बज़्म - ए - इत्तेहाद नालंदा का शानदार 193वां मुशायरा संपन्न...!!
राज्य स्तर पर सुप्रसिद्ध साहित्यिक संस्था बज़्म ए इत्तेहाद नालंदा का शानदार 193 व मुशायरा विगत संध्या मोहल्ला इमादपुर बिहार शरीफ स्थित डा आशिया परवीन (विभाग अध्यक्ष उर्दू विभाग नालंदा महिला कॉलेज) व ग़ज़न्फर सब के आवास पर संपन्न हुआ जिसकी अध्यक्षता नामचीन बुज़ुर्ग शायर बेनाम गिलानी ने की जबकि खूबसूरत मंच संचालन जाने-माने शायर व मंच संचालक तनवीर साकित ने बड़े ही आकर्षक ढंग से किया।
यह एक तरही मुशायरा था जिसके लिए मिसरा तरह
" जान जाएगी मगर हम नहीं जाने वाले"दिया गया था इसके शायर लाल माधव राम जौहर हैं। लाल माधव राम उर्दू भाषा के महान शायर गुजरे हैं जिनका जन्म 18100 में हुआ था। अंतिम मुगल शासक बहादुर शाह जफर ने उन्हें मुख्तार शाही के पद से नवाजा था। 1857 की क्रांति में क्रांतिकारी की हिमायत करने के कारण उन्हें अंग्रेजों ने जेल में डाला और उनकी जायदाद जप्त कर ली। 1890 में उनका देहांत हो गया जिसके बाद उनके सुपुत्र ने उनका दीवान प्रकाशित कराया।
इस मुशायरा में मुख्य अतिथि के तौर पर डॉक्टर प्रवेज अंजुम व डॉक्टर अली मोहम्मद एस के ने शिरकत की।
की बजना शुरुआत से पहले बज़्म ए इत्तेहाद नालंदा के सचिव तनवीर साकित ने कहां के उर्दू प्यार और मोहब्बत की जुबान है इसकी मिठास सुनने वाले को बहुत जल्द अपना बना लेती है। यह इसी मुल्क में जन्मी है और यहां की मिट्टी की खुशबू इसके हर लफ्ज में महसूस की जा सकती है। हिंदुस्तान की आजादी की लड़ाई में इस जुबान का अहम किरदार रहा है। प्रेमचंद दयाशंकर नसीम, पंडित रतन नाथ सरशार, आनंद नारायण मुल्ला, जगन्नाथ आजाद व कृष्ण चंद्र जैसे हजारों साहित्यकारों ने उर्दू भाषा की फुलवारी को सजाया और संवारा है। लेकिन अफसोस की बात है कि आज इसे नफरत का निशाना बनाया जा रहा है।
गुफरान नजर ने कहा कि उर्दू जबान का आवाज खड़ी बोली से और हिंदी का ब्रिज भाषा से हुआ है। इस तरह दोनों ही शुद्ध हिंदुस्तानी जुबान हैं।
इसके बाद तरही मुशायरा का बजना आवाज हुआ। जिन शेयरों ने अपना कलाम सुनाया उनकी चुनिंदा पंक्तियां इस तरह हैं।
बेनाम गिलानी
इक यकीं मेहरो करम का वो दिलाने वाले।
खून का दरिया हैं हर रोज़ बहाने वाले।।
प्रो इम्तियाज अहमद माहिर
वो जो चुप बैठे थे जा पहुंचे हैं मंज़िल के क़रीब।
रह गए राह में सब शोर मचाने वाले।।
डॉ परवेज अंजुम
उठ गए दुनिया से हक़ बात बताने वाले।
लोग जिंदा है फ़क़त रस्म में निभाने वाले।।
गुफरान नजर
तुमने सोचा हैं नशेमन को जलाने वाले।
कितनी मुश्किल से बनाते हैं बनाने वाले।।
तनवीर साकित
जान देकर भी ताल्लुक को निभाने वाले।
अब कहां मिलते हैं वो लोग पुराने वाले।।
सुभाष चंद्र पासवान
उनको लगता है अभी वह नहीं जाने वाले।
ढूंढये आप कहां कौन हैं जाने वाले।।
अरशद रज़ा
तेरे आगे नहीं हम सर को झुकने वाले।
जुल्म जितना भी तू कर ले ऐ ज़माने वाले।।
प्रो शकील अहमद अंसारी
हैं अभी लोग जमाने को जगाने वाले।
अपने किरदार से ज़ालिम को झुकाने वाले।
वसीम असगर
खून खुद्दारी का मेरी भी हुआ है लेकिन।
हम कहां अश्क सर ए बज़्म बहाने वाले ।।
तंग अय्यूबी
अब ना लीडर की किसी बात में आने वाले।
सब के सब है यहां जनता को फंसाने वाले।।
डा आसिया परवीन
वो मुहाजिर थे गए छोड़ के अपनी बस्ती।
जान जाएगी मगर हम नहीं जाने वाले।।
आसिफ आजम
मोहतरम जिनको समझते हैं जमाने वाले।
हैं वही लोग गरीबों को दबाने वाले।।
आसिफ अली तालिब
एक तबस्सुम से मेरे दिल को चुराने वाले।
कितने मासूम हैं ये बर्क़ गिराने वाले।।
नवनीत कृष्ण
जान जाएगी मगर हम नहीं जाने वाले।
मिल गए ख़ाक में खुद हमको मिटाने वाले।।
शमीम शकुंनतवी
जानते हैं हमें महफिल में बुलाने वाले।
रौनक के बज़्म सुखन हम हैं बढ़ाने वाले।।
शाहनवाज
कई भबुत अब निकलते जा रहे हैं
सनम ख़ाने दरकते जा रहे हैं।।
देर रात तक चले इस मुशायरा का समापन मेजबान ग़ज़न्फर सब की धन्यवाद ज्ञापन से हुआ। यह बताते चलें कि श्री ग़ज़न्फर सामाजिक कार्यों में आगे आगे रहते हैं और विभिन्न प्रकार की सामाजिक काम और साहित्य की सेवा में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं।
उन्होंने कहा कि यह संस्था भाषा और साहित्य के विकास में अहम योगदान दे रही है इसलिए हम 200 मुशायरा शानदार तरीके से अपने अपने बैंक्विट हॉल सिटी गार्डन में आयोजित करने का वादा करते हैं।
इस मुशायरा में शहर की बड़ी-बड़ी हस्तियां श्रोता के रूप में भी मौजूद रही जिनमें डॉक्टर सुल्तान रजा, मुख्तार अस्लमी, मास्टर तनवीर आलम, मिस्बाह अनवर, मास्टर खालिद फैसल, मोहम्मद सद्दाम हुसैन आदि के नाम खास तौर पर लिए जा सकते हैं।
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