लव-कुश मंच के सम्मेलन में सभी समुदाय के जुटे हजारों प्रतिनिधि....!!
पटना, 28 अप्रैल 2025 : 27 अप्रैल दिन रविवार को पटना के दरोगा राय पथ स्थित सरदार पटेल भवन में सम्पूर्ण क्रांति मोर्चा (जे.पी. सेनानी) एवं भारतीय लव-कुश मंच का संयुक्त सम्मेलन हुआ। जिसकी अध्यक्षता उच्च न्यायालय के वरीय अधिवक्ता परमेश्वर मेहता तथा संचालन संपूर्ण क्रांति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ब्रह्मदेव पटेल ने की।
मौके पर मंच संचालन करते हुए मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष ब्रह्मदेव पटेल ने कहा कि राज्य सरकार जे.पी. सेनानी को 25000 रुपया पेंशन और केंद्र सरकार 50000 रुपया पेंशन हर महीने में दे। उनके परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी दिया जाए। दूसरे प्रस्ताव में कहा गया कि अनाज का उचित मूल्य दिया जाए। एम.एस.पी (न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारण) का कानून बनाया जाए। बेरोजगारों को काम दिया जाए, भ्रष्टाचार पर रोक लगाया लगाओ, महंगाई कम करो, बिहार में भूमि सर्वे में व्यापक भ्रष्टाचार पर रोक लगे, 15 वर्ष के उम्र को वोट देने का अधिकार दिया जाए, चुनाव का पूरा खर्च चुनाव आयोग वहन करें, जजों की बहाली परीक्षा से किया जाए तथा कॉलेजियम सिस्टम बंद हो, पूरे देश में शराब बंदी लागू किया जाए,केवल कुछ राज्य में नहीं। शिक्षा को रोजगारोन्मुखी बनाया जाए, बी.ए. तक शिक्षा अनिवार्य और नि:शुल्क किया जाए। पड़ोसी देशों जैसे श्रीलंका, वर्मा, नेपाल, पाकिस्तान, अफ़गानिस्तान, चीन से बात-चीत कर समस्या को हल किया जाए। तभी भारत दुनिया का विकसित देश बन सकता है। उन्होंने कहा कि कुर्मी-कोईरी के साथ सभी जातियों में अन्तर्जातीय विवाह व्यापक तौर पर किया जाए। भारतीय सेना में लव-कुश रेजीमेंट का गठन हो। दोनों जाति के आपस के मतभेद बातचीत से हल किया जाए। उन्होंने कहा- 5 जून 2025 को संपूर्ण क्रांति दिवस के अवसर पर मुख्यमंत्री का घेराव होगा और दिल्ली में 25 जून 2025 को ही प्रधानमंत्री का घेराव लाखों की संख्या में किया जाएगा।
मौके पर लवकुश मंच के नालंदा जिलाध्यक्ष प्रोफेसर डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह ने कहा भारतीय लवकुश मंच बिहार, एक सामाजिक संस्था है, जिसमें तमाम कामगार जातियां शामिल हैं। कामगार जाति वह समूह है, जो परम्परा रूप में कृषि और उससे संबंधित कुटीर उद्योगों से जुड़ी हुई थी। आजादी से पहले बिहार और उत्तर प्रदेश में त्रिवेणी संघ हुआ करता था, जिसमें मुख्य रूप से तीन जाति शामिल थी, कोईरी, कुर्मी और अहीर। ये कृषि और पशुपालन से जुड़ी मार्शल कौम थी। इनके साथ शिल्पकार बिरादरी के शिल्पी लोग भी साथ में थे, जो परम्परागत रूप से कृषि क्षेत्र से जुड़े थे। इनमें कुम्हार, बढ़ई, लोहार, नाई, धोबी, माली, बिन्द,मल्लाह जैसी जाति सम्मिलित थीं। ब्रिटिश शासन में जब लोकतांत्रिक व्यवस्था की नींव रखी गई तो इन जातियों को अंतरिम सरकार में प्रतिनिधित्व दिया गया। लेकिन आजाद भारत में काँग्रेस से इन्हें एक सिरे से दरकिनार कर दिया गया। काँग्रेस ने जो बिसात सजाया, उसमें मुख्य रूप से सवर्ण तथा आंशिक रूप में मुस्लिम, दलित और आदिवासी समुदाय को प्रतिनिधित्व दिया गया। ओबीसी, जिसकी आबादी 44% थी, को एकतरफा सत्ता से बाहर फेंक दिया गया। नतीजतन सातवें दशक में काँग्रेस के खिलाफ समुचे देश में गोलबंदी शुरू हो गई। उसका असर बिहार में भी हुआ और सोसलिस्ट सरकार बनी। लेकिन, यह सफलता क्षणिक थी। कुछ दिन के बाद काँग्रेस पुनः सत्ता में आ गई। लेकिन 1990 में लालू प्रसाद के नेतृत्व में सरकार बनी तो त्रिवेणी संघ का परचम लहराया। लालू प्रसाद ने तमाम कामगार जातियों को मुख्यधारा में लाने की कोशिश की। लेकिन जब नीतीश कुमार सरकार में आए तो त्रिवेणी संघ के विचारधारा को पूर्ण रूप से नष्ट कर दिया। वर्तमान समय में सत्ता पर पूर्णरूपेण सवर्ण क्षत्रपों और पूँजीपतियों का कब्जा हो गया है। किसान या कामगार समूह को हासिये पर ढ़केल दिया गया है। रोजगार के अवसर नगन्य है। भारत में सबसे अधिक रोजगार सेना और रेलवे से उपलब्ध होता था, वह पिछले आठ साल से बंद है। कारपोरेटियों के दबंग में छोटे उद्योगों का खात्मा कर दिया गया है। महँगाई चरम सीमा पर पहुंच गई है। कृषकों को अपने उत्पाद का समुचित मूल्य नहीं मिल रहा है। पिछले कई वर्षों से किसान एम एस पी की माँग को लेकर आन्दोलनरत हैं, लेकिन सरकार उनकी बात नहीं सुन रही है। इससे स्पष्ट है कि वर्तमान सरकार अलोकतांत्रिक तरीकों और पूँजीपतियों द्वारा संचालित है। आज जनसमस्याओं को के प्रति सरकार का रुख नकारात्मक हो चुका है। इसलिए, संघर्ष मजबूरी बन गया है और सड़क से लेकर संसद तक की लड़ाई के लिए लवकुश मंच हुँकार भरने की तैयारी कर लिया है। 27 फीसदी ओबीसी, 36 फीसदी अति पिछड़े को संगठित होंना,आज की जरुरत है।
अतिपिछडा पदाधिकारी कर्मचारी कल्याण समिति के प्रदेश महासचिव सुबोध कुमार सिंह ने कहा कि हमें भी वर्तमान समय में संगठित होकर सामाजिक शक्ति का निर्माण करना होगा। हमारे लिए यह बिल्कुल संभव है, क्योंकि हमारी जनसंख्या सर्वाधिक है। बिहार में 36 फीसदी अति पिछड़े और 27 फीसदी ओबीसी है और पूरे भारत में भी हमारी जनसंख्या इसी के अनुपात में है। राजनीति में जनसंख्या का खास महत्व है और यह हमारा सौभाग्य है कि जन-बल हमारे पास है। बस, हमें उनमें एकता की भावना तथा इच्छाशक्ति उत्पन्न कर संगठित करना है। उन्होंने कहा एकता के मार्ग में अब तक जो समस्या आती रही है, वह है सैकड़ों जातियों में विभक्त रहना। जाति व्यवस्था को मिटाने का प्रयास सैकड़ों वर्षों से चलता आ रहा है पर वह मिट नहीं पाई है। अब, हमारी लड़ाई सामाजिक परिवर्तन और जातिवाद को खत्म करने की है।
समाजसेवी राकेश बिहारी शर्मा ने कहा कि वर्तमान समय सामूहिक प्रयास का समय है। आज भी हम शिक्षा, संपत्ति, सत्ता और यहां तक कि सम्मान से भी बहुत हद तक वंचित हैं। इस स्थिति को आपस में मिलकर बदलना होगा। इसके लिए पिछड़ी और मध्यवर्ती पिछड़ी जातियों के उभार में सामूहिक प्रयास (राजनीति) का सबसे बड़ा योगदान है। लिहाजा, हम निम्न वर्ग के जातियों को अब व्यक्तिगत प्रयास के साथ-साथ सामूहिक प्रयास पर जोर लगाना समय की मांग है।
मौके पर अध्यक्षता करते हुए उच्च न्यायालय के वरीय अधिवक्ता परमेश्वर मेहता ने कहा कि आज उच्च वर्ग का सबसे तीखा हमला कमजोर व निम्न वर्ग के महिलाओं पर हो रहा है। इसलिए जरूरत है कि पिछड़ा और अति पिछड़ा समुदाय एक साथ मिलकर चलें और मजबूती के साथ एकता बनाएं। उन्होंने कहा- अन्याय, अत्याचार और सांप्रदायिक उन्माद से पीड़ित लोगों को न्याय दिलाने के लिए शोषितों के बीच व्यापक एकता स्थापित करने का संकल्प लिया गया तथा उनके अधिकारों के लिए संघर्ष को नई गति देने का आह्वान किया गया। सम्मेलन में 10 सूत्री प्रस्ताव सर्व समिति से पास किया गया।
डॉ. सत्येंद्र प्रसाद सिंह ने कहा कि समाज के लोगों ने शैक्षणिक, सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक विकास का संकल्प लिया। उन्होंने कहा कि पिछड़ी और अत्यंत पिछड़ी जातियों को विकास का जितना लाभ मिलना चाहिए था, उतना नहीं मिला।
मौके पर सम्राट अशोक क्लब के वरीय संस्थापक इंजीनियर हेमन्त कुशवाहा ने सभी कामगार श्रमिक जातियों को उनके अधिकारों और हितों की रक्षा के लिए एकजुट होने का आह्वान किया। क्योंकि अपनी आर्थिक और सामाजिक स्थिति को बेहतर बनाने के लिए यह एकजुटता बहुत जरूरी।
सम्मेलन में गोपाल शरण नालंद, भूपेंद्र कुमार, अमरेंद्र कुमार, अखिलेश कुमार, दिलीप कुमार सिंह, भाई सरदार वीर सिंह, धीरज कुमार सहित दर्जनों लोगों ने सम्मेलन में अपना विचार रखा।
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