मूर्ख दिवस पर विशेष ....!!

●एक अप्रैल: हास्य और व्यंग्य का महोत्सव मूर्ख दिवस
लेखक :- साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा, महासचिव शंखनाद साहित्यिक मंडली

1964 में आने वाली हिंदी की एकमात्र पिक्चर 'अप्रैल फूल' का बड़ा फेमस गाना है...'अप्रैल फूल बनाया तो उनको गुस्सा आया...तो मेरा क्या कसूर, जमाने का कसूर जिसने दस्तूर बनाया'। आज भी जब किसी दोस्त या परिवार वाले को फूल बनाया जाता है, तो इस गाने को गुनगुना दिया जाता है। यह एक ऐसा दिन है जब दोस्तों और परिवार वालों के साथ लोग मजाक करते हैं। एक-दूसरे को मजाक के अलावा चुटकुले भी सुनाते हैं। जब वो ऐसा करने में कामयाब हो जाते हैं तो 'अप्रैल फूल' चिल्लाते हैं। 
हर साल एक अप्रैल को ‘मूर्ख दिवस’ मनाया जाता है। यह परंपरा कब और कैसे शुरू हुई, इसे लेकर अलग-अलग धारणाएं प्रचलित हैं, लेकिन आमतौर पर माना जाता है कि अप्रैल फूल का चलन 16वीं सदी में फ्रांस में शुरू हुआ। इस दिन लोग एक-दूसरे के साथ मज़ाक करते हैं, प्रैंक खेलते हैं और हंसी-मजाक का वातावरण बनाते हैं। यह परंपरा सदियों पुरानी है। मूर्ख दिवस का सही अर्थ है– जीवन में हंसी को बनाए रखना और दूसरों के साथ आनंद बाँटना। कहा जाता है कि 1564 में फ्रांस के राजा चार्ल्स ने अपने देश में ग्रेगेरियन कैलेंडर लागू किया था, जिससे पहले नया साल एक अप्रैल को मनाया जाता था। जब कैलेंडर बदला गया और एक जनवरी को नववर्ष के रूप में मनाने का निर्णय लिया गया, तब भी कई लोग पुरानी परंपरा से चिपके रहे और एक अप्रैल को ही नये साल का उत्सव मनाते रहे। इस बदलाव को न अपनाने वालों का मजाक उड़ाया जाने लगा और उन्हें ‘अप्रैल फूल’ कहकर चिढ़ाया जाने लगा। धीरे-धीरे यह मजाक करने की परंपरा एक वार्षिक आयोजन में बदल गई, जिसे ‘मूर्ख दिवस’ के रूप में मनाया जाने लगा।
कुछ लोगों का मानना है कि अप्रैल फूल का संबंध बसंत के आगमन से भी है। प्रकृति इस मौसम में अनिश्चित रूप से बदलती है, कभी तेज धूप तो कभी अचानक बारिश। ऐसे में यह मौसम मानो खुद ही लोगों को मूर्ख बनाता है। कई विद्वान मानते हैं कि ‘मूर्ख दिवस’ की जड़ें पगान उत्सवों में भी छिपी हो सकती हैं, जहां मौसमी बदलावों के दौरान विभिन्न तरह के हास्यास्पद और अजीबोगरीब आयोजन किए जाते थे। यूरोप के कई देशों में ऐसे त्योहार प्रचलित थे, जहां लोग एक-दूसरे का मजाक उड़ाते और अजीब हरकतें करते थे।
इटली में एक प्राचीन परंपरा के अनुसार, एक अप्रैल को एक विशेष मनोरंजन उत्सव मनाया जाता था। उस दिन स्त्री-पुरुष सभी सामाजिक बंधनों से मुक्त होकर नाचते-गाते थे, जमकर शराब पीते थे और हुड़दंग मचाते थे। यह दिन पूरी तरह से मौज-मस्ती और उल्लास से भरा होता था। मध्यकालीन यूरोप में भी इस दिन को लेकर कई रोचक प्रथाएं देखी गई। स्कॉटलैंड में इसे ‘अप्रैल गोक’ कहा जाता था, जहां लोग एक-दूसरे को मूर्ख बनाने के लिए झूठी अफवाहें फैलाते थे और अजीबोगरीब हरकतें करते थे। यूनान में ‘अप्रैल फूल’ से जुड़ा एक दिलचस्प किस्सा प्रचलित है। कहा जाता है कि वहां एक व्यक्ति को अपनी बुद्धिमत्ता पर बहुत घमंड था और वह स्वयं को सबसे अधिक चतुर समझता था। उसके दोस्तों ने उसे सबक सिखाने के लिए यह अफवाह फैला दी कि एक निश्चित रात देवता पहाड़ की चोटी पर प्रकट होंगे और जो भी वहां होगा, उसे मनचाहा वरदान मिलेगा।
वह व्यक्ति उस अफवाह पर विश्वास कर बैठा और पूरी रात वहां इंतजार करता रहा, लेकिन जब कोई देवता नहीं आया तो वह निराश होकर लौटा। उसके दोस्त उसका मजाक उड़ाने लगे और कहा जाता है कि तभी से यूनान में अप्रैल फूल मनाने की परंपरा शुरू हो गई। अंग्रेजी परंपरा में भी अप्रैल फूल का जिक्र मिलता है। इंग्लैंड में इस दिन को लेकर कई अनूठी कहानियां प्रचलित हैं। कहा जाता है कि 18वीं शताब्दी में यह प्रथा तेजी से फैली और आम लोगों में लोकप्रिय हो गई। इस दिन लोग एक-दूसरे को झूठे संदेश भेजते और फर्जी खबरें फैलाते थे। धीरे-धीरे यह परंपरा अन्य देशों में भी फैल गई और हर जगह इसे अपने अनूठे अंदाज में मनाया जाने लगा। 19वीं और 20वीं शताब्दी में यह परंपरा और भी विकसित हो गई। उस दौरान समाचार पत्र, रेडियो और बाद में टेलीविजन ने भी इस परंपरा को बढ़ावा दिया। समय के साथ, अप्रैल फूल का जश्न दुनिया भर में अलग-अलग रूपों में मनाया जाने लगा। भारत में भी यह परंपरा धीरे-धीरे लोकप्रिय होती गई। पहले यह परंपरा सिर्फ अंग्रेजों और शहरी वर्ग तक सीमित थी, लेकिन अब छोटे शहरों और गांवों तक भी इसका प्रभाव दिखने लगा है। 
‘मूर्ख दिवस’ का एक उद्देश्य केवल हंसी-मजाक और मनोरंजन ही नहीं बल्कि यह लोगों को यह भी सिखाता है कि जीवन को हल्के-फुल्के ढंग से लेना चाहिए और हर परिस्थिति में मुस्कान बनाए रखनी चाहिए।
एक अप्रैल को मनाए जाने वाले इस दिन का मुख्य उद्देश्य मनोरंजन, हास्य और आनंद को बढ़ावा देना है। यह एक ऐसा अवसर है, जब लोग दैनिक जीवन की चिंताओं से दूर होकर हंसी-मजाक के साथ समय बिता सकते हैं। इसका कोई राजनीतिक या धार्मिक आधार नहीं है, इसलिए इसे बिना किसी विवाद के हर कोई मना सकता है। इस प्रकार मूर्ख दिवस एक ऐसा अवसर है, जो हमें यह याद दिलाता है कि जीवन में हंसी और हास्य का विशेष महत्व है। यह केवल एक प्रैंक करने का दिन नहीं है, बल्कि हमें अपनी चतुराई, सतर्कता और खुशहाल जीवन जीने की प्रेरणा भी देता है।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

ककड़िया विद्यालय में हर्षोल्लास से मनाया जनजातीय गौरव दिवस, बिरसा मुंडा के बलिदान को किया याद...!!

61 वर्षीय दस्यु सुंदरी कुसुमा नाइन का निधन, मानववाद की पैरोकार थी ...!!

ककड़िया मध्य विद्यालय की ओर से होली मिलन समारोह का आयोजन...!!