खामोश सामाजिक क्रांति के अग्रदूत आचार्य किशोर कुणाल...!!

●किशोर कुणाल ने मंदिरों में संगत और पंगत की प्रशंसनीय व्यवस्था की
 ●आचार्य किशोर कुणाल प्रशासन, लेखन और प्रवचन के प्रख्यात् वक्ता
लेखक :- साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा, महासचिव शंखनाद साहित्यिक मंडली
दलितों और पिछड़ों के लिए कार्य करने वाले एक प्रख्यात धार्मिक और सामाजिक व्यक्तित्व के तौर पर आचार्य किशोर कुणाल ने भारतीय समाज में अपने कार्यों से महत्वपूर्ण योगदान दिया। वे राम मंदिर ट्रस्ट के सदस्य भी थे, जहां उन्होंने राम मंदिर निर्माण के लिए अपने योगदान और समर्थन से धार्मिक समुदाय को प्रेरित किया। किशोर कुणाल की पहचान समाज, संस्कृति और आध्यात्म के प्रति समर्पित योद्धा के तौर पर रही है। आचार्य किशोर कुणाल का जीवन न केवल एक प्रशासनिक अधिकारी के रूप में बल्कि एक धार्मिक प्रचारक और समाज सुधारक के रूप में भी प्रभावशाली रहा। किशोर कुणाल का रविवार की सुबह हृदय गति रूकने के कारण निधन हो गया। 74 वर्षीय कुणाल देश के वीपी सिंह की सरकार के दौरान उन्हें केंद्र सरकार ने विश्व हिंदू परिषद और बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के बीच मध्यस्थता के लिए विशेष अधिकारी के तौर पर नियुक्त किया था।

किशोर कुणाल का जन्म,शिक्षा और पारिवारिक जीवन :

आचार्य किशोर कुणाल का जन्म 10 अगस्त 1950 को बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के बरुराज गांव के एक सामान्य भूमिहार ब्राह्मण परिवार में हुआ था। पिता रामचंद्र शाही एक किसान और समाजसेवी थे और मां रूपमती देवी गृहिणी थीं। किशोर कुणाल की प्रारंभिक शिक्षा गांव के स्कूल से हुई थी और उन्होंने बरुराज हाई स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास की। बाद में उन्होंने 1970 में पटना विश्वविद्यालय से इतिहास और संस्कृत में स्नातक किया। उन्हें संस्कृत से गहरा लगाव था। स्नातक के साथ ही उन्होंने सिविल सेवा की तैयारी शुरू कर दी थी।
 आचार्य किशोर कुणाल एक सम्मानित पुलिस अधिकारी रहे :

आचार्य किशोर कुणाल को 1972 में उनकी कड़ी मेहनत और लगन का फल मिला, जब वे गुजरात कैडर में भारतीय पुलिस सेवा (IPS) के अधिकारी बने। उनकी पहली पोस्टिंग गुजरात के आणंद जिले में हुई, जहां उन्हें SP (सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस) बनाया गया। इसके बाद 1978 में उन्हें अहमदाबाद का पुलिस उपायुक्त (DCP) बनाया गया। किशोर कुणाल ने कई महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया और समाज की सेवा की। 1983 में उन्हें पटना का SSP (सुपरिटेंडेंट ऑफ पुलिस) बनाया गया, जहां उन्होंने कानून व्यवस्था बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उसके बाद कुणाल ने 1990 से 1994 तक गृह मंत्रालय में ऑफिसर ऑन स्पेशल ड्यूटी के पद पर काम किया। अपनी प्रशासनिक दक्षता और निष्ठा से वे पुलिस सेवा में एक सम्मानित अधिकारी बने।
आचार्य किशोर कुणाल ने 2001 में छोड़ी नौकरी :

2001 में, कुणाल ने स्वेच्छा से भारतीय पुलिस सेवा से इस्तीफा दे दिया। सेवानिवृत्ति के बाद, उन्होंने बिहार राज्य धार्मिक न्यास बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। कुणाल महावीर मंदिर ट्रस्ट, पटना के सचिव भी थे, और इससे पहले महावीर आरोग्य संस्थान के सचिव थे, जिसमें वे गरीबों के लिए स्वास्थ्य सेवा में सुधार से जुड़े थे।

 पुलिस सेवा की नौकरी से इसलिए दिया इस्तीफा :

आचार्य किशोर कुणाल की भूमिका एक मध्यस्थ के रूप में भी महत्वपूर्ण रही, खासकर जब वीपी सिंह की सरकार के दौरान उन्हें एक अहम जिम्मेदारी सौंपी गई। वीपी सिंह की सरकार ने अयोध्या विवाद को संभालने के लिए गृहराज्य मंत्री के नेतृत्व में 1990 में एक ‘अयोध्या सेल’ की स्थापना की थी। केंद्र सरकार द्वारा विश्व हिंदू परिषद (VHP) और बाबरी मस्जिद कमेटी के बीच मध्यस्थता के लिए उन्हें विशेष अधिकारी नियुक्त किया गया था। साल 2000 में किशोर कुणाल ने एक ऐतिहासिक निर्णय लिया और अपनी IPS नौकरी से इस्तीफा दे दिया। उनका मन धर्म और आध्यात्म की दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित था। इसके बाद उन्होंने धार्मिक कार्यों और समाज सेवा में खुद को पूरी तरह से समर्पित कर दिया। उन्हें केएसडी संस्कृत यूनिवर्सिटी दरभंगा के कुलपति की जिम्मेदारी सौंपी गई। जहां वो साल 2004 तक इस पद पर रहे।
 आचार्य किशोर कुणाल राम मंदिर ट्रस्ट के सक्रीय सदस्य थे :

एक प्रख्यात धार्मिक और सामाजिक व्यक्तित्व के तौर पर आचार्य किशोर कुणाल ने भारतीय समाज में अपने कार्यों से महत्वपूर्ण योगदान दिया। वे महावीर मंदिर न्यास के सचिव के रूप में कार्यरत थे और इसके माध्यम से उन्होंने धार्मिक गतिविधियों और समाज सेवा में अहम भूमिका निभाई। इसके अलावा वे राम मंदिर ट्रस्ट के सदस्य भी थे, जहां उन्होंने राम मंदिर निर्माण के लिए अपने योगदान और समर्थन से धार्मिक समुदाय को प्रेरित किया। किशोर कुणाल की पहचान समाज, संस्कृति और आध्यात्म के प्रति समर्पित योद्धा के तौर पर रही है। पटना में महावीर मंदिर निर्माण, महावीर कैंसर अस्पताल जैसे अनेक कार्यों के वे प्रणेता रहे। किशोर कुणाल का जीवन न केवल एक प्रशासनिक अधिकारी के रूप में बल्कि एक धार्मिक प्रचारक और समाज सुधारक के रूप में भी प्रभावशाली रहा।
कुणाल ने स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में कई संस्थानों की स्थापना की :

आचार्य किशोर कुणाल ने स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में कई महत्वपूर्ण संस्थानों की स्थापना की, जो समाज के कल्याण में उनका योगदान दर्शाते हैं। उन्होंने महावीर कैंसर संस्थान, महावीर वात्सल्य अस्पताल, महावीर नेत्रालय और ज्ञान निकेतन स्कूल जैसी संस्थाओं की स्थापना की, जो आज भी हजारों लोगों के जीवन में बदलाव ला रही हैं। इन संस्थानों के माध्यम से उन्होंने समाज में स्वास्थ्य सेवाओं और शिक्षा की पहुंच को बेहतर बनाने की कोशिश की। उनके सामाजिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक योगदान को देखते हुए वर्ष 2008 में भगवान महावीर पुरस्कार से नवाजा गया। तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने उन्हें यह पुरस्कार प्रदान किया था।
बिहार राज्य के मंदिरों के लिए किया क्रांतिकारी काम :

किशोर कुणाल बिहार राज्य धार्मिक न्यास बोर्ड के प्रशासक बने। बिहार राज्य धार्मिक न्यास बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में उनके योगदान को कभी भुलाया नहीं जा सकता। उन्होंने कई महत्वपूर्ण सुधार किए और राज्य के प्रमुख मंदिरों को धार्मिक न्यास से जोड़ा। इससे न केवल मंदिरों का प्रशासन बेहतर हुआ, बल्कि धार्मिक गतिविधियों में भी पारदर्शिता और समृद्धि आई। इसके अलावा किशोर कुणाल ने दलित समाज के साधुओं को मंदिरों का पुजारी बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह कदम सामाजिक समानता और धार्मिक समावेशिता की दिशा में एक बड़ा कदम था, जिससे समाज में एक सकारात्मक बदलाव आया। उनके इस कार्य ने उन्हें समाज के सभी वर्गों में सम्मान और प्रेम दिलाया और वे एक प्रेरणा स्रोत बन गए।
मंदिरों में दलितों की नियुक्ति कर एक खामोश सामाजिक क्रांति :

भारत की सदियों पुरानी जाति व्यवस्था तथाकथित निचली जातियों में जन्म लेने वालों को इतना अशुद्ध मानती थी कि उन्हें छुआ भी नहीं जा सकता था। 1950 में आधिकारिक तौर पर अस्पृश्यता को गैरकानूनी घोषित कर दिया गया था, लेकिन कई लोग अब भी मानते हैं कि कुछ निचली जातियों को छूने से वे अशुद्ध हो जाती हैं। बिहार के प्रमुख मंदिरों में दलितों की नियुक्ति कर एक खामोश सामाजिक क्रांति लाने का श्रेय उन पर है। पटना के प्रसिद्ध महावीर मंदिर ट्रस्ट के सचिव के तौर पर उन्होंने 13 जून 1993 को कई प्रमुख धार्मिक नेताओं की मौजूदगी में एक अनुसूचित जाति के दलित फलाहारी सूर्यवंशी दास को इस प्रमुख मंदिर का पुजारी नियुक्त किया था। दलित पुजारी अब मंदिर में एक अत्यंत सम्मानित पुजारी हैं और समाज के सभी वर्गों के लोग उनका आशीर्वाद लेते हैं। इसके अलावा, उनके विशाल व्यक्तित्व के कारण अब कई मंदिरों में दलित पुजारी हैं:-
●26 फरवरी 2006 को उन्होंने वैशाली जिले के हाजीपुर में भव्य विशाल नाथ मंदिर में एक दलित श्री चंदेश्वर पासवान को पुजारी नियुक्त किया।
●14 जनवरी 2007 को उन्होंने पटना जिले के बिहटा में ऐतिहासिक शिव मंदिर में एक और दलित श्री जमुना दास को पुजारी नियुक्त किया। 
●इसी प्रकार, 30 जून 2007 को उन्होंने श्री जनार्दन मांझी को, जो कि दलित वर्गों में सबसे गरीब मुसहर समुदाय से आते हैं, बड़ी संख्या में भक्तों और पारंपरिक ब्राह्मण पुजारियों की उपस्थिति में पालीगंज के प्रसिद्ध राम जानकी मंदिर में एक और पुजारी के रूप में नियुक्त किया।
●14 जनवरी 2008 को उन्होंने बोधगया के प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर में दलित पुजारी श्री दीपक दास को नियुक्त किया।
● एक अन्य दलित श्री जगदीश दास को 2008 में मुजफ्फरपुर जिले के प्रमुख मनियारी मंदिर में नियुक्त किया गया।
हाल ही में उन्होंने कुछ दूरदराज के इलाकों में भी दलित पुजारियों की नियुक्ति की है। वे आने वाले दिनों में कई और दलित पुजारियों की नियुक्ति करने की तैयारी में हैं। बिहार राज्य धार्मिक न्यास बोर्ड के प्रशासक के रूप में आचार्य कुणाल ने राज्य के लगभग सभी मंदिरों की प्रबंधन समितियों में दलितों को नियुक्त किया। नालंदा जिले के हिलसा स्थित प्रसिद्ध राम जानकी मंदिर की प्रबंधन समिति में उन्होंने एक सर्वदलित मंदिर ट्रस्ट गठित कर इतिहास रच दिया। धार्मिक न्यास बोर्ड के प्रशासक के रूप में उन्होंने विभिन्न मंदिरों में संगत और पंगत की अत्यंत प्रशंसनीय अवधारणा प्रस्तुत की है। संगत का अर्थ है सामूहिक पूजा। सप्ताह में एक निश्चित तिथि को दलित से लेकर ब्राह्मण तक सभी श्रद्धालु मंदिर में एक साथ बैठते हैं और आम प्रार्थना में शामिल होते हैं, जो राज्य में बहुत दुर्लभ है। पंगत की अवधारणा के माध्यम से आचार्य कुणाल ने विशिष्ट पर्व-त्योहारों पर मंदिरों और सार्वजनिक स्थलों पर सामूहिक भोजन की शुरुआत की है। पहले यह प्रथा थी कि विभिन्न जातियों के लोग अलग-अलग समूह में भोजन करते थे, लेकिन पंगत की अवधारणा शुरू करने से अब एक नए युग की शुरुआत हुई है, जहां दलित और ब्राह्मण एक साथ बैठकर भोजन करते हैं। जहां कहीं भी दलितों पर अत्याचार हुआ है या उनके साथ कोई धार्मिक भेदभाव हुआ है, आचार्य कुणाल ने मौके पर पहुंचकर मामले को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझाने का प्रयास किया है। लोगों को समझा-बुझाकर वे हमेशा ऐसे विवादास्पद मुद्दों को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझाने में सफल रहे हैं। 2005 की शुरुआत में उत्तर बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के बंदरा गांव में दलितों को काली मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं थी। यहां तक कि स्थानीय दलित नेता जो बिहार सरकार में तत्कालीन कैबिनेट में एक शक्तिशाली मंत्री थे, को भी मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं थी। इलाके में काफी तनाव था और स्थानीय प्रशासन इस मुद्दे को सुलझाने में लगभग असहाय था। यह आचार्य कुणाल ही थे जिन्होंने गांव का दौरा किया और लोगों को दलितों को मंदिर में प्रवेश देने के लिए राजी किया। यह उनके प्रयासों का ही परिणाम था कि समाज के सभी वर्गों के लोग सामूहिक रूप से अनुष्ठान में शामिल हुए और जाति समूहों के साथ लंबी बातचीत के बाद दलितों को मंदिर में प्रवेश मिला।

 किशोर कुणाल महावीर पुरस्कार एवं बिहार रत्न से सम्मानित :

सम्मान के प्रति सदा अनिकक्षा रखने वाले किशोर कुणाल को 2009 में जागरण समाचार पत्र समूह द्वारा 'बिहार रत्न' की उपाधि से सम्मानित किया था। 2008 में उन्हें भगवान महावीर फाउंडेशन, चेन्नई द्वारा प्रायोजित सामुदायिक और सामाजिक सेवा के क्षेत्र में मानव प्रयास में उत्कृष्टता के लिए भारत के महामहिम राष्ट्रपति द्वारा 11वें महावीर पुरस्कार से सम्मानित किया गया। पुरस्कार में एक प्रशस्ति पत्र और 5 लाख रुपये दिए जाते हैं। आचार्य कुणाल यह पुरस्कार पाने वाले बिहार-झारखंड के पहले व्यक्ति हैं। उनका चयन भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति श्री एमएन वेंकटचलैया की अध्यक्षता वाली जूरी द्वारा किया गया था। 2006 में उन्हें समाज कल्याण समिति, बिहार, पटना द्वारा सामाजिक सेवा के लिए स्वर्ण पदक से सम्मानित किया गया। 1997 में उन्हें संस्कृत के प्रचार-प्रसार में उनकी सेवा के लिए पूर्व काशी नरेश डॉ. विभूति नारायण सिंह द्वारा श्रृंगेरी मठ, वाराणसी में सम्मानित किया गया था। 1996 में उन्हें उनकी सामाजिक और सामुदायिक सेवाओं के लिए दूसरे विवेकानंद मेमोरियल पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
 किशोर कुणाल निर्भीक लेखक की भूमिका में व्यस्त रहे :

व्यस्त सामाजिक जीवन के बावजूद आचार्य किशोर कुणाल ने लेखन को हमेशा सिर से लगाए रखा। उन्होंने कई पुस्तकों का लेखन किया। 'दलित देवो भव' एक महान कृति है, जिसे प्रकाशन विभाग, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा दो खंडों में प्रकाशित किया गया है। उन्होंने अयोध्या रिविजिटेड नामक पुस्तक भी लिखी है। पाठ्यक्रम आईपीएस में रहते हुए दिसंबर 1995 में यूएसए में 'क्राइसिस मैनेजमेंट कोर्स' और हैदराबाद स्थित एडमिनिस्ट्रेटिव स्टाफ कॉलेज ऑफ इंडिया में टॉप मैनेजमेंट कोर्स सहित कई पाठ्यक्रमों में भाग लिया। उन्होंने साहित्य और धर्मग्रंथों के कई विषयों पर प्रवचन दिए। भारत और अमेरिका में भारतीय इतिहास, दर्शन, संस्कृत साहित्य और धर्मग्रंथों के कई विषयों पर प्रवचन दिए। वाल्मीकि रामायण पर भी उनकी विशेषज्ञता थी।

आचार्य किशोर कुणाल एक निपुण लेखक थे :

आचार्य किशोर कुणाल कई पुस्तकों के लेखक हैं। पटना विश्वविद्यालय के संस्कृत विभाग में पीएचडी की उपाधि के लिए उनके शोध प्रबंध का विषय था “प्राचीन भारत में आपराधिक कानून”। उन्होंने भगवान हनुमान की जीवनी पर एक हजार पृष्ठों की पुस्तक “मारुति-चरितामृतम” तैयार की और उसका अनुवाद महान विद्वान स्वर्गीय सीताराम चतुर्वेदी से करवाकर प्रकाशित करवाया। उनकी पुस्तक “बुद्धावताराय नमो नमस्ते” पहले ही प्रकाशित हो चुकी है। वे पहले ही “मारुति-स्तुति”, “मारुति-शतकम्” और अन्य पुस्तकों का संपादन कर चुके हैं। उनकी महान कृति ‘दलित-देवो भव’ है, जो प्रकाशन विभाग, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा दो खंडों में प्रकाशित हुई है। यह 1500 पृष्ठों की एक व्यापक रचना है, जिसे निकट भविष्य में साहित्य जगत से सराहना मिलने की संभावना है। इसके अलावा, वे एक प्रखर वक्ता भी हैं और उन्होंने राजस्थान रामानंद संस्कृत विश्वविद्यालय, प्रयाग, हरिद्वार और देश के कई अन्य स्थानों पर व्याख्यान और प्रवचन दिए हैं। उन्होंने अखिल भारतीय प्राच्यविद्या सम्मेलन के निम्नलिखित सत्रों की अध्यक्षता की है:-
(1) 2004 में वाराणसी में अखिल भारतीय प्राच्यविद्या सम्मेलन के इतिहास खंड। (2) 2006 में जम्मू में अखिल भारतीय प्राच्यविद्या सम्मेलन के पुरातत्व खंड। (3) 2008 में कुरुक्षेत्र में एआईओसी के इतिहास खंड। (4) संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति रहते हुए जगन्नाथपुरी, हरिद्वार, वडोदरा और अन्य स्थानों पर कई संस्कृत सम्मेलन। वे प्रशासन, लेखन और प्रवचन तीनों में समान रूप से कुशल हैं, तीनों ही विशेषताओं को प्रकाशन विभाग ने पुस्तक 'दलित देवो भव'  अयोध्या रिविजिटेड आईएसबीएनअयोध्या रिविजिटेड आईएसबीएन 8184303572 के कवर पेज पर स्वीकार किया है। 800 पन्नों की इस पुस्तक में कुणाल ने ऐतिहासिक दस्तावेजों का विश्लेषण करके यह निष्कर्ष निकाला है कि बाबरी मस्जिद का निर्माण बाबर ने नहीं बल्कि बादशाह औरंगजेब ने करवाया था। वे सर्वेक्षक फ्रांसिस बुकानन को गलत तरीके से बाबर को श्रेय देने के लिए दोषी ठहराते हैं। कुणाल ने यह भी कहा है कि विवादित स्थल पर एक राम मंदिर था जिसे औरंगजेब के गवर्नर फेदाई खान ने 1660 ई. में ध्वस्त कर दिया था।
आचार्य किशोर कुणाल की रचित पुस्तक : 
●अयोध्या पुनरीक्षित- भारत के 32वें मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति गोपाल बल्लव पटनायक द्वारा प्रस्तावना (प्रभात प्रकाशन, 2016)। ●अयोध्या: प्रस्तुत साक्ष्य से परे- भारत के 25वें मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति एमएन वेंकटचलैया द्वारा प्रस्तावना (प्रभात प्रकाशन, 2018)। ● प्राचीन भारत में आपराधिक कानून (शोध पत्र) ●बुद्धावताराय नमो नमस्ते- महावीर मंदिर प्रकाशन ●2003 अष्टाध्यायी सूत्र-प्रकाशिका (उनके मार्गदर्शन में) - केएसडीएस विश्वविद्यालय, दरभंगा ●मारुतिचरितामृतम् (संपादित), महावीर मंदिर प्रकाशन ●मारुति शतकम् (संपादित), महावीर मंदिर प्रकाशन ●मारुति-स्तुति (संपादित), महावीर मंदिर प्रकाशन ●सत्यनारायण-पूजा-प्रकाश (संपादित), महावीर मंदिर प्रकाशन ●रामार्चन-पद्धति (संपादित), महावीर मंदिर प्रकाशन ●रुद्रार्चन-पद्धति (संपादित), महावीर मंदिर प्रकाशन ● मुंडेश्वरी मंदिर: देश का सबसे पुराना, रिकॉर्डेड मंदिर (संपादित) महावीर मंदिर प्रकाशन ● दलित देवो भव, भारत सरकार द्वारा प्रकाशित। ●आचार्य रामानंद और उनका वैष्णवमताब्जा-भास्कर, महावीर मंदिर प्रकाशन ●धर्मायण नामक मासिक पत्रिका का पर्यवेक्षण किया। 
 आचार्य किशोर कुणाल का निधन :
 
29 दिसंबर 2024 को सुबह-सुबह आचार्य किशोर कुणाल को दिल का दौरा पड़ा और उन्हें तुरंत पटना के महावीर वात्सल्य अस्पताल ले जाया गया। 74 साल की उम्र में अस्पताल में भर्ती होने के बाद उनकी मृत्यु हो गई। हाजीपुर के कोनहारा घाट पर आचार्य किशोर का अंतिम संस्कार किया गया। वे एक कुशल प्रशासक एवं संवेदनशील पदाधिकारी थे। उनके निधन से प्रशासनिक और सामाजिक क्षेत्र में अपूरणीय क्षति हुई है। दिवंगत आत्मा की चिर शांति के लिए ईश्वर से प्रार्थना है। महावीर मंदिर ट्रस्ट के माध्यम से उनके द्वारा किए गए कार्य समाज और धर्म के क्षेत्र में मील का पत्थर हैं। उनके नेतृत्व में महावीर मंदिर सिर्फ एक धार्मिक स्थल नहीं रहा, बल्कि सामाजिक और शैक्षणिक कार्यों का एक प्रमुख केंद्र बन गया।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

ककड़िया विद्यालय में हर्षोल्लास से मनाया जनजातीय गौरव दिवस, बिरसा मुंडा के बलिदान को किया याद...!!

61 वर्षीय दस्यु सुंदरी कुसुमा नाइन का निधन, मानववाद की पैरोकार थी ...!!

ककड़िया मध्य विद्यालय की ओर से होली मिलन समारोह का आयोजन...!!