कबीर और नागार्जुन का साहित्य, आडंबर का विरोध करने में मददगार है : डॉ.लक्ष्मीकांत सिंह...!!
●जयंती पर शिद्दत के साथ याद किए गए कबीर और आधुनिक कबीर जनकवि नागार्जुन
बिहारशरीफ, 11 जून 2025 : बुधवार को शंखनाद साहित्यिक मंडली के तत्वावधान में साहित्यिक भूमि बबुरबन्ना के बिहारी सभागार में कबीर तथा आधुनिक कबीर जनकवि बाबा नागार्जुन के जयंती समारोह में “कबीर एवं आधुनिक कबीर जनकवि नागार्जुन की सांस्कृतिक विरासत” विषयक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। समारोह की अध्यक्षता शंखनाद के अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह, जबकि संचालन शंखनाद के मीडिया प्रभारी शायर नवनीत कृष्ण ने की।
मौके पर कार्यक्रम में आर.एस.कॉलेज तारापुर मुंगेर के पूर्व प्राचार्य प्रोफेसर डॉ. शकील अहमद अंसारी, शंखनाद के अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह, महासचिव साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा, साहित्यकार बेनाम गिलानी एवं सरदार वीर सिंह ने कबीर और जनकवि बाबा नागार्जुन के छायाचित्र पर माल्यार्पण, पुष्पांजलि अर्पित एवं दीप प्रज्वलित कर भावभीनी श्रद्धांजलि दी।
मौके पर शंखनाद के महासचिव साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा ने कहा कि प्रखर विचारक, घुमंतू जनकवि, निर्भीक व्यंग्यकार, साम्यवाद के ध्वजवाहक जनकवि,
लोक शक्ति के उपासक बाबा नागार्जुन मूलतः विपक्ष के कवि थे। समाज सुधार की दिशा में उनकी भूमिका अत्यंत महत्त्वपूर्ण रही है। वे अपनी दमदार लेखनी से जीवन पर्यन्त वर्चस्ववादी सत्ता के विरुद्ध प्रतिरोध की संस्कृति को समृद्ध करते रहे। आज प्रायोजित बर्बर नरसंहार के दौर में कबीर और आधुनिक कबीर जनकवि नागार्जुन का साहित्य हमें प्रतिरोध का संघर्ष तेज करने की ताकत देता है। उन्होंने कहा- कबीर और नागार्जुन दोनों ही अपने-अपने समय के दुर्धर्ष योद्धा एवं जनप्रतिबद्ध साहित्यकार हैं। जहां एक ओर कबीर अपने समय की सामंती व्यवस्था से सीधे टकराते रहे, फिर भी लगभग 600 वर्षों तक उन्हें किसी ने कवि के रूप में स्वीकार नहीं किया। वहीं नागार्जुन आधुनिक युग की तानाशाही एवं दमनकारी सत्ता की धज्जियां उड़ाकर रख देते हैं।
अध्यक्षता करते हुए शंखनाद के अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह ने कहा कि कबीर 15 वीं शताब्दी के क्रांतिकारी कवि थे। वहीं नागार्जुन हमेशा आर-पार की लड़ाई के लिए तैयार रहते थे। आज कबीर और नागार्जुन दोनों महान कवियों को अगर याद किया जा रहा है तो उसके पीछे उनकी महानता है। उन्होंने कहा- कबीर ने सहजता की बात की। कबीर की वाणी में वह ताकत है जो सीमाओं को तोड़ देती है। पाहन पूजे हरि मिले तो मैं पूजूं पहाड़ कबीर की इसी सहजता को समझना आज की पीढ़ी के लिए जरूरी है। उन्होंने कहा- जनकवि नागार्जुन के कवि का स्थाई भाव है प्रतिहिंसा। दमनकारी बर्बर उपद्रवी के हिंसात्मक रवैये से दो-दो हाथ करने के लिए नागार्जुन का साहित्य प्रतिहिंसात्मक आख्यान गढता है तथा कबीर भी अपने समय की सामंती सत्ता से सीधी मुठभेड़ करते हैं।
मौके पर आर.एस. कॉलेज तारापुर मुंगेर के पूर्व प्राचार्य प्रोफेसर डॉ. शकील अहमद अंसारी ने कहा कि शंखनाद साहित्यिक मंडली के द्वारा इस तरह का कार्यक्रम संचालित करना सराहनीय है। ऐसे समय में कबीर और नागार्जुन जैसे महापुरुषों ने जो दिशाएं और जो रास्ते हमें दिखाए हैं वह आज की इन विषम परिस्थितियों में हमारे लिए बहुत जरूरी जान पड़ती हैं। कबीर-नागार्जुन को महात्मा गौतम बुद्ध से जोड़ते हुए उन्होंने कहा कि हर किसी का संदेश देने का तरीका अलग होता है। लेकिन उनके संदेशों में छिपे रहस्यों को समझकर हर युग की पीढ़ी उनसे शिक्षा ग्रहण कर सकती है।
मौके पर शंखनाद के उपाध्यक्ष साहित्यकार प्रख्यात् शायर बेनाम गिलानी ने कहा कि किसी भी कवि की रचना के सार एवं भाव को समझने के लिए उस काल एवं जगह की समाजिक बौद्धिक एवं उस समय की स्थिति व परिस्थिति का ज्ञान होना आवश्यक है। इस परिदृश्य में अगर कबीर की कविताओं की समिक्षा की जाय तो समिक्षक स्तब्ध रह जाएंगे। क्यूंकि वह समय ज्ञान व मनोविज्ञान का तो था किन्तु विज्ञान का नहीं था। फिर भी मुझे लगता है की कबीर दास की कविता मनोविज्ञान से ज़्यादा विज्ञान पर आधारित है।
साहित्यसेवी अमर सिंह ने कहा- जनकवि नागार्जुन और कबीर आज भी प्रासंगिक हैं और उनके विचारों को आज के समाज में भी समझने की आवश्यकता है। कबीर और नागार्जुन के संदेश में सामाजिक समरसता, मानव प्रेम और धार्मिक सहिष्णुता जैसे मूल्य शामिल हैं जो आज भी महत्वपूर्ण हैं।
कार्यक्रम के संचालनकर्त्ता शंखनाद के मीडिया प्रभारी शायर नवनीत कृष्ण ने कहा कि कबीर और नागार्जुन दोनों ही आम-आवाम की वास्तविक मुक्ति के लिए मुकम्मल बदलाव चाहते थे। मध्यकाल में कबीर ने ही सर्वप्रथम सांस्कृतिक जनवाद का परचम लहराया और आधुनिक काल में नागार्जुन ने भारतीय क्रांति को पूरा करने के लिए जनांदोलनों के दौरान कई बार जेल यात्राएं कीं।
शंखनाद के कोषाध्यक्ष समाजसेवी सरदार वीर सिंह ने कहा कि कबीर और नागार्जुन की रचनाओं में लंबा अंतर होने के बावजूद उनमें साम्य भाव नजर आता है। जाति, धर्म की रूढि़वादी व्यवस्था पर उक्त दोनों कवियों ने जमकर प्रहार किया। कबीर दास एक कवि और लोकप्रिय समाज सुधारक थे।
धन्यवाद ज्ञापन करते हुए शंखनाद के सक्रिय सदस्य समाजसेवी धीरज कुमार ने कहा कि आदि काल से ही यथास्थितिवादियों और क्रांतिकारीकारियों परस्पर दो साहित्यिक एवं सांस्कृतिक धाराएं रही हैं। कबीर और नागार्जुन दोनों ही क्रांतिकारी धारा के साहित्यकार हैं, जिनसे दमनकारी सत्ता से लड़ने की प्रेरणा मिलती है।
कार्यक्रम में समाजसेविका सविता बिहारी, सोना कुमारी, कारू कुमार, राजदेव पासवान, अरुण बिहारी शरण, विजय कुमार, तथा राजेश कुमार आदि प्रमुख थे।
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