अशोक धाम के भव्य शिवलिंग का प्रकटीकरण की कहानी....!!
● सतघरवा खेलने में निकला अशोक धाम का भव्य शिवलिंग
लेखक :- साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा, महासचिव शंखनाद साहित्यिक मंडली
बिहार के लखीसराय जिले में स्थित अशोक धाम भगवान शिव का प्रसिद्ध और प्राचीन मंदिर है। अशोक धाम को इंद्रदमनेश्वर महादेव मंदिर के नाम से जाना जाता है। अशोक धाम बिहार की राजधानी पटना से करीब 125 करीब किमी, बिहारहरीफ से 88 किलोमीटर की दूरी पर मौजूद है। 07 अप्रैल 1977 दिन गुरुवार, लखीसराय के लिए एक ऐसा दिन था, मानों इस धरती को न सिर्फ साक्षात महादेव शंकर का आशीर्वाद मिला, बल्कि स्वयं देवों के देव महादेव शंकर यहां विराजमान हो गए। बाबा भोले शंकर के भव्य शिवलिंग के प्रकटीकरण के बाद से यह धरती महादेव की नगरी कहलाने लगी है और महादेव पर आस्था रखने वाले दूर-दराज के लाखों लोगों का यहां आना-जाना शुरू हो गया।
अशोकधाम नाम का नामाकरण :
बिहार में इतना बड़ा भव्य शिवलिंग और कहीं नहीं हैं। संभव है कि देश में भी न हो। लखीसराय जिला की स्थापना से पूर्व अशोकधाम के नाम से प्रसिद्ध इस धरती का नाम क्यों अशोकधाम ही पड़ा? वर्तमान में लखीसराय जिला तत्कालीन समय में मुंगेर जिला के अंतर्गत आता था अशोकधाम जिस जगह पर स्थित है, वह शहरी क्षेत्र के अंतर्गत वार्ड संख्या-1 में आता है। हालांकि 70-80 के दशक में यह इलाका पूरी तरह ग्रामीण क्षेत्र में था। धीरे-धीरे महादेव के भक्तों के तादाद यहां पूजा-अर्चना के लिए बढ़ते ही इस क्षेत्र में आम लोगों की बस्ती, मुहल्ले का रूप बन गया और आज महादेव की कृपा से सैकडों परिवार दुकानदारी व अन्य तरह के कार्यों से अपने और अपने परिवार का भरन-पोषण कर रहे हैं। लखीसराय को अधिसूचित क्षेत्र 1969 में घोषित किया गया। चूंकि इसे एक संयोग भी कहिए कि प्रावधानों के मुताबिक किसी भी नगर निकाय क्षेत्र का परिसीमन पश्चिम-उत्तर से होता है और अशोकधाम भी शहर के पश्चिम-उत्तर दिशा में स्थित है। 1973 में गठित नगर पालिका के परिसीमन में अशोकधाम से ही वार्ड संख्या एक की शुरुआत हुई। हालांकि अशोकधाम के नजदीक बन रहे अशोकधाम स्टेशन का निर्माण कार्य चल रहा है। लेकिन मंद गति से स्टेशन बनने के कारण श्रद्धालुओं को यहां सीधे पहुंचना मुश्किल हो रहा है। लखीसराय स्टेशन से वर्तमान में लोग यहां पहुंच रहे हैं।
बाबा भोले शंकर के भव्य शिवलिंग का प्रकटीकरण :
बात 07 अप्रैल 1977 की है, जब 10-11 साल की उम्र में बालक अशोक यादव, पिता- भाषो यादव, दादा- गनौरी यादव और गजानंद साव (कानू जाति से) पिता- रमेशर साव अपने मित्र के साथ सतघरवा खेल रहे थे। सतघरवा एक ग्रामीण खेल है, इसमें मिट्टी की थोड़ी-थोड़ी खुदाई कर सात घर तैयार किए जाते हैं। 10-11 वर्षीय बालक अशोक यादव और गजानंद साव कुछ ऐसा ही कर रहा था, जबकि उनका मित्र थोड़ी दूरी पर पत्थर की छोटी-छोटी टुकड़िया तलाश रहा था। अशोक और गजानंद ने मिलकर जब 7 जगहों पर हल्की-हल्की खुदाई की, तो उन्हें एक अजीब सी वस्तु होने का आभास हुआ। दोनों मिलकर हल्ला किया तो वहीं पर खेत में काम कर रहे रामचन्द्र सिंह खंती लेकर दौड़े और साफ किया तो एक भव्य शिवलिंग का दर्शन हुआ। उत्सुकतावश उन्होंने भागे-भागे पूरे गांव में इसकी खबर फैला दी। गांव वाले दौड़ कर यहां पहुंचे और मिट्टी की खुदाई करने लगे। तब जाकर यहां एक विशाल सा शिवलिंग प्रकट हुआ। शिवलिंग के प्रकट होते ही गांव वालों ने पूजा अर्चना करनी शुरू कर दी। जैसे-जैसे यह जानकारी दूरदराज तक के इलाकों में फैलती गई, लोग यहां पूजा अर्चना को पहुंचते गए।
अशोक का पैर छूकर आशीर्वाद :
भक्त लोग भक्तिपूर्वक इस शिवलिंग के साथ-साथ बालक अशोक यादव के दर्शन की भी जिज्ञासा रहती है। लोग अशोक यादव का पैर छूकर आशीर्वाद भी लेते है। अब 61 साल के अशोक बाबा उन दिनों की यादों का जिक्र करते हुए बताते हैं कि उन्हें यह सब अच्छा नहीं लगता था। जब उनसे अधिक उम्र के लोग उनके साथ ऐसा व्यवहार करते। हालांकि शिवलिंग के प्रकटीकरण के बाद से अशोक नाम का वह व्यक्ति हमेशा के लिए भगवान शिव को अपना जीवन समर्पित कर दिया। आज भी अशोक धाम के गर्भगृह में वे आपको एकांत मिलेंगे। अशोक बाबा की पत्नी का निधन हो गया है। उन्हें दो पुत्र और एक पुत्री है। शिवलिंग के प्रकटीकरण के बाद शुरुआत में फूस की झोपड़ी डालकर पूजा-अर्चना शुरू कर दी गई। कुछ ही महीने बाद वहां टीन के शेड डाल दिए गए थे। अशोक बाबा के अनुसार शिवलिंग के प्रकटीकरण के बाद पुरातत्व विभाग ने शिवलिंग के चारों ओर खुदाई के भी कार्य किए। चारों तरफ गड्ढे होने के कारण भक्तों को शिवलिंग की पूजा करने में परेशानी न हो इसके लिए दो तरफ से छोटा पुलिया बना दिया गया था। एक तरफ से श्रद्धालु प्रवेश करते थे, तो दूसरी तरफ से बाहर निकलते थे।
अशोक धाम मंदिर निर्माण में भूमि दाता :
शिवलिंग का जिस स्थान पर प्रकटीकरण हुआ, वह एक मिट्टी का टीला था। यह जमीन नुनुलाल सिंह,पिता- स्व. प्रयाग सिंह, पत्नी श्रीमती रामरति देवी का था। वहाँ पर उनका 19 विघा जमीन था, जिसमें 30 कठ्ठा 8 धुर जमीन दान दे दिया था। जमीन दान देने वालों में मुख्य रूप से श्रीमती त्रिवेणी देवी कानोडिया धर्मपत्नी स्व. शुभकरण कानोडिया, स्व. देवकी सिंह की स्मृति में द्वारा पुत्र- डा. गणेश प्रसाद सिंह, स्व. छेदी लाल ड्रोलिया की स्मृति में सुपुत्र- श्री दीनदयाल ड्रोलिया, स्व. धर्मराज की स्मृति में द्वारा डा. श्याम सुन्दर प्रसाद सिंह, डा. श्याम सुन्दर प्र. सिंह श्री कृष्ण सेवा सदन, श्री मति डा. राजकिशोरी सिंह धर्मपत्नी डा. श्याम सुन्दर प्र. सिंह, स्व. साधुशरण सिंह शर्मा की स्मृति में द्वारा श्याम सुन्दर प्र. सिंह, स्व. सत्यभामा देवी की स्मृति में सुपुत्री डा. राजकिशोरी सिंह द्वारा, स्व. मिथिलेश कुमारी सिन्हा की स्मृति में डा. मकेश्वर प्र. सिन्हा (सिन्हा पॉली क्लीनीक), डा. प्रवीण कुमार सिन्हा सुपुत्र- डा. मकेश्वर प्र. सिन्हा डा. श्री मति विनिता सिन्हा धर्मपत्नी श्री प्रवीण कु. सिन्हा, धर्मनारायण सुमित्रा स्मारक न्यास द्वारा (श्री अमरेन्द्र कु. सिंह अधिवक्ता), स्व. राधा देव करण अग्रवाल की स्मृति द्वारा दिलीप अग्रवाल, श्री सीताराम कानोडिया लखीसराय वर्तमान निवास श्री वसंतलाल सिंघानिया की स्मृति में द्वारा सुपुत्र- विजय कु. सिंघानिया, स्व. बनारसी देवी बंका की स्मृति में द्वारा युगल किशोर बंका, श्रीमती अन्नपूर्णा देवी माता डा. अरुण कु. सिंह, श्री मति चन्द्रमणि देवी वैश्य किशोर, श्री मुरलीधर राय डी. डी. सी. सहित दर्जनों लोगों ने 20 हजार प्रति कठ्ठा की डॉ से जमीन दान दिया। वर्तमान में अभी 5 विघा 10 कठ्ठा जमीन में अशोक धाम बना हुआ है। उस समय आस-पास का क्षेत्र खेतनुमा था। वहां पर दो टीले थे। एक टीला से शिवलिंग प्रकट होने के बाद वहां मंदिर बना दिया गया। वहीं दूसरे टीले पर माता पार्वती की मूर्ति स्थापित करते हुए पार्वती मंदिर बनाया गया। शुरुआत में शिवलिंग के अलावा वहां सिर्फ एक नंदी था, जो वर्तमान में भी मौजूद है। वर्तमान में जिस जगह पर नंदी था, वह वहां पर न होकर शिवलिंग के ठीक सामने हुआ करता था। अब शिव और पार्वती मंदिर के बीच स्थापित किया गया है। पुराने लोग बताते हैं कि शिवलिंग प्रकटीकरण के बाद थ्रेसरी बाबा यहां पहुंचे थे। उन्होंने प्रण लिया था कि वे यहां से तभी जाएंगे, जबतक मंदिर का निर्माण नहीं हो जाता है। वे सुबह से शाम तक मंदिर परिसर में हाथ में त्रिशूल लिए एक ही पैर पर खड़े रहते थे। हालांकि करीब 25 साल बाद कुछ विवादों के कारण वे यहां से चले गए। फिर लौटकर नहीं आए।
अशोक धाम मंदिर की खासियत :
बता दें कि अशोक धाम मंदिर पूर्ण रूप से भगवान भोलेनाथ को समर्पित है। यह मंदिर सिर्फ लखीसराय ही नहीं बल्कि पूरे बिहार का प्रसिद्ध और प्राचीन मंदिर माना जाता है। यहां पर हर समय भक्तों की भीड़ देखने को मिलती है। स्थानीय लोगों के लिए भी अशोक धाम मंदिर काफी पवित्र स्थल है। लोगों का मानना है कि किसी भी विपदा या समस्या के दौरान मंदिर लोगों की रक्षा करता है। इस मंदिर की वास्तुकला भी लोगों को खूब आकर्षित करती है। अशोक धाम मंदिर को बिहार का देवघर भी बोला जाता है।
आसपास के दर्शनीय स्थल :
अशोक धाम के पास आप कई अन्य शानदार जगहों को एक्सप्लोर कर सकते हैं। आप यहां पर भगवती स्थान मंदिर, श्रृंगी ऋषि आश्रम और अभयनाथ मंदिर जैसे धार्मिक स्थलों पर घूमने के लिए जा सकते हैं। इसके अलावा किऊल नदी, काबर झील, अमरासनी हिल्स और लाल पहाड़ी जैसी खूबसूरत जगहें देख सकती हैं।
सैकड़ों साल पुराना है अशोक धाम मंदिर का इतिहास :
अशोक धाम मंदिर की स्थापना 1977 को हुई है। लेकिन इसका ऐतिहासिक महत्व सैकड़ों साल पुराना है। दावा किया जाता है कि 8वीं शताब्दी में ही यहां शिवलिंग की स्थापना की गई थी। तब पाल वंश के छठे सम्राट नारायण पाल यहां रोज पूजा करते थे। जनश्रुति के अनुसार 12वीं शताब्दी में राजा इंद्रद्युम्न ने यहां विशाल मंदिर का निर्माण कराया था।
बाबा इंद्रदमनेश्वर महादेव की पूजा :
राजा इंद्रद्युम्न का महल लखीसराय की लाल पहाड़ी पर था। उन्होंने महल से मंदिर जाने के लिए एक सुरंग बनवाया था। बाद में मुगलों ने मंदिर को जमींदोज कर दिया। तब वहां स्थित शिवलिंग जमीन के अंदर गड़ा था और उसकी तलाश अशोक यादव नाम के चरवाहे ने की। अशोकधाम में बाबा इंद्रदमनेश्वर महादेव की पूजा की जाती है।
अशोक के नाम पर बना अशोकधाम :
मंदिर में स्थित शिवलिंग को अशोक ने खोजा था इसलिए इस मंदिर का नाम अशोकधाम पड़ा। बाद में अशोकधाम में भव्य मंदिर का निर्माण कराया गया। 11 फरवरी 1993 को मंदिर के पुनर्निर्माण के बाद जगन्नाथपुरी के शंकराचार्य ने शिवलिंग की विधि विधान के साथ प्राण प्रतिष्ठा कराई थी। अशोक धाम मंदिर में दूर-दूर से लोग पूजा करने के लिए आते हैं। अशोक धाम मंदिर परिसर में वेद विद्यालय भी है। यहां छोटे-छोटे बच्चे वैदिक मंत्रोच्चारण करते नजर आते हैं। अशोक धाम में करीब 25 करोड़ से अधिक की राशि से उच्चस्तरीय संग्रहालय बनाया गया है।
अशोक धाम अतीत से वर्त्तमान तक :
धार्मिक एवं जनश्रुति के आधार पर श्रृंगि ऋषि आश्रम में अपनी ज्येष्ठ बहन शांता के यहाँ जाने के क्रम में किल्लवी (किउल) एवं गंगा के संगम तट पर भगवान श्री राम द्वारा पूजित शिवलिंग। - त्रेता, भगवान श्री कृष्ण के पूर्वज ययाति के वंशज कृमि द्वारा कृमिला नगरी की स्थापना के साथ शिवलिंग की पुनर्प्रतिष्ठा – द्वापर, भगवान बुद्ध के द्वारा वर्षावास इस तीर्थ क्षेत्र की विशिष्टता का परिचायक है। सम्राट अशोक द्वारा बौद्ध स्तूप का निर्माण इस स्थापना के पवित्रता का पूरक है। चीनी यात्री ह्वेन सांग, वाकाटक राजवंश के प्रवरसेन द्वारा सौ अश्वमेघ यज्ञ पूर्वक शिवलिंग की विशिष्ट अर्चना ई. (द्वितीय शताब्दी), गुप्त काल में शिव, दुर्गा, गणेश, पार्वती प्रभूति मूर्त्तियों का निर्माण एवं प्रतिष्ठा। पाल वंशीय राजा नारायण पाल द्वारा मंदिर का पूजन नियमित रूप से प्रारंम्भ - 8वीं शताब्दी, राजा इन्द्रद्युम्न द्वारा मंदिर कलात्मक स्वरूप की प्रदान किया। - 13 वीं शताब्दी, बालक अशोक की माध्यम बनाकर टीले के नीचे से शिवलिंग का पुनर्प्राकट्य। मंदिर के पुननिर्माण हेतु जगन्नाथ पुरी के शंकराचार्य परम- पूज्य स्वामी निश्चलानंद जी द्वारा शिलान्यास, श्री दीनानाथ मंडल, जिलाधिकारी, लखीसराय द्वारा मंदिर निर्माण का शुभारम्भ। जगन्नाथ पुरी शंकराचार्य परम पूज्य स्वामी निश्चलानंद सस्वती द्वारा स्वर्ण कलशा- रोहण लोकार्पण एवं नदल कु. जी कनोडिया द्वारा पुनर्प्रतिष्ठा पूजन। श्री विश्वनाथ के शान जी द्वारा पार्वती माता के मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा।
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