गीता जयंती पर विशेष ...!!

●युद्ध का गीत ही गीता है, गीता सब उपनिषदों का निचोड़ है
●गीता शास्त्र ज्ञान का खजाना है
●गीता जीवन के यथार्थ का साक्षात्कार करवा कर जीने की कला सिखाती है 
●गीता प्रेस प्रति वर्ष 17 भाषाओं में पुस्तकें प्रकाशित कर रहा है
 ●भ्रमित मानव को सद् मार्ग पर लाने के लिए गीता रामबाण औषधि है
लेखक :- साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा, महासचिव शंखनाद साहित्यिक मंडली 

दुनिया में एकलौता गीता ही ऐसा ग्रंथ है जिसकी जयंती मनाई जाती है। गीता जयंती 11 दिसंबर 2024 को है। गीता जीवन में धर्म, कर्म और प्रेम का पाठ पढ़ाती है। गीता संपूर्ण जीवन दर्शन है और इसका अनुसरण करने वाला व्यक्ति जीवन में कभी निराश नहीं होता है। हर साल मार्गशीर्ष माह की मोक्षदा एकादशी पर गीता जयंती मनाई जाती है। गीता शास्त्रों का सार है, इसलिए इसे उपनिषद भी कहा गया है। उपनिषद का अर्थ है वह जो पास बैठकर सुनाया जाए। जब तक कहने वाला और सुनने वाला दिल से पास नहीं आते, तब तक उनके बीच बहुत दूरी रहती है। कहने वाला कुछ कहता है, और सुनने वाला उसमें से अपने ही मतलब की बात निकाल लेता है। पहले पास आकर बैठें- अर्जुन बनें। अर्जुन का मतलब है- जिसमें ज्ञान की पिपासा हो, जो कुछ सीखना चाहता हो, जानना चाहता हो और मुक्त होना चाहता हो। जब आप अर्जुन बनेंगे, तभी कृष्ण मिलेंगे। मानव इतिहास में धर्म स्थापना के लिए हुए सबसे भीषण महायुद्ध के बीच भगवान श्रीकृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया गीता का जान आज भी अमृत रूप में प्रवाहित हो रहा है। श्रीमद्भगवत गीता केवल अर्जुन के लिए नहीं, सनातन समाज के लिए भी नहीं बल्कि विश्व मानवता के शुभ के लिए ईश्वरीय संदेश है। गीता के माध्यम से व्यक्ति स्वयं को जान सकता है और ईश्वरीय सत्ता का अनुभव भी कर सकता है। गीता जयंती मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की मोक्षदा एकादशी तिथि को मनाई जाती है। यह वही दिन है जब श्रीकृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया था। गीता के ईश्वरीय संदेश को जन-जन तक पहुंचाने का महत्वपूर्ण कार्य 'गीता प्रेस गोरखपुर' द्वारा पिछले 102 वर्षों से बिना रुके पूरे श्रद्धाभाव से किया जा रहा है। भारत के घर-घर में श्रीमद्भगवत गीता और रामायण की प्रति पहुंचाने का श्रेय गीता प्रेस को ही जाता है। गीता प्रेस अब तक श्रीमद्भगवत गीता की 16 करोड़ 21 लाख प्रतियां प्रकाशित कर श्रद्धालु पाठकों तक पहुंचा चुका है।
अब तक 41 करोड़ 71 लाख पुस्तके छापकर विश्व का सबसे बडा प्रकाशन संस्थान होने के बाद भी आश्चर्य की बात यह है कि गीता प्रेस न तो किसी से चंदा लेता है और न ही अपने प्रकाशनों में विज्ञापन ही स्वीकार करता है। जब वर्ष 2021 में गीता प्रेस को उसके उल्लेखनीय कार्यों के लिए भारत सरकार का गरिमामय 'महात्मा गांधी शांति पुरस्कार' प्रदान किया गया तो संस्थान ने पुरस्कार को पूरे सम्मान के साथ ग्रहण किया, पर इसके साथ प्रदान की जाने वाली एक करोड रुपये की पुरस्कार राशि सरकार को वापस लौटा दी थी। यह संस्थान लागत मूल्य से 50 से लेकर 90 प्रतिशत तक कम कीमत पर बहुमूल्य पुस्तकें पाठकों तक पहुंचाने वाला गीता प्रेस वास्तव में सामाजिक-धार्मिक जागरण का एक आंदोलन ही है। प्रकाशन का केंद्रीय कार्यालय गोरखपुर में ही है। हिंदू धर्म, अध्यात्म, दर्शन सहित मानव कल्याण के अनेक विषयों पर पुस्तकें प्रकाशित कर चुका गीता प्रेस आधुनिक समय का तीर्थ ही है। राजा भगीरथ के महान तप से पुण्य प्रवाहिनी मां गंगा का धरती पर अवतरण संभव हो सका था। इक्ष्वाकु वंश के राजा भागीरथ ने अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए गंगा को धरती पर लाने का प्रण पूर्ण किया था। इसी प्रकार गीता प्रेस के संस्थापक, ब्रह्मलीन जयदयालजी गोयंदका के ऐसे ही महान तप का सुफल यह प्रकाशन है। वैसे तप तुलना का विषय नहीं है किन्तु धर्म, संस्कृति, अध्यात्म, भक्ति एवं मानवता के उद्धार के लिए गोयंदका जी द्वारा स्थापित गीता प्रेस आज भी पुण्य प्रवाहमयी जान सरिता है।
गीता प्रेस के आदि संपादक हनुमान प्रसाद पोद्दार 'भाईजी' के उल्लेख के बिना गीता प्रेस की चर्चा पूर्ण नहीं होगी। भाईजी वीर सावरकर के निकट के क्रांतिकारी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। अपने मौसेरे भाई जयदयाल के अगाध गीला प्रेम एवं ज्ञान को देखते हुए भाईजी ने श्रीमद्भगवत गीता को लागत मूल्य से भी कम में जन-जन तक पहुंचाने का संकल्प लिया। इस संकल्प की पूर्ति के लिए अपने एक प्रकाशन की आवश्यकता थी जो गोरखपुर मे प्रारंभ हुआ। प्रचार-प्रसार से दूर एक अकिंचन सेवक और निष्काम कर्मयोगी की तरह भाईजी ने सनातन संस्कृति की मान्यताओं को घर-घर तक पहुँचाने में जो अतुलनीय योगदान दिया है, इतिहास में इसका उदाहरण मिलना कठिन है।
गीता प्रेस का मुख्य उद्देश्य हिंदू धर्म के सिद्धांतों को गीता, रामायण, उपनिषद, पुराणों, प्रख्यात संतों के प्रवचन एवं चरित्र-निर्माण की अन्य पुस्तकें-पत्रिकाएं प्रकाशित कर इन्हें लागत मूल्य से भी कम कीमत में समाज में पहुंचाना है। गीता प्रेस मानव जीवन के उत्थायन और सभी की भलाई के लिए प्रयासरत है। इसका उद्देश्य शांति, आनंद और मानव जाति के अंतिम उत्थान के लिए गीता में प्रतिपादित जीवन जीने की कला को बढ़ावा देना है।
संस्थान का संचालन कोलकाता के गोविंद भवन द्वारा किया जाता है। इसका प्रबंधन एक गवर्निंग काउंसिल (ट्रस्ट बोर्ड) करती है। गीता प्रेस में दिन की शुरुआत सुबह की प्रार्थना से होती है। एक व्यक्ति दिनभर घूम-घूम कर प्रत्येक कार्यकर्ता को कई बार भगवान का नाम स्मरण कराता है। गीता प्रेस के अभिलेखागार में भगवद् गीता की 100 से अधिक व्याख्याओं सहित 3,500 से अधिक पांडुलिपियां रखी हैं। गीता प्रेस के मासिक पत्रिका ग्रंथ 'कल्याण' के नए संस्करण के साथ 3000 से अधिक ऑनलाइन संग्रह उपलब्ध हैं।
4 मई, 1923 को गीता प्रेस की स्थापना की गई थी तब पुस्तकें छापने का काम बोस्टन कंपनी की प्रिंटिंग प्रेस से शुरू किया गया था। पैरों से चलाई जाने वाली यह मशीन 500 रुपये में अमेरिका से मंगवाई गई थी। अब संस्थान आधुनिक संसाधनों का सदुपयोग करता है इसीलिए मैनुअल और मशीन दोनों माध्यमों से प्रकाशन का काम होता है। गीता प्रेस इन अर्थों में भी विश्व का अनूठा प्रकाशन है क्योंकि यह अपनी पुस्तकों में मात्रात्मक, व्याकरणिक, शाब्दिक अथवा तथ्यात्मक त्रुटि बताने वाले को पुरस्कृत करता है हालोंकि पुस्तकों में ऐसी त्रुटियां मिलती नहीं हैं। समाज के सहयोग से गीता प्रेस 300 करोड़ रुपए वार्षिक टर्नओवर वाला समृद्ध संस्थान है और प्रति वर्ष 17 भाषाओं में पुस्तकें प्रकाशित कर रहा है। संस्थान ने अपनी पुस्तकें इंटरनेट पर ऑनलाइन भी उपलब्ध कराई हैं जहां से कोई भी इन्हें डाउनलोड कर सकता है और यह पूरी तरह निशुल्क है।
संस्थान का कार्यालय भी दर्शनीय है। इसके भव्य प्रवेश द्वार के स्तंभ एलोरा के प्राचीन गुफा मंदिर के स्तंभों की शैली में निर्मित हैं। वहीं अर्जुन के रथ के सारथी बन श्रीकृष्ण गीता का उपदेश दे रहे हैं। प्रवेश द्वार का शिखर दक्षिण भारत के मीनाक्षी मंदिर के शिखर का स्मरण कराता है। इस प्रवेश द्वार का उद्घा टन 29 अप्रैल, 1955 को प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेंद्र प्रसाद ने किया था। संस्थान के परिसर में लीला चित्र मंदिर (आर्ट गैलरी) में 684 सुंदर चित्रों में भगवान राम और भगवान कृष्ण की लीलाओं को प्रदर्शित किया गया है। ये अलग-अलग समय के महान कलाकारों की कृतियां हैं। इनके अलावा अन्य पेंटिंग भी प्रदर्शित हैं। श्री कृष्ण लीला को दर्शाने वाली पुरानी मेवाडी शैली की 92 पेंटिंग दर्शनीय है। दीवारों पर संगमरमर के ब्लॉकों पर पूरी गीता उकेरी गई है, साथ ही लगभग 700 दोहे और संतों के छंद भी है। गीता का उद्भव किसी आचार्य द्वारा उपदेश से नहीं हुआ, न ही किसी तपस्वी की वाणी से फूटा, न यह किसी कुलपति का भाषण है, बल्कि यह तो युद्ध के मैदान में दो विरोधी सेनाओं के बीच खड़े होकर दिया गया दिव्य संदेश है। गीता अनुपम ग्रंथ है, जिसका एक श्लोक क्या, एक-एक शब्द सदुपदेश से भरा है। गीता कर्तव्य बोधक है। अर्जुन को जब अन्याय के विरुद्ध शस्त्र उठाना था, तब उसे प्रमाद हो गया। अपने विपक्ष में खड़े गुरु द्रोणाचार्य, पितामह भीष्म और अन्य संबंधियों को देख वह कर्तव्यविहीन हो गया और कहने लगा, "देवकीनन्दन! मैं युद्ध नहीं करूंगा।" जिस प्रकार श्मशान में लोगों को वैराग्य उत्पन्न होता है, इसी प्रकार अर्जुन को युद्ध भूमि में त्याग, वैराग्य का रोग लगा और युद्ध से पलायन की बात करने लगा। तब श्रीकृष्ण ने कर्तव्य बोध कराने के लिए गीता सुनाई। युद्ध का गीत ही गीता बना और कर्म पर ही बल दिया, कर्मयोग की शिक्षा दी।
श्रीमद्भागवत की प्रवृत्ति लोक मंगल और लोक कल्याण के लिए हुई है। हमारे जीवन को परमानन्द से भर देने एवं सत्कर्म की शिक्षा देने के लिए ही गीता का अवतरण हुआ है। हमारे जीवन में ज्ञान, भक्ति और धर्म तीनों का समन्वय कर देने वाली भगवान की वाणी मानव जीवन का सर्वांगीण विकास करती है। हमारा ज्ञान भी शुद्ध, हमारी भावना भी शुद्ध और हमारे कर्म भी शुद्ध। इसके प्रत्येक श्लोक में ज्ञान रूपी प्रकाश है जिसके प्रस्फुटित होते ही अज्ञान का अंधकार नष्ट हो जाता है। गीता जीवन के यथार्थ का साक्षात्कार करवा कर जीने की कला सिखाती है। गीता रुपी रत्नाकर में गोता लगाने पर जो भाव-रत्न जिसे उपलब्ध हुए उसने उनको अपनी टीका की झोली में भर दिया। गीता की अनंत भाव-रत्न राशि आज तक न समाप्त हुई और न ही भविष्य में समाप्त होगी। इसी प्रकार गीता सब उपनिषदों का निचोड़ है। भ्रमित मानव को सद् मार्ग पर लाने के लिए गीता रामबाण औषधि है। गीता का संदेश चुनौतियों से भागना नहीं, बल्कि जूझना जरूरी है। गीता ज्ञान अमृत केवल अर्जुन के लिए ही नहीं है, इसकी धारा अमृत्व के हर एक पिपासु के लिए बह रही है।
स्कंद पुराण में भगवान कहते हैं, "मैं गीता के आश्रय में रहता हूं। गीता मेरा श्रेष्ठ घर है।" वराह पुराण भी गीता के बारे में कहता है, "गीता शास्त्र ज्ञान का खजाना है।" व्यास जी का मानना है, "गीता ज्ञान का वह समुद्र है जिसमें जितने भी गोते मारो, उसकी थाह नहीं मिलती।" आचार्य श्री देव ने भागवत को वेदों का पका हुआ फल बताया जो अशांत मानव को तृप्त करता है, बीमार मन के लिए औषधि है। महात्मा गांधी ने कहा है, "गीता मेरे लिए माता है। जब कभी थका-हारा निराश मन को लेकर गीता की शरण में पहुंचता हूं, उसने मुझे नई दिशा संजीवनी दी है।" लोकमान्य तिलक को कर्म के नए सिद्धांत और जीवन संघर्ष में सफल होने का संदेश गीता से ही मिला। विनोबा भावे जी का मानना है कि जितना गऊ के दूध से मेरे शरीर की पुष्टि हुई है इससे कहीं अधिक मेरे व्यक्तित्व का निर्माण हुआ है। मां की लोरी की भांति गीता ने मुझे सदैव शांति दी। विदेशी भी गीता की लोकमंगल भावना से अछूते नहीं रहे। महात्मा थारो ने कहा है, "गीता के साथ तुलना करने पर जगत के समस्त आधुनिक ज्ञान मुझे तुच्छ लगता है। में नित्य प्रातःकाल अपने हृदय और बुद्धि को गीता रूपी पवित्र जल में अवगाहन करता हूं।" सर एडविन आरनाल्ड लिखते हैं, "भारत के सर्वप्रिय काव्यमय दार्शनिक ग्रंथ के बिना अंग्रेजी साहित्य निश्चय ही अपूर्ण है।" एफ-टी बुक्स मानते हैं कि भारत वर्ष का राष्ट्रीय धर्म ग्रंथ बनने के लिए जिन-जिन तत्वों की आवश्यकता है, वे सब गीता में मिलते हैं। ब्रिटेन के धर्म प्रचारक हाल्डेन कहते हैं, "गीता निरन्तर निष्काम कर्म करते रहने की प्रेरणा देकर आलसी लोगों को भी कर्म से जोड़ती है।" वारेन हेस्टिंग्स ने लिखा है, "गीता अपनी किस्म की महान कलाकृति है। इसके आदर्श महान हैं।"
आज पूरा विश्व कुरुक्षेत्र बन गया है। विषम परिस्थितियों में युवकों के हाथों से धनुष छूट रहा है। प्रत्येक मनुष्य को धनुर्धारी अर्जुन होना होगा। गंगा ने जहां पवित्रता के लिए प्रसिद्धि प्राप्त की, वहां गीता ने संसार को ज्ञान दिया। हम सबको गौरव होना चाहिए कि भारत सदियों से विश्व को प्रेरणा देता रहा है।

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