जनकवि रामनाथ सिंह अदम गोंडवी की 77 वीं जयंती पर विशेष .....!!

लेखक :- साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा, महासचिव शंखनाद साहित्यिक मंडली
तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है।
मगर ये आँकड़े झूठे हैं ये दावा किताबी है।

साहित्य, कला एवं संस्कृति के क्षेत्र में मान्यता रही है कि रचना कर्म वाह्य ज्ञान से अधिक अंतर्दृष्टि से प्रेरित होता है। 15वीं शताब्दी में उपजे कबीर दास के बाद यह मान्यता हिन्दी गजल क्षितिज के बेताज बादशाह रामनाथ सिंह अदम गोंडवी के ऊपर बिल्कुल सटीक बैठती है। उत्तर प्रदेश गोंडा जिले के परसपुर ब्लॉक के ग्राम आटा परसपुर में 22 अक्टूबर सन 1947 को जन्मे रामनाथ सिंह उर्फ अदम गोंडवी प्राथमिक शिक्षा हासिल करने के बाद खेती किसानी में लग गए। पिता देवकली सिंह और माता मांडवी सिंह के पुत्र के रूप में बालक रामनाथ सिंह का जन्म हुआ था, जो आगे चलकर ‘अदम गोंडवी’ के नाम से विख्यात हुए। अदम गोंडवी कबीर परंपरा के कवि थे। इनका पूरा जीवन गरीबी में बीता अदम गोंडवी ने अपनी कविताओं के माध्यम से हमेशा सामाजिक मुद्दों को शासन प्रशासन तक पहुंचाते रहे। आर्थिक विपन्नता होने के बाद भी उन्होंने कभी अपनी लेखनी से समझौता नहीं किया। हमेशा व्यवस्था पर करारा चोट करते रहे। उनकी रचनाएं आज भी समाज को सच बोलने की प्रेरणा देती है। उन दिनों सरयू घाघरा के बाढ़ की विभीषिका का इन्होंने जीवंत वर्णन करते हुए सियासत की चौखट तक उसे पहुंचाने का काम किया। कविताओं के माध्यम से सत्ता एवं सत्ताधारीयों की हकीकत का बड़े ही निडर भाव से शब्दों में पिरोते रहे। समाज मे व्यापत कुरीतियों नेताओ और अधकारियों के चरित्र, जातीय आधार पर हो रहे, जुल्म किसानों के दर्द को जिस तरह बेबाकी से लिखा। वह वास्तव मे अतुलनीय रहा। अपने गांव का जिक्र करते हुए उन्होंने ने लिखा कि-
फटे कपड़ो में तन ढाके गुजरता हो जहाँ कोई।
समझ लेना वो पगडंडी अदम के गांव जाती हैं ।

सरकार और जनप्रतिनिधियों पर भी कसा तंज-
काजू भुने प्लेट में व्हिस्की ग्लास में।
उतरा है रामराज विधायक निवास में।
अदम गोंडवी ने अपनी कविताओं के माध्यम से शासन प्रशासन राजनेता अधिकारी किसी को भी नहीं बख्शा समय-समय पर वह बेबाकी से आवाज बुलंद करते रहे। जिस समय उनकी धारदार लेखनी चलती थी। उसे समय गोंडा के तत्कालीन जिलाधिकारी को खुले मंच से कविता सुना कर उन्होंने सबको हैरान कर दिया।
महज तनख्वाह से क्या निपटगे नखरे लुगाई के।
हजारों रास्ते हैं, सिन्हा साहब की कमाई के।
मिसेज सिन्हा के हाथों में जो बे मौसम खनकते हैं।
पिछली बाढ़ के तोहफे हैं, यह कंगन कलाई के।
अपनी जीवंत गजल व शायरी से आम जनमानस व समाज के दबे, कुचले लोगों के दर्द को समाज के पटल पर अपनी लेखनी से बयां करने वाले अजीम शायर अदम गोंडवी ने गोंडा जनपद में अपने साहित्य के माध्यम से जो पहचान दिलाई है, लोग आज भी उनके कायल हैं। जनकवि अदम गोंडवी को आम तौर पर इस बात के लिए याद किया जाता है कि वे दलित व वंचित तबकों की आवाज बनकर बेबाकी से सत्ता से सवाल पूछते रहे। इसके लिए जरूरी हुआ, तो उन्होंने ‘अभिव्यक्ति के सारे खतरे उठाने’ के साथ-साथ ‘अपनों’ को भी नाराज करने से परहेज नहीं किया। कहा जाता है कि गोपालदास ‘नीरज’ ने अपने एक गीत में जो यह लिखा था- ‘जिनका दुख लिखने की खातिर मिली न इतिहासों को स्याही, कानूनों को नाखुश करके मैंने उनकी भरी गवाही’, यह उनसे ज्यादा अदम की जिंदगी पर लागू होता है। अदम का सबसे तल्ख सवाल था- ‘सौ में सत्तर आदमी जब देश में नाशाद है, दिल पे रखकर हाथ कहिये देश क्या आजाद है?’ वे जल्दी ही इस निष्कर्ष पर पहुंच गये थे कि सौ में सत्तर आदमी इसलिए नाशाद हैं क्योंकि जिस रामराज्य का वे सपना देख रहे थे, उसका भेष बदलकर किसी और आंगन में उतार लिया गया है। तब उन्होंने लिखा- ‘काजू भुने पलेट में ह्विस्की गिलास में, उतरा है रामराज विधायक निवास में।’ यह लिखना खुद को भी आईना दिखाना था, क्योंकि ह्विस्की की लत उन्हें भी थी। दरअसल, उनके कवि का बड़प्पन इसी बात में है कि उसने दारुण परिस्थितियों में भी न अपने सवाल बदले, न ही उन्हें पूछने के अपने उसूल से समझौता किया। वर्ष 1975 में आपातकाल की ज्यादतियों ने अदम को रचना कर्म में उतरने की प्रेरणा दी। जनवादी रचनाकार के रूप में पहचान बनाने वाले अदम की गजलों का संग्रह धरती की सतह पर 1987 में प्रकाशित हुआ। अदम को भोपाल स्थित दुष्यंत कुमार पाण्डुलिपि संस्थान की ओर से दुष्यंत पुरस्कार से नवाजा गया। लखनऊ से प्रकाशित पत्रिका पत्रकार सदन ने बीस साल पहले अदम के रचना संसार की पड़ताल करते हुए उनका साक्षात्कार छापा था। उसका एक अंश जो आज भी प्रासंगिक है।
अदम गोंडवी का बचपन से ही बदला था स्वभाव : 
बचपन से ही सामाजिक व जनहित की भावनाओं का उन्माद, सामंती ताकतों के खिलाफ आवाज उठाने वाले अदम गोंडवी प्राइमरी तक कि तालीम हासिल कर सके। उन्होंने समाज में गरीबी, लाचारी, शोषित समाज की पीड़ा को अपने शायरी की लफ्जों में बखूबी से उकेरा। देश समाज के हालात पर बखूबी नजर रखने वाले प्रबुद्ध शायर अदम गोंडवी ने सैकड़ों गजलें व शायरी की पुस्तकें लिखीं। जिनकी रचनाएं धरती की सतह पर, समय से मुठभेड़ व गर्म रोटी की महक नामक पुस्तकें प्रकाशित हुईं।
अदम गोंडवी ने दुष्यंत की परम्परा को आगे बढ़ाया : 
हिंदी ग़ज़लों में राजनीति की शुरुआत दुष्यंत ने की थी। अदम जी दुष्यंत की परम्परा को ही आगे बढ़ाते हैं। पांचवी पास अदम ने अपना सारा जीवन दिल्ली की चमक धमक से दूर गोंडा में ही बिताया। अदम जनकवि थे  शायद इसीलिए उनकी ग़ज़ले पंक्ति में खड़े अंतिम व्यक्ति की पीड़ा को व्यक्त करने सफल हैं। अदम तो अब नहीं हैं लेकिन उनकी ग़ज़लें कालजयी हैं। आप अदम को तो नज़रंदाज कर सकते हैं पर उनकी ग़ज़लों और शेरों को नहीं। ना चाहते हुए भी इनको पढ़ने के बाद ख़ुद को इनसे जोड़ पाएंगे। आप अदम को तो नज़रंदाज कर सकते हैं पर उनकी ग़ज़लों और शेरों को नहीं। ना चाहते हुए भी इनको पढ़ने के बाद ख़ुद को इनसे जोड़ पाएंगे। जनकवि अदम गोंडवी जी 18 दिसम्बर 2011 की सुबह संजय गांधी अस्पताल लखनऊ में उपचार के दौरान अंतिम सांस ली।

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