सामाजिकता के शिखर पुरुष बाबू शिव नारायण प्रसाद...!!
● बाबू शिव नारायण प्रसाद यादव सर्वहारा वर्ग के ध्वजवाहक थे
लेखक :- साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा, महासचिव शंखनाद साहित्यिक मंडली
भारत एक ऐसा देश है जो युगों तक विकसित होता रहा है और जिसने एक सुदीर्घ सांस्कृतिक निरंतरता बनाए रखी। इसके इतिहास के हर युग ने आज तक अपनी विरासत छोड़ी है। उन्नीसवीं और बीसवीं सदी की दुनिया में नवजागरण से प्रभावित होकर बुद्धिजीवियों का एक वर्ग पनपने लगा था। यह वर्ग सामाजिक सुधारों के प्रति आस्थावान था। नवजागरण काल के दौरान एक और देशभक्ति और राष्ट्रीय भावना प्रबल हो रही थी तो दूसरी ओर देश के विभिन्न तबकों में सामाजिक सुधार की चेतना उत्पन्न हो रही थी। सामाजिक सुधारों की अपेक्षा से दलित-पिछड़े और गैर दलित वर्ग में जो चेतना निर्मित हुई थी उससे जातीय सभाएं और जातिगत आंदोलनों का विकास भी हुआ। अंग्रेजों के समय मगध तथा बंगाल प्रेसीडेंसी में दलित और गैर-दलित जातियों के कई संगठन कार्य कर रहे थे। इन्हीं दिनों मगध और देश के कई प्रान्तों में सामाजिक मुक्ति आंदोलन की शुरूआत हुई थी। विशेषतः राष्ट्रीय आंदोलन के साथ-साथ दलित, शुद्र और अस्पृश्य समाजों की सामाजिक बंधनों से मुक्ति के लिए संघर्ष किया जा रहा था। मगध भारत में कई सुधारक पिछड़े एवं दलितों के जीवन में सुधार और उनमें जागृति लाने के लिए सक्रीय हुए थे। नालंदा में सामाजिक सुधार का कार्य करने वाले बाबू शिव नारायण प्रसाद यादव अग्रणी नेता व समाज सुधारक रहे हैं। इन्होंने पहले-पहल आर्य समाज से प्रभावित होकर कार्य आरंभ किया। बाद में वे आर्य समाजी प्रभाव से मुक्त हुए और दलितों की सामाजिक स्थिति में सुधार लाने के लिए कई आंदोलन' चलाया। जाति व्यवस्था के क्रूर शोषण से मुक्ति के लिए सकारात्मक कार्य किए पिछड़े, दलितों एवं किसी भी समाज के गरीबों पर हो रहे अन्याय-अत्याचारों का यथार्थ प्रस्तुत करके परिवर्तन के स्वर मुखर किए।
भारत के इतिहास में ऐसे कई नायक हुए हैं जिनका जिक्र इतिहास की पुस्तकों या समाज में गंभीरता से नहीं किया गया। दरअसल, इतिहास लिखना भी एक राजनीति है। कुछ लोगों का मानना है कि इतिहास यथार्थ की अभिव्यक्ति होती है, लेकिन एक इतिहासकार व साहित्यकार जिस यथार्थ को अपनी अभिव्यक्ति के लिए चुनता है उसके पीछे उसकी विचारधारा की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। भारत में जाति एक बहुत बड़ी विचारधारा के रूप में भी काम करती रही है इसलिए हमारे यहां इतिहास लेखन भी जातिगत विचारधारा से प्रेरित रहा है। यही कारण है कि भारत के इतिहास की पुस्तकों में जाति के क्रम जो बहुजन या निम्न जाति के महापुरुष हैं उनके बारे में कम लिखा गया है या कुछ भी नहीं लिखा गया हैं। यह मात्र संयोग नहीं है कि ऐसे मनुवादी लोगों की एकमात्र खूबी यह रही है कि उन्होंने भारतीय जाति-व्यवस्था में ऊपर के जाति क्रम में जन्म लिया है।
अपनी प्रसिद्ध पुस्तक 'इतिहास क्या है' में प्रसिद्ध विद्वान ई. एच. कार ने इतिहास की निर्मिति पर विस्तार से बात की है। उन्होंने लिखा है कि इतिहास बनाये भी जाते हैं। कभी-कभी समाज का प्रभुत्वशाली तबका समाज में कुछ कहानियां फैलाता है फिर उन कहानियों को लिख देता है। धीरे-धीरे यह कहानी इतिहास में दर्ज हो जाती है और बाद के वर्षों में उसे सच्चा इतिहास मान लिया जाता है। इस तरह से कई बहुजन समाजसेवियों व महापुरुषों को इतिहास के पन्नों से मिटा दिया है।
बाबू शिव नारायण प्रसाद परिवर्तन के प्रबल हिमायती
यह सर्वविदित है कि जनमानस पर अनेक व्यक्तित्व अपनी छाप छोड़ते हैं, जिन्हें दो भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है। कुछ ऐसे व्यक्तित्व होते हैं जो हृदय को तो जीतते हैं, परंतु उनकी छाप अधिक समय तक अंकित नहीं रहती है। जैसे-जैसे समय बीतता जाता है, वे गुमनाम से हो जाते हैं। दूसरे प्रकार के ऐसे व्यक्तित्व होते हैं, जो अपने जीवन काल में तो लोकप्रिय होते ही हैं, लेकिन मृत्यु के बाद उनकी लोकप्रियता और अधिक बढ़ जाती है। ऐसे महान व्यक्तित्व को हम हमेशा इसलिए याद करते हैं कि यदि वे आज होते तो नालंदा के कण-कण में मानवतावादी सोच का परिदृश्य कुछ और होता.... । ऐसे ही व्यक्तित्व को महापुरुष की श्रेणी में रखा जाता है। इनके कार्य एवं विचार का प्रभाव सदियों तक मानव जगत पर पड़ता रहता है। बाबू शिव नारायण प्रसाद एक ऐसी ही अजीम शख्सियत थे।
शिव नारायण प्रसाद का जन्म, शिक्षा और पारिवारिक जीवन
बिहार के कई वीर स्वतंत्रता सेनानियों के सानिध्य में रहे शिव नारायण प्रसाद जी को नायक कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। बहुजन समाज में ऐसे त्यागी, निष्कलुष और समाज के लिए मर मिटने वाली अनेक विभूतियां हुई हैं, जिन्होंने बगैर किसी शोहरत, लालच और स्वार्थ के समाज के लिए कई अनुकरणीय काम किये। बाबू शिव नारायण प्रसाद जी का जन्म 07 दिसम्बर 1942 को तत्कालीन पटना जिला वर्तमान नालंदा जिला, रहुई प्रखंड क्षेत्र की उर्वरा, क्रांतिकारी और साहित्यिक भूमि बबुरबन्ना में हुआ था। उनके पिता का नाम लाल बिहारी सिंह एवं माता का नाम रुक्मिणी देवी था। उनके पिता ईमानदार, स्वाभिमानी, साहसी और वचन के पक्के थे। यही गुण बाबू शिव नारायण प्रसाद जी को अपने पिता लाल बिहारी सिंह से विरासत में मिले थे। इनके माता-पिता का स्वर्गवास बचपन में ही हो गया था।
आजादी की लड़ाई में अग्रणी भूमिका निभाने वाले लाल बिहारी सिंह जी सांप्रदायिक सौहार्द के प्रतिक थे। आजादी के समय हुए हिन्दू-मुस्लिम दंगे में बबुरबन्ना के मुस्लिम परिवारों को अपने घर में शरण देकर उनके जीवन की रक्षा की थी। वे हिन्दू मुस्लिम एकता के प्रतिक थे। यही गुण बाबू शिव नारायण प्रसाद जी में था।
शिव नारायण प्रसाद जी की प्राथमिक शिक्षा-दीक्षा बबुरबन्ना तथा मिडिल स्कूल पास करने के उपरान्त वर्ष 1957 में उच्च विद्यालय बड़ी पहाड़ी से मैट्रिक, इंटर किसान कॉलेज एवं स्नातक मोहनपुर कॉलेज दरभंगा से तथा कानून की पढ़ाई पटना से की।
उन दिनों दलितों और पिछड़ों में शिक्षा के प्रति जागरूकता बढ़ने लगी थी। हालांकि सवर्ण समाज का नजरिया अब भी नकारात्मक था। उन्हें यह डर नहीं था कि दलित और शूद्र पढ़-लिख गए तो उनके पेशों को कौन करेगा। असली डर यह था कि पढ़े-लिखे दलित-शूद्र उनके जातीय वर्चस्व को भी चुनौती देंगे। उन विशेषाधिकारों को चुनौती देंगे जिनके बल पर वे शताब्दियों से सत्ता-सुख भोगते आए हैं। इसलिए दलितों और पिछड़ों की शिक्षा से दूर रखने के लिए वह हरसंभव प्रयास करते थे। ऐसे चुनौतीपूर्ण परिवेश में शिव नारायण बबू ने 1957 में मैट्रिक की परीक्षा पास की थी। बाबू शिव नारायण प्रसाद जी प्रकांड विधिवेत्ता, परोपकारी मानव, एवं मानवीय गुणोंसे से ओत-प्रोत थे। इसके चलते जनमानस को बहुत लाभ मिलता था। कोई भी प्रशासनिक अधिकारी इनको बरगला नही सकता था तथा इन्हें प्रशासनिक लोग बहुत प्रतिष्ठा देते थे। ये समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति थे। बाबू शिव नारायण प्रसाद ने कई सामाजिक आंदोलनों में जुलूस निकाले, नारे लगाए और इंदिरा गांधी जी के आंदोलन से काफी प्रभावित हुए और सर्वहारा उत्थान और जागृति लाने का संकल्प लिया। शोषितों, दलितों, साथ ही साथ कमजोर, लाचार लोगों के लिए मसीहा थे। ये छुआ छूत, जात-पात, अंधविश्वास, ढोंग और मृत्युभोज जैसे सामाजिक कुरीतियों के खिलाफ रहते थे।
शिव नारायण प्रसाद की शादी मकशुसपुर (चमर विगहा) के सम्भ्रांत किसान हरिहर सिंह के एक पुत्र और तीन पुत्री में मंझली पुत्री लक्ष्मी देवी से 1961 में हुई थी, शादी के दो वर्ष बाद दुरागमन (गौना) किया गया था।
बाबू शिव नारायण प्रसाद जी तीन भाई और दो बहन थे। तीन भाइयों में सबसे छोटे थे शिव नारायण जी। अन्य दो भाईयों में बड़े भाई रामवरण सिंह यादव उर्फ़ बैद्य जी, मांझिल भाई राघवेन्द्र वेदालंकार उर्फ़ ब्रह्मचारी जी ये रामलखन सिंह यादव कॉलेज बख्तियारपुर में प्रोफेसर थे। इनके दो बहन पानो देवी, नगीया देवी हुए। सभी भाई बहनों में काफी स्नेह और लगाव था।
शिव नारायण जी और बैद्य रामवरण सिंह यादव जी गांव में खेती-किसानी करते थे। पर उनके बड़े भाई बैद्य जी ने शिव नारायण जी की पढ़ाई लिखाई पर न सिर्फ विशेष ध्यान दिया बल्कि अपनी रुचि के अनुसार कर्मक्षेत्र चुनने के लिए भी प्रोत्साहित किया करते थे। शिव नारायण जी पढ़ाई और किसानी से सीधे राजनीति में जाने के बाद परिवार के लोगों ने कभी आपत्ति नहीं की बल्कि हर सम्भव उन्हें प्रोत्साहन और सहयोग दिया। ये चहुमुखी उन्नत समाज एवं समरसता पूर्ण परिवार के उत्थान के लिए हमेशा संघर्ष करते रहे।
सामाजिक उत्थान में बाबू शिव नारायण प्रसाद का महत्वपूर्ण भूमिका
शिव नारायण बाबू सामाजिक कार्यों में हमेशा आगे रहते थे। वे दूसरे के दर्द को अपना दर्द समझते थे। गांव-जवार में किसी के बेटी की शादी या दुःख बीमारी में लोगों को आर्थिक मदद किया करते थे। जीवकोपार्जन के लिए उन्नत खेती और आलू-प्याज का व्यापार करते थे। आजीवन भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य रहे। वर्ष 1977 में इंदिरा गांधी जी स्वयं शिव नारायण बाबू को बुलाकर बाढ़ लोकसभा का चुनाब की तैयारी करने के लिए कही थी। वे सच्चे देश भक्त एवं समाजसेवी थे। इंदिरा गांधी से मिलकर बिहार के कई जिलों में समाज हित में जन आंदोलन चलाए। और कई आंदोलन के नायक बन गए। दिल्ली से चलकर स्वयं इंदिरा गांधी ने बिहार में अपना कर्मस्थली बनाया। और बिहार आंदोलन को संपूर्ण देश का आंदोलन बनाया। इस आंदोलन में अनेक जातियां, समुदाय, क्षेत्रों के लोग इसमें शामिल थे। अभिवंचित समूह जिनकी जनसंख्या इस देश में 85 प्रतिशत के आस-पास है, की भी इंदिराजी के इस आंदोलन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रही। किन्तु इंदिराजी के आंदोलन का इतिहास लेखन में उन्हें महत्वपूर्ण जगह मिलना अभी बाक़ी है। इंदिराजी के साथ बिहार के अलग-अलग जिलों में सभी जातियां खासकर पिछड़े और दलित जातियां कंधा से कंधा मिलाकर संघर्ष कर रहे थे। इनमें बिहार के बाबू शिव नारायण प्रसाद, प्रो. सिधेश्वर जैसे लोगों की महत्वपूर्ण भूमिका रही।
शिव नारायण जी समाज में व्यवस्था परिवर्तन चाहते थे
शिव नारायण बाबू का कहना था कि मनुष्य, दूसरों की स्वतंत्रता में बाधक न होकर स्वेच्छानुसार खा-पी सके, पहन-ओढ़ सके, चल-फिर सके, मिल-जुल और ब्याह-शादी कर सके। यदि सामाजिक स्वतंत्रता न हो तो राजनीतिक स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं रह जाता…इसलिए सामाजिक समता और सामाजिक स्वतंत्रता ही उनका मुख्य उद्देश्य था।
माता-पिता लाल बिहारी सिंह जी भी खुले विचारों के थे। जाति-भेद की भावना उन्हें छू भी नहीं सकी थी। उनकी गिनती गाँव-जवार के प्रभावशाली व्यक्तियों में होती थी। समाज में उनकी प्रतिष्ठा थी। शिव नारायण बाबू के जुझारूपन के पीछे उनके माता-पिता के व्यक्तित्व का गहरा प्रभाव था।
बाबू शिव नारायण प्रसाद जी समाज में व्यवस्था परिवर्तन चाहते थे। समाज की सबसे बड़ी समस्या जातीय असमानता शिव नारायण जी को निरंतर चुभती रही। उनका मानना था कि मेरे शरीर की अंतिम बूंद भी समतामूलक समाज के लिए संघर्ष करेगी। इस समतामूलक समाज की स्थापना में शिव नारायण जी ने शिक्षा, व्यापार के माध्यम से लोगों की सहायता की। शिक्षा के प्रचार-प्रसार पर उन्होंने विशेष बल दिया। इसके बावजूद समतामूलक व्यवस्था को स्थापित करना कठिन प्रतीत हो रहा था। ये कई लोगों को राजनीति में प्रवेश कराके उन्नत समाज बनाने का प्रयास किया। उन्हें सत्ता सुख नहीं बल्कि समाज को समतामूलक बनाना चाहते थे। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु राजनीतिक दल कॉंग्रेस पार्टी से जुड़े। पार्टी के अधिकांश नेता सत्ता सुख के लिए राजनीति में आये थे। अंत में शिव नारायण प्रसाद जी ‘एकला चलो' के सिद्धांत पर निकल पड़े। उनके विचारों से प्रभावित होकर गरीबों, पिछड़ों, दलितों, महिलाओं आदि शोषित जनों का विशाल जनसमूह का समर्थन प्राप्त था।
बाबू शिव नारायण प्रसाद का सामाजिक पहल
अपनी भाषणकला, मनमोहक मुस्कान, वाणी के ओज, लेखन व विचारधारा के प्रति निष्ठा तथा ठोस फैसले लेने के लिए विख्यात शिव नारायण प्रसाद जी को बिहार प्रदेश के कई क्षेत्रोंमें आपसी मतभेदों को दूर करने की दिशा में प्रभावी पहल करने का श्रेय दिया जाता है। इन्हीं कारणों से ही शिव नारायण जी काँग्रेस के नेताओं के बीच व्यापक रूप से जाने जाते थे।
शिव नारायण जी ने समाज में व्याप्त असमानता के विभिन्न कारणों जन्म, जाति, लिंग, वंश आदि की आलोचना की। सभी व्यक्ति चाहे वह स्त्री हों या पुरुष-जन्म से समान होते हैं। इसलिए उनके साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव का बर्ताव मानवता, नैतिकता तथा ईश्वर के साथ अपराध है। समाज के विकास के लिए यह आवश्यक है कि समाज के सभी व्यक्तियों को स्वतंत्रता, समता तथा बंधुता के समान अधिकार प्राप्त हों। उनके अनुसार विश्व एक मानव परिवार है। संस्कृतियां भिन्न हो सकती हैं, समाज व्यवस्था अलग-अलग हो सकती है, लेकिन मूल में मानव एक हैं। जात-पात, वर्ण भेद और ऊंच-नीच की दीवारें यह सब मनुवादियों की देन है। जो उन्होंने अपने लाभ के लिए खड़ी की है। बाबू शिव नारायण प्रसाद ने समाज में एकता का महत्व बताते हुए कहा कि हर मनुष्य को आजाद विचारों और सोच का होना चाहिए, यही उसकी बुनियादी जरूरत है। आजाद सोच होने से मनुष्य अपने सभी मानवीय अधिकार प्राप्त कर लेता है। उनका मानना था कि जब तक मनुवादियों का बहिष्कार नहीं किया जाता समाज में भेदभाव जारी रहेगा। इस लिए यदि देश को उन्नत और उन्नति चाहिए तो मनुवादियों का बहिष्कार करना ही होगा।
समाज में व्याप्त असमानता के लिए मनुवादियों को जिम्मेदार ठहराया
शिव नारायण प्रसाद ने समाज में व्याप्त असमानता के लिए कट्टरपंथी मनुवादियों को जिम्मेदार ठहराया। उनके विचार में मनुवादियों ने मानवता और ईश्वर के साथ छल किया है। जो लोग सभ्यता की दौड़ में पिछड़ गए उन्हें बर्बर नामों से संबोधित किया तथा उनके साथ पशुओं से भी बदतर व्यवहार किया। ईश्वर ने सभी मनुष्यों को अपने द्वारा निर्मित वस्तुओं के उपयोग की पूरी स्वतंत्रता दी है। उसे मनुवादियों ने ईश्वर के नाम पर अपने झूठे ग्रंथों की रचना कर सभी मानवों के हक को नकारते हुए स्वयं मालिक बन गए। शिव नारायण प्रसाद का स्पष्ट मत था कि समाज में एकता तभी संभव है जब सामाजिक भेदभाव के लिए जिम्मेदार जाति प्रथा को समाप्त कर दिखावा करने की बजाय सब के प्रति समानता की दृष्टि रखकर व्यवहार करें। तभी सच्ची एकता संभव होगी तथा देश का उत्थान हो सकेगा।
शिव नारायण प्रसाद के राजनीतिक गुरु बबुरबन्ना के स्वतंत्रता सेनानी रामलाल प्रसाद थे
बिहार से उभरे शिधेश्वर प्रसाद, तारकेश्वरी सिन्हा, कृष्णा शाही, रामलाल प्रसाद, बहुजन चिंतक बाबू शिव नारायण प्रसाद के राजनीतिक गुरु थे। दलित और शोषित समूह के ये क्रांतिकारी नेता थे, साथ ही इनमें से कइयों ने समाज के दलित मुक्ति की लड़ाई का भी नेतृत्व किया। बाबू शिव नारायण प्रसाद ने ताउम्र दलित और बहुजन मुक्ति की लड़ाई लड़ी। ये सब कांग्रेस के बैनर तले आज़ादी की लड़ाई और स्वतंत्रता के बाद अनेक छोटे-छोटे उप संगठन बनाकर बहुजन मुक्ति की लड़ाई भी हमेशा लड़ते रहे। बहुजन आंदोलन के नायक बाबू शिव नारायण प्रसाद ने बहुजनों के बीच जागरूकता लाने के लिए अनेक आंदोलन चलाए। 1977 के जन आंदोलन के ये बहुजन जननायक गांव-गांव और कस्बे-कस्बे में मिल जाएंगे, ज़रूरत है बाबू शिव नारायण प्रसाद पर शोध कर इन्हें सामने लाने की। इन बहुजन जन नायकों में ज़्यादातर कांग्रेसी लोग ही थे। ज़्यादातर स्वतंत्रता सेनानी के साथ-साथ बहुजन व अभिवंचित समाज के समाज सुधारक भी बन कर उभरे। इनमें से कई आज़ादी के बाद बनी राज्य सरकारों में मंत्री तक बने, लेकिन इनमें से कई आज भी अनाम हैं। आज जब इस बहुजन आंदोलन को याद कर रहे हैं तो हमें उन्हें भी याद करने की ज़रूरत है। बहुजन व अभिवंचित चेतना के नायक बाबू शिव नारायण प्रसाद ऐसे पुरखों में से एक हैं, जिनको याद करने की जरूरत है। परंतु भारत में इतिहास ठीक से लिखा ही नहीं गया। स्रुति परंपरा ने इतिहास लिखा है, भारत के इतिहास लेखन में इन आवाज़ों को दबा दिया गया। इतिहास विवादों का घर हो गया है, अब झलकारी बाई, बाबू शिव नारायण प्रसाद जैसे लोगो को भी याद करना होगा।
जब हम इतिहास के पन्नों पर एक नजर डालते हैं तो पता चलता है कि स्वाधीनता आंदोलन में कितने अनगिनत लोगों को जानें गवानी पड़ीं, झलकारी से लेकर क्रांति के जनक क्रांतिवीर मातादीन भंगी तक, पर इतिहास इनका कहीं पर ठीक से मौजूद नहीं है। जिस कौम में पन्ना धाय, एकलव्य, बाबू शिव नारायण प्रसाद जैसे वीर पैदा हुए हों, उसका कोई इतिहास नहीं। जिस व्यक्ति की जीवन पर्यन्त जमीनी स्तर की गतिविधियां रही हों, ऐसे महापुरुष को देश की भावी पीढ़ी से छुपाना कितना बड़ा अपराध होगा! बिहार जातिय भावनाओ से ओत-प्रोत रहा है। विशेषकर यह चुनाव के समय में तो इसका जातिय रंग स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होता है। ये लोगों को जागरूक किया करते और कहते थे कि भूत-प्रेत नहीं होता है ये सब अंधविश्वास है। पूजा-पाठ से कुछ नहीं होगा। अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा दें तभी समाज का सर्वांगीण विकास होगा।
लोकप्रिय समाजवादी नेता शिव नारायण बाबू का निधन
दिग्गज समाजवादी सामाजिक नेता बाबू शिव नारायण प्रसाद के राजनीतिक पराक्रम रास न आनेवाले कुछ असामाजिक तत्वों ने एक साजिश के तहत 15 अप्रैल 1977 को प्रातःकाल 06 बजे कृषि कार्य में थे तभी उनकी हत्या कर दी थी। यह एक राजनीतिक हत्या थी। जमीनी विवाद तो एक बहाना था, इनकी लोकप्रियता और बिहार के राजनीति में बढ़ते नाम और कद के कारण राजनैतिक प्रतिद्वंदियों तथा इनके दुश्मन इनसे घबरा गये थे। इस लिए दुश्मनों ने इनकी हत्या करवा दी। प्रदेश स्तर पर शिव नारायण बाबू सशक्त राजनेता के रूप में उभर रहे थे। वे स्थानीय लोगों से प्रेमपूर्वक मिला करते थे। वे काँग्रेस के ओजस्वी निर्भीक राजनैतिक कार्यकर्ता रहकर भी आम आदमी के लिये आम आदमी बनकर जीया। उन्होंने अल्पायु जीवन में अपने क्षेत्र का खूब सामाजिक विकास किया खासकर जिले के विकास में उनका अमूल्य योगदान रहा। वे सदैव गरीबों वंचितों की चिता करते रहते थे। उनकी कथनी और करनी में समानता थी। शिव नारायण बाबू का हर राजनीतिक दल में सम्मान था। वे अपने राजनीति के आजाद शत्रु थे।
बहुजन दलितों के मसीहा, हिन्दू-मुस्लिम एकता की मिसाल
बाबू शिव नारायण प्रसाद ने छुआछूत के खिलाफ कार्य कर हिन्दुओं का पक्ष ही नहीं लिया बल्कि उन्होंने हिन्दू और मुस्लिमों के बीच एकता और भाईचारे को बढ़ाकर शांति से रहने की शिक्षा भी दी। शिव नारायण प्रसाद जी ने लोगों के बीच जनसेवक बनकर गरीबों, दलितों, असाध्य रोगग्रस्त रोगियों व जरूरतमंदों की सेवा भी की। इस बीच उन्होंने क्षेत्रीय उपद्रवियों से लोहा भी लिया। इस तपिश और तमस के बीच नालंदा के बबुरबन्ना में ऐसे लोग भी हुए जिन्होंने शांति की रोशनी फैलाकर घावों पर ठंडे पानी की पट्टी रखी। उन्होंने हिन्दू और मुसलमानों को सचाई समझाने का प्रयास किया और एकता को कायम रखने के लिए हरसंभव प्रयास किए। लेकिन उनके जाने के बाद आज सबकुछ फिर वैसा का वैसा ही है।
शिव नारायण प्रसाद जी ने बहुजन नायकों पर व्यापक शोध-विचार किया उनकी खोज-बिन की। बहुजन राजा सम्राट अशोक उनके आदर्श व्यक्तित्वों में शामिल थे। उन्होंने हिन्दू और मुस्लिमों की एकता के लिए जो प्रयास किए, वे अतुलनीय हैं। वे हिन्दू-मुस्लिम एकता की मिसाल थे। वे खा करते थे की हिन्दू, मुस्लिम, सिख, ईसाई सब मेरे देश के भाई हैं।
जहाँ लोग धर्म के नाम पर मर-मिटने को तैयार हो जाते हैं। एक-दूसरे के धर्म को श्रेष्ठ बताते हुए अन्य धर्म की आलोचना करते हैं। वहीं बबुरबन्ना में एक ऐसे भी व्यक्ति थे, जो एक धर्म से परे हटकर सभी धर्मों को समान समझकर निःस्वार्थ भाव से अपना कार्य करते थे। शिव नारायण प्रसाद जी ने एक समाजसेवी की तरह सेवा की और हिंदू-मुस्लिम एकता को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाई।
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