स्मृति शेष : बिहार कोकिला, पद्मश्री लोक गायिका शारदा सिन्हा..!!


लेखक :- साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा, महासचिव शंखनाद साहित्यिक मंडली

संगीत की देवी और 'बिहार की स्वर कोकिला' के रूप में अपनी पहचान बनाने वालीं पद्मश्री से सम्मानित शारदा सिन्हा का निधन दिल्ली के एम्स अस्पताल में मंगलवार की रात निधन हो गया। छठ गीतों को घर-घर तक पहुंचाने वाली 72 वर्षीय शारदा सिन्हा छठ महापर्व के पहले दिन नहाय-खाय पर ही छठी मंईयां की गोद में निर्वाण को प्राप्त हुईं। वे 11 दिनों से एम्स में भर्ती थीं। वे बीते छह वर्षों से ब्लड कैंसर से जूझ रही थीं।
बिहार कोकिला, पद्मश्री लोक गायिका शारदा सिन्हा का जन्म 1 अक्टूबर 1952 को सुपौल जिला के हुलास गांव के एक समृद्ध परिवार में हुआ था, उनके पिता सुखदेव ठाकुर शिक्षा विभाग में एक वरिष्ठ अधिकारी थे। पिता सुखदेव ठाकुर सुपौल विलियम्स हाई स्कूल के प्राचार्य रहे और बाद में शिक्षा विभाग के अधिकारी से सेवानिवृत्त हुए। शारदा सिन्हा ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा राघोपुर प्रखंड के हुलास गांव में ही पूरी की थी। शारदा सिन्हा अपने 8 भाईयों के बीच इकलौती बहन थीं। उनके घर में 35 साल तक किसी लड़की का जन्म नहीं हुआ था। शारदा सिन्हा का बचपन से ही संगीत की तरफ झुकाव था। बचपन से ही शारदा सिन्हा का नृत्य और गायन के प्रति काफी लगाव था। स्कूल के दिनों में जब शारदा अपनी सहेलियों के साथ गीत गा रही थीं, वहीं चुपके से शिक्षक हरि उप्पल (शारदा के शिक्षक) उनका गीत सुन रहे थे। जिसके बाद उन्होंने सभी से पूछा कि “यह रेडियो कौन बजा रहा है” तभी सभी ने जवाब दिया कि “शारदा गीत गा रही हैं।” तभी शारदा को प्रधानचार्य कार्यालय में बुलाकर उस गीत को टेप रिकॉर्डर में रिकॉर्ड किया। शारदा के अनुसार गायन के क्षेत्र में करियर को सक्रिय बनाने के लिए उनके परिवार का भरपूर सहयोग मिला। उन्होंने मैथिली, भोजपुरी, हिंदी, सहित बिहार की सभी भाषाओं में गायन किया। उन्होंने शास्त्रीय संगीत की उच्च शिक्षा प्रतिष्ठित गुरुओं से ली है। जिसके चलते वह मणिपुरी नृत्य में पारंगत हैं। शारदा को बिहार की लोक संस्कृति को बनाए रखने के लिए भारत सरकार द्वारा वर्ष 1991 में पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्होंने पहली बार बॉलीवुड फिल्म “मैंने प्यार किया” (1989) में एक गायिका के रूप में कार्य किया है। उन्हें इस फिल्म में गीत गाने के लिए 76 रुपए मिले थे। उन्होंने प्रारम्भिक शिक्षा बांकीपुर गर्ल्स हाईस्कूल-बिहार, महाविद्यालय / विश्वविद्यालय मगध महिला कॉलेज-बिहार, शैक्षिक योग्यता मगध महिला कॉलेज से स्नातक, समस्तीपुर के शिक्षण महाविद्यालय से बीएड, प्रयाग संगीत समिति, इलाहाबाद से संगीत में परास्नातक किया। शारदा सिन्हा ने अपने करियर की शुरुआत पटना आकाशवाणी और दूरदर्शन से किया था। वे समस्तीपुर महिला कालेज में संगीत की प्रोफेसर और एचओडी के रूप में कुछ वर्षों तक सेवारत रहीं। शारदा सिन्हा को अक्सर “बिहार की आवाज़” कहा जाता है। मैथिली, भोजपुरी और मगही में अपने खूबसूरत गीतों के लिए जानी जाने वाली शारदा सिन्हा ने लाखों लोगों का दिल जीता है।

शारदा सिन्हा ने 1974 में गाया था पहला भोजपुरी गीत :

1974 में शारदा सिन्हा ने पहली बार भोजपुरी गीत गाया, लेकिन उनके जीवन में संघर्ष जारी रहा। 1978 में उनका छठ गीत "उग हो सुरुज देव" रिकॉर्ड किया गया, जिसके बाद शारदा सिन्हा का नाम घर-घर में प्रसिद्ध हो गया। 1989 में उन्होंने बालीवुड में भी कदम रखा और "कहे तोसे सजना तोहरे सजनिया" गीत गाकर खूब सराहना बटोरी। लोक गायिका शारदा सिन्हा जी ने संगीत के क्षेत्र में जो मुकाम हासिल की वह सदियों तक याद रखा जाएगा। 
प्रारंभिक जड़ें और संगीत की शुरुआत :
बिहार के सुपौल जिले के हुलास गांव में जन्मी शारदा की मातृभूमि के देहाती खेतों से लेकर पहचान के भव्य मंच तक की यात्रा उनके अटूट समर्पण और असाधारण प्रतिभा का प्रमाण है। शारदा सिन्हा का प्रारंभिक जीवन बिहार के सांस्कृतिक परिवेश में गहराई से निहित था। शारदा सिन्हा के निजी जीवन की बात करें तो उनकी शादी बेगूसराय जिले के सिहमा गांव में रहने वाले डॉ. ब्रजकिशोर सिन्हा के साथ हुई थी। शारदा सिन्हा के परिवार की बात करें तो उनके दो बच्चे हैं, जिनमें एक बेटा अंशुमन सिन्हा हैं और एक बेटी वंदना हैं। शारदा सिन्हा के पति ब्रज किशोर भी 80 साल की उम्र में दुनिया छोड़कर चले गए। उनके ससुराल वालों के कारण, उन्हें छोटी उम्र से ही इस क्षेत्र की समृद्ध संगीत परंपराओं से परिचित कराया गया था। संगीत के साथ उनका लगाव तब शुरू हुआ जब उन्होंने अपने घर के हरे-भरे परिदृश्यों में गूंजने वाले दिल को छू लेने वाले मैथिली लोकगीतों को अपनी आवाज़ दी। यह एक संगीत यात्रा की शुरुआत थी जो उनके जन्मस्थान की सीमाओं से कहीं आगे तक गूंजेगी।
शारदा सिन्हा एक संगीतमय यात्रा का अनावरण रही :
भारतीय लोक और शास्त्रीय संगीत की प्रतीक शारदा सिन्हा ने न केवल मैथिली और भोजपुरी धुनों के देहाती आकर्षण को सामने लाया है, बल्कि सांस्कृतिक विरासत की एक उत्साही संरक्षक भी रही हैं। बिहार की क्षेत्रीय सीमाओं से परे, शारदा के संगीत ने हिंदी सिनेमा की मुख्यधारा की दुनिया में भी अपनी जगह बनाई है। प्रतिष्ठित फ़िल्म "मैंने प्यार किया" (1989) में "काहे तो से सजना" के उनके भावपूर्ण गायन ने पूरे देश में दर्शकों के दिलों को छू लिया। इस गाने ने बॉलीवुड में उनकी शुरुआत की और लाखों लोगों के दिलों में उन्हें एक ख़ास जगह दिलाई। शारदा के संगीत के क्षेत्र का विस्तार तब हुआ जब उन्होंने "गैंग्स ऑफ़ वासेपुर पार्ट 2" और "चारफुटिया छोकरे" जैसी फ़िल्मों के साउंडट्रैक में योगदान दिया। अपनी जड़ों की देहाती लोक धुनों और समकालीन सिनेमा की माँगों के बीच सहजता से तालमेल बिठाने की उनकी क्षमता ने एक कलाकार के रूप में उनकी बहुमुखी प्रतिभा को रेखांकित किया।
शारदा सिन्हा की छठ पूजा का पुनरुद्धार :
हालांकि, छठ परंपरा के पथ प्रदर्शक के रूप में अपनी भूमिका में शारदा ने सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने के प्रति अपनी अटूट प्रतिबद्धता को सही मायने में प्रदर्शित किया। 2016 में, एक दशक के अंतराल के बाद, उन्होंने दो नए छठ गीत जारी किए, जिनमें इस पूजनीय त्योहार का सार समाहित था। "सुपावो ना मिले माई" और "पहिले पहिल छठी मैया" जैसे गीतों के साथ शारदा ने न केवल लोगों को उत्सव में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया, बल्कि आम जनता के लिए छठ पूजा के सांस्कृतिक महत्व को भी प्रतिध्वनित किया।
चुनौतियों पर विजय पाना और परंपराओं को पुनर्जीवित करना :
इन गीतों को बनाने की यात्रा चुनौतीपूर्ण थी। शारदा ने संगीत कंपनियों द्वारा उत्पन्न बाधाओं और सार्थक गीतों की कमी को उन बाधाओं के रूप में उजागर किया, जिन्होंने पहले उन्हें इस प्रयास से दूर रखा था। इन बाधाओं को पार करते हुए, उन्होंने रचनाओं में अपना दिल और आत्मा लगा दी। हृदय नारायण झा और शांति जैन ने शारदा के साथ मिलकर गीतों को सावधानीपूर्वक तैयार किया, जिसके परिणामस्वरूप संगीतमय कथाएँ सम्मोहक और भावपूर्ण दोनों थीं।

शारदा सिन्हा आजीवन रही भक्ति भावना से जुड़ी :
छठ संगीत के प्रति अपनी आजीवन प्रतिबद्धता में, शारदा सिन्हा ने 62 छठ गीतों वाले कई एल्बम जारी किए हैं। टी-सीरीज़, एचएमवी और टिप्स जैसे प्रमुख लेबल द्वारा निर्मित ये एल्बम बिहार के सांस्कृतिक ताने-बाने को संरक्षित करने के प्रति उनके समर्पण का प्रमाण हैं। अपने संगीत के माध्यम से, उन्होंने श्रोताओं को बिहार के घर-घर, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश सहित पटना के शांत घाटों पर पहुँचाया और पीढ़ियों से चली आ रही परंपराओं में जान फूंक दी।
 शारदा सिन्हा का कलात्मक योगदान और सम्मान :
शारदा सिन्हा ने बॉलीवुड के लिए कई गाने भी गाए। लेकिन उन्होंने कभी अपनी धूरी नहीं छोड़ी। वह लगातार लोकगायन में सक्रिय रहीं। शारदा के कलात्मक योगदान को राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता तब मिली जब उन्हें संगीत जगत में उनके असाधारण योगदान के लिए 2018 में गणतंत्र दिवस के अवसर पर भारत सरकार ने 'पद्म भूषण' से नवाजा था। साल 1995 में उन्हें 'पद्मश्री' से सम्मानित किया गया। प्रसिद्धि बढ़ने के साथ ही शारदा सिन्हा ने भोजपुरी व मैथिली के अलावा वज्जिका, अंगिका, मगही आदि भाषाओं व बोलियों में भी गीत गाए। वर्ष 2001 में, उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वर्ष 2015 में, उन्हें बिहार सरकार द्वारा सिनेयात्रा पुरस्कार से सम्मानित किया गया। वर्ष 2009 के बिहार विधानसभा चुनाव में शारदा सिन्हा चुनाव आयोग की ब्रांड एंबैसडर भी रही हैं। उन्हें संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार और राष्ट्रीय अहिल्या देवी पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। पांच दशकों से बिहार की लोक गायन परंपरा की सशक्त हस्ताक्षर रहीं शारदा सिन्हा के गाए गीत आज भी लोगों के दिल-ओ-दिमाग में रचे बसे हैं।
बिहार के देहाती परिदृश्यों की पहचान :
बिहार के देहाती परिदृश्यों से पहचान के भव्य मंचों तक शारदा सिन्हा की यात्रा आधुनिकता को अपनाते हुए परंपरा को संरक्षित करने, सितारों तक पहुँचने के दौरान जड़ों से जुड़े रहने की कहानी है। उनकी मधुर आवाज़, जो उस मिट्टी की कहानियाँ बयां करती है जहाँ से वे आती हैं, ने भारत के सांस्कृतिक परिदृश्य पर एक अमिट छाप छोड़ी है। जैसे-जैसे छठ पूजा के दौरान पवित्र नदी के घाटों पर पीढ़ियाँ इकट्ठा होती रहेंगी, शारदा सिन्हा की भावपूर्ण धुनें उनका मार्गदर्शन करती रहेंगी, जो उन्हें समय और स्थान के माध्यम से बिहार के हृदयस्थलों तक ले जाएँगी, जहाँ संगीत और परंपराएँ पूर्ण सामंजस्य में विलीन हो जाती हैं।

शारदा सिन्हा एक सशक्त महिला थी :
अपने बहत्तर साल के जीवन में शारदा सिन्हा ने न केवल लाखों लोगों के दिलों में अपनी जगह बनाई है, बल्कि कई पीढ़ियों के लोगों को प्रेरित और उनसे जुड़ा भी है। शाकाहारी जीवनशैली का उनका चुनाव, स्वास्थ्य पर ध्यान और अपने काम के प्रति प्रतिबद्धता एक सशक्त और कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति के रूप में उनके चरित्र को दर्शाती है।
शारदा सिन्हा ने सांस्कृतिक विरासत को समृद्ध किया :
शारदा सिन्हा की विरासत सिर्फ़ संगीत के इतिहास में ही नहीं बल्कि संस्कृति, परंपरा और आधुनिकता के दायरे में भी गूंजती है। उनका उपनाम "शारदा" है, वे मैथिली और भोजपुरी लोक संगीत के सार को अपने में समेटे हुए हैं और साथ ही सोशल मीडिया और डिजिटल अभिव्यक्ति के समकालीन परिदृश्यों में भी सहजता से आगे बढ़ रही हैं। सात दशकों से ज़्यादा समय तक चली उनकी यात्रा एक मधुर ताने-बाने में बदल गई है जो अतीत और वर्तमान, परंपरा और नवीनता को एक साथ जोड़ती है। शारदा की मनमोहक आवाज़ ने मैथिली लोकगीतों में जान फूंक दी, उनकी सांस्कृतिक विरासत का सार प्रस्तुत किया। भोजपुरी, मगही और हिंदी धुनों की लय उनके स्वरों से सहजता से प्रवाहित हुई, जिससे बिहार की भाषाओं और परंपराओं की विविधता का जश्न मनाने वाली एक सिम्फनी तैयार हुई। प्रयाग संगीत समिति के बसंत महोत्सव ने उनकी कलात्मक प्रतिभा के लिए एक मंच प्रदान किया, जहाँ उन्होंने कालातीत लोकगीतों के माध्यम से वसंत की कहानियाँ बुनी।

 शारदा सिन्हा सांस्कृतिक अभिव्यक्ति की मशालवाहक :
शारदा सिन्हा की यात्रा, उनकी धुनों की तरह ही बहुआयामी है और निरंतर विकसित होती जा रही है। उनकी भावपूर्ण आवाज़ पीढ़ियों में गूंजती है, संस्कृतियों, परंपराओं और युगों को एकीकृत करती है। संगीत और आधुनिकता के बीच तालमेल बिठाते हुए, शारदा परंपरा की संरक्षक और सांस्कृतिक अभिव्यक्ति की मशालवाहक बनी हुई हैं। उनकी विरासत सिर्फ़ उनके द्वारा बुनी गई धुनों में ही नहीं है, बल्कि उनके द्वारा छुए गए जीवन और उनके द्वारा संरक्षित परंपराओं में भी है। निरंतर परिवर्तन की दुनिया में, शारदा सिन्हा का संगीत समय और सीमाओं को पार करने की कला की स्थायी शक्ति का प्रमाण है।
 
 हिन्दी फ़िल्मों में शारदा सिन्हा का योगदान और प्रसिद्धि :
 * साल 1996 में आई सलमान ख़ान, भाग्यश्री अभिनीत 'मैंने प्यार किया' में शारदा सिन्हा ने 'काहे तोहसे सजना' गाना गया था। सलमान की फिल्में कई बार गानों के लिए जानी जाती हैं। इनमें उनके शुरुआती दिनों का यह गाना काफी मशहूर है। इसके संगीतकार राम लक्ष्मण हैं।
* 'हम आपके हैं कौन' का विदाई गीत बाबूल मोहनीश बहल और रेणुका शहाणे पर फिल्माया गया था। इसे लिखा देव कोहली ने था और इसका संगीत राम लक्ष्मण ने तैयार किया था।
* शारदा सिन्हा की पहचान छठ गीत से पहले एक मिथिला क्षेत्र की क्षेत्रीय गायिका के रूप में होती थी। लेकिन शारदा सिन्हा ने 'पहिले पहिल कइनी छठ' गाया और उनको ना केवल पूरे उत्तर भारत बल्कि मॉरिशस व भोजपुरी के अन्य क्षेत्रों से भी गाने के लिए बुलावे आने लगे और वह एक अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जाने जानी वाली गायिका हो गईं।
* शारदा सिन्हा की आवाज का जादू 'नदिया के पार' के गाने 'जब तक पूरे ना हो फेरे सात' में भी चला था। यह एक ऐसा गाना बन गया, जिसके बिना उत्तर भारत की शादियां पूरी नहीं होती। आज भी शादियों में यह गाना बजता है।
बिहार कोकिला शारदा सिन्हा का निधन :
72 वर्षीय बिहार कोकिला, पद्म श्री एवं पद्म भूषण महान गायिका शारदा सिन्हा को मायलोमा कैंसर था और उनका दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में इलाज चल रहा था। मंगलवार 5 नवम्बर 2024 की रात को उनका निधन हो गया। बचपन से ही उनकी मधुर आवाज ने उन्हें लोगों के दिलों में एक खास जगह दिला दी थी। उनकी पहचान बड़े लाल बिंदी, सिंदूर से सजी मांग और चश्मा पहने वाली छवि से भी है। शारदा सिन्हा ने अपने करियर में ज्यादातर लोक गीत गाए हैं, आज भी उनके गीतों का खजाना लाखों लोगों के दिलों में बसा हुआ है। शारदा सिन्हा ने अपने संगीत से बिहार की लोक परंपरा को भारत के अन्य हिस्सों और अंतरराष्ट्रीय मंच पर पहुंचाया। उनके योगदान से लोक संगीत को एक नई पहचान मिली और उन्होंने नई पीढ़ी के लिए एक मिसाल कायम की।
शारदा सिन्हा के गाए लोकगीत केवल मनोरंजन नहीं हैं, बल्कि वे उस संस्कृति और समाज की कहानियों को भी बयान करते हैं जिनसे वे जुड़ी हैं। उनकी गायकी में उस क्षेत्र की मिट्टी की खुशबू और जीवन की सादगी की झलक है। अपने गीतों के माध्यम से शारदा सिन्हा ने भारतीय लोक संगीत को एक नई ऊंचाई दी है और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणा स्त्रोत के रूप में कायम रहेंगी।

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