भारत की युगप्रवर्तक महारानी अहिल्याबाई होल्कर की 300वीं जयंती पर विशेष...!!

●लोक कल्याण की प्रणेता थी लोकमाता अहिल्याबाई होल्कर
● अहिल्याबाई का शासनकाल स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है 
लेखक :- साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा, महासचिव शंखनाद साहित्यिक मंडली
  
किसी भी देश का विकास शासन तंत्र की लोककल्याणकारी नीतियों और उसकी सुशासन व्यवस्था पर निर्भर करता है। भारत का इतिहास ऐसे शासकों की गाथाओं से भरा पड़ा है जिन्होंने अपने देश और अपनी प्रजा के विकास व उत्थान के लिए बहुत कुछ किया। होल्कर राज-परिवार में ऐसा ही एक नाम रहा है पुण्यश्लोक महारानी अहिल्याबाई होल्कर का। उनकी कल्याणकारी नीतियां आज भी सरकारों को प्रेरित करती हैं। यह वर्ष उनके जन्म का त्रिशताब्दी वर्ष है। जबकि पश्चिमी देशों में धर्म के नाम पर भीषण अत्याचार हो रहे थे। तब भारत में महारानी अहिल्याबाई होल्कर ने लोक कल्याणकारी धर्मराज्य की स्थापना की थी। भारत में धर्म एक व्यापक कल्पना है, जो आर्थिक एवं नैतिक उन्नति का मार्ग प्रशस्त करता है। अहिल्याबाई ने अपने ससुर की मृत्यु के पश्चात 1767 में मालवा राज्य का शासन संभाला। नर्मदा के प्रति भक्ति, व्यावसायिक एवं सामरिकता से उन्होंने अपनी राजधानी नर्मदा के तट पर महेश्वर को बनाया। 28 वर्ष उन्होंने अपनी मृत्यु पर्यन्त यह शासन सत्ता संभाली। किसानों के विकास की योजनाएं, भूमिहीन किसानों को भूमि प्रदान करना, जनजातीय विकास, अपने शासन को अपराध मुक्त करना, रोजगारपरक अर्थनीति, महिला सशक्तिकरण उसके लिए महेश्वरी साड़ी का निर्माण एवं सैनिक कल्याण उनके शासन की विशेषताएँ थीं। 500 महिलाओं की सैनिक टुकड़ी का निर्माण कर एक महिला फौज भी उन्होंने तैयार की थी। महेश्वर साड़ी आज भी उनकी महिला केंद्रित उद्योग नीति को दर्शाती है। प्रजा के प्रति वात्सल्य भाव के कारण उन्हें जनता ने लोकमाता की उपाधि प्रदान की थी। अपने राज्य की आर्थिक उन्नति के साथ-साथ भारत के सांस्कृतिक उत्थान में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका है। सभी धाम, सभी ज्योतिर्लिंग, समस्त शक्ति पीठ सहित असंख्य मंदिरों का निर्माण, नदियों के घाटों का निर्माण, यात्रियों के रुकने के लिए धर्मशालाओं की व्यवस्था यह उनके द्वारा होने वाले अतुलनीय कार्यों की श्रृंखला है। हिमालय में स्थित बद्रीनाथ, केदारनाथ, काशी स्थित भगवान श्री विश्वनाथ, सोमनाथ, द्वारिका, पुरी जगन्नाथ, रामेश्वरम, सभी के पुनर्निर्माण में उनकी भूमिका है। देशभर में उनके द्वारा कराए गए इन कार्यों की संख्या लगभग 12500 से अधिक है। इसका भी वैशिष्ट्य है कि यह कार्य उनको प्राप्त स्वयं की सम्पत्ति से कराया, राजकोष से नहीं।

भारतीय इतिहास की कालजयी गाथाओं में अहिल्याबाई होल्कर : 

 भारतीय इतिहास की कालजयी गाथाओं में जो एक नाम नारी नेतृत्व, न्यायप्रिय शासन और लोककल्याण की अद्वितीय मिसाल बनकर चमकता है, वो है रानी अहिल्याबाई होल्कर जिन्होंने अपने अदम्य साहस, दूरदर्शिता और परोपकारी सोच से समाज और राष्ट्र को नई दिशा दी। वे केवल एक शासिका नहीं, बल्कि एक युगप्रवर्तक थीं, जिनकी दृष्टि, सेवा भावना और निर्णय क्षमता आज भी हमें प्रेरणा देती हैं। आज हम उनकी 300वीं जयंती मना रहे हैं, जिन्होंने न केवल मालवा राज्य को समृद्ध और सुदृढ़ बनाया, बल्कि समूचे भारत में धर्म, संस्कृति और जनकल्याण की अमिट छाप छोड़ी। महान युगप्रवर्तक रानी अहिल्याबाई का  अदम्य साहस, जीवन, मूल्यों, अद्वितीय नेतृत्व, न्यायप्रिय शासन, जनकल्याणकारी कार्यों और समाज कल्याण के प्रति उनके योगदान को आत्मसात व श्रद्धांजलि देने का एक ऐतिहासिक अवसर है।

अहिल्याबाई का जन्म, और सामाजिकता :

एक साधारण बालिका से महान शासिका तक का सफर 31 मई 1725 को महाराष्ट्र के चौंडी गांव में जन्मी अहिल्याबाई का जीवन संघर्षों से प्रारंभ हुआ, लेकिन उनका धैर्य, विवेक और करुणा उन्हें अपराजेय बना गए। विवाह के बाद जब पति मालवा के शासक खंडेराव होल्कर और ससुर मल्हारराव होल्कर दोनों का निधन हो गया, तब उन्होंने 1767 में मालवा राज्य की बागडोर अपने हाथों में ली। पति और ससुर के निधन के बाद, जब राज्य संकट में था, अहिल्याबाई ने न केवल गालवा राज्य की बागडोर संभाली, बल्कि अपने पराक्रम व कुशलता से उसे एक उन्नत, सुरक्षित और खुशहाल राज्य में परिवर्तित कर दिया। कठिन परिस्थितियों में नेतृत्व संभालते हुए उन्होंने शासन को सुशासन में बदल दिया। 'अहिल्याबाई होल्कर का जीवन केवल इतिहास के पन्नों में दर्ज कहानी नहीं, बल्कि वर्तमान और भविष्य के लिए एक अमूल्य प्रेरणा है।'

अहिल्याबाई का सुशासन का स्वर्णिम युग :

अहिल्याबाई का शासनकाल न्याय, पारदर्शिता और प्रजा-हित के लिए इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है। वे प्रजा को परिवार की तरह मानती थीं। उनके शासन में कानून-व्यवस्था को सुदृढ़ किया गया, कृषि, व्यापार और शिक्षा को प्रोत्साहन मिला, और सभी वर्गों के कल्याण को प्राथमिकता दी गई। उनका विश्वास थाः 'राजा को अपनी प्रजा के सुख-दुख को समझकर निर्णय लेना चाहिए।' यही कारण था कि प्रजा उन्हें 'माँ अहिल्या' कहकर पुकारती थी। उनके निर्णयों में न केवल राजनैतिक बुद्धिमत्ता दिखती थी, बल्कि मानवीय संवेदना भी स्पष्ट रूप से झलकती थी। धार्मिक एवं सांस्कृतिक पुनजांगरण कला, संस्कृति और धर्म के पुनरुद्धार की वाहिका अहिल्याबाई का भारत के निर्माण में अनेक योगदान हैं। वाराणसी का काशी विश्वनाथ मंदिर, गुजरात का सोमनाथ मंदिर, नासिक का त्र्यंबकेश्वर मंदिर, सभी का जीर्णोद्धार अहिल्याबाई ने ही करवाया। देशभर में धर्मशालाएं, कुएं, घाट, और विश्राम स्थल बनवाए जो आज भी तीर्थयात्रियों और समाज के लिए जन उपयोगी हैं।

महिला सशक्तिकरण की अग्रदूत अहिल्याबाई :

आज जब हम नारी सशक्तिकरण की बात करते हैं, तो अहिल्याबाई का नाम सबसे पहले आना चाहिए। उन्होंने महिलाओं को शिक्षा, सुरक्षा और सम्मान देने की दिशा में उल्लेखनीय कार्य किए। अहिल्याबाई ने समाज में महिलाओं के अधिकारों और शिक्षा के महत्व को समझा और उन्हें आत्मनिर्भर बनाने के लिए कार्य किया। एक विधवा होकर भी उन्होंने राजकाज को न केवल संभाला, बल्कि उसे उन्नति के पथ पर अग्रसर किया। वे उन विरली शासकों में थीं जिन्होंने स्त्रियों के हित में ठोस नीति बनाई और उसे लागू भी किया। लोककल्याण और सुशासन का आदर्श आज के भारत के लिए प्रेरणा अहिल्याबाई का शासन आज के 'सुशासन' का एक आदर्श मॉडल है। उनकी नीतियाँ और प्रशासनिक दृष्टिकोण आज भी भारत के लिए प्रेरणादायक हैं। उन्होंने जनसुनवाई, न्यायपालिका और सार्वजनिक निर्माण को प्राथमिकता दी। उनका शासन काल सामाजिक समरसता, धार्मिक सहिष्णुता और प्रशासनिक कुशलता का उत्कृष्ट उदाहरण रहा।

अहिल्याबाई होल्कर और आज की पीढ़ी के लिए संदेश :

अहिल्याबाई होल्कर का जीवन केवल इतिहास का एक अध्याय नहीं, बल्कि एक प्रकाशस्तंभ है, जो हमें न्याय, करुणा और नेतृत्व के गुण सिखाता है। अहिल्याबाई का जीवन हमें सिखाता है कि न्याय, करुणा, और नेतृत्व के बल पर न केवल एक राज्य, बल्कि पूरे समाज को बदलने की क्षमता होती है। उनकी दूरदर्शिता और कार्य हमें यह संदेश देते हैं कि एक व्यक्ति का संकल्प और कर्तव्यनिष्ठा पूरे समाज और राष्ट्र को बदल सकती है। उनकी 300वीं जयंती पर हम सभी को उनके मूल्यों को आत्मसात कर, समाज में सकारात्मक बदलाव लाने का संकल्प लेना चाहिए। अहिल्याबाई का जीवन केवल इतिहास की एक कहानी नहीं, बल्कि आज के समय की आवश्यकता है। जब नेतृत्व में नैतिकता और जनहित की भावना खोती जा रही है, तब अहिल्याबाई की कार्यशैली हमें याद दिलाती है कि सच्चे नेता वे होते हैं जो सेवा को धर्म मानते हैं। उनकी 300वीं जयंती पर हमारा कर्तव्य है कि हम उनके जीवन-मूल्यों को अपनाएं- सत्य, सेवा, न्याय और करुणा। यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी

अहिल्याबाई होल्कर की विरासत आज भी जीवंत:

आज जब हम बेहतर शासन, महिला सशक्तिकरण और सांस्कृतिक संरक्षण की बात करते हैं, तब रानी अहिल्याबाई होल्कर का जीवन हमें एक जीवंत उदाहरण प्रस्तुत करता है। वह कहती हैं कि सच्चे नेतृत्व में सत्ता नहीं, सेवा होती है। उनकी 300वीं जयंती पर हमें उनके आदर्शों को अपनाकर समाज और राष्ट्र के पुनर्निर्माण में अपनी भूमिका निभानी चाहिए। अहिल्याबाई होल्कर की विरासत आज भी जीवंत है, और उनकी शिक्षाएँ भारत को एक न्यायपूर्ण और सशक्त राष्ट्र बनाने की प्रेरणा देती रहेंगी। 'न्याय, करुणा और सुशासन की प्रतीक रानी अहिल्याबाई भारत के लिए केवल एक शासिका नहीं, बल्कि एक आदर्श हैं, जिनकी नीतियां आज भी प्रकाशपुंज बनकर मार्गदर्शन करती हैं।'

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