अंतर्राष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस पर विशेष ...!!
लेखक :- साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा, महासचिव शंखनाद साहित्यिक मंडली
दुनिया में लाखों लोग ऐसे है जो बेहद ही गरीबी में जिंदगी जीने को मजबूर हैं। गरीबी केवल एक आर्थिक मुद्दा नहीं है, बल्कि एक ऐसी घटना है जिसे हम राह चलते, अपने घर में झाड़ू पोछा लगाने वाली बाई में, तो कभी रोड पर भीख मांगते बच्चों में देख ही लेते हैं। यूं तो गरीबी के कई चेहरे हैं, चाहे वह अफ्रीका में भूख से मर रहे बच्चे हों या भारत में सड़कों पर भीख मांगते बच्चे, या फिर चाहे एक माँ, जिसे आए दिन सुपरमार्केट के बाहर कंधे पर बच्चा लिए उदास चेहरे के साथ देखा जाता है।
गरीबी के कई रूप हैं, यह जगह-जगह बदलती रहती है। कुछ लोगों के लिए गरीबी का मतलब है भूख, आश्रय की कमी, बीमार होना या पर्याप्त धन न होना आदि। मूल रूप से, गरीबी एक ऐसी स्थिति या स्थिति है जिसमें व्यक्ति के पास वित्तीय संसाधनों की कमी होती है और वह बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने में सक्षम नहीं होता है।
गरीबी से पीड़ित लोग और परिवार बिना घर, साफ पानी, स्वस्थ भोजन और चिकित्सा देखभाल के रहते हैं। इसलिए, गरीबी उन्मूलन के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस गरीबी से पीड़ित लोगों या परिवारों द्वारा सामना की जाने वाली समस्याओं पर प्रकाश डालता है और वैश्विक स्तर पर गरीबी को उसके सभी रूपों में मिटाने की दिशा में काम करता है।
गरीबी उन्मूलन दिवस का इतिहास :
अंतर्राष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस के आयोजन की शुरुआत 17 अक्टूबर 1987 को हुई थी। उस दिन, पेरिस के ट्रोकाडेरो में एक लाख से अधिक लोग एकत्रित हुए थे, जहां 1948 में मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा पर हस्ताक्षर किए गए थे, ताकि अत्यधिक गरीबी, हिंसा और भूख के पीड़ितों को सम्मानित किया जा सके। साल 2024 में अंतरराष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस की थीम है, 'सामाजिक और संस्थागत दुर्व्यवहार को खत्म करना, न्यायपूर्ण, शांतिपूर्ण और समावेशी समाज के लिए मिलकर काम करना है।
अंतर्राष्ट्रीय गरीबी उन्मूलन दिवस हर साल 17 अक्टूबर को मनाया जाता है। ये दिवस को मनाने का उद्देश्य दुनिया भर में विशेष रूप से विकासशील देशों में गरीबी और गरीबी उन्मूलन की आवश्यकता के बारे में जागरूकता बढ़ाना है। यह गरीबी के खिलाफ लड़ाई लड़ने में उनकी मदद करने के लिए उनकी चिंताओं और संघर्षों को सुनने का एक प्रयास है। यह दिन दुनिया भर में गरीबी उन्मूलन के लिए विभिन्न स्तरों पर सभी प्रयासों को मान्यता देने का भी एक अवसर है।
भारत में लंबे समय से है गरीबी की समस्या :
भारत लंबे समय से गरीबी का दंश झेल रहा है। स्वतंत्रता पूर्व से लेकर स्वतंत्रता पश्चात भी देश में गरीबी का आलम पसरा हुआ है। गरीबी उन्मूलन के लिए अब तक कई योजनाएं बनीं, कई प्रयास हुए, गरीबी हटाओ चुनावी नारा बना और चुनाव में जीत हासिल की गई। लेकिन इन सब के बाद भी न तो गरीब की स्थिति में सुधार हुआ और न गरीबी का खात्मा हो पाया। सच्चाई यह है कि गरीबी मिटने के बजाय देश में दिनोंदिन गरीबों की संख्या में गिरावट होने लगी है। सत्ता हथियाने के लिए गरीब को वोटबैंक के रूप में इस्तेमाल किया गया तो सत्ता मिलने के बाद उसे हमेशा के लिए अपने हाल पर छोड़ दिया गया। इसलिए गरीब आज भी वहीं खड़ा है जहां आजादी से पहले था। आज भी सवेरे की पहली किरण के साथ ही गरीब के सामने रोटी, कपड़ा और मकान का संकट खड़ा हो जाता है।
दरअसल, यह कम विडंबना नहीं है कि सोने की चिड़िया के नाम से पहचाने जाने वाले देश का भविष्य आज गरीबी के कारण भूखा और नंगा दो जून की रोटी के जुगाड़ में दरबदर की ठोकरें खा रहा है। हकीकत तो यह है कि गरीब पैदा होना अब पाप समझा जाने लगा। गरीब की जिंदगी तो महज एक चिंगम की तरह होकर सिमट गई है, जिसे कोई भी खरीदता है और चबाकर थूक देता है।
देश में गरीबी के आंकड़े :
देश में गरीबी कितनी है, इस बारे में सबसे चर्चित आंकड़ा अर्जुन सेनगुप्ता की अगुवाई वाली एक समिति का है। इस समिति ने कुछ साल पहले यह अनुमान लगाया था कि देश की 77 फीसदी आबादी रोजाना 20 रुपये से कम पर गुजर बसर करने को मजबूर है। सरकार के अनुसार गरीब की परिभाषा यह है कि शहरी क्षेत्र में प्रतिदिन 28.65 रुपये और ग्रामीण क्षेत्र में 22.24 रुपये कम से कम जिसकी आय है वे सब गरीबी रेखा में सम्मिलित हैं। आज जहां महंगाई आसमान छू रही है, क्या वहां 28 और 22 रुपये में एक दिन में तीन वक्त का पेटभर खाना खाया जा सकता है? क्या यह गरीबों का मजाक नहीं है?
सांख्यिकीय आंकड़ों के अनुसार 30 रुपये प्रतिदिन की आय कमाने वाला भी गरीब नहीं है। शायद हमारे जनप्रतिनिधियों को इस बात का ध्यान ही नहीं है कि गरीबी में गरीबों को कितनी कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। गरीबी केवल पेट का भोजन ही नहीं छीनती है, बल्कि कई सपनों पर पानी भी फेर देती है। लेकिन इन सब बातों से अंजान हमारे नेता गरीबी को लेकर अभी भी संजीदा नहीं है। हम भारत को न्यू इंडिया तो बनाना चाहते हैं पर गरीबी को मिटाना नहीं चाहते। हमारे प्रयास हर बार अधूरे ही रह जाते हैं। क्योंकि हमने कभी सच्चे मन से इस समस्या को मिटाने को लेकर कोशिश की ही नहीं है।
गरीबी उन्मूलन की दिशा में चीन की कोशिश :
गरीबी उन्मूलन की दिशा में चीन की कोशिश न केवल सराहनीय है, बल्कि अनुकरणीय भी है। वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के अनुसार पहले चीन में भारत से 26 फीसदी ज्यादा गरीब थे। लेकिन 1978 के बाद चीन में तेजी से बदलाव आने लगा। अब वो दुनिया की दूसरी बड़ी अर्थव्यवस्था बन चुका है। चीन के लोग भारत से पांच गुना से ज्यादा अमीर हो चुके हैं।
भारत में गरीबी से निपटने की कई योजना
गरीबी की बीमारी जब तक भारत को लगी रहेगी, तब तक भारत का विकासशील से विकसित बनने का सपना पूरा नहीं हो सकता है। वास्तव में गरीबी इतनी बड़ी समस्या नहीं है जितनी बढ़-चढ़कर उसी हर बार बताया जाता है। सच तो यह है कि गरीबों के लिए चलने वाली दर्जनों सरकारी योजनाओं का लाभ उन्हें मिल ही नहीं पाता। जिसका एक कारण अज्ञानता का दंश भी है। हालांकि, वर्तमान सरकार द्वारा डिजिटलीकरण इस दिशा में सार्थक कदम है। दरअसल, गरीबी के बढ़ने का प्रमुख कारण जनसंख्या का लगातार अनियंत्रित तरीके से वृद्धि करना है। यदि हम भारत के संदर्भ में देखें तो आजादी के बाद से साल दर साल हमारे देश की जनसंख्या में इजाफा होता गया है। जाहिर है जिस सीमित जनसंख्या को ध्यान में रखकर विकास का मॉडल व योजनाएं बनाई गईं हर बार जनसंख्या वृद्धि ने बाधा उत्पन्न की है। वस्तुतः विकास धरा का धरा रह गया। आवश्यकता है कि हम जनसंख्या नियंत्रण की दिशा में न केवल जागरूकता लाएं, बल्कि दो बच्चे ही अच्छे की नीति के आधार पर सरकारी सेवाओं का लाभ भी तय करें।
हमारे देश भारत में आखिर कितने हैं गरीब :
हमारे देश भारत की बात करें तो आजादी के वक्त हमारे देश की आबादी करीब 34 करोड़ थी और इसमें से 25 करोड़ से ज्यादा लोग गरीबी रेखा से नीचे थे। आजादी के बाद तमाम आर्थिक विकास और गरीबी निवारण योजनाओं के बावजूद गरीबों की संख्या कम नहीं हुई। आज देश में गरीबी रेखा के सबसे ताजा आंकड़े 2011-12 के हैं। इन आंकड़ों के मुताबिक, देश की 26.9 करोड़ आबादी गरीबी रेखा से नीचे है। यह संख्या कम न होना चिंता की बात है और इस पर विचार करने का भी सवाल है कि कमी कहां रह गई? आज सारा ध्यान इस बात पर लगा दिया गया है कि गरीब किसे मानें और किसे नहीं? भारत में संसाधनों की कोई कमी नहीं है साथ ही यहां अवसरों की भी कोई कमी नहीं है। अगर प्रतिभा और लगन के साथ आपकी किस्मत का साथ मिले तो आप आगे बढ़ सकते हैं। माना जाता है भारत में एक गरीब मजदूर अपने बच्चे को भी मजदूरी ही कराता है क्यूंकि उसकी मानसिकता उसे इससे ज्यादा सोचने की इजाजत ही नहीं देती। तो क्या मानसिकता ही भारत में गरीबी का सबसे बड़ी वजह है?
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