भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के एक विस्मृत योद्धा हैं नक्षत्र मालाकार...!!
बिहारशरीफ,बबुरबन्ना-नालंदा 09 अक्टूबर 2024 : स्थानीय सोहसराय के साहित्यिक भूमि बबुरबन्ना मोहल्ले में बिहारी निवास स्थित शंखनाद साहित्यिक मंडली के तत्वावधान में शंखनाद के सक्रिय सदस्य हिंदी साहित्य के प्रकांड विद्वान प्रोफेसर शकील अहमद अंसारी की अध्यक्षता में भारत के रॉबिनहुड, मानव धर्म के सच्चे उपासक नक्षत्र मालाकार की 119 वीं जयंती समारोह मनाई गई। जिसका संचालन शंखनाद के मीडिया प्रभारी राष्ट्रीय शायर नवनीत कृष्ण ने किया।
कार्यक्रम का विधिवत शुभारंभ विद्वान प्रोफेसर शकील अहमद अंसारी, महासचिव राकेश बिहारी शर्मा एवं साहित्यसेवी सरदार वीर सिंह ने उनके चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित तथा दीप प्रज्वलित कर किया।
मौके पर शंखनाद के महासचिव साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा ने समारोह में विषय प्रवेश कराते नक्षत्र मालाकार के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर चर्चा करते हुए कहा कि अमीरों से लूटकर गरीबों में बांटने वाले नक्षत्र मालाकार भारत के रॉबिनहुड थे। नक्षत्र मालाकार का जन्म तत्कालीन पूर्णिया जिले के समेली गांव में 9 अक्टूबर 1905 को एक गरीब माली परिवार में हुआ था। आज वह स्थान कटिहार जिले की सीमा में है। नक्षत्र मालाकार के पिता लब्बू माली अत्यंत गरीब गृहस्थ थे। लब्बू माली की दो शादियां हुई थी। पहली पत्नी सरस्वती से दो पुत्र- जगदेव और द्वारिका हुए। पहली पत्नी के निधन के बाद दूसरी पत्नी लक्ष्मी देवी से दो पुत्र- नक्षत्र मालाकार और बौद्ध नारायण एवं तीन पुत्री- तेतरी देवी, सत्यभामा एवं विद्योतमा हुआ। पहले हुए थे नक्षत्र मालाकार। अपने 82 साल के जीवन का हर लम्हा उन्होंने सामंती शक्तियों के विरुद्ध लोहा लेते बिताया था। उन्होंने कहा भारत में साम्राज्यवाद और सामंतवाद विरोध के जीवंत मिसाल थे नक्षत्र मालाकार। उन्होंने बताया कि भारत के महान कथाकार एवं रिपोतार्ज उपन्यासकार फणीश्वर नाथ रेणु ने नक्षत्र मालाकार को चलित्तर कर्मकार बनाकर अमर कर दिया। भारतीय आजादी की लड़ाई का एक विस्मृत योद्धा हैं नक्षत्र मालाकार।
बिहार ही नहीं पुरे देश में नक्षत्र मालाकार का डंका बजता था
जयंती समारोह की अध्यक्षता करते हुए हिंदी के प्रकांड विद्वान प्रोफेसर शकील अहमद अंसारी ने कहा कि 40 और 50 के दशक में बिहार ही नहीं पुरे देश में नक्षत्र मालाकार के नाम का डंका बजता था। उन्होंने कहा- नक्षत्र मालाकार नमक सत्याग्रह, विदेशी कपड़ों की होली और शराब दुकानों की पिकेटिंग से शुरू उनका राजनीतिक सफर कांग्रेस से होते हुए सोशलिस्ट पार्टी की तरफ मुड़ा और सीपीएम पर खत्म हुआ। वर्ष 1936 में वे सोशलिस्ट पार्टी में भर्ती हुए तो जयप्रकाश नारायण ने प्यार से नाम बदल कर नछत्तर माली से नक्षत्र मालाकार कहने लगे। जिसे उपन्यासकार फणीश्वरनाथ रेणु जी ने अपनी लेखनी से अमर कर दिया।
शंखनाद के सक्रिय सदस्य शिक्षाविद् राजहंस कुमार ने कहा कि स्वतंत्रता सेनानी नक्षत्र मालाकार कांग्रेस, कांग्रेस सोशलिस्ट और कम्युनिस्ट तीनों पार्टियों में अग्रिम पंक्ति के कार्यकर्ता थे, इसलिए ये कई बदनामियों से बेदाग रहे। लेकिन आज बिहार की नई पीढ़ी के लोग क्रांतिकारी योद्धा नक्षत्र मालाकार को नहीं जानती है। इनके द्वारा स्वतंत्रता संग्राम में किए गये काम का कोई विधिवत संरक्षण नहीं किया गया। यह सब इसलिए नहीं हुआ क्योंकि ये बिहार के पिछड़े समुदाय माली जाति के थे।
मौके पर शंखनाद के कोषाध्यक्ष साहित्यसेवी भाई सरदार वीर सिंह ने कहा कि देश के स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने वाले उच्च वर्ग के स्वतंत्रता सेनानियों, राजा-महाराजाओं के योगदान को अभिलेखों के माध्यम से आकर्षक ढंग से प्रस्तुत किया जाता है। लेकिन दलितों और पिछड़ों के स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान को धीरे-धीरे मिटाने की कोशिश की जा रही है। इतिहास कुछ लोगों के साथ बड़ा अन्याय करता है और उन्हें जन मानस में वह स्थान नहीं दिलवा पाता जिसके वे अधिकारी होते हैं। ऐसे ही एक विराट व्यक्तित्व थे स्वतंत्रता सेनानी नक्षत्र मालाकार !
मंच संचालन करते हुए शंखनाद के मीडिया प्रभारी राष्ट्रीय शायर नवनीत कृष्ण ने कहा- बिहार के महान उपन्यासकार फणीश्वरनाथ रेणु ने अपनी सच्ची ऐतिहासिक उपन्यास "मैला आँचल" में स्वतंत्रता सेनानी चलित्तर कर्मकार का नाम और स्थान बदलकर नक्षत्र मालाकार के संदेशों को पाठक तक अपनी लेखनी के माध्यम से पहुँचाने का काम किया है।
इस अवसर पर शंखनाद के छायाकार समाजसेवी धीरज कुमार, समाजसेविका सविता बिहारी,अरुण बिहारी शरण, समर वारिष, अमित कुमार यादव सहित कई लोगों ने नक्षत्र मालाकार के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला।
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