मुलायम सिंह यादव की 85 वीं जयंती पर विशेष ...!!

●मुलायम सिंह ने एक शिक्षक से मुख्यमंत्री तक का सफर तय किया
● मुलायम सिंह ने शिक्षक से मुख्यमंत्री व रक्षामंत्री तक का सफर किया
●राजनीति के शिखर पुरुष थे मुलायम सिंह यादव 
● जमीं से आसमां तक का सफर किया मुलायम सिंह

लेखक :- साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा, महासचिव साहित्यिक मंडली शंखनाद

यह सर्वविदित है कि जनमानस पर अनेक व्यक्तित्व अपनी छाप छोड़ते हैं, जिन्हें दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है। कुछ ऐसे व्यक्तित्व होते हैं जो हृदय को तो जीतते हैं, परंतु उनकी छाप अधिक समय तक अंकित नहीं रहती है। जैसे-जैसे समय बीतता जाता है, वे गुमनाम से हो जाते हैं। दूसरे प्रकार के ऐसे व्यक्तित्व होते हैं, जो अपने जीवन काल में तो लोकप्रिय होते ही हैं, लेकिन मृत्यु के बाद उनकी लोकप्रियता और अधिक बढ़ जाती है। ऐसे महान व्यक्तित्व को हम हमेशा इसलिए याद करते हैं कि यदि वे आज होते तो विश्व परिदृश्य का मानव जगत कुछ और होता...। ऐसे ही व्यक्तित्व को महापुरुष की श्रेणी में रखा जाता है। इनके कार्य एवं विचार का प्रभाव सदियों तक मानव जगत पर पड़ता रहता है। मुलायम सिंह यादव एक ऐसी ही महान शख्सियत थे। समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव अपने कई ऐतिहासिक फैसलों के लिए याद किए जाएंगे। वे गहन मानवीय चेतना के चितेरे जुझारु, नीडर, साहसिक एवं प्रखर व्यक्तित्व थे। उन्होंने भारतीय राजनीति को न सिर्फ नई दिशा दी बल्कि समाजिक परिवर्तन की इबारत भी लिखी। उन्होंने महिलाओं को सियासत में भागीदारी दिलाने के लिए निरंतर आवाज बुलंद किया।

मुलायम का जन्म परिवारिक जीवन व राजनैतिक सफर : 

मुलायम सिंह यादव का जन्म 22 नवंबर 1939 को इटावा जिले के सैफई गांव स्थित किसान परिवार में पिता सुघर सिंह यादव व मां मूर्ति देवी के घर में हुआ। उत्तनर प्रदेश के सैफई में जन्में  मुलायम 5 भाई और एक बहन थे, जिसमें उनका नंबर सबसे बड़े भाई रतन सिंह के बाद दूसरे नंबर पर आता था। मुलायम सिंह अखाड़े में दांव लगाते-लगाते सियासी फलक पर छा गए। मुलायम के पिता सुघर सिंह यादव उनको पहलवान बनाना चाहते थे, लिहाजा मुलायम को पहलवानी सीखाते थे, जिसकी वजह से मुलायम को बचपन से पहलवानी का शौक हो गया। जैन इंटर कॉलेज में नौकरी के दौरान भी मुलायम का पहलवानी से नाता नहीं टूटा और वह लगातार कुश्तियों में जाते रहे थे। मुलायम अब सियासत, मास्टरी और पहलवानी तीनों कर रहे थे। इस बीच वह साल आ गया जब मुलायम सिंह यादव के नेताजी बनने की कहानी शुरू हुई। अपने राजनीतिक कैरियर में मुलायम सिंह यादव ने जीवन में हर धूप छांव देखी। वे कई दलों में रहे। कई बड़े नेताओं की शार्गिदी भी की। मगर जब 1992 में तत्कालीन प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर की पार्टी समाजवादी जनता पार्टी (सजपा) से अलग हो अपनी समाजवादी पार्टी बनायी तो फिर पीछे पलट कर नहीं देखा। बात 1967 की है। मुलायम के अखाड़े के गुरू नत्थू सिंह जो खुद जसवंतनगर विधानसभा से विधायक थे उन्होंने मुलायम को विधानसभा चुनाव लड़ाने का फैसला किया। उन्होने इस बारे में डॉ.राम मनोहर लोहिया से बात की। मुलायम के नाम पर मुहर लगी। मुलायम सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर चुनाव में उतरे और 1967 में सबसे कम उम्र 28 साल में विजयी होकर यूपी की विधानसभा में जा पहुंचे। इस चुनाव में नत्थू सिंह करहल विधानसभा से चुनाव लड़े और जीते भी। मुलायम के चुनाव लड़ने की घोषणा जब हुई तब इतने संसाधन नहीं थे। मुलायम ने साइकिल पर ही प्रचार शुरू किया। तब उनके दोस्त दर्शन सिंह यादव ने उनका साथ दिया। दर्शन सिंह साइकिल चलाते और मुलायम कैरियर पर पीछे बैठकर गांव-गांव जाते।

चुनाव में एक नोट, एक वोट का नारा दिया :

मुलायम सिंह के पास चुनाव लड़ने के लिए पैसे नहीं थे। ऐसे में मुलायम व दर्शन सिंह दोनों मिलकर 'एक वोट, एक नोट' का नारा दिया। वे चंदे में एक रुपया मांगते और उसे ब्याज सहित लौटने का वादा करते। इस बीच चुनाव प्रचार के लिए एक पुरानी अंबेस्डर कार खरीदी। गाड़ी तो आ गयी, लेकिन उसके लिए ईंधन यानी तेल की व्ययवस्था कैसे हो, तब मुलायम सिंह के घर बैठक हुई। बात उठी कि तेल भराने के लिए पैसा कहां से आयेगा। अचानक गांव के सोनेलाल काछी उठे और उन्होंने कहा कि हमारे गांव से पहली बार कोई विधायकी जैसा चुनाव लड़ रहा है। हमें उनके लिए पैसे की कमी नहीं होने देनी है। वह दौर अभावों का था। लेकिन लोगों के पास खेती-किसानी और मवेशी थे। गांव के लोगों ने फैसला लिया कि हम हफ्ते में एक दिन एक वक्त शाम को खाना खाएंगे। सोनेलाल काछी ने कहा कि एक वक्त कोई खाना नहीं खाएगा तो मर नहीं जाएगा। उससे जो अनाज बचेगा, उसे बेचकर अंबेस्डर में तेल भराएंगे। इस तरह कार के लिए पेट्रोल का इंतजाम हुआ। कई बार चुनाव प्रचार के समय उनकी गाड़ी कीचड़ में फंस जाया करती थी, कभी-कभी गाड़ी बीच में ही बंद हो जाती थी।
पहली चुनावी लड़ाई में मुलायम सिंह हुए विजयी : 
मुलायम की लड़ाई कांग्रेस के दिग्गज नेता हेमवंती नंदन बहुगुणा के शिष्य  वकील लाखन सिंह से था, लेकिन जब नतीजे आये तो सब चौक गये। सियासत के अखाड़े की पहली लड़ाई मुलायम सिंह जीत गये। वे विधायक बने, और यहां से अपनो के बीच नेता जी हुए।
मुलायम सिंह शिक्षक से मुख्यमंत्री तक का सफर : 
राजनीति में आने से पूर्व मुलायम सिंह यादव बतौर शिक्षक अध्यापन का कार्य करते थे। उन्होंने अपना शैक्षणिक करियर (रोजगार) करहल क्षेत्र के जैन इंटर कॉलेज से शुरू किया था। दरअसल 1955 में मुलायम सिंह यादव ने जैन इंटर कॉलेज करहल में कक्षा नौ में प्रवेश लिया था। यहां से 1959 में इंटर करने के बाद 1963 में यही सहायक अध्यापक के तौर पर अध्यापन का कार्य शुरू कर दिया था। यहां उन्होंने 10 वर्षों तक अपनी सेवाएं दीं। उस दौर में उन्हें 120 रुपए मासिक वेतन मिलता था। उन्होंने हाई स्कूल में हिंदी और इंटर में सामाजिक विज्ञान पढ़ाया करते थे। वर्ष 1974 में मुलायम सिंह प्रवक्ता के पद पर नियुक्त हो गए और उन्होंने जैन इंटर कॉलेज में ही राजनीति शास्त्र पढ़ाने लगे। राजनीतिक व्यस्तता की वजह से वर्ष 1984 में मुलायम सिंह यादव ने जैन इंटर कॉलेज से इस्तीफा दे दिया और सक्रिय राजनीति में आ गए, हालांकि  मुलायम जी ने जैन इंटर कॉलेज से अपना नाता बनाए रखा, मुख्यमंत्री रहते वह कई बार यहां आते थे और लोगों से मेल मुलाकात भी करते थे।

कहानी मुलायम के रक्षामंत्री बनने की :

90 के दशक में उत्तर प्रदेश की सत्ता से हटने के बाद मुलायम ने केंद्र की राजनीति शुरू की। मुलायम राजनीति के माहिर खिलाड़ी थे। उन्हें मालूम था कि कैसे और कब उन्हें अपनी अहमियत साबित करनी है। यही उन्होंने किया। 1996 लोकसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी को 17 सीटें मिली। तब अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बनी। हालांकि, वाजपेयी की ये सरकार ज्यादा दिन तक नहीं चली। 13 दिन में ही वाजपेयी की सरकार गिर गई। एचडी देवगौड़ा देश के नए प्रधानमंत्री बने। मुलायम सिंह ने देवगौड़ा को समर्थन दिया। मुलायम सिंह यादव इस सरकार में  रक्षा मंत्री बने। मुलायम सिंह यादव देवेगौड़ा और फिर इंद्र कुमार गुजराल की सरकार में 1996 से 1998 के बीच दो साल तक भारत के रक्षा मंत्री रहे। तब उन्होंने कई महत्वपूर्ण फैसले लिए जिसके कारण सेना ने उन्हें बेस्ट रक्षा मंत्री का आर्डर दिया था।

पहले रक्षामंत्री, जो सियाचिन पहुंचे :

मुलायम सिंह यादव देश के पहले रक्षा मंत्री थे जो सियाचिन ग्लेशियर पर गए थे। चीन को लेकर मुलायम हमेशा सख्त ही नजर आए। वह कहते थे भारत के लिए पाकिस्तान से बड़ा दुश्मन चीन है। हमें चीन के मुकाबले तैयार होने की जरूरत है।

मुलायम सिंह के फैसलों ने पूरी दुनिया को चौंका दिया :

1.शहीद जवानों का पार्थिव शरीर घर पहुंचाने का आदेश :-  रक्षामंत्री रहते मुलायम ने अपने फैसलों से दुनिया को चौंका दिया था। मुलायम सिंह यादव के रक्षामंत्री बनने से पहले सेना के लिए अलग नियम था। जब भी सेना का कोई जवान शहीद होता था, तो उसका पार्थिव शरीर उसके घर नहीं पहुंचाया जाता था। शरीर का अंतिम संस्कार सेना के जवान खुद करते थे और आखिर में जवान के घर उसकी एक टोपी भेज दी जाती थी। मुलायम सिंह ने रक्षामंत्री बनने के बाद सबसे पहले इसी को लेकर फैसला लिया। उन्होंने कानून बनाया कि जब भी कोई जवान शहीद होगा तो उसका पार्थिव शरीर पूरे सम्मान के साथ उसके घर ले जाया जाएगा। डीएम और एसएसपी शहीद जवान के पार्थिव शरीर के साथ उसके घर जाएंगे।
 2. चीन को चार किलोमीटर पीछे ढकेल दिया :-  मुलायम ने हमेशा भारत के लिए पाकिस्तान से बड़ा दुश्मन चीन को बताया। खुले मंच से वह चीन की खिलाफत करते रहे। उन्होंने कहा कि अगर भारत को आगे बढ़ना है तो उसे चीन के मुकाबले मजबूत होना पड़ेगा। पाकिस्तान असल में भारत का दुश्मन नहीं है। इसी नीति के तहत रक्षामंत्री रहते हुए उन्होंने काम भी किया। कहा जाता है कि मुलायम के रक्षामंत्री रहते हुए बॉर्डर पर भारतीय सेना ने चीन को चार किलोमीटर पीछे ढकेल दिया था।
3. पाकिस्तान पर नरमी दिखाई :- मुलायम सिंह यादव को लेकर ये बात भी काफी चर्चा में रही। जब वह रक्षामंत्री थे, तब पाकिस्तान ने उन दो सालों में सीजफायर नहीं किया था। घुसपैठ रोकने के लिए भी मुलायम ने काफी सख्ती की थी।

मुलायम सिंह यादव ने अखिलेश को सौंपी विरासत :

राजनीति के कुशल खिलाड़ी मुलायम सिंह यादव ने वर्ष 2012 में पूर्ण बहुमत मिलते ही अपने बेटे अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाया। वर्ष 2017 में पार्टी के अंदर खलमंडल मचा। वह कभी शिवपाल और कभी अखिलेश के पक्ष में खड़े होते रहे। आखिरकार उन्होंने सार्वजनिक मंच से स्वीकार किया कि वह अखिलेश यादव के साथ हैं। अखिलेश यादव ही समाजवादी विरासत को आगे बढ़ा सकते हैं। सियासत में कई उतार-चढाव देखते हुए मुलायम सिंह यादव ने कई कड़े फैसले भी लिए। जिस वक्त विरासत को लेकर विवाद चला तो मुलायम सिंह ने अपने प्रो रामगोपाल यादव को पार्टी से बर्खास्त करने से भी नहीं हिचके। 

24 साल बाद एक मंच पर आए थे मायावती और मुलायम :

वर्ष 1993 में मुलायम सिंह यादव और कांशीराम आपस में मिले तो भाजपा का विजय रथ रोकने में कामयाबी मिली थी। लेकिन मायावती और मुलायम के बीच 23 मई 1995 को दूरियां साफ दिखी थी। क्योंकि इस दिन जब मुलायम सिंह कांशी राम से मिलने पहुंचे तो कांशीराम ने कहा कि बात पत्रकारों के सामने होगी। एक जून को मायावती ने मुलायम सरकार में शामिल अपने 11 मंत्रियों के साथ दावा पेश कर दिया। इसके बाद दोनों की राहें जुदा हो गईं। इसके बाद 15 मार्च 2018 को अखिलेश यादव ने मायावती से मुलाकात कर दोबारा गठबंधन कायम किया। फिर 24 साल बाद 19 अप्रैल 2019 को मैनपुरी में मुलायम सिंह यादव और मायावती एक मंच पर दिखे। इस दिन सपा-बसपा की एकता में नारे लगे थे। मायावती ने इस दिन रैली में न सिर्फ मुलायम सिंह के लिए वोट मांगा बल्कि उनकी तारीफ़ भी की और कहा कि मुलायम सिंह यादव पिछड़े वर्ग के असली नेता हैं।

लिटिल नेपोलियन मुलायम सिंह यादव के सियासी सफर : 

मुलायम सिंह यादव आठ बार विधायक, सात बार सांसद, एक बार देश के रक्षा मंत्री और तीन बार सबसे बड़े राजनीतिक सूबे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। इनका राजनीतिक सफर काफी लंबा रहा है। वह आठ बार उत्तर प्रदेश की अलग-अलग सीटों से विधायक चुने गए। इसके अलावा सात बार सांसद भी रहे। 1967 में सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर उन्होंने पहला चुनाव लड़ा और सबसे कम उम्र के विधायक बने। मुलायम एक जून 1996 से 19 मार्च 1998 तक देश के रक्षामंत्री रहे। ये वो दौर था जब देश में राजनीतिक अस्थिरता का माहौल था। मुलायम ने किसानों के लिए भी खूब लड़ाई लड़ी। पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह उन्हें लिटिल नेपोलियन कहकर बुलाते थे।
मुलायम सिंह यादव उत्तर प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री रहे। पहली बार पांच दिसंबर 1989 से 24 जून 1991 तक, दूसरी बार पांच दिसंबर 1993 से 3 जून 1995 तक और तीसरी बार 29 अगस्त 2003 से 13 मई 2007 तक मुख्यमंत्री रहे। ये एक जून 1996 से 19 मार्च 1998 तक भारत के रक्षा मंत्री रहे।
 मुलायम सिंह पहली बार 1967 में विधायक बने थे। फिर 1974, 1977, 1985, 1989, 1991, 1993 और 1996 में विधायक बने। फिर उपचुनाव में 2004 से 2007 तक विधायक रहे थे। मुलायम सिंह यादव लोकसभा सदस्य के रूप में 1996 में मैनपुरी, 1998 में संभल, 1999 में संभल से रहे। 2004 में मैनपुरी से चुने गए, लेकिन इस्तीफा दे दिया। फिर 2009 में मैनपुरी, 2014 में आजमगढ़ औ 2019 में मैनपुरी से सांसद चुने गए थे। ये 1992 में सपा का गठन किया और खुद राष्ट्रीय अध्यक्ष बने। वह जनवरी 2017 तक इस पद पर रहे। इसके बाद इन्हें संरक्षक बना दिया।

मुलायम सिंह का विशाल सक्रिय राजनैतिक परिवार :

मुलायम सिंह के पिता थे दो भाई : मुलायम सिंह यादव के दादा जी का नाम मेवाराम यादव था। उनके दो बेटे सुघर सिंह यादव और बच्चीलाल सिंह हुए। सुघर सिंह यादव के पांच बेटे मुलायम सिंह यादव, रतन सिंह, राजपाल सिंह यादव, अभयराम सिंह यादव और शिवपाल सिंह यादव हैं। जबकि बच्चीलाल सिंह के एक ही बेटे राम गोपाल यादव हैं। रामगोपाल के भी एक ही बेटे अक्षय यादव हैं। सपा में राम गोपाल यादव की काफी अहम भूमिका है।
मुलायम सिंह ने की दो शादियां :

मुलायम सिंह यादव ने दो शादियां कीं। उनकी पहली पत्नी का नाम मालती देवी है। वर्ष 1957 में उनकी मालती देवी से शादी हुई। मालती के बेटे अखिलेश यादव हैं। डिंपल यादव अखिलेश यादव की पत्नी है। दोनों की तीन बच्चे अदिति यादव, टीना यादव और अर्जुन यादव हैं। वहीं मुलायम की दूसरी पत्नी का नाम साधना गुप्ता है। साधना गुप्ता और मुलायम के एक ही बेटे प्रतीक यादव हैं। प्रतीक की पत्नी अपर्णा यादव हैं। प्रतीक यादव राजनीति से दूर रहकर जिम चलाते हैं। हालांकि उनकी पत्नी अपर्णा राजनीति में कदम रख चुकी हैं।

भतीजे और भाई भी राजनीति में सक्रिय :

मुलायम सिंह यादव का लगभग पूरा परिवार ही राजनीति में सक्रिय है। उनके भाई भी राजनेता हैं, लेकिन अभी बात करते हैं सिर्फ परिवार के बारे में। मुलायम के भाई रतन सिंह के दो बेटे रणवीर सिंह और तेज प्रताप यादव हैं। वहीं राजपाल सिंह यादव के बेटे अंशुल यादव हैं। अभय राम सिंह के दो बच्चे धर्मेंद्र यादव और एक बेटी हैं। शिवपाल सिंह यादव के बेटे आदित्य यादव हैं। इनके अलावा रामगोपाल यादव के भी एक ही बेटे अक्षय यादव हैं।

मुलायम सिंह यादव का निधन :

समाजवादी पार्टी के संरक्षक और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव जी का काफ़ी लंबी बीमारी के कारण 10 अक्टूबर 2022 को मेदांता अस्पताल गुरुग्राम में निधन हो गया।

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