देश में आजादी के पहले अंग्रेजों ने हमें क्या दिया और हमने क्या पाया...!!
● एक ब्रिटिश व्यापारिक निगम कैसे बना साम्राज्यवादी शासक
लेखक :- साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा, महासचिव शंखनाद साहित्यिक मंडली
यह हम जानते हैं कि ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी मुख्य रूप से मसालों के व्यापार के उद्देश्य से भारत आई थी। इसके अलावा वे रेशम, कपास, नील, चाय और अफीम का भी व्यापार करते थे। 20 मई 1498 को वास्को डी गामा के कालीकट आगमन से यूरोप से पूर्वी एशिया तक का समुद्री मार्ग खुल गया था। इसके बाद भारत यूरोप के व्यापार के लिए आकर्षण का केन्द्र बन गया और स्पाइस द्वीप समूह के व्यापार एकाधिकार को हथियाने की यूरोपीय महत्वाकांक्षा का दायरा भी व्यापक हो गया, जिसके कारण कई नौसैनिक युद्ध हुए।
ब्रिटिश ईस्ट कंपनी का गठन कैसे हुआ ?
ब्रिटिश ज्वाइंट स्टॉक कंपनी यानी ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना 1600 ई. में जॉन वॉट्स और जॉर्ज व्हाइट ने दक्षिण और दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ व्यापार करने के लिए की थी। इन संयुक्त स्टॉक कंपनियों के शेयर मुख्य रूप से ब्रिटिश व्यापारियों और अभिजात वर्ग के स्वामित्व में थे। ईस्ट इंडिया कंपनी का ब्रिटिश सरकार से कोई सीधा संबंध नहीं था।
अंग्रेज भारतीय उपमहाद्वीप पर कब आये?
सर्वप्रथम अंग्रेज मसालों की तलाश में व्यापारी के रूप में भारतीय उपमहाद्वीप में आए। आधुनिक युग से पहले यूरोप में मांस को संरक्षित करने का प्राथमिक तरीका मसाले थे। फिर, अधिक आधुनिक और प्रभावी हथियार होने के कारण उपमहाद्वीप को बंदूक की नोक पर साम्राज्य में शामिल कर लिया गया। जैसा कि आमतौर पर कहा जाता था: " ब्रिटिश साम्राज्य में सूरज कभी अस्त नहीं होता।" यह कहना अधिक सटीक होता: ब्रिटिश साम्राज्य मूलतः उन क्षेत्रों से बना था जिन पर बलपूर्वक कब्जा किया जाता था और बंदूक की नोक पर शासन किया जाता था।
अंग्रेज व्यापार के उद्देश्य से 24 अगस्त 1608 ई. को सूरत के बंदरगाह पर भारतीय उपमहाद्वीप में उतरे, लेकिन सात वर्ष बाद अंग्रेजों को सर थॉमस रो (जेम्स प्रथम के राजदूत) के नेतृत्व में सूरत में एक कारखाना स्थापित करने का शाही आदेश (अर्थात फरमान) मिला। इसके बाद ईस्ट इंडिया कंपनी को भी मसूलीपट्टनम में अपना दूसरा कारखाना स्थापित करने के लिए विजयनगर साम्राज्य से इसी प्रकार की अनुमति मिली।
धीरे-धीरे ब्रिटिशों ने अन्य यूरोपीय व्यापारिक कंपनियों को पीछे छोड़ दिया और समय के साथ उन्होंने भारत में अपने व्यापारिक कार्यों का व्यापक विस्तार देखा। भारत के पूर्वी और पश्चिमी तटों पर अनेक व्यापारिक चौकियां स्थापित की गईं तथा कलकत्ता, बम्बई और मद्रास के तीन प्रेसीडेंसी शहरों के आसपास काफी संख्या में अंग्रेजी समुदाय विकसित हुए। वे मुख्यतः रेशम, नील रंग, कपास, चाय और अफीम का व्यापार करते थे। 20 वर्ष बाद कंपनी ने कोलकाता में एक कारखाना स्थापित करके भारत के पूर्वी भाग में अपनी उपस्थिति फैलायी।
एक ब्रिटिश व्यापारिक निगम कैसे बना साम्राज्यवादी शासक?
अपने व्यापारिक संगठन के दौरान ब्रिटिश ने महसूस किया कि सम्पूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप वास्तव में प्रांतीय राज्यों के अधीन फैला हुआ था, इसलिए, उन्होंने सभी संसाधनों को केंद्रित करने के बारे में सोचना शुरू कर दिया था। 1750 के दशक तक ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारतीय राजनीति में हस्तक्षेप करना शुरू कर दिया था।
कंपनी ने अपने भाग्य का उदय देखा तथा एक व्यापारिक उद्यम से एक शासकीय उद्यम में परिवर्तन देखा, जब इसके एक सैन्य अधिकारी रॉबर्ट क्लाइव ने 1757 में प्लासी के युद्ध में बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला की सेना को पराजित किया। इस बीच ब्रिटिश और फ्रांस के बीच भारत में एकाधिकार को लेकर कई युद्ध हुए, जिसके बाद पेरिस की संधि के बाद पूरे भारत में ब्रिटिश राज का उदय हुआ।
अंततः 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम के बाद 1858 में ईस्ट इंडिया कंपनी का शासन समाप्त हो गया, जिसे 1857 के विद्रोह के नाम से भी जाना जाता है। भारत से ईस्ट इंडिया कंपनी के विघटन के बाद ब्रिटिश क्राउन ने भारत पर सीधा नियंत्रण कर लिया और इसे ब्रिटिश राज के रूप में जाना जाता है।
अंग्रेज ने भारतीय लोगों को सत्ताधारी बनाया
अंग्रेज जवाहरलाल नेहरू को एक स्पोर्ट कार का स्टेयरिंग थमा के गए थे, जिसको उन्होंने बैलगाड़ी की तरह चलाया। देश में पहला पावर प्लांट दार्जिलिंग में 1897 में लग। 1902 में मैसूर के महाजरा ने 70 MW का पावर प्लांट कावेरी नदी पर लगाया। 1910 में टाटा पावर कंपनी बनी थी जिसके 1947 तक 23 पॉवर प्लांट देश में लग गए थे। 1938 मे टाटा एयरलाइन भी इंटरनेशनल फ्लाइट ऑपरेट कर रही थी, उस समय तक चीन में कुछ भी नहीं था। अंग्रेज 23 बंदरगाह और एयरपोर्ट दे के गए थे, साथ में 350 कॉलेज और 23 यूनिवर्सिटी, आईआईटी रुड़की भी अंग्रजो ने 1847 बना दी थी।- प्रमुख शिक्षण संस्थान: भारत में कई प्रमुख शिक्षण संस्थानों की स्थापना अंग्रेजों के दौर में हुई, जैसे कि सेरामपुर कॉलेज: हावड़ा स्थापना: 1818, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, रूड़की: स्थापना: 1847, मुंबई विश्वविद्यालय: स्थापना: 1857,मद्रास विश्वविद्यालय: स्थापना: 1857,कलकत्ता विश्वविद्यालय: स्थापना: 1857, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय: स्थापना: 1875, इलाहाबाद विश्वविद्यालय: स्थापना-1887, पंजाब विश्वविद्यालय:1882 में स्थापना किया गया था। साथ में अंग्रेज नेहरू को एक बहुत बड़ी सेना भी दे गए थे, जिसकी एक तैयार नेवी और एयर फोर्स थी, चीन के पास कुछ नहीं। अमेरिका रूस के बाद उस समय सबसे बड़ी एयर फोर्स हमारी ही थी।अंग्रेज कई सारे बैंक भी दे के गए थे। जो सब मुनाफे में थे जैसे- 1865 में : इलाहाबाद बैंक, 1892: ब्रिटानिया इंडस्ट्रीज लिमिटेड, 1895: पंजाब नेशनल बैंक, 1897: सेंचुरी टेक्सटाइल्स एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड, 1897: गोदरेज एंड बॉयस मैन्युफैक्चरिंग कंपनी लिमिटेड, 1899: कलकत्ता विद्युत आपूर्ति निगम, 1902: शालीमार पेंट कलर एंड वार्निश कंपनी, 1903: इंडियन होटल्स कंपनी, 1908: बैंक ऑफ बड़ौदा। यानी ये स्पष्ट है की नेहरु को इंफ्रास्ट्रक्चर भी मिला था, शिक्षण संस्थान भी मिले थे, बैंक भी मिले थे, मजबूत सेना भी मिली थी। इंदिरा गाँधी ने बैंको का राष्ट्रीयकरन करके बर्बाद किया, नेहरु को डर था की पाकिस्तान की तरह यहाँ सेना तख्ता पलट न कर दे, तो वो सेना को कमजोर करने में लग गए। लाइसेंसराज ला के कंपनियों की तरक्की को रोक दिया, हर जगह समाजवाद के बहाने, सरकारी दखल बढाते गए ताकि उनका परिवार तरक्की करे। ये आलेख अंग्रजों का बखान करने के लिए नहीं लिखी है, बस ये बताने के लिए की बहुत कुछ हमारे पास था जिसका इस्तेमाल नहीं किया।
भारत आजादी के बाद भी एक विकसित देश इसलिए नहीं बन पाया क्योंकि इस अवधि में ज्यादातर कांग्रेस पार्टी सत्तारूढ रही। आजादी के लिए कांग्रेसियों ने जितना खून बहाया, आजादी के बाद लूट-खसोट कर उसका सूद सहित देश से वसूल लिया। आज मंदिर-मस्जिद के नाम पर देश का माहौल जितना खराब हो जाता है उसे आजादी के तुरंत बाद अगर सुलझा लिया गया होता तो आज देश शांत होता। हिंदू-मुसलमान के नाम पर देश के बंटवारे के पश्चात 1947 में देश में मुसलमानों की संख्या बहुत कम थी उस वक़्त अगर देश में सभी के लिए समान आचार संहिता, जनसंख्या नियंत्रण कानून बना दी गई होती तो कोई विरोध नहीं होता। राम मंदिर व अन्य मंदिरों का बिवाद सुलझा लिया गया होता तो कोई चूं तक नहीं बोलता। जो देश आजादी के 75 बर्षों के बाद भी मंदिर-मस्जिद बिवाद में उलझा है उसके विकसित देश बनने की कल्पना करना हास्यास्पद लगता है। देश में कांग्रेस के नेता आज 2000 करोड़ के नेशनल हेराल्ड घोटाले में फंसे है तो सोच लीजिए अन्य नेता कुछ गलत करेंगे तो उसमें क्या गलती होगी? कांग्रेस हो या जनता दल हो या बाजपेयी सरकार किसी ने देश की मुख्य समस्या के निराकरण की कोशिश नहीं की, सभी लकीर के फकीर बने रहे। उनका मुख्य ध्यान बिजली, पानी और सड़क पर ही था जबकि देश को उसे समझने वाला नेता चाहिए था।
जिस देश का विपक्ष सत्तापक्ष के हर काम का विरोध करे वह विकसित देश कैसे बन सकता है। अगर आज सत्तापक्ष के द्वारा गंभीर समस्याओं का निराकरण नहीं किया गया तो भारत 150 बर्षों के बाद भी लड़ता-मरता नजर आएगा और धीरे-धीरे फिसड्डी देश की श्रेणी में आ जाएगा। केवल अर्थव्यवस्था मजबूत होने से देश विकासित नहीं होगा वल्कि हमें नागरिक के रूप में भी एकजूट रहने की जरूरत है वर्ना हर वक़्त दंगे-फसाद होंगे और देश कंगाल हो जाएगा।
अंग्रेजों के शासनकाल का भारतीय समाज पर गहरा और व्यापक प्रभाव पड़ा, जिसने आधुनिक भारत के निर्माण में कई महत्वपूर्ण योगदान किए। हालांकि उनके शासन के कई नकारात्मक पहलू भी थे, लेकिन कुछ महत्वपूर्ण योगदान इस प्रकार हैं: सकारात्मक देन:
शिक्षा का प्रसार:- आधुनिक शिक्षा प्रणाली: अंग्रेजों ने आधुनिक शिक्षा प्रणाली की नींव रखी, जिसमें अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा शामिल थी। इसका परिणाम यह हुआ कि भारतीयों को वैश्विक ज्ञान और विज्ञान तक पहुँच मिली।
प्रशासनिक सुधार:- आईसीएस (भारतीय सिविल सेवा): अंग्रेजों ने भारतीय सिविल सेवा (आईसीएस) की शुरुआत की, जो बाद में भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) बनी। इसने एक सशक्त प्रशासनिक प्रणाली का विकास किया। न्यायिक प्रणाली:- अंग्रेजों ने एक संगठित न्यायिक प्रणाली की स्थापना की, जिसमें उच्च न्यायालय और निम्न न्यायालय शामिल थे।
संचार और परिवहन का विकास:- रेलवे: अंग्रेजों ने भारतीय रेलवे की स्थापना की, जिसने देश के विभिन्न हिस्सों को आपस में जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
डाक और तार प्रणाली:- उन्होंने डाक और तार प्रणाली का विकास किया, जिससे संचार के साधनों में व्यापक सुधार हुआ।
आधुनिक बुनियादी ढांचे का निर्माण:- सड़कों और पुलों का निर्माण: अंग्रेजों ने सड़कों और पुलों का व्यापक निर्माण किया, जिससे परिवहन में सुधार हुआ।
पोर्ट और बंदरगाह:- प्रमुख बंदरगाहों और बंदरगाह नगरियों की स्थापना की, जिससे व्यापार और वाणिज्य को बढ़ावा मिला।
सामाजिक सुधार:- सती प्रथा का उन्मूलन: अंग्रेजों ने भारतीय समाज में सती प्रथा जैसी कुप्रथाओं को समाप्त करने के लिए कानून बनाए।
बाल विवाह के खिलाफ कानून:- बाल विवाह को रोकने के लिए कानून बनाए गए और महिला शिक्षा को प्रोत्साहन दिया गया।
अंग्रेजों के नकारात्मक पहलू:- आर्थिक शोषण: अंग्रेजों ने भारतीय अर्थव्यवस्था का भारी शोषण किया। भारतीय कच्चे माल को सस्ते में खरीदा गया और ब्रिटिश कारखानों में निर्मित वस्त्रों को महंगे दामों में बेचा गया।
सामाजिक विभाजन:- अंग्रेजों ने 'फूट डालो और राज करो' की नीति अपनाई, जिससे विभिन्न भारतीय समुदायों के बीच विभाजन और संघर्ष बढ़ा। अंग्रेजों के शासन का भारतीय समाज पर गहरा और विविध प्रभाव पड़ा है। हालांकि उनके शासन के कई नकारात्मक पहलू भी थे, लेकिन उनके योगदान ने आधुनिक भारत के निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। भारतीय समाज ने अंग्रेजों की शिक्षा, प्रशासनिक सुधार, संचार और बुनियादी ढांचे के विकास का लाभ उठाया और आज एक मजबूत और संगठित समाज का निर्माण किया।
भले ही उन्होंने अपने फायदे के लिए रेल लाइन बिछाई। रोड नेटवर्क पुनर्निर्माण किया लेकिन इसका फायदा आज हम ही उठा रहे हैं। सारे देश में एक जैसी कानून व्यवस्था दंड संहिता अमल में लाना एक शासक के अधीन इतना बड़ा उप महा द्वीप जोभारतवर्ष कहलाता है सेनाओ का समन्वय पुनर्गठन रेजिमेंट सिस्टम, सामुद्रिक शक्ति बनाना, एयरफोर्स, संचार, प्रजातंत्र से परिचय, प्रेस, जनता को बाकी दुनिया से परिचय करवाया प्रजातंत्र की विभिन्न संस्थाओं को अमलीजामा पहनाना। विभिन्न आंदोलन से भावी भारतीय नेताओं का उदय हुआ पुरातन शासको के राज्य में ए इनका अस्तित्व में आना संभव नहीं था।
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