साहित्य के मर्मज्ञ साहित्यकार डॉ रामाश्रय झा,व्यक्तित्व एवं कृतित्व...!!

काव्य मर्मज्ञ डॉ रामाश्रय झा के व्यक्तित्व और कृतित्व
लेखक :- साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा, महासचिव शंखनाद साहित्यिक मंडली

बाबा तुलसीदास ने लिखा है कि 'मानुष तनु, गुन, ज्ञान विधाता' मनुष्य शरीर तो गुण और ज्ञान का भंडार है। इसी बात को मैं मानकर चल रहा हूँ और नालंदा और पटना जिले के ही नहीं बिहार प्रदेश के नामचीन साहित्कारों, गीतकारों व  कवियों को ढूंढ़कर उनके ऊपर प्रकाश डालने का थोड़ा प्रयास कर रहा हूँ। ज्ञान की भूमि बिहार ने अपने आप में एक पुराना इतिहास सृजित किया है।
बिहार की उर्वर भूमि ने कई महान साहित्यकारों को जन्म दिया है जिन्होंने हिन्दी साहित्य के पाठकों पर अमिट छाप छोड़ने के साथ ही जन मानस को समय-समय पर उद्वेलित किया है। हमारे मगध की सोंधी महक में लिपटा जीवन का दुःख-सुख। प्रायः देखा गया है कि इतिहास जब करवट लेता है तो साहित्य, संस्कृति सब करवटें लेते हैं, लेकिन यह करवटवादी खेल जरा सुस्त किस्म का हुआ करता है, साहित्य में सबकुछ धीरे-धीरे बदलता है। यों कहें मुल रूप से यहाँ कभी नहीं बदलता। हिन्दी साहित्य उसका जीता-जागता प्रमाण है। साहित्य जाति, धर्म आदि को बांधने का संकीर्ण दायरों से परे जाने का माध्यम माना जाता है। साहित्य अगर स्थायी है; सबके लिए है यह बकवास मात्र है। साहित्य उसका है, जो उसे लिखता है। साहित्य उसका ठीक उस तरह नहीं है जो उसे पढ़ता है लिखने और पहने वालों से भिन्न है। अपने संघर्षपूर्ण जीवन में हम तरह-तरह के लोगों से मिलते रहते हैं। उनमें से कुछ अपने उज्ज्वल एवं अनोखे व्यक्तित्व से हमारे मन पर अभिछाप छोड़ते हैं तो अन्य कुछ अपनी बुरी हरकतों से, कुछ और भी लोग होते हैं जो इन वर्गों में नहीं आते। उन्हें स्मरण करने के लिए कुछ नहीं होता, पर उज्ज्वल व्यक्तित्व के अधिकारी हमारे मानस पटल पर सोने की तरह चंमकते रहते हैं। ऐसा ही अनुपम व्यक्तित्व के अधिकारी हैं- शिक्षाविद् शिक्षक साहित्यकार विद्यार्थी रामाश्रय झा जी जिनके हर मिनट हर दिन या लगातार अनेक वर्ष अपने शिक्षक मित्र व साहित्यकार समाज में समर्पित होते रहे। झा जी सर्वग्राही पाठक हैं जो नित्य पाँच-छह घंटों तक लिखने-पढ़ने का काम करते है।
ऐसे महान कवि, प्रख्यात् लेखक हिंदी, संस्कृत और अंग्रेजी के उद्भट विद्वान का जन्म 28 नवंबर 1955 ई, को ग्राम-पोष्ट- मिसी, भाया हरनौत, जिला-पटना के  ब्राह्मण परिवार के सुशिक्षित घराने में हुआ था। जिनके पिता स्व० पं० कुशेश्वर झा एवं माता स्व० शारदा देवी एक धर्म परायण महिला थी जो पूजा-पाठ में अपना समय बिताती थी तथा अपने लाडले बच्चों की सेवा में दिन व्यतीत किया करती। विद्यार्थी रामाश्रय झा जी की शादी 12 वर्ष की उम्र में 1966 में ग्राम- विरूपुर, थाना- बड़हिया, जिला- लखीसराय के कुलीन ब्राह्मण श्री  बनवारी झा जी की 9 वर्षीय पुत्री श्रद्धा कुमारी से हुई। धर्मपत्नी श्रीमती श्रद्धा देवी और रामाश्रय झा जी के पुत्र- गिरिजेश झा, ब्रजेश झा, मनीष झा, रजनीश झा एवं सुभाष झा, पुत्रियाँ- भाग्यश्री एवं राजश्री हैं। पत्नी श्रीमती श्रद्धा देवी भारतीय सुसंस्कृत महिला हैं। विनयी स्वभाव की यह महिला अपने आप में न जाने क्या-क्या छुपायी हैं। अन्तर्मुखी और वर्हिमुखी व्यक्तित्व को धारण करने वाली, इस महिला कार्य-कलापों से सभी को अपनी ओर मुखातिव कर लेती है। ये अपने गृह कार्य से निवृत्त होकर अपने पति और प्रतिपालित्य बच्चों एवं बच्चियों की सेवा शिक्षा-दीक्षा में सतत् प्रयत्नशील रहीं हैं। भावुक, संवेदनशील, नारी नारीत्व को कायम रखते हुए परिवार के साथ-साथ  साहित्य की सेवा में सदा झा जी के साथ लगी रहती हैं। जीवन के चौथेपन में धर्म अनुष्ठान में सदा भगवान के प्रति समर्पित हैं। डॉ० श्री रामाश्रय झा जी को  पाँच पुत्र एवं दो पुत्री आंगन की शोभा बढ़ाने में चार चाँद की भांति शोभायमान हैं। चाँद यदि प्रकाश देता है तो चाँदनी शीतलता, धवलता। चाँद को चाँदनी भाती है तो चाँदनी को चाँद। भाई-बहन का प्यार, माताजी का प्यार-दुलार एवं पिता श्री रामाश्रय झा जी का स्नेह कोमल भाव के बीच पल रहे हैं। पनप रहे हैं और आगे बढ़ रहे हैं। एक दूजे को आदर-सत्कार मुफ्त में बाँट रहे हैं। श्री रामाश्रय झा जी का गाँव मिसी किसानों का गाँव है। खेती में काम आनेवाले पशु के अतिरिक्त गाँव के कई परिवारों मुख्यतः निम्नवित परिवारों के पास पालतू दुधारू पशु यथा- गाय, भैंस, बकरी भी हैं।   
आप एक आदर्श शिक्षाविद् हैं। शिक्षा प्रेमी हैं। पारिवारिक और सामाजिक संबंधों के निर्वाह में श्री रामाश्रय झा जी का कोई सानी नहीं कर सकता। आप में तनिक भी गर्व, घमण्ड, अहम् छू तक नहीं गया है। परिवार में या पड़ोस में कोई विद्यार्थी पढ़ने वाला हो तो उसे आराम से पढ़ाते। उसे आगे बढ़ने का सही मार्ग दर्शन करते रहे हैं। आर्थिक सहायता प्रदान करते, मनोबल बढ़ाते और हिम्मत न हारने की प्रेरणा देते हैं। परिवार में या परिजन के घर में कोई बीमार हो उसके लिये चिकित्सक की व्यवस्था कराते और उसकी परिचर्चा का इन्तजाम कराते हैं। कोई उत्सव, पूजा-पाठ, शादी-ब्याह का अवसर हो कठोर व्यस्तता के बावजूद उसमें व्यक्तिगत रूप से शामिल होते और अपेक्षित सहयोग प्रदान करते हैं। मित्रों-सहयोगियों से वे ऐसा कोई व्यवहार नहीं करते, जैसे वे इनके रिश्तेदार न हों। आपका अध्ययन प्रेम न जाने कितने लोगों को प्रेरणा देता है। आप खुद सुयोग्य और प्रतिभाशाली व्यक्ति हैं इसलिये प्रतिभा वालों की खूब कद्र करते हैं। आपका मृदु व्यवहार एवं हँसमुख चेहरा और पारखी दृष्टि है। यूँ तो आप  हिंदी-संस्कृत भाषा के शानदार, ईमानदार शिक्षक रहे हैं तो भी मगही साहित्य के प्रति आपकी रुचि और दृष्टिकोण उच्चकोटि की है। आप हिंदी-मगही में उच्चकोटि की कविताएँ व साहित्य लिखा करते हैं जिसमें दार्शनिकता, मनोवैज्ञानिकता की भावना कूट-कूट कर भरी रहती है। आप लम्बी कविताएँ और ओजस्वी, भावुकतापूर्ण मार्मिक, पीड़ा, टीस, करुणा, प्रेम, स्नेह से स्नेहिल विचारों की अभिव्यक्ति खुलकर किया करते हैं। समाज के दबे-कुचले, दलितों की आह के प्रति आक्रोश आपकी कविताओं में देखने को मिलती है। नारी उत्पीड़न समाज के सफेदपोसों के द्वारा जघन्य कार्य किया जाना उन्हें प्रताड़ित किया जाना, उनके साथ दुर्व्यवहार किया जाना उनकी अस्मिता पर किसी प्रकार की चोट पहुँचाना आदि भावों के प्रति आपकी लेखनी जबरदस्त आग उगलती है। आप हिंदी-मगही भाषा में सृजन करते रहें और देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में सदैव प्रकाशित होते रहे हैं। आपकी विद्वता, लगनशीलता, ओजस्विता ने हिंदी साहित्य में जो आग की चिनगारी उखेरी है आज तक साहित्य प्रेमियों के सीने में उसी भांति समाहित है जिस भाँति भक्त शिरोमणि श्री हनुमान के हृदयागंन में पुरुषोतम श्री राम समाहित थे। विद्वानों की टोली नहीं होती बल्कि उनकी लंगोटी होती है जिसको वे कसके बाँध के रखते हैं। आपकी विद्वता आपकी जीवन शैली आपके विचारों की चर्चा सर्वत्र होती रही है। आप हिन्दी, मगही के कहानीकार, निबन्धकार, समीक्षक हैं। विविध विद्या के शिल्प प्रयोग के अभ्यासी बुद्धिजीवी साहित्यकार भी हैं। 
आपकी प्रारम्भिक शिक्षा ग्राम मिसी में हुई। आगे की पढाई मध्य विद्यालय नेहुसा हरनौत एवं  उच्च विद्यालय मिसी से मेट्रिक तथा आई.ए.और बी.ए. की शिक्षा रामलखन सिंह यादव कॉलेज बख्तियारपुर से किये। पठन-पाठन में आपकी रुचि बचपन से ही रही है। बचपन में आप खेल से प्रेम रखते थे। शिक्षकों की आज्ञा को आपने कभी अवहेलना नहीं की। वर्ग में आप सदा प्रथम आते रहे। अंग्रेजी, हिन्दी में आपकी रुचि अधिक रही है। उस वक्त अंग्रेजी के शिक्षक भी बहुत कम मिलते थे। विषय कठिन लेकिन अपनी लगन और कठिन परिश्रम से अच्छे अंक प्राप्त करते रहे। उच्चकोटि के रहन-सहन की व्यवस्था में आप सदा उतरोत्तर बढ़ते रहे। 
उच्च शिक्षा एम०ए० (हिन्दी) मगध विश्व विद्यालय, बोधगया, बिहार के आधुनिक हिन्दी- गीतकार विषय पर शोध मानद उपाधि विद्यावाचस्पति (पी.एच्.डी.) विक्रमशिला हिन्दी विद्यापीठ, गाँधीनगर, ईशीपुर, भागलपुर (बिहार), साहित्यालंकार, साहित्यकला विद्यालंकार, गीतनरेश, गीतों के राजकुमार, गीतों के ऋतुराज-अखिल भारतीय साहित्य, संस्कृति, कला परिषद्, मथुरा (उ0 प्र0). काव्यशास्त्री- हैदराबाद, (आन्ध्रप्रदेश). महाकवि योगेश सम्मान, नीरपुर, बाढ़ (पटना) एवं महाकवि योगेश शिखर सम्मान- मगही अकादमी, पटना, सर्वश्रेष्ठ कवि सम्मान- बिहान के स्वर्ण जयंती समारोह वर्ष 2008 में इत्यादि।
आप मूलतः गेय कवि हैं। आपका कंठ गीला है। गीत आपके बड़े मार्मिक है। मर्मस्पर्शी है। गीत आत्मा को अपनी ओर आकर्षित करते हैं अतः आप धन्यवाद के पात्र है। जायसी के अनुसार 'काव्य एक मर्म, मधुर, गहन अनुभूतमयी. व अत्यंत प्रभाव शालिनी वस्तु है जो गहरी प्रेम के पीर से ही उत्पन्न होती है। कवि अपनी मृत्यु के बाद एकमात्र वही अमर सुगन्धित व पवित्र स्मृति चिन्ह विश्व के पास छोड़ जाना चाहता है जिससे कि वह उसे चिरकाल तक प्यार से याद करता रहे।" ऐसे गेय गीतकार व साहित्यकार श्री रामाश्रय झा जी को मेरा ह्रदय से नमन।
रामाश्रय झा जी का साहित्यिक दीक्षा गुरू- कविवर्य पं० श्री शुकदेव झा सैनिक-जी, शकरा, गया (बिहार), साहित्य गुरू- उत्क्रान्तिवाद के जनक महामहोपाध्याय कविवर्य डॉ० स्वर्ण किरण जी।
रामाश्रय झा सम्पादक के रूप में- नालन्दा-दर्पण, सोहसराय, नालंदा (बिहार), सर्जना साहित्य परिषद्, आदर्श ब्राह्मण सभा, सनातन सत्संग केन्द्र, सदाचार आकांक्षी समिति आदि साहित्यिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक संस्थाओं की स्थापना एवं संचालन। सर्जना एवं ज्ञानज्योति पत्रिकाओं का सफल सम्पादन, अखिल भरतीय मगही भाषा सम्मेलन, पटना में डॉ0 योगेश्वर प्रसाद सिंह योगेश एवं श्री रासबिहारी पाण्डेय जी का सतत सहयोग, संयोजक तथा सचिव के रूप में। सुदीर्घ काल तक स्नेह-सानिध्य प्राप्त सर्व श्री श्याम नारायण पाण्डेय, डॉ० हरिवंश राय बच्चन, श्री रामेश्वर शुक्ल अंचल, पद्मश्री गोपाल दास नीरज, श्री कपिल पाण्डेय, श्री उमाशंकर वर्मा, श्री रंजन सूरिदेव, श्री राम अभिलाष शुक्ल, श्री परमलाल गुप्त, श्रीमती बिजली रानी चौधरी, श्री अखिल विनय, श्री आरसी प्रसाद सिंह, श्री रामदयाल पाण्डेय, श्री नंदन शास्त्री, डॉ० दीनानाथ शरण, प्रो0 श्यामनंदन किशोर, श्री रामचन्द्र शर्मा किशोर, श्री राम नरेश पाठक, मगही कोकिल कवि श्री जयराम सिंह आकुल, श्री तारकेश्वर भारती, ठाकुर श्री राम बालक सिंह, श्री राम बालक सिंह बालक, श्री केदार अजेय, श्री रामरिख मनहर, श्री काका हाथरसी, श्री मधुर शास्त्री, श्री शिव प्रसाद लोहानी, लक्ष्मण किलाधीश स्वामी श्री सीतारामशरण जी महाराज, आचार्य जानकीवल्लभ शास्त्री, डॉ० श्रीपाल सिंह क्षेम, श्री रामगोपाल शर्मा रूद्र, डॉ० कुमार विमल, डॉ० त्रिभुवननाथ शर्मा मधु, डॉ० वसंत चक्रवर्ती, महाकवि श्री तिलक, श्री श्यामसुन्दर सुमन, डॉ० रामनंदन, श्री मधुश्री काबरा, डॉ० भारती वर्मा, श्री निरंकार देव सेवक, श्री शान्ति स्वरूप कुसुम, श्री तन्मय बुखारिया, आचार्य श्री क्षेमचन्द्र सुमन, श्री साथी छतारवी, डॉ० गणेशदत्त सारस्वत, डॉ० राजेन्द्र चान्द्रायण, श्री देवराज दिनेश, डॉ० रमाकान्त श्रीवास्तव, श्री नृपेन्द्रनाथ गुप्त, श्री नरेश पाण्डेय चकोर, श्री रामचंद्र जायसवाल, श्री रामजी मिश्र मनोहर, डॉ० इन्द्र सेंगर, डॉ० सतीशराज पुष्करणा, आचार्य देवेन्द्र नाथ शर्मा, श्री हरिश्चन्द्र प्रियदर्शी, श्री मथुरा प्रसाद नवीन, श्री बाबूलाल मधुकर, श्री गोवर्द्धन प्रसाद सदय, डॉ० शत्रुघ्न प्रसाद, डॉ० भगवती प्रसाद द्विवेदी, डॉ० बच्चन पाठक सलिल, श्री राजमणि राय मणि, श्रीमती सरिता अपराजिता प्रभृति विभूतियों का शैक्षणिक अनुभव - 1. पब्लिक एकेडेमी, सोहसराय, नालंदा में दिनांक 26 जुलाई, 1975 ई0 से दिसम्बर 1977 ई० तक, 2. विद्या निकेतन, सलेमपुर, सोहसराय, नालंदा में 1978 ई० से 1980 ई0 तक। 3. सरस्वती शिशु मंदिर, अलीनगर, बिहार शरीफ, नालंदा में 1980 ई0 से मार्च 1981 ई0 तक। 4. उच्च विद्यालय कारजान सूर्यपुरा, अथमलगोला, बाढ़, पटना में मई 1981 ई0 से जुलाई 1995 ई0 तक। 5. श्री रामचन्द्र प्रसाद गुप्ता कन्या उच्च विद्यालय, हिलसा, नालंदा में जुलाई 1995 ई0 से सितंबर 1996 ई0 तक। 6. श्री शंकर उच्च विद्यालय, अमरपुरी हरनौत नालंदा में अक्टूबर 1996 ई0 से नवंबर 1998 ई0 तक। 7. राजकीय कृत उच्च विद्यालय हरनौत, नालंदा में नवंबर 1998 ई० से मई 2003 ई० तक। 8. उच्च विद्यालय करजान- सूर्यपुरा, अथमलगोला, बाढ़, पटना में मई 2003 से नवम्बर 2015 तक रहे।

कविवर डॉ० रामाश्रय झा का प्रणीत कृतियाँ
 हिंदी में प्रकाशित गीत-संग्रह- भक्तवाणी, गोपाल-विनय, प्रेमसंगीत, गीत कुसुम, गीत सौरभ, सुधिसंगीत, प्रणयगीत, गीतनिमंत्रण, तुम्हारे लिए, अंतिम विदाई प्यार को, गीत मेरे स्वर तुम्हारे, तुम्हारी याद आती है, वे दिन प्रिय कितने सुन्दर थे, मेरे अपने मेरे सपने, मेरे सपने नवरंग भरे गीत गाऊँगा तुम्हारे प्यार का, मेरे गीत सत्य शिव सुन्दर, आरती-अर्चना और शूल-फूल, जब पाती लिखना तब लिखना, रोये नयन हमारे एवं कवि कथा महाकाव्य।
डॉ० रामाश्रय झा का अप्रकाशित हिन्दी गीत-संग्रह- आँसू मेरे नयन तुम्हारे, प्रेम की पाती, ओ मानिनी, अपराजिता, साँझ-सवेरे, नेह निर्झर, नयन-निमंत्रण, अन्तर्यामिनी प्यासी पलकें, ज्योत्स्ना, मधुपर्क, विसर्जन, विदा वेला, सरसिज नयना, इन्दीवर दल, रजनीगंधा, तुम्हारी शपथ, प्रीति अभागिन गीत अभागे, अंतिम पाती प्रीति की, तन दीपक मन बाती, हरसिंगार, दो फूल तुम्हारे चरणों में (श्रद्धांजलि-गीत), प्रेम लपेटे अटपटे, गूँजे हमारी भारती ( हास्य-व्यंग्य-गीत), भवानी शंकर स्तोत्रम्, नमामि शंकर भजामि शंकर, गौमाता को शतवार नमन, रामचरण सुखधाम, जनम-जनम रति राम पद- आदि।
डॉ० रामाश्रय झा का हिन्दी उपन्यास- मधुबाला, पलभर की मुलाकात,कितना दर्द दिया एवं जननी जन्म भूमिश्च। नाटक- सीता हरण, बैजूबावरा तथा लैला मजनूँ। जीवन-संस्मरण- मैं पापन ऐसी जली, कोयला भयो न राख, भाग न बाँचा जाय, प्रीति अभागिन मन बसी, बालम बसे विदेश तथा कोरी चुनरिया में दाग। डॉ० रामाश्रय झा का आलोचनात्मक साहित्य - बिहार के आधुनिक हिन्दी गीतकार (आठ भाग)। रामाश्रय झा का जीवनी – अतीत गीत, सुनहरे दिन सुनहरी यादें, ऊधो मोहि ब्रज बिसरत नाहीं, निबंध नीरज एवं पत्रावली (आठ भाग)। मगही साहित्य प्रकाशित मैया महाकाव्य। अप्रकाशित गीतसंग्रह गीत प्रीति के, रधिका तोहरे कारन, सपना के गाम, गीत बसंती प्रीति बसंती, दरद न जाने कोय, पपिहा बोले पिया-पिया, बँसुरिया के तान, फागुन बीतल जाय, बैरून सावन मास, बैरून नीद न आवे रात, कदम आउ कचनार, पिरितिया के पाती, पिरितिया के थाती, पिरितिया लगाके, रिमझिम रस बरसात, बरखा बहार गीत हमर प्रीति हमर। नाटक- बेटी चनरमा के जोत, अहिंसा परमो धर्मः उर्फ हिंसा के काँटा अहिंसा के फूल। 
रामाश्रय झा का कहानी संग्रह - भाग न बाँचे कोय, हमर तोहर प्रीति, मिठमोहनी-आदि। इनके अतरिक्त आकाशवाणी से 1984 से काव्य-पाठ, बिहार, उत्तर प्रदेश, मुम्बई, उडीसा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा, आन्ध्रप्रदेश, दिल्ली आदि देश-प्रदेश की छोटी-बडी प्रायः समस्त पत्र-पत्रिकाओं में नियमित लेखन एवं रचना प्रकाशन। आर्यावर्त्त के प्रतिष्ठित कवि तथा स्तंभ-लेखक (होइहैं सोइ जो राम रचि राखा), नालंदा-दर्पण, ज्योत्स्ना, देवदीप, मंगलदीप, क्रांति दूत, क्रांति स्वर, उत्तर बिहार, अभिनव प्रत्यक्ष, कौमी दुनिया, माहुरी मयंक, मथुरासिनी समाचार, सुकविविनोद, विहान, पाटलि, कोंपल, मागधी, अलका मागधी, विचार बोध, समाज प्रवाह, अमर जगत्, अक्षत, मानस चन्दन, गीतकार, परिणय संदेश, संघर्षदूत, प्रसन्न राघव, संकल्य, सुमन, तुमुल तूफानी, सुरसरि, बज्जिका माधुरी, वार्तायन, तत्वबोध, भारतीय उद्देश्य, कवि सभा दर्पण, रैन बसेरा, स्नेहिल सन्देश, मानस गंगा, पिनाक, नया भाषा भारती संवाद, राजभाषा, सवेरा, संवाद, वीणा आदि अनगिनत पत्रिकाओं के प्रतिष्ठित कवि।
विशेष आलेख :- बचपन से काव्य रचना, छायावादोत्तर काव्यधारा के मधुर गीतकार कवि, लगभग पाँच दर्जन से अधिक पुस्तकों तथा तीन हजार से अधिक कोमल कान्त गीतों एवं पदावलियों के रचयिता, हिन्दी, मगही एवं संस्कृत में रचना। हिन्दी-मगही साहित्य जगत् के सुप्रतिष्ठित एवं लोकप्रिय कवि बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ० रामाश्रय झा के गीतिकाव्य में प्रेम-सौन्दर्य, प्रकृति- सुषमा, राष्ट्रीय भावना, मानवीय करूणा, सांस्कृतिक संचेतना, सामाजिक सम्वेदना, ग्राम लालित्य के साथ लोकमंगल माधुर्य के चित्र मन मोहते हैं। परम्परा के पुजारी, प्रयोग के आग्रही, बचपन से अभावों और संघर्षों में जीवन व्यतीत करने वाले, सरल स्वाभिमानी विद्वान् साहित्यकार कवि, लेखक, सुधी समीक्षक एवं ओजस्वी वक्ता कविवर श्री रामाश्रय झा जी की सारस्वत साधना सर्वलोक हितेरता के लिए निरंतरित एवं समर्पित है।
आपने साहित्य की अनेक विद्याओं में अभिरुचि पर अपनी कविता-सृजन में-हास्य-व्यंग्य के पक्ष को उजागर कर श्रोताओं को गुदगुदी पैदा करना विशेष आकर्षित किया है। आपका व्यक्तित्व सौम्य, हाजिर जबाबी, हास-परिहास एवं कौतूहल वाली बातें आप पसंद करते हैं। 
श्री रामाश्रय झा जी साहित्य के लालित्य-तत्व एवं मानवीय संवेदना के जाग्रत स्पंदन के साथ जीनेवाले विलक्षण प्रतिभा के व्यक्ति हैं। रामाश्रय झा जी का ज्ञान भी अपरिमित है। उन्होंने भी संसार में बहुत कुछ देखा है। दुनिया के ऊँच-नीच का उनको पूरा ज्ञान है। उनका अनुभव बेहद बढ़ा हुआ है। आपकी प्रशंसा हम कितना करें वह कम ही होगा। आपने साहित्य-प्रेमियों का ध्यान खींचा है इसलिए मैं अपनी ओर से आपको साधुवाद देता हूँ।
आप बड़े सरस हृदय, काव्य मर्मज्ञ और एक सफल गीतकार, गजलकार और एक सुंदर निबन्धकार भी हैं। सारी सहानुभूति, दृष्टांत, ज्ञान-चर्चा छलावा सा लगते हैं इसलिये धीरज बँधाने के बदले मैं चुप रहना ही अच्छा समझता हूँ। चन्द्रमा किस-किस को शीतलता प्रदान करता है, स्वयं नहीं जानता। आपसे कितने लोग स्नेह-संबंध से जुड़े हैं, आप भी न जानते होंगे। अंत में, श्री रामधारी सिंह 'दिनकर' के शब्दों में :-
"दूर भविष्यत् के पट पर जो वाक्य लिखे हैं, पढ़ लेना, भवितव्य अगर आगे जीवित रहने दे।" जब दिल में कुछ कर गुजरने का जज्बा हो तो कोई काम मुश्किल नहीं है। ऐसे ही जज्बे के साथ ही कमाल का काम कर दिखाये हैं श्री साहित्यकार डॉ० रामाश्रय झा जी ने। बख्तियारपुर में एक बड़ा सा अपना मकान बनाकर परिवार के साथ जीवन व्यतीत कर रहे हैं। मैं अपने गुरुवर रुमानी कवि, गीतकार, साहित्यकार को तहे दिल से स्वागत करता हूँ तथा प्रभु से प्रार्थना करता हूँ कि ये सदा दीर्घायु बनें तथा अपनी रचित रुमानी कविताओं  एवं साहित्यिक सेवा से हमसबों को सराबोर कराते रहें।  

साहित्य एवं समाज को श्री झा से अनंत आशाएँ हैं। परमात्मा इन्हें सुदीर्घ मंगलमय जीवन प्रदान करें।

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