हिंदी पत्रकारिता दिवस पर विशेष....!!
लेखक :- साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा, महासचिव शंखनाद साहित्यिक मंडली
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम, अपने आप में एक महाकाव्यात्मक संघर्ष था, जिसने न केवल भारत को ब्रिटिश साम्राज्यवाद के चंगुल से मुक्त कराया, बल्कि वैश्विक स्तर पर स्वतंत्रता आंदोलनों को प्रेरित किया। इस महान संघर्ष की सफलता में अनेक कारकों ने योगदान दिया, जिनमें से पत्रकारिता और पत्र-पत्रिकाओं की भूमिका विशेष रूप से महत्वपूर्ण रही। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भारतीय पत्रकारिता ने न केवल समाचार और विचारों के आदान-प्रदान का माध्यम बनकर, बल्कि स्वतंत्रता की भावना को प्रज्वलित करने और राष्ट्रीय चेतना को जागृत करने में एक सशक्त साधन के रूप में कार्य किया। इन पत्र-पत्रिकाओं ने भारतीय समाज के विभिन्न वर्गों को एकजुट करने, ब्रिटिश साम्राज्य के दमनकारी नीतियों का विरोध करने और स्वतंत्रता के विचार को जन-जन तक पहुंचाने में एक प्रमुख भूमिका निभाई।
1870 के दशक में, भारतीय प्रेस ने देश भर में अपने पंख फैलाने शुरू किए। 1870 से 1918 के बीच, अनेक शक्तिशाली समाचार पत्र उभरकर सामने आए, जो प्रतिष्ठित और निडर पत्रकारों के नेतृत्व में कार्यरत थे। इन वर्षों के दौरान प्रेस ने मुख्य राजनीतिक कार्यों को पूरा करने का प्रमुख साधन बनकर उभरी। यहाँ तक कि राष्ट्रीय कांग्रेस का अधिकांश कार्य भी इन वर्षों में प्रेस के माध्यम से ही संपन्न हुआ। भारतीय पत्रकारिता को देश के कुछ महानतम पुरुषों द्वारा पोषित किया गया—स्वतंत्रता सेनानी, समाज सुधारक, बौद्धिक विचारक, और साहित्यकार, जिन्होंने इसकी विकास यात्रा में अपना सर्वश्रेष्ठ योगदान दिया। इसलिए, भारतीय पत्रकारिता का इतिहास राष्ट्रीय चेतना के विकास और स्वतंत्रता संग्राम की प्रगति के साथ अविभाज्य रूप से जुड़ा हुआ है।
भारत को गुलामी की बेड़ियों से मुक्त कराने एवं आजादी की लड़ाई में पत्रकारिता और पत्रकारों की भी अहम भूमिका रही है। ब्रिटिश शासकों ने पत्रकारों को दबाने की कोशिश की और सजा, जुर्माना तक भी लगाया गया। मगर स्वतंत्रता के दीवाने पत्रकारों ने हिम्मत नहीं हारी और आजादी की अलख जारी रखी।
हर साल 30 मई का दिन भारत में हिंदी पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाया जाता है। साल 1826 में आज ही के दिन हिंदी का पहला अखबार प्रकाशित हुआ था। जिसका नाम था 'उदन्त मार्तण्ड'। यह एक साप्ताहिक अखबार था। पंडित जुगल किशोर शुक्ल इसके संपाक व प्रकाशक थे। गुलामी के दौरान देशहित के बारे में बात करना एक चुनौती भरा काम था। हालांकि भाषणों के जरिए लोगों को देश के हालात के बारे में बताने का काम किया जाता था, लेकिन फिर ऐसे एक माध्यम की जरूरत महसूस हुई, तो बिना चीखे-चिल्लाएं लोगों को उनके हक के प्रति जागरूक करने का काम करें और ऐसे हुआ अखबार का जन्म।
यह ब्रिटिश काल का वह समय था जब तत्कालीन हिन्दुस्तान में दूर दूर तक मात्र अंग्रेजी, फ़ारसी, उर्दू एवं बांग्ला भाषा में केवल अखबार छपते थे, हिंदी भाषा का पहली बार किसी ने पत्रकारिता से परिचय कराया तो वह थे देश की राजधानी “कलकत्ता” में “कानपुर” के रहने वाले वकील पण्डित जुगल किशोर शुक्ल जी। जिन्होंनें साहस भरे क्रांतिकारी कदम उठाते हुए अंग्रेजों की नाक के नीचे हिन्दी पत्रकारिता के इतिहास की नींव रखी।
कलकत्ता से हुई थी हिंदी के पहले अखबार की शुरुआत :
30 मई 1826 को 'उदन्त मार्तण्ड' नाम से हिंदी की पहला अखबार छपा था, जो साप्ताहिक था। यह मंगलवार ये अखबार छपता था और लोगों तक पहुंचता था। उदन्त मार्तण्ड का अर्थ है समाचार सूर्य। पंडित जुगल किशोर शुक्ल इस साप्ताहिक अखबार के संपादक व प्रकाशक थे। कानपुर के रहने वाले जुगल किशोर पेशे से वकील थे। ये अखबार पहली बार कलकत्ता में प्रकाशित हुआ था।
उदन्त मार्तण्ड की छापी गई थीं 500 प्रतियां :
कलकत्ता के बड़ा बाजार इलाके में अमर तल्ला लेन से उदन्त मार्तण्ड का प्रकाशन हुआ था। इस समय कलकत्ता में अंग्रेजी, बांग्ला और उर्दू भाषा का बोलबाला हुआ करता था। बंगाल में इन्हीं भाषाओं के अखबार छपते थे। हिंदी भाषा का एक भी अखबार उस समय नहीं था। वैसे 1818-19 में कलकत्ता स्कूल बुक के बांग्ला समाचार पत्र "समाचार दर्पण" में हिंदी भाषा में कुछ न कुछ मिल जाता था। पहली बार साप्ताहिक समाचार पत्र उदन्त मार्तण्ड की 500 प्रतियां छापी गई थीं।
4 दिसंबर 1826 को बंद हो गया था उदन्त मार्तण्ड अखबार :
अखबार जोश के साथ शुरू हुआ था, लेकिन हिंदी पाठकों की कमी के चलते महज सात महीने में ही इसे बंद करना पड़ा। 4 दिसंबर 1826 को इसका प्रकाशन बंद कर दिया गया। पाठकों की कमी के अलावा पैसों की तंगी भी इसके बंद होने की वजह बनी। इस अखाबर की वजह से हिंदी भाषा की पहचान पत्रकारिता के भाषा के रूप में बनीं, साथ ही यह अखबार तत्कालीन औपनिवेशिक सत्ता के खिलाफ प्रखर आवाज बनकर सामने आयी। पत्रकारिता की शुरुआत इस अखबार के प्रकाशन के 46 वर्ष पूर्व ही हो चुकी थी, जब 1780 में जेम्स अगस्टस हिकी ने कलकत्ता जनरल एडवाइजर नाम से एक अंग्रेजी अखबार का प्रकाशन शुरू किया। यह भारत का पहला अखबार था, जिसके 4 दशक बाद 30 मई के दिन हिंदी भाषा का पहला अखबार उदन्त मार्तंड अस्तित्व में आया। इसी वजह से इस दिन को हिंदी पत्रकारिता दिवस के रूप में मनाया जाता है।
प्रिंट मीडिया और ब्रिटिशों का प्रभुत्व :
प्रिंट मीडिया के प्रारंभिक दिनों में, समाचार पत्रों पर ब्रिटिशों का प्रभुत्व था। लेकिन समय के साथ, शिक्षित भारतीयों ने राष्ट्रीय पत्रकारिता के महत्व को समझा और इसने स्वशासन की भावना को प्रज्वलित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कई भारतीय समाचार पत्र सामने आए, जिन्हें समाज सुधारकों और स्वतंत्रता सेनानियों ने शुरू किया। उन्होंने ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक क्रांति शुरू की। भारतीयों पर ब्रिटिश अत्याचारों की घटनाएँ स्वतंत्र रूप से समाचार पत्रों में आने लगीं। देश के हर कोने में विदेशी शासकों को देश से बाहर निकालने के लिए विभिन्न नारे उभरे। समाचार पत्र स्वतंत्रता सेनानियों के लिए एक मजबूत और अंतिम उपकरण बन गए, जिसके माध्यम से उन्होंने ब्रिटिश सरकार को भारत से निकालने और स्वशासन स्थापित करने की दिशा में काम किया। कलम की ताकत तलवार से अधिक है, यह बात राष्ट्रीय पत्रकारिता ने स्वतंत्रता संग्राम में साबित की। इसने भारत में ब्रिटिश शासन के पतन का मार्ग प्रशस्त किया। स्वतंत्रता संग्राम के समय राष्ट्रीय पत्रकारिता ने समाज में व्याप्त कुरीतियों को मिटाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। नस्लीय भेदभाव, अंधविश्वास, पुरुष प्रधानता, दहेज, सती प्रथा, बाल विवाह, विधवापन जैसी सामाजिक बुराइयों को उखाड़ने के प्रयास किए गए। भारतीय नागरिकों को जागरूक किया गया और ज्ञान का प्रकाश मीडिया के माध्यम से उनके जीवन में फैलाया गया। आज के परिवेश में पत्रकारिता आसान नहीं है। पत्रकारों को अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। डिजिटल युग में अधिकांश पाठक प्रिंट मीडिया की अपेक्षा डिजिटल समाचार पढ़ रहे हैं। फिर भी प्रिंट मीडिया का महत्व घटा नहीं है।
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