आतंकवाद विरोधी दिवस पर विशेष...!!

● आतंकवाद हमारे देश और समाज के लिए बहुत बड़ा खतरा है
 राजीव गांधी की पुण्यतिथि और आतंकवाद विरोधी दिवस

लेखक :- साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा, महासचिव शंखनाद साहित्यिक मंडली

आतंकवाद हमारे देश और समाज के लिए बड़ा खतरा बना हुआ है। आतंकवाद विरोधी दिवस 21 मई को हर साल मनाया जाता है ताकि आतंकवादियों के कारण होने वाली हिंसा के बारे में जागरूकता बढ़ाई जा सके। इसे राष्ट्रीय सद्भाव को बढ़ावा देने, आतंकवाद को कम करने और सभी जातियों, पंथों आदि के लोगों के बीच एकता को बढ़ावा देने के उद्देश्य से मनाया जाता है। इस दिन को भारत का बच्चा- बच्चा नहीं भूल सकता क्योंकि इसी रोज भारत के सबसे युवा प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या हुई थी और उनकी हत्या की इस घटना में पूरी तरह से आतंकवाद का हाथ था यही वजह है कि उनकी हत्या के बाद से ही ये तय किया गया कि इस दिन को आतंकवाद विरोधी दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत में आतंकवादी लगातार घुसपैठ की कोशिश करते हैं और कई बार कामयाब भी होते हैं। लोक सभा की एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले चार सालों में आतंकवादियों ने 350 से ज्यादा बार भारतीय सीमा में घुसने की कोशिश की है।

21 मई 1991 को राजीव गांधी की रैली में क्या हुआ था :

21 मई 1991 को राजीव गांधी एक रैली में भाग लेने के लिए तमिलनाडु के एक स्थान श्रीपेरंबदूर गए थे। उनके सामने एक महिला आई जो लिबरेशन टाइगर्स ऑफ तमिल ईलम के एक आतंकवादी समूह की सदस्य थी। उसके कपड़ों के नीचे विस्फोटक थे और उसने पीएम से संपर्क किया और कहा कि वह उनके पैर छूना चाहती है। जैसे ही वह पैर छूने लगी, अचानक बम विस्फोट हुआ जिससे कि वहां मौके पर प्रधानमंत्री और 25 लोग मारे गए।

 राजीव गांधी की हत्या क्यों की गई?

भारत के सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के अनुसार, यह हत्या राजीव गांधी के प्रति लिट्टे प्रमुख प्रभाकरण की व्यक्तिगत दुश्मनी के कारण की गई थी. राजीव गांधी के प्रति प्रभाकरन की कड़वाहट राजीव गांधी द्वारा श्रीलंका में भारतीय शांति सेना भेजने और भारतीय शांति सेना पर श्रीलंकाई तमिलों के खिलाफ अत्याचार का आरोप लगाने से और अधिक बढ़ गई. टाडा अधिनियम के तहत राजीव गांधी की हत्या को आतंकवादी कृत्य नहीं माना गया है क्योंकि सबूतों और हत्यारे की योजना से पता चलता है कि वे राजीव गांधी के अलावा किसी भी भारतीय नागरिक की मौत की इच्छा नहीं रखते थे.

1950 के दशक में आतंकवाद की शुरुआत

हमारे देश की सीमाओं से लगातार घुसपैठी अंदर आने की कोशिश करते हैं। ये कई बार कामयाब भी हुए हैं। इसके अलावा भी हमारे देश के अंदर ही नक्सालवाद के रूप में एक आतंकी संगठन पनप रहा है। यह हमारे देश की बड़ी समस्या ओं में से एक है। इतिहास की बात करें तो आतंकवाद शब्द की उत्पत्ति फ्रांसीसी क्रांति के दौरान हुई थी। तब जब वर्ष 1793-94 में वहां आतंक का राज आया था। जानकारी यह भी मिलती है कि विश्वेभर में आतंकवाद का मूल रूप से आरंभ 1950 के दशक से माना जाता है। उस समय वामपंथ के उत्थान के बाद से आतंकवाद को देखा जा सकता है। इसकी जद में यूरोप सहित संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान, जर्मनी और भारत जैसे कई देश आए थे। तभी से भारत भी इसका दंश झेल रहा है। भारत में नक्सलवाद और माओवाद के रूप में आतंकवाद का स्वरूप काफी लंबे अरसे से उपस्थित रहा है।

भारत में पहली आतंकवादी घटना का जन्म :

इतिहास में जब हम आतंकवादी घटनाओं की जानकारी खोजते हैं तो 24 मई 1967 की घटना सामने आती है। 24 मई 1967 को पश्चिम बंगाल का नक्सलबाड़ी गांव है, जहां एक किसान जमींदार के खेत में कड़ी धूप में फसल काट रहा था। तभी जमींदार खेत में पहुंचा। किसान ने जमींदार से कुछ मजदूरी बढ़ाने की बात कही। साथ में अपनी तकलीफ भी बताई। जमींदार ने अपनी बंदूक निकाली और किसान पर गोली दाग दी। किसान की मौके पर ही मौत हो गई। ये खबर आसपास के खेतों में काम कर रहे किसानों के पास पहुंची। तभी सभी किसान एकत्रित हो गए और जमींदार नगेन चौधरी को पकड़ लिया। इसके बाद किसानों के द्वारा एक सभा बुलाई गई। जहां जमींदार को घसीटकर किसान ले गए। इस सभा के नेता थे कानू सान्याल। ये वही कानू सान्याल थे, जिन्हें पहला नक्सली माना जाता है। इस जनसभा खुली सुनवाई में कानू सान्याकल ने जमींदार चौधरी को अपना जुर्म कुबूल करने का मौका दिया। नगेन चौधरी अपना जुर्म कुबूल करने की बजाय किसानों को गालियां देने लगा। तभी किसानों के बीच से एक व्य क्ति जिसकी हाईट 6 फीट 5 इंच के करीब थी, यह आदिवासी शख्स जिसका नाम जंगल संथाल था, खड़ा हुआ। इसने एक झटके में नगेन चौधरी का सिर धड़ से अलग कर दिया। इसी घटना को नक्सेलवाद की पहली चिनगारी के रूप में माना जाता है। नक्सिलवाद की शुरुआत नक्सलबाड़ी गांव से शुरू होने कारण ही इसे नक्सलवाद नाम मिला। किसानों और मजदूरों का ये विरोध कुछ महीने बाद ही हिंसक नक्सली आंदोलन में बदल गया जो 5 से ज्यािदा दशकों से देश की आंतरिक सुरक्षा पर खतरा बना हुआ है।

आतंकवाद के लिए बनाए गए कानून :

आतंकवादी गतिविधियों से निपटने के लिए भारतीय संसद ने वर्ष 1967 में गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम पारित किया था। इसे और प्रभावी बनाने के लिए वर्ष 2004 में इसमें संशोधन भी किया गया। भारतीय संसद में साल 1987 में आतंकवादी एक्टिविटी पर लगाम लगाने आतंकवादी और विघटनकारी क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम (TADA) पारित किया गया। साल 2002 में भारतीय संसद में आतंकवाद निवारण अधिनियम (POTA) भी पारित किया था इसका उद्देश्य भी आतंकवादी गतिविधियों से निपटना है। मुंबई में हुए कुख्यात 26/11 आतंकवादी हमले के बाद केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) का गठन किया। इसके साथ ही अन्यक खुफिया एजेंसियों का गठन किया है। जो कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आतंकवाद से निपटने के लिए कार्य कर रही है। इनमें रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (RAW), इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB) आदि संस्थाएं प्रमुख हैं। केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय खुफिया ग्रिड (NATGRID) का निर्माण भी किया। इसका उद्देश्य कई सुरक्षा एजेंसियों के डेटाबेस को आपस में जोड़ना है, ताकि ये सुरक्षा एजेंसियां बेहतर सामंजस्य के साथ कार्य करें। भारत सरकार ने आतंकवादी गतिविधियों से निपटने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड (NSG) नामक एक अर्ध सैनिक बल का गठन भी किया है। इसके अलावा फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) नामक अंतर्राष्ट्रीय संगठन का भी सदस्य है, जो मुख्य रूप से धन शोधन व आतंकवाद के वित्तपोषण को रोकने का कार्य करती है।

  आतंकवाद हमारे देश के लिए खतरा :

बता दें कि भारतीय संसद ने साल 1987 में आतंकवादी और विघटनकारी क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम पास किया था। इस अधिनियम में कहा है कि जो कोई भी सरकार को डराने या लोगों या लोगों के किसी भी समूह को आतंकित करने या उन्हें मारने की धमकी देता है या फिर नकारात्मक रूप से प्रभावित करने के उद्देश्य से बम, डायनामाइट या अन्य विस्फोटक पदार्थ, ज्वलनशील पदार्थ या घातक हथियारों समेत इसी तरह के पदार्थों का प्रयोग करता है तो उस अपराध को आतंकवादी कार्य माना जाएगा। वर्ष 2002 में पारित आतंकवाद निवारण अधिनियम (POTA) के अंतर्गत आतंकवाद के वित्तीयन को भी आतंकवादी कार्य माना गया है।

21 मई को ही क्यों मनाते हैं आतंकवाद विरोधी दिवस :

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में 21 मई को राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी दिवस मनाया जाता है। यह दिन शांति, सद्भाव और मानव जाति के संदेश को फैलाने और लोगों के बीच एकता को बढ़ावा देने के लिए भी मनाया जाता है। बताते चलें कि राजीव गांधी भारत के सबसे युवा प्रधानमंत्री थे। उन्हें देश के छठे प्रधान मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया और 1984 से 1989 तक वह प्रधानमंत्री के पद पर रहे। गृह मंत्रालय की ओर से कहा गया है कि प्रतिभागियों और आयोजकों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए और सार्वजनिक समारोहों से बचने के लिए अधिकारियों द्वारा 'आतंकवाद विरोधी शपथ' अपने कमरों और कार्यालयों में ही ली जा सकती है।

आतंकवाद विरोधी दिवस मनाने का उद्देश्य :

राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी दिवस की स्थापना वी. पी. सिंह सरकार ने की थी, जिसका उद्देश्य आतंकवाद और हिंसा के घातक प्रभावों के प्रति समाज में जागरूकता बढ़ाना और शांति, एकता तथा सद्भावना को बढ़ावा देना है। यह दिन न केवल राजीव गांधी की स्मृति में मनाया जाता है, बल्कि यह एक संकल्प दिवस भी है कि भारत आतंकवाद के खिलाफ दृढ़ता से लड़ता रहेगा। इसे मनाने का मुख्य उद्देश्य है लोगों के बीच मानवता को जीवित रखना है। लोगों को आतंकवादी समूहों के बारे में समय-समय पर जानकारी देना और उनके बीच जागरूकता बढ़ाना। युवाओं को सही दिशा बतलाना ताकि वे भूलकर भी किसी भी लालच में विभिन्न आतंकवादी समूहों का हिस्सा न बनें। देश, समाज और व्यक्ति सभी को आतंकवाद की छाया तक न पड़ने देने के उद्देश्य से इस दिन को मनाया जाता है। राष्ट्रीय आतंकवाद विरोधी दिवस हमें यह याद दिलाता है कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई जारी रहनी चाहिए। साथ ही, जम्मू-कश्मीर में शांति, विकास और समरसता के लिए समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है ताकि घाटी पुनः एक सुरक्षित, समृद्ध और खुशहाल पर्यटन स्थल के रूप में उभर सके। भारत हमेशा आतंकवाद के विरुद्ध दृढ़ता से खड़ा रहेगा और अपने नागरिकों की सुरक्षा सुनिश्चित करेगा।

आतंकवाद विरोधी दिवस के दिन दिलाई जाती है शपथ :

बता दें कि आतंकवाद विरोधी दिवस के दिन 21 मई को शपथ दिलाई जाती है। इस दौरान हम भारतवासी अपने देश की अहिंसा एवं सहनशीलता की परंपरा में दृढ़ विश्वास रखते हैं और निष्ठापूर्वक शपथ लेते हैं कि हम सभी प्रकार के आतंकवाद और हिंसा का डटकर सामना करेंगे। हम मानव जाति के सभी वर्गों के बीच शांति, सामाजिक सद्भाव तथा सूझबूझ कायम करने और मानव जीवन मूल्यों को खतरा पहुंचाने और विघटनकारी शक्तियों से लड़ने की भी शपथ लेते है।

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

ककड़िया विद्यालय में हर्षोल्लास से मनाया जनजातीय गौरव दिवस, बिरसा मुंडा के बलिदान को किया याद...!!

61 वर्षीय दस्यु सुंदरी कुसुमा नाइन का निधन, मानववाद की पैरोकार थी ...!!

ककड़िया मध्य विद्यालय की ओर से होली मिलन समारोह का आयोजन...!!