महात्मा गौतम बुद्ध की जयंती, महापरिनिर्वाण दिवस पर विशेष...!

●तथागत बुद्ध जैसा तर्कशील दार्शनिक कोई दूसरा नहीं  
 
लेखक :- साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा, महासचिव शंखनाद साहित्यिक मंडली 

लोग बुद्ध को महामानव बुद्ध, गौतम बुद्ध, तथागत बुद्ध एवं भगवान बुद्ध आदि कई नामों से जानते हैं। इस बात में कोई संदेह नहीं है कि आज तक वे ज्ञात मानव-इतिहास में तथागत बुद्ध जैसा तर्कशील विज्ञान-सम्मत, सामाजिक-धार्मिक दार्शनिक कोई अन्य नहीं हुआ। उनके सभी सिद्धांत व्यावहारिक धरातल पर टिके हैं। वे लोक कल्याणकारी हैं। कथनी और करनी में एकता उनके स्वयं के जीवन-आदर्श में निहित है। वे आडंबर-अंधश्रद्धा-विश्वास, भाग्य और ईश्वरवाद के कडे आलोचक हैं। वे तथागत (तथा+आगत) अर्थात उसी प्रकार से आने वाले या जन्म लेने वाले जैसे कि बिल्कुल आम आदमी मां की कोख से पैदा होते हैं-हाड़-मांस का बना सहज व्यक्ति। 
तथागत गौतम बुद्ध का जन्म एवं पारिवारिक जीवन : 
तथागत गौतम बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ गौतम था। उनका जन्म-ईशा के लगभग 563 वर्ष पूर्व वर्तमान में नेपाल राष्ट्र में स्थित लुंबिनी नामक स्थान में वैशाखी पूर्णिमा के दिन हुआ था। उनके मां का नाम महामाया जिनका देहांत उनके जन्म के सातवें दिन ही हो गया था तथा मौसी प्रजापति गौतमी द्वारा उनका पालन-पोषण हुआ। पिता-शुद्धोधन कपिलवस्तु के शाक्य वंशीय नरेश थे। कपिलवस्तु कोशल गणराज्य के अधिराजिक प्रभाव क्षेत्र में था। ईशा के 483 वर्ष पूर्व 80 वर्ष की आयु में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन कुसीनारा वर्तमान में कुशीनगर नामक स्थान पर उनका महापरिनिर्वाण हुआ।
सिद्धार्थ गौतम ने एकांतिक एकाग्र चित्त साधना किया :
सिद्धार्थ गौतम बचपन से ही आध्यात्मिक विचारों में डूबे रहते थे। सत्य की खोज के लिए उन्होंने 6 वर्षों तक लगातार कठिन ज्ञान-विज्ञान का अध्ययन-अनुशीलन, प्रेक्षण एवं परीक्षण का अभ्यास किया तथा उस समय के ख्याति प्राप्त दार्शनिकों के साथ तर्क-वितर्क किया किंतु पूरी तरह संतुष्ट न होने पर वे किसी निर्णय पर नहीं पहुंचे। उन्होंने एकांतिक एकाग्र चित्त साधना द्वारा अपना ध्यान जारी रखा। आधुनिक बिहार के गया में उरुवेला नामक स्थान पर बोधि वृक्ष के नीचे लगातार चिंतन-मनन करते हुए सिद्धार्थ गौतम को वैशाखी पूर्णिमा की एक रात में ज्ञान-लाभहुआ यानी बुद्धत्व प्राप्त हुआ।
आध्यात्मिक चिंतन और उत्सव का समय :  
मान्यता है कि गौतम बुद्ध के जीवन की तीन महत्वपूर्ण घटना-जन्म, ज्ञान प्राप्त करना और मृत्यु भी इसी दिन घटित हुआ था। इसलिए इस दिन को दुनिया भर के बौद्धों द्वारा “तीन बार धन्य उत्सव” माना जाता है। यह दिन आध्यात्मिक चिंतन और उत्सव का समय है, जिनमें प्रार्थना सभा, मंदिर के दर्शन और सेवा कार्य किए जाते हैं। 
बौद्ध धर्म की उत्पत्ति :  
बौद्ध धर्म एक प्राचीन धर्म-दर्शन है, जिसकी उत्पत्ति भारत में 5वीं या 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व के आसपास हुई थी। यह सिद्धार्थ गौतम की शिक्षाओं पर आधारित है, जिन्हें बुद्ध के नाम से भी जाना जाता है, जो 5वीं या 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व में रहते थे। इसलिए बौद्ध धर्म 2,500 साल से भी ज़्यादा पुराना है।
महात्मा गौतम बुद्ध का दर्शन :  
बुद्ध का दर्शन बौद्ध धर्म के रूप में भी जाना जाता है। यह दुख के अनुभव और इसे दूर करने के तरीके पर आधारित है। यह चार आर्य सत्यों की अवधारणा पर जोर देता है। इसमें दुख की प्रकृति (दुक्खा), इसका कारण, निरोध और निरोध की ओर ले जाने वाला मार्ग (अष्टांग मार्ग) शामिल है। बौद्ध धर्म ज्ञान, दया, धैर्य, उदारता और करुणा जैसे गुणों के महत्व पर भी प्रकाश डालता है।
जीवन के तीन सत्य :  
महात्मा गौतम बुद्ध के अनुसार, जीवन में सब कुछ अस्थायी और हमेशा बदलता रहता है। कुछ भी स्थायी नहीं है, इसलिए कोई भी चीज या व्यक्ति आपको सच्ची खुशी नहीं दे सकता है। जीवन के तीन सार्वभौमिक सत्य हैं कोई शाश्वत, अपरिवर्तनीय आत्मा नहीं है और “स्व” केवल बदलती विशेषताओं या गुणों का एक संग्रह है।
सिद्धार्थ गौतम ने दुनिया के दुखों का कारण और छुटकारा का उपाय बताया :
सिद्धार्थ गौतम ने दुनिया के दुखों का मूल कारण तथा उससे छुटकारा पाने का उपाय जान लिया। इस बुद्धत्व लाभ के बाद हीं वे बुद्ध के नाम से अभिहित किए गए। इस क्रम में उन्होंने कई मौलिक सिद्धांत प्रतिपादित किया जिसमें प्रतीत्यसमुत्पाद (भवचक्र जरा से मृत्यु) एवं अनित्यवाद (परिवर्तनशील) का सिद्धान्त न केवल मौलिक है बल्कि यदि इन्हें क्रमशः आधुनिक विज्ञान के कार्य-कारण के नियम तथा वस्तु एवं ऊर्जा के आपसी रूपांतरण के फलस्वरूप चीजों के मूल स्वरूप में लगातार बदलाव या दूसरे शब्दों में क्षणभंगुरता या अस्थायित्व के नियम के विस्तार का जनक कहा जाए तो कोई अत्युक्ति या आश्चर्य नहीं होगा। जो बात सबसे विलक्षण है वह यह कि इन भौतिकवाद के सिद्धांतों को उन्होंने केवल भौतिकता की व्याख्या तक ही सीमित नहीं रखा बल्कि उन सिद्धांतों को व्यक्ति के आध्यात्मिक जीवन में भी लागू होने को चिन्हित किया। इन सिद्धांतों के माध्यम से एक विलक्षण दर्शन का उन्होंने प्रतिपादन किया तथा मनुष्य के दुखों से छुटकारा न पाने का एक कारगर सिद्धांत प्रतिपादित किया। ऐसे सिद्धान्तों को उन्होंने लोक कल्याणार्थ रोज-ब-रोज घटने वाली घटनाओं से जोड़कर उसकी विवेचना की। 
सिद्धार्थ गौतम ने दुनिया को चार आर्य सत्य बताया : 
सिद्धार्थ गौतम ने कहा कि दुनिया में चार आर्य सत्य हैं- 1. दुनिया में दुख है, 2. दुख का कोई न कोई कारण है, 3. उसका निवारण है तथा 4. उसके निराकरण का मार्ग है। तथागत बुद्ध ने अपने विशाल भिक्षु संघ के माध्यम से लगातार 80 वर्ष की आयु तक - एक स्थान से दूसरे स्थान तक गांव-गांव, घर-घर तथा व्यक्ति-व्यक्ति तक पहुंचकर अपनी देशना तथा अपने संदेश पहुंचाए ताकि इसी दुनिया में रहकर व्यक्ति सुख पूर्वक जीवन व्यतीत कर सके। अपने जीवन के 45 वर्षों तक लगातार घूम-घूमकर बहुजन हित व बहुजन सुख एवं बहुजन के कल्याण के लिए तथागत ने अपने मध्यम मार्ग का उपदेश दिया।
महात्मा बुद्ध की जयंती, बुद्ध पूर्णिमा या महापरिनिर्वाण दिवस :
बुद्ध पूर्णिमा के दिन गौतम बुद्ध का जन्मदिन एवं महापरिनिर्वाण पर्व मनाया जाता है। गौतम बुद्ध ने दुनिया को सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया। यह चंद्र कैलेंडर का पालन करता है; हालाँकि, बौद्ध संस्कृति में विभिन्न विविधताओं के कारण, वेसाक एक अलग तिथि पर मनाया जाता है। त्यौहार मनाने वाले लोग ज़्यादातर सफ़ेद कपड़े पहनते हैं और कोई भी मांसाहारी भोजन नहीं खाते हैं। बुद्ध पूर्णिमा 2025 बुधवार, 12 मई को मनाई जाएगी, जो इस वर्ष बुद्ध पूर्णिमा तिथि है। महात्मा बुद्ध की जयंती, जिसे बुद्ध पूर्णिमा या वेसाक के नाम से भी जाना जाता है, एक महत्वपूर्ण बौद्ध त्योहार है जो गौतम बुद्ध के जन्म, ज्ञान प्राप्ति और महापरिनिर्वाण (मृत्यु) को मनाने के लिए मनाया जाता है। यह वैशाख मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है और इसे दुनिया भर के बौद्ध धर्म के अनुयायियों द्वारा मनाया जाता है।

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