पक्षियों की कई दुर्लभ प्रजातियां लुप्त हो गई....!!

पक्षियों की कई दुर्लभ प्रजातियां लुप्त हो गई
●भारत में पक्षियों के लगभग 2100 प्रकार के पक्षी पाए जाते हैं
●भारतीयों में जीवों की सुरक्षा और संरक्षण का भाव भारतीय संस्कृति
●पक्षियों की सुरक्षा और संरक्षण के कानून नाकाम  
●देश के कई प्रवासी पक्षी लुप्त होने के कगार पर 
●पक्षियों का प्राकृतिक आवास उजड़ता जा रहा है

लेखक :- साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा, महासचिव शंखनाद साहित्यिक मंडली

दुनिया में वन्य और पालतू प्राणियों की जान बचाना एक बड़ी चुनौती बन गई है। वन्य प्राणियों पर बढ़ते खतरों की वजह से उसका असर जैव-विविधता पर साफ दिखाई पड़ने लगा है। पक्षियों की सुरक्षा और उनके संरक्षण के लिए बना कानून भी उनकी हिफाजत करने में नाकाम साबित हुआ है।
यही वजह है कई प्रवासी पक्षी प्रजातियों पर लुप्त होने का खतरा लगातार मंडराता रहता है। 2020-21 में देश में कोविड-19 (कोरोना) की दहशत से लोग परेशान थे, लेकिन प्रवासी मेहमान (पक्षी) देश के कई अभ्यारण्यों और तालाबों में बेखौफ प्रवास के लिए पहुंच रहे थे। यह पहली दफा था जब प्रवासी पक्षियों के लिए हवा और हरीतिमा सबसे अनुकूल मिली। लेकिन इस अनुकूलता का नाजायज फायदा प्रवासी पक्षियों के दुश्मन शिकारियों ने उठाया। लॉकडाउन (पूर्ण बंदी और आंशिक बंदी) के बावजूद प्रवासी पक्षियों का शिकार और व्यापार जारी रहा। सैकड़ों ग्रीष्मकालीन प्रवासी पक्षी लौट कर अपने घर नहीं जा सके। गौरतलब है कि पक्षियों का शिकार होने की वजह से पिछले 35 सालों में पक्षियों की दुर्लभ 23 प्रजातियां लुप्त हो गई हैं जबकि सौ साल में इसके पहले औसतन एक प्रजाति लुप्त होती थी। कुछ खास तरह के भारतीय पक्षियों का शिकार पिछले 35 सालों में काफी तेज हुआ है। प्रवासी पक्षियों में कॉमन कूट, ब्लैक बिंग्ड स्टिल्ट, नदन फावडे, रूडी शेल्डक, लेसर व्हिस्लिंगडक, वाइड एवोसेट और कैस्पियन मूल, जो भारत में हर साल प्रवास के लिए आते हैं, का शिकार होने की खबरें भी आती रही हैं। इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) के अनुसार शिकार और पारिस्थितिक प्रणाली के कारण देश में निवास करने वाली 180 पक्षी प्रजातियां लुप्त होने के कगार पर हैं, या खतरे में हैं। प्रवासी और देशी पक्षियों के संरक्षण के लिए और उन्हें स्वतंत्रता देने के लिए कानून बनाए गए हैं, लेकिन उन कानूनों का भ्रष्टाचार की वजह से कड़ाई से पालन नहीं हो पा रहा है।
प्रवासी पक्षी अपनी लंबी यात्रा से विभिन्न संस्कृतियों और परिवेशों को जोड़ने का कार्य करते हैं। ये पक्षी रेगिस्तान, समुद्र और पहाड़ों को पार करके एक देश से दूसरे देश का सफर करते हैं। पक्षियों की ज्ञात प्रजातियों में 19 फीसद पक्षी नियमित रूप से प्रवास करते हैं। प्रवासी पक्षी जैव-विविधता के हिस्से हैं। इनका संरक्षण निश्चित नहीं किया गया तो, कुछ सालों में बचे प्रवासी और देशी पक्षी हमेशा के लिए लुप्त हो जाएंगे। विश्व प्रसिद्ध सांभर झील हो या गिरिडीह (झारखंड) और भरतपुर (राजस्थान) का प्रसिद्ध केवलानंद अभ्यारण्य-इन जगहों पर पहले से बहुत कम प्रवासी पक्षी अब आते हैं। डुंगरपुर, बांसवाड़ा और उदयपुर में पहले से ज्यादा प्रवासी पक्षी आते हैं। इसी तरह राजस्थान के छोटे से गांव मेनार में ग्रामीण पर्यावरण संरक्षण की एक नई इबारत लिखने लगे हैं। ऐसी ही जीव रक्षा की भावना देश के दूसरे हिस्सों में में हो जाए तो पक्षियों की सुरक्षा और संरक्षण की चिंता ही खत्म हो जाएगी। भारत में पक्षियों की 1200 से ज्यादा प्रजातियों तथा उपप्रजातियों के लगभग 2100 प्रकार के पक्षी पाए जाते हैं। इनमें से लगभग 350 प्रजातियां प्रवासी हैं, जो देश के अलग-अलग क्षेत्रों में शीत और ग्रीष्म ऋतु में आते हैं। कुछ प्रजातियां जैसे पाइड क्रेस्टेड कक्कु (चातक) भारत में बरसात के समय प्रवास पर आते हैं। स्थानीय स्तर के प्रवासी पक्षी भी बड़ी संख्या में देश के एक कोने से दूसरे कोने का सफर कर प्रवासी बनते हैं। बिहार में 35-40 फीसद प्रजातियां प्रवासी पक्षियों की हैं। जानकारी के मुताबिक यूं तो देश में जहां भी प्रवासी पक्षी प्रवास करते हैं, वहां उनका शिकार आम बात है लेकिन कुछ क्षेत्रों में प्रवासियों का शिकार तेजी से हो रहा है। जिन अभ्यारण्यों में प्रवासियों का शिकार सबसे ज्यादा हो रहा है, उनमें भरतपुर के केवलानंद के क्षेत्र के अलावा बिहार स्थित राष्ट्रीय राजमार्ग स्थित नालंदा, पावापुरी का पद्म सरोवर, बिहपुर (फतुहा) बेगूसराय, कुशेश्वरस्थान, पटना सिटी जैसे इलाके शामिल हैं। गौरतलब है कि भारत में मांसाहार जैसे-जैसे तेजी से बढ़ रहा है जो पक्षियों के ज्यादा शिकार का सबब बन गया है। भारतीयों में जीवों की सुरक्षा और संरक्षण का जो भाव कभी हुआ करता था, वह लगभग खत्म हो गया है। देखने में आया है कि आम आदमी अब पक्षियों की सुरक्षा और संरक्षण करने की जगह शिकारियों के साथ उनका मददगार बन गया है। ऐसे में बड़ा सवाल है कि क्या प्रवासी पक्षियों को सरकारी इंतजाम और कानून- के जरिए सुरक्षा दी जा सकती है? यदि कानून का डर होता तो प्रवासी पक्षियों का बड़े पैमाने पर शिकार ही क्यों होता? फिर भी उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार आमजन में प्रवासी पक्षियों के प्रति जागरूकता पैदा कर और भ्रष्टाचार पर कड़ी नजर रख कर, प्रवासी पक्षियों की श्वास की हिफाजत करने में कामयाब होगी।

अनुकूल वातावरण नहीं मिलने से भी विलुप्त हो रहे हैं पशु पक्षी :
 
अनुकूल वातावरण नहीं मिल पाने के कारण पशु और पक्षी दोनों की ही बहुत सी प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर है। जल, जंगल और जमीन सभी का संतुलन बिगड़ा है, जिसका प्रभाव न सिर्फ जलवायु बल्कि जीवों पर भी पड़ा है। जंगल व हरियाली सिमट गई है और कंकरीट के मकान फैलते जा रहे हैं, गांवों के जोहड़ों में पानी नहीं रहा, जिससे प¨रदे और पशु प्यास से ही दम तोड़ रहे हैं। प्राकृतिक आवास का तेजी से सिमटना ही पशु-पक्षियों के विलुप्त होने का सबसे बड़ा कारण है। पिछले चार दशक के दौरान आए परिवर्तन के कारण पेड़-पौधों की अनेक प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर हैं। वन्य जीवों के विलुप्त होने के बावजूद मानव अपनी जीवनशैली को बदलने के लिए तैयार नहीं है। विभिन्न पक्षियों के अस्तित्व पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं। पक्षियों का प्राकृतिक आवास उजड़ता जा रहा है। बढ़ते शहरीकरण और उद्योगीकरण के कारण पेड़ पौधे लगातार कम होते जा रहे हैं।
सूख चुके हैं वर्तमान में पोखर व तालाब :

गांवों स्थित पोखर व तालाब पर्याप्त पानी न होने तथा प्राकृतिक संतुलन बिगड़ने के कारण सूख चुके है। जलीय पक्षियों का प्राकृतिक आवास भी सुरक्षित नहीं है। पोखरों व तालाबों का पानी सूखने के कारण जंगली जानवरों को पानी की उपलब्धता नहीं हो पाती। जंगली जानवरों का शिकार भी इनकी संख्या को घटा रहा है। चार दशक पूर्व गीदड़ व लकड़बग्घा का दिखाई देना आम था, परंतु स्थानीय स्तर पर अरावली पर्वत श्रंखला को छोड़ कर अन्य स्थानों से गायब हो चुके है। जिला में अरावली पर्वत श्रृंखला खंड खोल में स्थित है और खंड खोल को डार्क जोन घोषित किया जा चुका है। पर्वत श्रंखला में रहने वाले जानवरों को भी पानी उपलब्ध नहीं हो पाता। पानी की तलाश में आबादी के नजदीक पहुंचने वाले लकड़बग्घा की वाहनों व ट्रेन की चपेट में आने से मौत की घटनाएं भी सामने आ चुकी है।
 
वर्तमान में गायब हो रहे हैं पक्षी :

बढ़ते संसाधन भी पक्षियों के गायब होने का कारण बनते जा रहे है। पक्षियों का शिकार व अवैध व्यापार किया जा रहा है। लोग सजावट व मनोरंजन के लिए तोते व रंग-बिरंगी गोरैया जैसे पक्षियों को ¨पजरों में कैद कर रहे है। पक्षी विभिन्न रसायनों व जहरीले पदार्थों के प्रति अतिसंवेदनशील होते हैं। ऐसे पदार्थ भोजन या फिर त्वचा के माध्यम से पक्षियों के अंदर पहुंच कर उनकी मौत का कारण बनते हैं। डीडीटी, विभिन्न कीटनाशक और खरपतवार खत्म करने वाले रसायन पक्षियों के लिए बहुत खतरनाक सिद्ध हो रहे हैं। मोर जैसे पक्षी कीटनाशकों की वजह से काल के गाल में समां रहे हैं। गांवों में बिछाई जा रही खुली बिजली लाइनें भी मोर पक्षी के लिए काल बने हुए है। गांवों में करंट की चपेट में आने से मोर की मौत होना आम बात हो चुकी है। जिला से गिद्ध पूरी तरह से गायब हो चुके है। गिद्ध मरे हुए पशुओं का मांस पर निर्भर रहते है। पशुओं में बड़े पैमाने पर डाइक्लोफेनेक दवा के इस्तेमाल गिद्ध के विलुप्त होने का बड़ा कारण रहा है।अवैध शिकार के कारण काला तीतर भी विलुप्त होने की कगार पर पहुंच चुका है। किसानों द्वार फसल के अवशेषों में लगाई जा रही आग पक्षियों के आशियाने छीन रही है।

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