पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की 122 वीं जयंती पर विशेष ...!!
●किसानों की पीड़ा को अपनी समझते थे चौधरी चरण सिंह
●किसानों के दिलों में आज भी बसते हैं पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह
लेखक :- साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा, महासचिव शंखनाद साहित्यिक मंडली
ग्रामीण भारत के मुद्दे और देश के विकास की दिशा स्वतंत्रता के सात दशक बाद भी कमोवेश यथावत है। 1991 में शुरू किए गए आर्थिक सुधारों के कार्यक्रमों के बाद देश में आर्थिक विकास तो तेजी से हो रहा है, लेकिन विकास की इस प्रक्रिया में गांव, किसान और खेती हाशिए पर आ गये है। आज किसान राजनीति जाति, धर्म, क्षेत्र या अन्य भावुक मुद्दों में उलझकर रह गई है। चाहे संसद हो या विधान मंडल, कहीं भी किसानों की आवाज सुनने वाला कोई नहीं है।
ऐसी स्थिति में चौधरी चरण सिंह की ग्राम और कृषि आधारित अर्थव्यवस्था और कृषक लोकतंत्र की संकल्पना की आज भी सार्थकता है। गांव की आर्थिक प्रगति के लिए चरण सिंह लघु एवं विकेंद्रित उद्योगों के हिमायती थे। उनका मानना था कि कृषि मजदूरों एवं अन्य लाखों गरीब किसानों एवं ग्रामीण बेरोजगारों की आय बढ़ाने के लिए कृषि आधारित उद्योगों को प्रोत्साहन देना अति आवश्यक है।
चौधरी चरण सिंह गांव के विकास के लिए सरकारी सेवाओं में किसानों की संतानों के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण के समर्थक थे। उनका मानना था कि हमारे राज्य या देश की परिस्थितियों में कोई भी व्यक्ति सच्चे अर्थों में लोगों की सेवा तब तक नहीं कर सकता जब तक कि वह गांव को और ग्रामीणों की समस्याओं से वास्तविक रूप में रूबरू न हो। अपने पूरे राजनीतिक जीवन में वे ग्रामीण भारत के उत्थान के लिए प्रयासरत रहे, जब भी उन्हें अवसर मिला उन्होंने इसके लिए ठोस कदम उठाए। धरती पुत्र के इस योगदान के लिए ग्रामीण भारत सदैव ऋणी रहेगा।
चौधरी चरण सिंह भारतीय राजनीति और किसानों के जीवन में अपने नाम की ऐसी छाप छोड़कर गए हैं कि शायद ही कोई और जननेता इसकी बराबरी पर कहीं खड़ा हो भी सके। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री, भारत रत्न चौधरी चरण सिंह की आज 23 दिसम्बर को 122 वीं जयंती है। चौधरी चरण सिंह भारत के पांचवें प्रधानमंत्री थे, चरण सिंह किसानों की आवाज बुलन्द करने वाले प्रखर नेता माने जाते थे।
चौधरी चरण सिंह का जन्म शिक्षा और पारिवारिक जीवन :
किसान मसीहा पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय चौधरी चरण सिंह की यादें और बातें किसानों के दिलों में हैं। जिक्र छिड़ते ही सियासत में ईमानदारी के लिए चौधरी साहब का नाम किसान सबसे पहले लेते हैं। हर किसान की पीड़ा को वह अपनी समझते थे। चकबंदी कानून से लेकर गांव-गांव खोले गए शिक्षण संस्थानों से उन्होंने शिक्षा की अलख जगाने का कार्य भी किसानों के लिए किया था।
किसान नेता भारत रत्न चौधरी चरण सिंह का जन्म 23 दिसम्बर, 1902 को उत्तर प्रदेश के मेरठ ज़िले के नूरपुर ग्राम में एक मध्यम वर्गीय कृषक परिवार में हुआ था। वे जाट जाति के तेवतिया गोत्र के एक छोटे किसान मीर सिंह और उनकी पत्नी नेत्र कौर की पांच संतानों में सबसे बड़े थे।
चौधरी चरण सिंह के जन्म के 6 वर्ष बाद चौधरी मीर सिंह सपरिवार नूरपुर से जानी खुर्द के पास भूपगढी आकर बस गये थे। चौधरी चरण सिंह को यहीं से किसानों का मसीहा बनने की प्रेरणा प्राप्त हुई। चौधरी चरण सिंह को परिवार में शैक्षणिक वातावरण प्राप्त हुआ था। स्वयं इनका भी शिक्षा के प्रति अतिरिक्त रुझान रहा था। मैट्रिकुलेशन के लिए इन्हें मेरठ के सरकारी उच्च विद्यालय में भेज दिया गया। 1923 में 21 वर्ष की आयु में इन्होंने विज्ञान विषय में स्नातक की उपाधि प्राप्त कर ली। दो वर्ष के पश्चात् 1925 में चौधरी चरण सिंह ने कला स्नातकोत्तर की परीक्षा उत्तीर्ण की। आगरा विश्वविद्यालय से कानून की शिक्षा लेकर 1928 में चौधरी चरण सिंह ने गाजियाबाद में वकालत प्रारम्भ की। वकालत जैसे व्यावसायिक पेशे में भी चौधरी चरण सिंह उन्हीं मुकद्मों को स्वीकार करते थे जिनमें पक्ष न्यायपूर्ण होता था। चौधरी चरण सिंह का व्यक्तित्व साफ छवी का था वो अपनी छवी पर एक दाग भी नहीं लगने देना चाहते थे। 1929 में चौधरी चरण सिंह का विवाह मेरठ में जाट परिवार की ही लड़की से हिंदू रीति-रिवाजों के साथ सम्पंन हुआ। स्वतंत्रता संग्राम उन दिनों चरम पर था ऐसे में चौधरी चरण सिंह कैसे पीछे हट सकते थे उन्होंने अपनी वकालत छोड़ कर स्वतंत्रता की लड़ाई में शामिल होना जरुरी समझा। वो कांग्रेस से जुड़ गए जो उस समय सबसे बड़ी पार्टी थी। कांग्रेस में उन्हें प्रमुख कार्यकर्ता के रुप मे जाना जाता था।
चौधरी चरण सिंह का राजनैतिक जीवन :
चौधरी चरण सिंह किसानों के नेता माने जाते रहे थे। उनके द्वारा तैयार किया गया जमींदारी उन्मूलन विधेयक राज्य के कल्याणकारी सिद्धांत पर आधारित था। जादी के प्रति चौधरी चरण सिंह दीवाने थे। कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में पूर्ण स्वराज का प्रस्ताव पारित हुआ था, जिससे प्रभावित होकर युवा चौधरी चरण सिंह राजनीति में सक्रिय हो गए। उन्होंने गाजियाबाद में कांग्रेस कमेटी का गठन किया। 1930 में जब महात्मा गांधी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन का आह्वान किया तो उन्होंने हिंडन नदी पर नमक बनाकर उनका साथ दिया। जिसके लिए उन्हें जेल भी जाना पड़ा। किसानों के हित में उन्होंने 1954 में उत्तर प्रदेश भूमि संरक्षण कानून को पारित कराया। 3 अप्रैल 1967 को उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री बने। जिसके बाद 17 अप्रैल 1968 को उन्होंने मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया। 28 जुलाई 1979 को चौधरी चरण सिंह समाजवादी पार्टियों तथा कांग्रेस के सहयोग से प्रधानमंत्री बने। साल 1977 में वो केंद्र सरकार में उप-प्रधानमंत्री और गृह मंत्री बने। वह आजादी की लड़ाई और आपातकाल में जेल में रहे। इंदिरा गांधी ने एक महीने के भीतर ही चरण सिंह के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार से समर्थन वापस ले लिया था। यह राजनीति की हैरान करने वाली घटना थी। साथ ही दूसरी घटना यह हुई कि चरण सिंह ने संसद का सामना किए बिना प्रधानमंत्री पद से हट गए। बड़े नेताओं की राजनीतिक उच्चाकांक्षा के कारण जनता पार्टी में टूट के बाद 15 जुलाई, 1979 को मोरारजी देसाई ने प्रधानमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था। कांग्रेस और सीपीआई के समर्थन से जनता (एस) के नेता चरण सिंह 28 जुलाई, 1979 को प्रधानमंत्री बने।
चौधरी चरण सिंह ने अपने विचारों से कभी समझौता नहीं किया :
किसानों के हकों की लड़ाई लड़ने वाले चौधरी चरण सिंह सादगी और ईमानदारी की मिसाल थे। उन्होंने अपने विचारों से कभी भी समझौता नहीं किया। जब भी उन्हें सत्ता में आकर ताकत मिली, उन्होंने किसानों की भलाई के लिए काम किए। किसान मसीहा के अनुयायी आज भी उनके संस्मरण, आदर्श और बातें अपनी धरोहर के रूप में दिलों में संजोए हुए है।
1959 में नागपुर के अधिवेशन में पंडित जवाहरलाल नेहरू कॉपरेटिव फार्मिंग को लागू करना चाहते थे, मगर चौधरी साहब ने इसका खुलकर विरोध किया। अधिवेशन में ही इसके नुकसान बताए। इसे किसान विरोधी बताया। प्रस्ताव पास होने के बावजूद भी पंडित नेहरु इस कानून को लागू करने का साहस नहीं जुटा पाए थे। उनका मत था कि किसान, गांव खुशहाल होंगे, तो देश खुशहाल होगा।
चौधरी चरण सिंह को जब भी सत्ता में आकर ताकत मिली, उन्होंने किसानों के उत्थान के लिए काम किया। गन्ने और गेहूं के दाम बढ़ाए। खेत, खलियान, किसान, मजदूरों की भलाई के लिए काम किया। वो किसानों के सच्चे हितैषी थे। उन्होंने पूंजीपतियों से कभी भी हाथ नहीं मिलाया। ग्रामीणों के बीच जाकर चंदा एकत्र कर गरीबों को चुनाव लड़वाया और उन्हें सत्ता का भागीदार बनाया।
गरीबों से जुड़े थे चौधरी साहब :
प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री होने के साथ ही साथ चौधरी चरण सिंह कृषि अर्थव्यवस्था की गहरी समझ रखने वाले उच्च कोटि के विद्धान, लेखक एवं अर्थशास्त्री थे। चौधरी साहब किसान आंदोलन के शिखर पर लगभग पांच दशक तक छाए रहे। उन्होंने सरकारी नौकरियों में कृषकों और कृषि मजदूरों के बच्चों के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण की मांग की थी।
आज भी उनका कार्य प्रशंसनीय :
चौधरी साहब ने सहकारी खेती का विरोध, कृषि कर्ज माफी, कृषि को आयकर से बाहर रखने, किसानों को जोत बही दिलाने, नहर पटरी पर चलने पर जुर्माना वसूलने का ब्रिटिश कानून खत्म करने, कृषि उपज की अंतरराज्यीय आवाजाही पर रोक हटाने और कपड़ा मिलों को 20 प्रतिशत कपड़ा गरीबों लिए बनवाने जैसे शानदार काम किए। जमींदारी उन्मूलन अधिनियम लागू कराकर सामंतशाही के खात्मा कराने व 27 हजार पटवारियों को बर्खास्तगी कर आंदोलन खत्म कराने जैसे चौधरी साहब के साहसिक फैसलों की आज भी गांवों में किसान तारीफ किए बिना अपने को नहीं रोक पाते। चौधरी साहब ने 13 हजार लेखपाल भर्ती किए जिसमें 18 फीसदी अनुसूचित जाति को हिस्सेदारी दी। पहले कोई अनुसूचित जाति का व्यक्ति नहीं था। शिक्षण संस्थाओं से जातियों के नाम हटवाने का काम किया।
कुशल लेखक की गुण भी थे चौधरी साहब के अंदर :
चौधरी चरण सिंह जमींदारी और महाजनी व्यवस्था का खात्मा चाहते थे। वे किसानों की सत्ता के प्रबल समर्थक थे। उन्होंने किसान की कर्ज मुक्ति की बात की। उन्होंने जमींदारी खत्म करके किसानों को राहत प्रदान की।चौधरी चरण सिंह एक बड़े लेखक थे और उन्होंने कई किताबें लिखीं। ये एक वकील के साथ ही एक कुशल लेखक भी थे। उनका अंग्रेजी भाषा पर अच्छी पकड़ थी। उन्होंने ‘अबॉलिशन ऑफ़ जमींदारी’, ‘लिजेण्ड प्रोपराइटरशिप’ और ‘इंडियास पॉवर्टी एण्ड इट्स सोल्यूशंस’ नामक पुस्तकों का लेखन भी किया।
किसानों के तरह जीवन यापन करते थे :
चौधरी चरण सिंह की व्यक्तिगत छवि एक ऐसे देहाती पुरुष की थी जो सादा जीवन और उच्च विचार में विश्वास रखता था। इनका पहनावा एक किसान की सादगी को दर्शाता था। चौधरी चरण सिंह ने अपना सम्पूर्ण जीवन भारतीयता और ग्रामीण परिवेश की बिताया। चौधरी साहब देश के दलितों, पिछड़ों, गरीबों और किसानों की बेहतरी के लिए संघर्ष किया, उन्हें राजनीति में हिस्सेदार बनाया।
लोकप्रिय नेता चौधरी चरण सिंह का निधन :
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री और किसानों के लोकप्रिय नेता चौधरी साहब का निधन आज के दिन हुआ था। 29 मई 1987 को 85 साल के आयु में अंतिम सांस ली। किसानों के लिए उनका समर्पण इतना ज्यादा था कि उनके जन्मदिन को किसान दिवस के रूप में मनाया जाता है और जब भी किसानों के हितों की बात की जाती है तो आज भी चौधरी चरण सिंह का नाम सामने आता है। उनका समाधी स्थल दिल्ली में है। चौधरी चरण सिंह दो बार मुख्यमंत्री व देश के प्रधानमंत्री रहने के बावजूद सादगी की मूर्ति और आमजन के हितैषी थे।
किसानों के मसीहा चौधरी चरण सिंह का निधन हुए भले ही 37 साल बीत गए हों। मगर वह आज भी भारतीय किसानों के दिलों में बसते हैं। वह किसानों के हित की लड़ाई हमेशा लड़ते रहे और सत्ता में रहते हुए किसानों के हित में कई बड़े फैसले भी लिए।
किसानों के हितैसी चौधरीजी ने सत्ता हाथ में आते ही जमींदारी का खात्मा कर दिया। रातों-रात किसानों को जमीन का मालिक बनाया। चकबंदी कर अलग-थलग पड़े किसानों के खेत एक जगह कर दिए। मंडल कमीशन का गठन कर सामाजिक न्याय की लड़ाई की नींव पुख्ता की। दुनिया को अलविदा कहते वक्त उनके पास न अपना कोई घर था, न खेती की जमीन और न कार। बीमारी से लड़ने में 22 हजार के बैंक बैलेंस में से केवल 4500 की रकम बची थी। उनके पास न खेती थी और न अंतिम वक्त में अपना निजी मकान। वह जीवन भर गांव, गरीब, किसान और खेत के लिए लड़े। हालात कभी उनका हौसला तोड़ न सके। बेहतरी की जंग के जज्बे ने उन्हें किसानों का मसीहा बना दिया। इसी पूंजी के बदौलत वह किसानों के दिलों में आज भी बसते हैं।
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