चर्चित समीक्षक बुद्ध प्रकाश की कृति “किताबों का अद्भुत संसार” का लोकार्पण

बिहारशरीफ, 09 मार्च 2025 : रविवार को साहित्यिक-सांस्कृतिक संस्था 'शंखनाद' के सभागार में बिहार के बहुचर्चित साहित्यकार एवं समीक्षक बुद्ध प्रकाश की पुस्तक 'किताबों का अद्भुत संसार' का विमोचन समारोह पूर्वक दीप प्रज्वलित कर किया गया।
इस समारोह के मुख्य अतिथि बिहार प्रशासनिक सेवा के अधिकारी साहित्यकार सुबोध कुमार सिंह, संपादक एवं पूर्व प्रभारी, एकात्म मानव दर्शन एवं विकास प्रतिष्ठान, नई दिल्ली तथा मगही शोध एवं विकास के निदेशक धनंजय श्रोत्रिय तथा शंखनाद साहित्यिक मंडली के  महासचिव साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा के करकमलों द्वारा सम्पन्न हुआ। समारोह की अध्यक्षता शंखनाद साहित्यिक मंडली के अध्यक्ष इतिहासज्ञ व पुरातत्ववेत्ता डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह ने तथा संचालन शायर नवनीत कृष्ण ने किया। पुस्तक लोकार्पण से पूर्व शंखनाद के द्वारा लेखक बुद्ध प्रकाश जी को अंगवस्त्र तथा नालंदा प्रतिमान से सम्मानित किया गया।
    लोकार्पण समारोह में विषय प्रवेश कराते हुए शंखनाद साहित्यिक मंडली के महासचिव राकेश बिहारी शर्मा ने कहा कि साहित्यकार बुद्ध प्रकाश जी बिहार प्रशासनिक सेवा के पदाधिकारी हैं तथा एक अच्छे लेखक हैं। उनकी रचनाएँ समय-समय पर विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होती रही हैं। 'किताबों का अद्भुत संसार' उनकी पहली कृति है, जिसे अंतरराष्ट्रीय प्रकाशन रेडशाइन इंडिया ने प्रकाशित की है।
     समारोह के मुख्य अतिथि सुबोध कुमार सिंह ने कहा कि बिहार समालोचना की धरती रही है और बिहार से ही प्रेमचंद की कहानियों की आलोचनात्मक पुस्तक 1933 में छपी थी। बुद्ध प्रकाश जी, पुस्तक प्रेमी व्यक्ति होने के साथ-साथ एक अच्छे समीक्षक भी हैं। किताबें पढ़ने का शौक होना अलग बात है, लेकिन उनके बारे में लिखने वाले विरले होते हैं। बुद्ध प्रकाश उन्हीं चंद लोगों में से एक हैं। ये बिहार प्रशासनिक सेवा के कर्तव्यनिष्ठ पदाधिकारी हैं। प्रशासनिक व्यस्तताओं के बावजूद वे पढ़ने-लिखने के लिए वक्त निकाल ही लेते हैं। वे न केवल पढ़ते हैं, अपितु पुस्तकों पर चर्चा भी करते हैं। इनके आलेख विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित होते रहे हैं।
    पुस्तक के लेखक बुद्ध प्रकाश ने कहा कि नालंदा की धरती पर इस पुस्तक का लोकार्पण मेरे लिए गौरव का विषय है। मैं इस ज्ञान की भूमि को नमन करता हूँ। इस पुस्तक के लेखन के पीछे पुस्तक-संस्कृति को बढ़ावा देने का उद्देश्य रहा है। इसमें एक सौ से अधिक पुस्तकों का एक समालोचनात्मक परिचय दिया गया है। आज जब किताबें पढ़ने की अभिरुचि कम होती जा रही है, तब किताबों पर चर्चा जरूरी हो जाता है। इस पुस्तक के लेखन का उद्देश्य आम लोगों को किताबों से जोड़कर पढ़ने की अभिरुचि विकसित करना रहा है। इसीलिए किसी भी तरह की शास्त्रीय जटिलता से बचते हुए बिल्कुल सहज एवं सरल तरीके से पुस्तकों का परिचय दिया गया है। सौभाग्य से इसमें नालंदा के एक लेखक की पाँच कृतियाँ शामिल हैं।   अध्यक्षता करते हुए शंखनाद अध्यक्ष इतिहासज्ञ एवं उपन्यासकार प्रोफेसर डा० लक्ष्मीकांत सिंह ने कहा कि मैं बुद्ध प्रकाश जी से विगत कुछ वर्षों से परिचित हूँ। मुझे यह सोचकर विस्मय होता है कि कोई व्यक्ति प्रशासनिक व्यस्तताओं के बावजूद इतनी किताबें पढ़ने का  समय कैसे निकाल लेता है। निश्चित रूप से इतने अध्ययनशील व्यक्ति के अध्ययन का निचोड़ पाठकवृंद के सम्मुख आना एक सुखद अनुभव है। बहुधा हमारे समक्ष पुस्तकों के चयन की समस्या उपस्थित हो जाती है। यह किताब मार्गदर्शक की भूमिका निभाती हैं, क्योंकि इसमें अलग अलग लेखकों की रचनाओं के बारे में जानकारी दी गई है। यह सही है कि इस पुस्तक में लेखक की अपनी पसंद की किताबों को ही जगह दी गयी है, लेकिन लेखन-शैली इतनी उम्दा है कि इसे पढ़ने में उपन्यास 
जैसा आनन्द मिलेगा।
    भाषाविद् एवं 'मगही' पत्रिका के संपादक धनंजय श्रोतिय ने कहा कि प्रत्येक पढ़े-लिखे व्यक्ति के लिए निरंतर पुस्तक पढ़ते रहना बहुत ज़रूरी है। पुस्तक पढ़ने के बहुत-सारे फायदे हैं। इससे एकाग्रता बढ़ती है, दिमाग सक्रिय होता है, तनाव कम होता है, ज्ञान बढ़ता है, याददाश्त बढ़ती है और अकेलापन दूर होता है। बुद्ध प्रकाश की इस पुस्तक को पढ़कर लोग निश्चय ही कुछ किताबों को पढ़ने और खरीदने के लिए प्रेरित होंगे। लोग इसलिए भी नहीं पढ़ते हैं क्योंकि उन्हें अच्छी-अच्छी पुस्तकों की जानकारी नहीं हो पाती है। बुद्ध प्रकाश जी ने इस पुस्तक के माध्यम से किताबों के वृहद् संसार से पाठकों को परिचित कराने का जो प्रयास किया है, वह सराहनीय है। भले ही, यह पुस्तक आम पाठकों को ध्यान में रखकर लिखी गयी है, लेकिन यह सुधी पाठकों के लिए भी उतनी ही उपयोगी है। पुस्तक का वृहद् पाठक-वर्ग द्वारा स्वागत किया जाना चाहिए।
    हिंदी के प्रोफेसर (डॉ.) शकील अहमद अंसारी ने कहा कि मोबाइल फोन और सोशल मीडिया के इस  दौर में किताबें पढ़ना निहायत ही ज़रूरी है। यदि  नयी पीढ़ी के युवा किताबें नहीं पढ़ेंगे, तो उन्हें आसानी से दिग्भ्रमित कर लिया जायेगा। यह  हम अच्छी तरह से जानते हैं कि सोशल मीडिया के द्वारा कितनी अधूरी और एकपक्षीय जानकारी परोसी जा रही है। ऐसे माहौल में अच्छी किताबें ही हमें भेड़चाल में चलने से रोक सकेंगी। बुद्ध प्रकाश जी ने इस पुस्तक के माध्यम से जिस पुस्तक-संस्कृति को बढ़ावा देने का प्रयास किया है, उसके लिए वे साधुवाद के पात्र हैं।
        प्रख्यात शायर और फारसी के विद्वान बेनाम गिलानी ने कहा कि आज का मनुष्य इतना व्यस्त हो गया है कि वह आलोचना की लम्बी-चौड़ी और भारी-भरकम किताबें नहीं पढ़ सकता है। यह ट्वेंटी-ट्वेंटी का युग है, जिसमें लोगों को चाय और काफी भी इंस्टैंट ही चाहिए। साहित्य भी इंस्टैंट चाहिए, आलोचना भी इंस्टैंट ही चाहिए। वह दौर अलग था , जब लोग आहिस्ता-आहिस्ता मोटे-मोटे उपन्यास पढ़ा करते थे। इस दृष्टि से बुद्ध प्रकाश जी की यह पुस्तक बहुत उपयोगी है। ऐसे में आप  बमुश्किल से पाँच मिनट मेंं एक किताब का परिचय पा सकते हैं। अपनी इसी ख़ूबी के कारण आप इस किताब को कहीं से भी पढ़ना शुरू कर सकते हैं। बुद्ध प्रकाश जी ने एक बड़े अभाव की पूर्त्ति की है। मुझे उम्मीद है कि उनसे प्रभावित होकर अन्य लेखक भी इस तरह साहित्यिक लेखन के लिए प्रेरित होंगे। 
इस दौरान शंखनाद के कोषाध्यक्ष भाई सरदार सिंह, साहित्यसेवी धीरज कुमार, साहित्यकार प्रिया रत्नम्, अरुण बिहारी शरण, महेंद्र कुमार विकल सहित कई प्रबुद्धजन उपस्थित थे।

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