स्वतंत्रता सेनानी जगलाल चौधरी की 130वीं जयंती पर विशेष ...!!

●बिहार के पहले मद्य निषेध मंत्री थे जगलाल चौधरी
●डॉक्टरी की पढ़ाई छोड़ आजादी की लड़ाई में कूदे थे जगलाल चौधरी
लेखक :- साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा, महासचिव शंखनाद साहित्यिक मंडली

जो समाज अपने गौरवशाली इतिहास को जान जाता है वह समाज राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी अमिट छाप बना डालता है और उसमें नेतृत्त्व के गुणों का विकास हो जाता है। अतीत का ज्ञान, मानव को उसकी संस्कृति, सभ्यता, कला, सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक, आर्थिक एवं राजनैतिक इतिहास के उतार-चढ़ाव की स्थिति की सूचना देता है। यही घटनाएं मानव को सोचने-समझने पर विवश करती हैं।
भारत एक ऐसा देश है जो युगों तक विकसित होता रहा है और जिसने एक सुदीर्घ सांस्कृतिक निरंतरता बनाए रखी। इसके इतिहास के हर युग ने आज तक अपनी विरासत छोड़ी है। उन्नीसवीं और बीसवीं सदी की दुनिया में नवजागरण से प्रभावित होकर बुद्धिजीवियों का एक वर्ग पनपने लगा था। यह वर्ग सामाजिक सुधारों के प्रति आस्थावान था। नवजागरण काल के दौरान एक और देशभक्ति और राष्ट्रीय भावना प्रबल हो रही थी तो दूसरी ओर देश के विभिन्न तबकों में सामाजिक सुधार की चेतना उत्पन्न हो रही थी। सामाजिक सुधारों की अपेक्षा से दलित-पिछड़े और गैर दलित वर्ग में जो चेतना निर्मित हुई थी उससे जातीय सभाएं और जातिगत आंदोलनों का विकास भी हुआ। अंग्रेजों के समय बिहार तथा बंगाल प्रेसीडेंसी में दलित और गैर-दलित जातियों के कई संगठन कार्य कर रहे थे। इन्हीं दिनों बिहार और देश के कई प्रान्तों में सामाजिक मुक्ति आंदोलन की शुरूआत हुई थी। विशेषतः राष्ट्रीय आंदोलन के साथ-साथ दलित, शुद्र और अस्पृश्य समाजों की सामाजिक बंधनों से मुक्ति के लिए संघर्ष किया जा रहा था। बिहार सहित भारत में कई सुधारक पिछड़े एवं दलितों के जीवन में सुधार और उनमें जागृति लाने के लिए सक्रीय हुए थे। उन्हीं में एक स्वतंत्रता सेनानी थे जगलाल चौधरी।
उन दिनों जब भारत में डॉ. आंबेडकर अछूत आंदोलन चला रहे थे, तब उनका प्रभाव हिंदी प्रदेशों खासकर उत्तर प्रदेश और बिहार में कम ही था। हालांकि उन दिनों दलित जातियों के अनेक नेताओं की कांग्रेस पर अच्छी पकड़ थी। इन्हीं में से एक रहे बिहार के सारण जिले के गड़ख प्रखंड में जन्मे जगलाल चौधरी। वे बिहार के प्रथम दलित कैबिनेट मंत्री भी रहे।
जगलाल चौधरी पहली बार 1937 में कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में बिहार विधानसभा के लिए चुने गए थे और वह चौथे मंत्री बने, तब बिहार में सिर्फ चार ही मंत्री बनते थे। 1938 में सर्वप्रथम समाजहित के लिए बिहार प्रदेश में उन्होंने ही मद्द निषेध कानून लागू करवाया था।  

 स्वतंत्रता सेनानी जगलाल चौधरी का जन्म, शिक्षा और पारिवारिक जीवन :
 
जगलाल चौधरी का जन्म 5 फरवरी 1895 को सारण के गरखा प्रखंड के मीटेपुर गांव में हुआ था। इनके पिता का नाम मुसन चौधरी और माता का नाम तेतरी देवी था। जगलाल चौधरी दलित समुदाय में शामिल पासी जाति से आते थे। जिनका पारंपरिक पेशा ताड़ी का व्यापार करना था। उनके पिता मुसन चौधरी अशिक्षित थे और ताड़ी बेचने का काम करते थे, लेकिन उन्होंने अपने पुत्र को शिक्षा के लिए हमेशा प्रेरित किया। यही कारण है कि दलित समुदाय से आने के बाद भी वह हमेशा शिक्षा के प्रति जागरूक हुए। जगलाल चौधरी प्रारम्भ से ही मेधावी छात्र रहे थे और उन्हें नौवीं कक्षा में प्रतिमाह पांच रुपए सरकारी वजीफा भी मिला करता था। उनकी शिक्षा में आर्थिक परेशानी न आए इसके लिए उनके बड़े भाई भीष्म चौधरी ने महत्वपूर्ण योगदान किया था। वे सेना में नौकरी करते थे और अपने परिजनों को बराबर पैसा भेजते रहते थे। जगलाल चौधरी की प्रारम्भिक शिक्षा गांव के ही प्राथमिक विद्यालय में हुई। वर्ष 1903 में उनका नामांकन छपरा जिला स्कूल में करवाया गया। वे 17 वर्ष की उम्र में मैट्रिक की परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण हुए। वर्ष 1914 में पटना कॉलेज, पटना, से आईएससी की परीक्षा पास करने के उपरांत उन्होंने कलकत्ता मेडिकल कॉलेज में दाखिला लिया। जब जगलाल चौधरी मेडिकल कॉलेज में एमबीबीएस के अंतिम वर्ष में थे तो उन्होंने महात्मा गांधी के आह्वान पर पढ़ाई बीच में छोड़ दी और स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े। और डॉक्टरी की पढ़ाई को लात मार दिया। जगलाल चौधरी ने 1921 के असहयोग आन्दोलन में सक्रियता से भागीदारी निभाई।
डॉक्टरी की पढ़ाई छोड़कर आजादी की लड़ाई में कूदे थे जगलाल चौधरी :

आजादी के पूर्व भारत में बनी अंतरिम सरकार में वह मद्य निषेध और स्वास्थ्य मंत्री बनाए गए थे। मद्य निषेध मंत्री बनने के साथ ही उन्होंने बिहार में पहली बार शराबबंदी को घोषित करते हुए लागू कर दिया था। 1947 में आजादी मिलने के बाद 1952 में पहली बार चुनाव हुआ। इसमें उन्होंने गड़खा सुरक्षित सीट से कांग्रेस के टिकट से चुनाव लड़ा और विधायक बने। विधायक बनने के साथ ही उन्हें मध्य निषेध मंत्री और स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया। 6 अप्रैल 1938 को राज्य के कुछ जिलों में शराबबंदी लागू कर दी।

जगलाल चौधरी का राजनैतिक जीवन : 

जगलाल चौधरी ने सारण जिला के कांग्रेस के सदस्य के रूप में काम करना शुरू किया। वे बिहार राज्य कांग्रेस कमेटी के सदस्य रहे और 1922 में बिहार की राजनीति में एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर चुके थे। कुछ समय के लिए वह पूर्णिया जिला के टीकापट्टी आश्रम में रहकर यहां के कांग्रेस कमेटी और यहां के लोगों की समस्याओं को सुलझाने के काम में जुट गए थे। कांग्रेस के साथ रहते हुए जगलाल चौधरी ने उसके सभी आंदोलनों में आगे बढ़कर हिस्सेदारी ली। मसलन, 16 अप्रैल, 1930 को उन्होंने नमक सत्याग्रह आंदोलन के दौरान बढ़-चढ़ कर भाग लिया और जेल गए। जेल से छूटने के बाद कांग्रेस के लिए यथावत काम करते रहे। 11 मार्च 1934 को गांधी अछूतोद्धार आंदोलन के क्रम में पटना के दानापुर पहुंचे। दानापुर रेलवे स्टेशन पर जगलाल चौधरी और डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने उनका स्वागत किया। इस क्रम में छपरा, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, मधुबनी, सीतामढ़ी, कटिहार, अररिया, फरबीसगंज, मुंगेर और भागलपुर की यात्राएं की। उन दिनों बिहार में भयंकर भूकम्प आया हुआ था। इस कार्यक्रम में सम्मिलित होकर बिहार के जगलाल चौधरी, जगजीवन राम आदि नेताओं ने अस्पृश्यता के विरुद्ध इस आन्दोलन में भाग लिया। ब्रिटिश सरकार ने जब 1937 में प्रांतीय स्वायत्तता की बात की तो तत्कालीन ग्यारह भारतीय प्रांतों में चुनाव कराना निश्चित हुआ। प्रांतीय चुनाव को लेकर भारतीय कांग्रेस कार्यसमिति ने 8 जुलाई 1937 को वर्धा में एक बैठक की। कार्यसमिति ने यह निर्णय लिया कि कांग्रेस चुनाव में भाग लेगी और अपने घोषणापत्र के आधार पर ही चुनाव लड़ेगी। चुनाव में बड़ी सफलता मिलने के बाद बम्बई, मद्रास, बिहार, उड़ीसा सहित आठ प्रांतों में कांग्रेस पार्टी की सरकार बनी।
बिहार प्रांतीय कांग्रेस कमेटी की बैठक सारण जिला के मशरख प्रखंड के एक गांव में हुई। बैठक की अध्यक्षता अब्दुल बारी ने की। डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, श्रीकृष्ण सिंह और जगलाल चौधरी सहित अनेक शीर्ष नेताओं ने बैठक में भाग लिया। इस बैठक में आम सहमति के बाद ही कांग्रेस ने सरकार बनाने का निर्णय लिया। 20 जुलाई, 1937 को श्रीकृष्ण सिंह मुख्यमंत्री बने और उनके नेतृत्व में अनुग्रह नारायण सिंह, सैयद महमूद तथा जगलाल चौधरी मंत्रिमंडल में शामिल किये गए। जगलाल चौधरी पहले दलित थे, जो मंत्री बनने में कामयाब हुए। जगलाल चौधरी ने 20 जुलाई 1937 को आबकारी और लोक स्वास्थ्य विभाग के कैबिनेट मंत्री का पदभार ग्रहण किया। आबकारी मंत्री के रूप में उनका कार्यकाल यद्यपि संक्षिप्त ही रहा, लेकिन उन्होंने इस दौरान कड़े निर्णय लेने में संकोच नहीं किया। 6 अप्रैल 1938 को राज्य के चुनिन्दा जिलों में शराबबंदी की घोषणा की। सारण, मुजफ्फरपुर, हजारीबाग, धनबाद और रांची में मद्यपान निषेध लागू किया गया।

1972 के चुनाव से राजनीति से दूर हो गए थे जगलाल चौधरी :

आजादी के बाद पहली सरकार में भी उन्होंने शराबबंदी को जारी रखा। जगलाल चौधरी लगातार 1957, 1962 तक विधायक चुने गए। 1967 के चुनाव में साधारण व्यक्ति इंद्रदेव भगत ने उन्हें चुनाव में हरा दिया। ढाई साल बाद फिर चुनाव हुआ तो लोगों ने जगलाल चौधरी को फिर से गारखा का विधायक बनाया। जगलाल चौधरी के साथ यह भी एक रिकॉर्ड रहा है कि जितनी बार वह विधायक बने हैं, उतनी बार मंत्री भी बने थे। 1972 के चुनाव में स्वास्थ्य कारणों से कांग्रेस पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया और वह सक्रिय राजनीति से दूर हो गए।

अंग्रेजों ने 1942 के आंदोलन में बेटे की गोली मारकर हत्या कर दी थी :

कामेश्वर सिंह ने बताया कि जगलाल चौधरी के लड़के शाहिद इंद्रदेव चौधरी काफी प्रसिद्ध व्यक्ति हैं। आजादी की लड़ाई के वक्त इंद्रदेव चौधरी पटना बी.एन कॉलेज में पढ़ते थे। पिता की राह पर चलते हुए उन्होंने भी आजादी के लाइव में सक्रिय रूप से भाग लेना शुरू कर दिया। 1942 में आजादी की लड़ाई के दौरान गड़खा चौक पर अंग्रेजों ने इंद्रदेव चौधरी को गोली मारकर मौत के घाट उतार दिया। उस दरमियां जगलाल चौधरी स्वतंत्रता सेनानी के रूप में मंडल कारा छपरा में बंद थे। परिजनों के अनुरोध पर उन्हें मिलने के लिए जेल से टाउन थाना में लाया गया।

बिहार के गांधी थे जगलाल चौधरी : 

जगलाल चौधरी के दो पुत्रों ने भी देश की आजादी की लड़ाई में महती भूमिका निभाई।  जिसके कारण उनके बेटे अंग्रेजों के निशाने पर आ गए और वे भूमिगत हो गए थे। 11 अगस्त 1942 को इनके बड़े पुत्र इंद्रदेव चौधरी सचिवालय पर झंडा फहराने के दौरान अंग्रेजों के गोली से घायल हो गए थे।
22 अगस्त 1942 को अपने जख्मों से लड़ते हुए देश के लिए शहीद हो गए। जब इनका शव 40 वर्षों की सजा काट रहें स्व.जगलाल चौधरी के पास लाया गया तो इन्होंने कहा कि मेरा बेटा धन्य हो गया जो देश के काम आया। इसका जीवन भारत मां के काम आ गया। भारत भूमि के कर्ज को मेरा बेटा ने उतार दिया है’। उन्होंने पुत्र का शव देखकर हंसने लगे और हाथ में हथकड़ी बंधे अंग्रेजों के सामने शव को चूम लिया। इस दौरान टाउन थाना में उपस्थित भीड़ आश्चर्यचकित थी। शव को चूमते हुए उन्होंने कहा कि ‘आज मैं धन्य हो गया कि मेरे बेटे ने देश के आजादी की लड़ाई में अपनी आहुति दी है’। स्वतंत्रता सेनानी जगलाल चौधरी को "बिहार के गांधी" की उपाधि मिली थी।

जगलाल चौधरी ने डॉ अंबेडकर के विचारों को आगे बढ़ाया :

जगलाल चौधरी 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में सारण में काफी सक्रिय रहे। जगलाल चौधरी महात्मा गांधी के साथ-साथ बाबा साहब भीमराव आंबेडकर के विचारों से भी प्रभावित थे। 1953 में जगलाल चौधरी ने ‘ए प्लान टू रिकंस्ट्रक्ट भारत’ शीर्षक से एक पुस्तक लिखी। इसमें उन्होंने डॉ. आंबेडकर के विचारों का समर्थन करते हुए सभी वर्गों के स्त्री-पुरुषों के समान अधिकार और अवसर प्रदान किए जाने के हिमायती थे। जाति प्रथा को वह हिंदूवादी समाज के लिए सबसे बड़ा अभिशाप समझते थे तथा हिंदू-मुस्लिम एकता और धार्मिक सहिष्णुता व प्रत्येक व्यक्ति को उसके इच्छा के अनुसार धर्म मानने की स्वतंत्रता के पक्षधर थे।
जगलाल चौधरी का निधन :
 
जगलाल चौधरी का निधन 9 मई, 1975 को हो गया। इनके निधन के पश्चात उनके सम्मान में 14 अगस्त 2000 को जगलाल चौधरी के नाम पर भारत सरकार ने डाक टिकट जारी कर सम्मानित किया था। इसके पहले 1970 में ही छपरा में जगलाल चौधरी कॉलेज की स्थापना हुई। बाद में 5 फरवरी 2018 को जगलाल चौधरी की आदमकद प्रतिमा का अनावरण पटना के कंकड़बाग में राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के द्वारा किया गया।

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