड़ी सूझ-बूझ के साथ लेना चाहिए व लम्बोदर स्वरुप से हमें ग्रहण करना चाहिए कि बुद्धि के द्वारा हम समृद्धि प्राप्त कर सकते हैं और सबसे बड़ी समृद्धि प्रसन्नता है। श्री गणेश जी का एक नाम गजकरण भी है। अंग विज्ञान के अनुसार लंबे कान वाले व्यक्ति भाग्यशाली और दीर्घायु होते हैं। गणेश जी के कान सूप की तरह हैं और सूप का स्वभाव है क़ि वह सार-सार को ग्रहण कर लेता है और कूड़ा करकट को उड़ा देता है। गणेश जी के कानों से यह सन्देश मिलता है कि मनुष्य को सुननी सबकी चाहिए, लेकिन अपने बुद्धि विवेक से ही किसी कार्य का क्रियान्वयन करना चाहिए। गणेश जी का एक ही दांत है दूसरा दन्त खंडित है। बाल्यकाल में भगवान गणेश का परशुराम जी से युद्ध हुआ था। इस युद्ध में परशुराम ने अपने फरसे से भगवान गणेश का एक दांत काट दिया। तभी से ही गणेशजी एकदंत कहलाने लगेएएक दन्त होते हुए भी वे पूर्ण हैं।
गणेश जी ने अपने टूटे हुए दांत को लेखनी बना लिया और इससे पूरा महाभारत ग्रंथ लिख डाला। गणेश जी अपने टूटे हुए दांत से यह सीख देते हैं कि हमारे पास जो भी संसाधन उपलब्ध हैं उसी में हमें दक्षता के साथ कार्य संपन्न करना चाहिए। गणपति अक्सर वर मुद्रा में दिखाई देते हैं। वरमुद्रा सत्वगुण की प्रतीक है। इसी से वे भक्तोंकी मनोकामना पूरी कर अपने अभय हस्त से संपूर्ण भयों से भक्तों की रक्षा करते हैं। इस प्रकार गणेश जी का उपासक रजोगुण तमोगुण, सत्वगुण इन तीनों गुणों से ऊपर उठकर एक विशेष आनंद का अनुभव करने लगता है। गणपति अक्सर वर मुद्रा में दिखाई देते हैं। वरमुद्रा सत्वगुण की प्रतीक है। इसी से वे भक्तों की मनोकामना पूरी कर अपने अभय हस्त से संपूर्ण भयों से भक्तों की रक्षा करते हैं।  

विज्ञान से भी ऊपर का विज्ञान है आध्यात्म : वैज्ञानिकों ने बनाया कलोन

हम यह कह सकते हैं कि विज्ञान से भी ऊपर का विज्ञान है और उससे भी ऊपर का। जब जीव वैज्ञानिकों ने सिंगल सैल अमीबा की खोज की और कहा कि सभी जीवों का विकास एक सिंगल सैल से ही हुआ है तो किसी ने इसका विश्वास नहीं किया। डारविन की थ्यूरी आफ एवोल्यूशन में कहा गया कि मानव का विकास बंदरों से हुआ है। वैज्ञानिकों ने कलोन बना कर दुनीया को सोचने पर मजबुर किया। किसी वैज्ञानिक ने दावा किया कि वह जीवों के कलोन बना सकता है तो यह भी सामने आई कि अब मानवों का भी कलोन बनाया जा सकता है क्योंकि ऐसे कई कलोन बछड़े, सूअर, चूहे आदि के बनाए जा चुके हैं। कुछ देशों ने तो गुप्त रूप से मानवों के क्लोन यानि अनुकृति बना भी ली है। कहा जाता है कि इन देशों में अमेरिका,चीन देश शामिल हैं। इससे एक कदम और आगे बढ़ाते हुए जीव वैज्ञानिकों ने सूअर व मानव के सैल से एक ऐसा जीव बनाया है जिसमें मानव व सूअर के जीन्स होंगे। इस प्रकार पैदा किए गए जानवर के अंगों को मानव के खराब अंगों गुर्दे आदि से ट्रांसपलांट किया जा सकता है। यानि अब प्रयोगशालाओं में अंगों को तैयार किया जाएगा। जब मानव ने पक्षियों को उड़ते देखा तो उसने उड़ने की परिकल्पना की, यानि किसी उड़ते पक्षी को आधार माना। इसी प्रकार ऐसी कल्पना की गई कि किसी का कोई अंग कट गया है और उसे शल्य चिकित्सा से जोड़ दिया गया। पहले किसी जानवर पर यह परिक्षण किया गया होगा जिसका अंग कट गया होगा और उसे शल्य चिकित्सा से जोड़ दिया गया होगा और फिर यह चमत्कार मानवों के कटे गए अंगों को जोड़ने पर किया गया हो। इसी प्रकार गणेश जी का सिर एक हाथी का काट कर लगाया गया। गणेश जी का वही सिर भी जोड़ा जा सकता था लेकिन शल्य चिकित्सा को एक ऐसे आयाम पर पहुंचाना था जहां पशुओं के अंगों को मानव मात्र की भलाई के लिए प्रयोग करना था। प्रश्न यह नहीं कि यह वैज्ञानिक है या नहीं प्रश्न यह है कि कैसे एक जीव का सिर मानव को लगाया गया और वह मानव ने आम जीवन जीया एक बुद्दिमान की तरह। शल्य चिकित्सा को ऐसे मुकाम पर तो हम ले आए हैं जहां पशुओं के सैलों से नए अंग बनाए जा सकते हैं और मानव में प्रत्यापित कर सकते हैं। अभी हमें उस मुकाम तक पहुंचना है जब हम किसी के कटे सिर को जोड़ सकें और वैज्ञानिक अगले कुछ वर्षों में ऐसा चमत्कार करके दिखाएंगे।

 गणेश विसर्जन में छिपा है विज्ञान और वैज्ञानिक कारण :
संसार में कुछ भी अटल नहीं: अध्याएत्मं और विज्ञान का सदियों से गहरा नाता है। जिसकी वजह से गणेश विसर्जन के पीछे भी वैज्ञानिक कारण हैं। आजकल गणेश जी की स्थापना और फिर उनका विसर्जन एक बड़े त्योणहार के रूप में मनाया जाता है। इस विसर्जन के पीछे अध्याात्मी से जुड़े कई कारण माने जाते हैं। जि‍समें एक मुख्यज कारण यह भी माना जाता है। स्थाबपना और वि‍सर्जन से यह संदेश दिया जाता है कि‍ इस दुनिया में कुछ भी अटल नहीं है। हर कि‍सी को एक न एक दिन जल व जमीन में समाना ही होता है। सर्वप्रथम पूज्य नीय भगवान गणपतिजी को भी आखिर एक निश्चित समय के बाद प्रकृति‍ के चक्रों के मुताबि‍क जल में समाहित किया जाता है।
पर्यावरण शुद्ध हो जाता है: वहीं गणेश विसर्जन के पीछे वैज्ञानिक कारण पर्यावरण शुद्ध करना है। इस मौसम में नदी, तालाब, पोखरों में जमा हुआ वर्षा का पानी गणेश विसर्जन से शुद्ध हो जाता है। जि‍ससे मछली, जोक जैसे अन्यर दूसरे जीव-जंतुओं को बर्षा के पानी से किसी तरह की परेशानी नहीं होती है। इतना ही नहीं विसर्जन के लिए  चिकनी मिट्टी से बनी गणेश प्रतिमा शुभ मानी जाती है, क्योंकि मिट्टी पानी में आसानी से घुल जाती है। पुराणों में भी गणेश जी मिट्टी की मू‍र्ति का निर्माण लिखा गया है।

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