यदि नहीं बचीं छोटी नदियां, तो निष्प्राण हो जाएंगी आने वाली पीड़ियां...!!
नदियों के स्वक्षता और संरक्षण की जब भी बात होती है, समस्त विषय गंगा और उनके कुछ सहायक नदियों की दशा सुधारने की चिंता तक सिमट जाता है। जिसके कारण तमाम प्रयासों के बावजूद भी अपेक्षित परिणाम नहीं मिलते हैं। यह समझने की आवश्यकता है कि गंगा हो या उनके सहयोगी अन्य नदी, वह अपने आप में अकेले नहीं होती, वरन अनेक जलधाराओं का समेकित स्वरूप होती है। अतः हमें नदियों की हालात सुधारनी है तो पहले समझना होगा कि छोटी नदियों को सजल और निर्मल बनाए बिना बड़ी नदियों की दशा नहीं सुधर सकती।
इसी को ध्यान में रखते हुए हरनौत के समाजसेवी किसान नेता चन्द्र उदय कुमार मुन्ना के नेतृत्व में नदी जोड़ो अभियान के तहत् यह प्रयास रहा है कि गंगा की सहायक नदियों को आपस में जोड़कर संरक्षित एवं पुनर्जीवित किया जाना है।
किसान नेता चन्द्र उदय कुमार मुन्ना, साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा एवं अन्य सहयोगियों ने 2019 में नदियों की बिगड़ती दशा पर काम करने के भाव से नालंदा में गंगा नदी को पंचाने नदी और महाने नदी जोड़ो अभियान चिंतन बैठक का आयोजन किया गया था। इसमें नालंदा जिले से क्षेत्रीय नदी और गंगा व गंगाजल पर कार्य करने वाले कई समाजसेवी किसान एकत्र हुए थे। बैठक में नदियों की प्रकृति और हमारी बदलती जीवनशैली का अध्ययन भी किया गया और यह तय हुआ था कि गंगा नदी की धारा को नालंदा में किसानों के खेतों तक सिचाई के लिए नदियों से जोड़ा जाय तभी नालंदा और समीपवर्ती जिले के किसान समृद्ध होंगें। गंगा नदी पंचाने नदी और महाने नदी की जीवनरेखा है। इसलिए इस अभियान की शुरुआत नालंदा के हरनौत से हुई थी। 2020 में पंचाने नदी, महाने नदी और सकरी नदी जोड़ो यात्रा आयोजित की गई थी, इस यात्रा में नालंदा के नदियों की वास्तविक स्थिति का अध्ययन कर किया गया और पाया कि नदी के कई स्थानों पर जलधार समाप्त हो रहे हैं। इसके लिए किसान नेता मुन्ना जी के नेतृत्व में नदी जोड़ो अभियान के लिए आवश्यक कार्यों की सूची बनाई गई।
पंचाने नदी को गंगा के समान पवित्र माना गया है, इसके जल में तप की प्रकृति है। पंचाने नदी के तट पर ही कई महापुरुषों ने तपस्या कर वरदान पाया। कृष्ण और भीम ने पंचाने नदी में स्नान किया है और उनके भक्तों ने नदी तट पर कई मंदिरों की स्थापना की, इनमें से अधिकांश अस्तित्व में हैं और पूजे जाते हैं। पिछले कुछ वर्षों में अनेक स्थानों पर नदियों की जलधारा सूख गई और इसके कई क्षेत्र पर अतिक्रमण हो गया। यदि इन नदियों के क्षरण और अतिक्रमण को रोकने के प्रयास नहीं किए गए तो आने वाले समय में जल संकटों का सामना करना होगा।
नालंदा के नदियों पर काम कर रहे साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा बताते हैं मेरा बचपन सकरी और पंचाने नदी के तट पर ही बीता है। मैंने सदैव इस नदी को जीवंत दशा में देखा… कभी इठलाकर बहते हुए और कभी धीर-गंभीर शांत रूप में। बरसात में इसका रौद्र रूप भी देखा लेकिन नालंदा और पटना जिले के क्षेत्रोंमें सकरी, पंचाने, महाने नदी को कभी तांडव करते नहीं देखा। यह नदी हमेशा अपनी मर्यादा में रही और कभी किसी गांव में घुसकर हानि नहीं पंहुचाई। लेकिन सबकी प्यास बुझाने वाली ये सभी नदी आज सिसक रही है और प्रतीक्षा कर रही है कि कलयुग में भी कोई भगीरथ आए और उसके आंसू पोंछे।
इस अभियान का उद्देश्य नदी के दोनों ओर के गांवों और मैदानी क्षेत्र में जनजागरण करना था। इस अभियान के उपरांत अनेक सामाजिक, शैक्षिक, धार्मिक और विद्यार्थी संगठन इस आन्दोलन से जुड़कर नदी के तटों पर स्वच्छता अभियान चलाना था। कार्यकर्ताओं द्वारा अभियान में नदी तट पर वृक्षारोपण कर प्रति वर्ष वर्षा काल में नदी तट को संरक्षित करना है।
कई नदी तट पर वृक्षारोपण व घाट संरक्षण का कार्य भी सरकार द्वारा प्रारम्भ हुआ है। जहां-तहां पर नदी और नहरों में चेक डैम तथा बहता नदी पर भी चेक डैम बनाए गए। कुछे नदी की नाप व चिन्हांकन कर खुदाई का काम किया गया है।
इसके उपरांत किसानों के द्वारा श्रमदान भी किया गया है। श्रमदान करने वालों में हर आयु वर्ग और हर सामाजिक स्तर के लोग सहभागी बने थे। नदी जोड़ो अभियान आगे बढ़ता गया। बाधाएं थी अतिक्रमण था लेकिन भाव था कि नदी जलधारा को पुनर्जीवित करना है। नदी क्षेत्र को सामूहित और स्वैच्छिक श्रमदान से साफ किया गया। किसान नेता चन्द्र उदय मुन्ना जी नदी पुनर्जीवन के कार्य को पुनः प्रारंभ करने की योजना बना रहे हैं।
किसानों और समाजसेवियों का कहना है कि नदी क्षेत्र से संबंधित ग्राम पंचायतें मनरेगा अथवा ऐसी किसी योजना से प्रति वर्ष नदियों के प्रवाह क्षेत्र की सफाई कराएं ताकि संपूर्ण नदी क्षेत्र अतिक्रमणमुक्त हो और जलप्रवाह के लिए अनुकूल स्थिति बने। नदी तट को वृक्षारोपण हेतु अतिक्रमणमुक्त किया जाए। नदी तट पर दोनों किनारे रासायनिक खेती को पूर्णतः प्रतिबंधित किए जाने की आवश्यकता है। आवश्यकता है कि इसका विस्तार समस्त नदियों तक किया जाए।
साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा बताते हैं कि पृथ्वी की सतह का लगभग 71 प्रतिशत हिस्सा पानी से ढका हुआ है, जो ज़्यादातर महासागरों के रूप में है। पृथ्वी के 68 प्रतिशत से ज़्यादा मीठे पानी को बर्फ़ की परतों और ग्लेशियरों में संग्रहित किया जाता है, जबकि सिर्फ़ 30 प्रतिशत भूजल में पाया जाता है। हमारे मीठे पानी का सिर्फ़ 0.3 प्रतिशत ही झीलों, नदियों और दलदलों के सतही पानी में पाया जाता है।
पृथ्वी पर मौजूद बाकी पानी का 99 प्रतिशत से ज़्यादा हिस्सा इंसानों और कई अन्य जीवों के लिए इस्तेमाल करने लायक नहीं है। यह उल्लेखनीय है कि हमारे ग्रह पर सभी स्थलीय और जलीय जीवन को बनाए रखने वाला पानी वास्तव में काफी दुर्लभ है। यह अहसास इस संसाधन का बुद्धिमानी से उपयोग करने की आवश्यकता पर जोर देता है।
इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए खुद को और आने वाली पीढ़ियों को शिक्षित करना एक महत्वपूर्ण पहला कदम है। इसलिए, यह पाठ हमें सिखाता है कि नदियाँ केवल पानी का स्रोत नहीं हैं, बल्कि मानव सभ्यता की रीढ़ हैं। नदियाँ जीवन के लिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि सभी जीव उन पर निर्भर हैं। नदियाँ हमें ताज़ा पानी प्रदान करती हैं, जो खेती, पीने, परिवहन, बिजली उत्पादन और मनोरंजक गतिविधियों के लिए आवश्यक है।
यूनिसेफ और डब्ल्यूएचओ द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, दुनिया भर में लगभग चार में से एक व्यक्ति को सुरक्षित पेयजल उपलब्ध नहीं है। इसी तरह, विश्व बैंक ने इस बात पर प्रकाश डाला कि भारत में जल प्रदूषण के कारण होने वाली स्वास्थ्य लागत देश के सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 3 प्रतिशत है, जो सालाना आधार पर लगभग 6.7-8.7 बिलियन डॉलर है।
भारत में पर्यावरण क्षरण की कुल लागत लगभग 80 बिलियन डॉलर होने का अनुमान है। इसके अलावा, भारत में अनुमानित 37.7 मिलियन लोग हर साल जलजनित बीमारियों से पीड़ित होते हैं, जिसमें जठरांत्र संबंधी रोग, हैजा, पेचिश, हेपेटाइटिस ए और टाइफाइड शामिल हैं। इसके आर्थिक प्रभाव से परे, पानी, स्वच्छता और स्वच्छता के अपर्याप्त प्रावधान भारत और दुनिया भर में हर साल लाखों लोगों की जान लेने में योगदान करते हैं।
भारत में नदियों की पूजा की जाती है और प्राचीन काल से ही गंगा नदी को सबसे पवित्र और आध्यात्मिक नदी माना जाता रहा है। सांस्कृतिक, आध्यात्मिक और पर्यावरणीय रूप से इसका एक अलग स्थान है। इसे अक्सर गहरी श्रद्धा के कारण माँ गंगा के रूप में संदर्भित किया जाता है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, गंगा जल ( गंगाजल ) केवल मानव उपयोग, सिंचाई और मछली पकड़ने के लिए ही नहीं बल्कि पापों के शुद्धिकरण और भगवान की भक्ति के लिए भी है।
गंगा, जो शायद विश्व स्तर पर सबसे अधिक पूजनीय नदी है, दुर्भाग्य से आज सबसे अधिक प्रदूषित नदियों में से एक है। इस नदी का उपयोग अनुपचारित अपशिष्ट, नष्ट की गई मूर्तियों के साथ-साथ मानव और पशु अवशेषों, सीवेज, रासायनिक अपशिष्ट और अपशिष्ट जल तथा अन्य कचरे को ले जाने के लिए किया जा रहा है। यह स्थिति केवल गंगा तक ही सीमित नहीं है, बल्कि साबरमती और यमुना जैसी अन्य नदियों तक भी फैली हुई है।
नदियों की स्थिति के लिए मुख्य रूप से कुछ कारक जिम्मेदार हैं, जिनमें व्यक्तियों द्वारा अनैतिक व्यवहार, अनियंत्रित औद्योगिक गतिविधियां, नगर पालिकाओं द्वारा नदियों में अनुपचारित सीवेज अपशिष्टों का निर्वहन तथा छोटे शहरों और कस्बों में अनुचित अपशिष्ट निपटान शामिल हैं।
केंद्र और राज्य सरकारों ने नदियों के संरक्षण के लिए वास्तव में प्रयास किए हैं। भारत सरकार ने देश भर में नदियों के संरक्षण और पुनरुद्धार के उद्देश्य से कई कार्यक्रम और नीतियां शुरू की हैं। कुछ उल्लेखनीय पहलों में शामिल हैं: नमामि गंगे (स्वच्छ गंगा के लिए राष्ट्रीय मिशन), राष्ट्रीय नदी संरक्षण योजना, स्वच्छ चंबल के लिए राष्ट्रीय मिशन, स्वच्छ नर्मदा के लिए राष्ट्रीय मिशन और राष्ट्रीय नदी जोड़ो परियोजना।
इसके अलावा, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, विभिन्न राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों के साथ मिलकर भारत में नदियों की सफाई और संरक्षण के उद्देश्य से पहल करता है। इन पहलों में आम तौर पर निगरानी और विनियमन, पर्यावरण कानूनों का प्रवर्तन, क्षमता निर्माण और जागरूकता, नदी पुनरुद्धार परियोजनाओं का कार्यान्वयन और अनुसंधान और विकास शामिल हैं। लेकिन केंद्र और राज्य सरकारों के इतने प्रयासों के बाद भी यह समस्या अनसुलझी है।
इन समस्याओं का मुख्य कारण हमारे अपने भीतर ही छिपा है, क्योंकि नदियों में फेंका जाने वाला कचरा हम ही फेंकते हैं। इसलिए नदियों को साफ रखने के लिए हमें पहल करनी होगी। तभी हम समाज और व्यक्तियों में जागरूकता ला पाएंगे और हमें यह संकल्प लेना होगा कि जो नदी मानव सभ्यता के लिए निस्वार्थ भाव से अपना सर्वस्व त्याग करती है, उसे बदले में साफ रखने की भी हकदारी है।
इस संदर्भ में, सरकारी संगठनों और समाज को प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाने, शहरों, कस्बों और यहां तक कि छोटे शहरों में उचित अपशिष्ट निपटान सुनिश्चित करने, अपशिष्ट जल उपचार, जागरूकता को बढ़ावा देने, नदी सफाई अभियान आयोजित करने, नियमित रूप से पानी की गुणवत्ता की निगरानी करने और गैर-लाभकारी संगठनों के साथ सहयोग करने जैसे उपायों को लागू करने में सक्रिय भूमिका निभाने की आवश्यकता होगी। अन्यथा, हर घर में नल और पानी की पहुंच हो सकती है, लेकिन कोई भी स्वस्थ नहीं रहेगा। क्योंकि आप जो बोएंगे, वही काटेंगे।
नदियाँ न केवल जल प्रदान करती हैं, बल्कि जीवन भी देती हैं। हिंदू धर्म में मनुष्य जीवन की अंतिम यात्रा गंगा जैसी नदी के आलिंगन में ही पूरी होती है। इसलिए नदियों की पूजा करना ही नहीं, बल्कि उन्हें स्वच्छ रखना भी जरूरी है। तभी जीवन की अंतिम यात्रा शुद्ध जल में मोक्ष प्राप्त कर सकती है।
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