●चर्चित साहित्यकार डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह की कृति ‘लोग का कही’ का लोकार्पण...!!
● सामाजिक उपन्यास “लोग का कही” का विमोचन संपन्न
बिहारशरीफ, 16 मार्च 2025 : 16 मार्च दिन रविवार को साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था 'शंखनाद' के द्वारा डुकारेल सभागार में बिहार के बहुचर्चित इतिहासज्ञ एवं साहित्यकार डॉ० लक्ष्मीकांत सिंह की पुस्तक “लोग का कही” का विमोचन समारोह आयोजित किया गया।
लोकार्पण कार्यक्रम मुख्य अतिथि बिहार प्रशासनिक सेवा के अधिकारी साहित्यकार सुबोध कुमार सिंह, बुद्ध प्रकाश, भाषाविद् धनंजय श्रोत्रिय, बेनाम गिलानी तथा शंखनाद के महासचिव राकेश बिहारी शर्मा के करकमलों द्वारा संपन्न हुआ। साहित्य की हर विधा में लेखन करने वाले इतिहासविद् डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह की यह किताब अंतरराष्ट्रीय पब्लिकेशन रेडशाइन इंडिया ने प्रकाशित किया है,जो अमेजन और फ्लिपकार्ट पर भी उपलब्ध है। समारोह की अध्यक्षता मगही शोध संस्थान के निदेशक धनंजय श्रोत्रिय तथा मंच संचालन शायर नवनीत कृष्ण ने किया।
लोकार्पण समारोह में विषय प्रवेश कराते हुए शंखनाद साहित्यिक मंडली के महासचिव राकेश बिहारी शर्मा ने कहा कि, लोकार्पित पुस्तक के लेखक डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह एक सारगर्भित और गहन सामाजिक-दृष्टिकोण वाले रचनाकार हैं। उपन्यास “लोग का कही” में अद्वितीय लोक-चेतना और ग्रामीण जीवन की अभिव्यक्ति है। यह मर्म-स्पर्शी और हिंदी उपन्यासों में से एक अत्यंत मूल्यवान कृति है, जिसमें अनैच्छिकता और ग्राम्य-जीवन के विविध सिद्धांतों के साथ जीवन-संघर्ष, जिजीविषा और जीवंतता का चित्रण है। इसमें जीवन की सहज सुंदरता है।
समारोह के मुख्य अतिथि और बिहार सरकार के प्रशासनिक अधिकारी श्री सुबोध कुमार सिंह ने कहा कि ‘लोग का कही’ प्रो. (डॉ.) लक्ष्मीकांत सिंह का तीसरा उपन्यास है। इसके पूर्व इनके उपन्यास 'डुकारेल की पूर्णिया' और 'स्वर्ण गुफा' को काफ़ी ख्याति मिल चुकी है। 'लोग का कही' उक्त दोनों उपन्यासों से इस मायने में अलग है कि उनकी कथावस्तु जहाँ भारत के अतीत से सम्बन्धित है, वहीं इस उपन्यास की दृष्टि हमारे वर्त्तमान और भविष्य पर टिकी हुई है। यह कहानी बिल्कुल सत्य घटना पर आधारित दीखती है। लोकार्पित पुस्तक के द्वारा हिंदी के पाठक सजीव भोजपुरी भाषा से एक बार फिर से मिलेंगे।
अपने अध्यक्षीय संबोधन में 'मगही' पत्रिका के संपादक भाषाविद् धनंजय श्रोत्रिय ने कहा कि यह उपन्यास सामाजिक वातावरण के संवर्द्धन में मध्यम वर्ग के योगदान को रेखांकित करता है। इस उपन्यास के अंदर समाज विज्ञान का दिग्दर्शन होता है। मैंने देखा है कि यह महज एक औपन्यासिक कृति ही नहीं है, बल्कि भारतीय ग्राम्य समाज का इतिहास है।
समारोह के विशिष्ट अतिथि, बिहार सरकार के प्रशासनिक अधिकारी व साहित्य-समीक्षक बुद्ध प्रकाश ने कहा कि यह उपन्यास अपने आप में उत्कृष्टता का नमूना है। मेरे ऐसा कहने का आधार यह है कि इस उपन्यास की भाषा में लेखक ने जो नवाचार किया है वह अपनी तरह का एक अनूठा प्रयोग है। साहित्य लेखन में देशज शब्दों का इस्तेमाल पहले भी होता रहा है, लेकिन इस उपन्यास में लेखक ने सही जगह पर और उपयुक्त सन्दर्भों में जिन देशज शब्दों का चयन किया है वह तारीफ के काबिल है। उन्होंने कहा, लेखक ने बहुत सारी प्रामाणिक चीजों के इर्दगिर्द इसकी कहानी बुनी है।
इस अवसर पर हिंदी के विद्वान प्रोफेसर (डॉ.) शकील अहमद अंसारी ने उपन्यास की विवेचना प्रस्तुत करते हुए लेखक की कल्पना शक्ति और रोचक वर्णन के लिए प्रशंसा की। 'लोग का कही' उपन्यास अंधेरे से उजाले की ओर की पृष्ठभूमि, वर्तमान में समाज में व्याप्त जातिगत भेदभाव और ऊंच-नीच की कुप्रथा तथा वर्तमान मे हो रहे सुखद परिवर्तन को लेकर उपन्यास का कथानक रचा है जो प्रशंसनीय है।
समारोह में प्रख्यात शायर और फारसी के विद्वान लेखक बेनाम गिलानी ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि लेखक डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह ने उपन्यास के माध्यम से यह संदेश दिया है की हम सभी को पूर्वाग्रह छोड़ कर एक नए समरसता पूर्ण समाज की रचना मे जुट जाना चाहिए और वर्तमान मे समाज में ऐसे प्रयास जरूरी हैं।
इसके लेखक प्रोफेसर डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह ने कृतज्ञता-ज्ञापित करते हुए कहा कि इस पुस्तक में समाज की तल्ख सच्चाई को चित्रित किया गया है। यह एक विशुद्ध रूप से उत्तर भारतीय गांव की कहानी है, जिसके पात्र और संदर्भ सामाजिक वातावरण में सदैव जीवित दीखते हैं। यह समाज में व्याप्त रीति-कुरीति और परम्पराओं का रेखांकन मात्र है।
मंच संचालन करते हुए शायर नवनीत कृष्ण ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि लेखक डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह ने अपनी प्रखर लेखनी से जनमानस को नई दिशा देने का सत्कार्य किया। बिहार राज्य सिख फेडरेशन के नालंदा जिला अध्यक्ष भाई सरदार वीर सिंह ने कहा कि उपन्यास में लेखक ने समाज के रीति-रिवाज, परंपराओं और परिस्थितियों को बड़े ही सूक्ष्म तरीके से चित्रित किया है, जिससे सामाजिक जीवन में सुधार होगा।
इस कार्यक्रम में साहित्यसेवी धीरज कुमार, प्रो. विश्राम प्रसाद, लेखिका प्रिया रत्नम्, अरुण बिहारी शरण, संजय कुमार शर्मा, मनीष चंद्र राय, विजय कुमार, अमर सिंह, सुरेश प्रसाद सहित कई प्रबुद्ध नागरिक एवं साहित्यसेवी उपस्थित थे।
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