समरस समाज के पुरोधा थे ज्योतिबा फुले, 198वीं जयंती पर किया गया याद...!!
●ज्योतिबा फुले ने महिलाओं के लिए अपना पूरा जीवन अर्पण कर दिया
●ज्योतिबा फुले का जीवन और विचार आज भी लोगों के प्रेरणा का स्रोत
●जयंती पर याद किए गए महात्मा ज्योतिबा फुले
सोहसराय, बबुरबन्ना 11 अप्रैल 2025 : 19वीं सदी के महान भारतीय विचारक और समाज सुधारक महात्मा ज्योतिबा फुले की 198 वीं जयंती पर शंखनाद साहित्यिक मंडली द्वारा साहित्यिक भूमि बबुरबन्ना, बिहारी निवास में विचार गोष्टी का आयोजन किया किया गया। समारोह ज्योतिबा फुले के तस्वीर पर श्रद्धासुमन अर्पित एवं दीप प्रज्वलित कर शुभारंभ किया गया। समारोह की अध्यक्षता शंखनाद के अध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह ने जबकि संचालन मीडिया प्रभारी शायर नवनीत कृष्ण ने किया।
इस अवसर पर अध्यक्षता करते हुए शंखनाद के अध्यक्ष साहित्यकार प्रोफेसर डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह ने कहा कि महान समाज सुधारक विचारक समाज सेवी क्रांतिकारी कार्यकर्ता महात्मा ज्योतिबा फुले का जन्म महाराष्ट्र के पुणे में हुआ था। ज्योतिबा फुले जीवन भर भारतीय समाज की सेवा में जुटे रहे। उन्होंने वंचितों शोषितों व महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए अपना पूरा जीवन अर्पण कर दिया।
मौके पर शंखनाद के महासचिव साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा ने महान क्रांतिकारी समाज सुधारक और प्रखर भारतीय विचारक ज्योतिबा फुले की जयंती पर उन्हें नमन् करते हुए कहा कि ज्योतिबा फुले समरस समाज के पुरोधा थे। उन्होंने गरीबों, महिलाओं, दलितों एवं पिछड़े वर्ग के उत्थान तथा सामाजिक जड़ताओं व कुरीतियों को दूर करने के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया। उनका पूरा नाम ज्योतिराव गोविंदराव फुले था। उन्हें ज्योतिबा फुलेया महात्मा फुले के नाम से जाना जाता था। उनका परिवार कई पीढ़ी पहले सतारा से पुणे आकर फूलों के गजरे आदि बनाने का काम करने लगा था। माली के काम में लगे ये लोग फुले के नाम से जाने जाते थे। ज्योतिबा फुले का जीवन और उनके विचार व महान कार्य आज भी लोगों के प्रेरणा का स्त्रोत बने हुए है।
शंखनाद के सक्रिय सदस्य प्रोफेसर डॉ. शकील अहमद संसारी ने ज्योतिबा फुले के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि वह अपनी पत्नी सावित्री बाई फुले के साथ मिलकर महिलाओं को शिक्षा का अधिकार दिलाने के लिए लड़े, वह और उनकी पत्नी भारत में महिला शिक्षा के अग्रदूत थे। फुले महिलाओं को स्त्री-पुरूष भेदभाव से बचाना चाहते थे। इनके लिए स्त्रियों को शिक्षित करना बेहद आवश्यक था। उन्होंने अपनी पत्नी में पढ़ाई के प्रति दिलचस्पी देखकर उन्हें पढाने का मन बनाया और प्रोत्साहित किया। फुले भारत के अग्रणी समाज सुधारक, शिक्षक, विचारक, जाति-विरोधी और क्रांतिकारी लेखक थे।
संचालन करते हुए शंखनाद के मीडिया प्रभारी नवनीत कृष्ण ने ज्योतिबा फुले को श्रद्धासुमन अर्पित करते हुए कहा कि ज्योतिराव फुले ने दलितों और वंचितों को न्याय दिलाने के लिए सत्य शोधक समाज की स्थापना की थी, उनकी पत्नी सावित्री बाई ने पुणे में टीचर की ट्रेनिंग लेकर साल 1848 में पुणे में लड़कियों के लिए देश का पहला महिला स्कूल खोला। इस स्कूल में उनकी पत्नी सावित्री बाई पहली शिक्षिका बनी। सावित्री बाई फुले को ही भारत की पहली शिक्षिका होने का श्रेय जाता है। समाज सुधार के इन अथक प्रयासों के चलते 1888 में मुंबई की एक विशाल सभा में उन्हें महात्मा की उपाधि दी गई।
मौके पर योग गुरु रामजी प्रसाद यादव ने बताया कि महात्मा ज्योतिबा फुले एक अच्छे समाज सुधारक व महिला शिक्षा को बढ़ावा देने वाले और एक गरीब परिवार में जन्मे सच्चे देशभक्त थे जिन्होंने बहुत सी कठिनाइयों का सामना करते हुए समाज में फैली कुरीतियों का डटकर विरोध किया। व अपने गांव में पहली महिला पाठशाला गांव में स्थापित की विधवा पुनर्विवाह को उचित ठहराया।
शंखनाद के कोषाध्यक्ष भाई सरदार वीर सिंह ने क्रांतिकारी पुरुष ज्योतिबा फुले के जीवन परिचय पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए उनके कार्यो का वर्णन किया। ज्योतिराव फुले के बाद 'महात्मा' की उपाधि पाने वाले अब तक दूसरे जननेता महात्मा गांधी ही हैं।
इस मौके पर सविता बिहारी, अनिता देवी, राजदेव पासवान, सुरेश प्रसाद, विजय कुमार, मनुशेखर कुमार गुप्ता, गोपाल प्रसाद, मंटू महतो, सुनील महतो, श्रवण महतो, परमेश्वर महतो सहित उपस्थित लोगों ने महात्मा फुले द्वारा बताए गए मानव कल्याण के कार्यो को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया। अंत में धन्यवाद ज्ञापन समाजसेवी धीरज कुमार ने किया।
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