पूण्यतिथि पर याद किये गए भोजपुरी के महानायक भिखारी ठाकुर....!!
●पुण्यतिथि पर याद किए गए लोक कलाकार भिखारी ठाकुर
●भिखारी ठाकुर अपने कला के माध्यम से पूरे विश्व में जीवित हैं
● भिखारी ठाकुर ने "उस्तरे से उस्ताद" तक का सफर किया
●कुरीतियों पर करारा प्रहार किया भिखारी ठाकुर ने
बिहारशरीफ, 11 जुलाई 2025 : स्थानीय बिहारशरीफ के छोटी पहाड़ी मोहल्ले में गुरुवार की देर शाम को शंखनाद साहित्यिक मंडली के तत्वावधान में लोकगायक व शिक्षक रामसागर राम के आवास पर समाज की कुरीतियों पर कड़ा प्रहार करने वाले, लोकप्रिय भोजपुरी साहित्य-चूड़ामणि मगही-भोजपुरी के महानायक, जनकवि व लोकगायक भिखारी ठाकुर की 54वीं पूण्यतिथि कवियों, साहित्यकारों एवं समाजसेवियों ने मनाई। समारोह की अध्यक्षता शंखनाद के अध्यक्ष प्रकांड इतिहासकार व साहित्यकार प्रोफेसर डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह तथा संचालन शंखनाद के महासचिव राकेश बिहारी शर्मा ने किया।
समारोह का उद्घाटन शंखनाद के अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह, महासचिव साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा एवं मगही-भोजपुरी साहित्य के प्रकांड विद्वान धनंजय श्रोत्रिय ने संयुक्त रुप से दीप प्रज्जवलित कर कार्यक्रम शुरूआत की, तथा स्व. भिखारी ठाकुर के तैलचित्र पर फूल-माला चढाकर श्रद्धासुमन अर्पित किया।
लोक जागरण के संदेश वाहक भिखारी ठाकुर :
मौके पर समारोह में सर्वप्रथम विषय प्रवेश कराते हुए शंखनाद साहित्यिक मंडली के महासचिव साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा ने अपने सम्बोधन में कहा कि भोजपुरी के शेक्सपीयर, विरह के संत, लोक कला के साधक, लोक जागरण के संदेश वाहक, नारी विमर्श एवं दलित विमर्श के उद्घोषक पद्मश्री कलावंत भिखारी ठाकुर नें समाज में व्याप्त कुरीतियों पर अपनी रचनाओं में करारा प्रहार किया है। समाजसुधारक भिखारी ठाकुर ने भोजपुरी संस्कृति को एक नई पहचान देने के साथ-साथ समाज में फैली कुरीतियों पर जमकर हल्ला बोला। बिदेशिया, गबर-घिचोर के साथ-साथ बेटी-बियोग और बेटी बेंचवा जैसे नाटकों के जरिये उन्होंने अलग तरह की चेतना समाज में फैलाई। भिखारी ठाकुर अपने इन नाटकों की मदद से सामाजिक बुराईयों पर भी कठोर प्रहार किया करते थे। भिखारी ठाकुर ने कुल 29 पुस्तकें लिखीं। भिखारी ठाकुर ने "उस्तरे से उस्ताद" तक का सफर तन्मयता के साथ तय किया। कहना गलत नहीं होगा कि समाज को इस तरह की सोच की जरूरत भी उस समय थी। वर्तमान समय में लोक कला को और समृद्ध करने की आवश्यक्ता बताई। उन्होंने यह सलाह भी दी कि शराबबंदी के लिए प्रतिबद्ध बिहार के मुख्यमंत्री माननीय नीतीश कुमार जी को सूबे के सभी जिले में भिखारी ठाकुर जी के नाटक 'पियवा निसइल' का मंचन करवाना चाहिए। बता दें कि 'पियवा निसइल' पद्मश्री भिखारी ठाकुर का प्रसिद्ध नाटक है, जिसे देख लेने के बाद दर्शकों में नशे के प्रति वितृष्णा का भाव पैदा होता है।
समर्थ सामाजिक चिंतक भिखारी ठाकुर :
मौके पर अध्यक्षता करते हुए शंखनाद के अध्यक्ष डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह ने कहा- भिखारी ठाकुर एक समर्थ सामाजिक चिंतक थे। बेटी बचाओ, जैसे महत्वपूर्ण सवाल पर आज की वर्तमान सरकार स्लोगन प्रचारित कर रही है। जबकि भिखारी ठाकुर अपने समय में ग्रामीण इलाकों में जाकर लोगों को बेटियों के प्रति सामाजिक नजरिया और मानसिक बदलाव लाने को संदेश दिया। अपने नाटकों के द्वारा उन्होंने सामाजिक क्रांति का संदेश जन-जन तक पहुंचाने का काम किया। आज के वर्तमान परिवेष में उनका अनुसरण करते हुए समाज को पुनः जागरूक करने की जरूरत है। भिखारी ठाकुर ने बाल-विवाह, मजदूरी के लिए पलायन और नशाखोरी जैसे मामलों पर उस वक्त अपनी बात रखी जब इनके बारे में कोई भी बोलने को तैयार नहीं था। भिखारी ठाकुर अपने कला के माध्यम से पूरे विश्व में जीवित हैं।
भोजपुरी के सभ से महान लेखक :
मौके पर मगही एवं भोजपुरी साहित्य के संपादक, प्रकांड विद्वान साहित्यकार धनंजय श्रोत्रिय ने भिखारी ठाकुर के सामाजिक-सांस्कृतिक अवदानों को अन्य साहित्यकारों की कृतियों से तुलनात्मक अध्ययन करते हुए कहा कि भिखारी ठाकुर भोजपुरी भाषा के गीतकार, नाटककार आ लोक कलाकार रहलें, जिनकरा के भोजपुरी के सभ से महान आ बिहार-पूर्वांचल के सभ से प्रदिद्ध लेखक मानल जाला। इनका के भोजपुरी क शेक्सपीयर आ राय बहादुरओ कहल जाला। इनकर रचना सभ मे एह दर्जन से बेसी तमासा, कबिता, भजन बाड़ें जिनहन के प्रकाशन तीन दर्जन से बेसी किताबन के रूप मे भइल बा। ठाकुरजी के जनम बिहार के सारन जिला के एक ठो गाँव कुतुबपुर में नाऊ हजाम-ठाकुर परिवार में भइल रहे। शुरुआत में कमाए खातिर खड़गपुर गइलेन बाकी कुछ दिन बाद उहाँ से मन ना लगले पर लवटे कलकत्ता आ आगे जगन्नाथ पुरी ले घूम के लवटे के परल। नाच आ रामलीला के सौकीन भिखारी आपन खुद के मंडली बना के रामलीला सुरू कइलें। बाद में ऊ एह मंडली खातिर खुदे नाटक आ गीत रचे सुरू कइलें। एह मंडली में खुद नचनिया, एक्टर आ सूत्रधार के रूप में पाठ खेलें। धीरे-धीरे उनके मंडली भोजपुरी इलाका में बहुत परसिद्ध हो गइल। बाद में उनके लिखल रचना पटना आ बनारस से किताब के शकल में छपल। उनके सभसे परसिद्ध नाटक बिदेसिया के आधार बना के एक ठो फिलिमो बनल।
भोजपुरी और मगही लोकभाषा के समन्वय :
वरीय वैज्ञानिक, साहित्यकार व मगही कवि डॉ. आनंद वर्द्धन ने कहा कि सदा स्मरणीय लोकप्रिय भिखारी ठाकुर समसामयिक सामाजिक कुरीतिओं को रंगमंच के साथ बिहार के भोजपुरी और मगही लोकभाषा के समन्वय स्वरूप पुर्वी गीत की रचना और मंचन कर बिहार को संस्कार एवं संस्कृति की नीव देकर समाज बदलने की प्रेरणा दी। कोटिश नमन है और आज के परिवेश में ऐसे ही प्रेरक ठाकुर की महत आवश्यकता है।
महान नाट्यकर्मी भिखारी ठाकुर :
संगीत सम्राट संगीतज्ञ व राज्य स्तरीय सम्मान से सम्मानित नाटककार अशोक सिंह ने भिखारी ठाकुर को नमन करते हुए कहा कि भिखारी ठाकुर होना बड़ी बात है। बिहार क्या देश की धरती पर अब शायद कोई भिखारी सा होगा। कई कारण है कि लोक गायक, संगीतकार और नाट्यकर्मी भिखारी ठाकुर को भोजपुरी का शेक्सपियर कहा जाता है। उनके गीत सुनकर कभी भी बिहार के ग्रामीण इलाकों में कभी थके हारे मजदूरों के चेहरे पर रौनक आ जाती। उन्होंने सामाजिक समस्याओं और मु्द्दों पर आम बोलचाल की भाषा में गीत लिखे। उन्हें गाया और रंगमंच पर जीवंत करके लोगों के सामने पेश किया।
भिखारी ठाकुर बहुआयामी प्रतिभा के धनी :
नालंदा के चर्चित नाटककार रामसागर राम ने कहा कि भिखारी ठाकुर बहुआयामी प्रतिभा के धनी थे। वह एक लोक कलाकार के साथ कवि, गीतकार, नाटककार, नाट्य निर्देशक, लोक संगीतकार और अभिनेता थे। उनकी मातृभाषा भोजपुरी थी और उन्होंने भोजपुरी को ही अपने काव्य और नाटक की भाषा बनाया। उनकी प्रतिभा का आलम यह था कि महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने उनको 'अनगढ़ हीरा' कहा, तो जगदीशचंद्र माथुर ने कहा 'भरत मुनि की परंपरा का कलाकार'।
शंखनाद के मीडिया प्रभारी शायर नवनीत कृष्ण ने श्रद्धा सुमन अर्पित कर कहा कि भोजपुरी के शेक्सपीय कहे जाने वाले लोक कलावंत पद्मश्री भिखारी ठाकुर जी लोक कलाकार ही नहीं थे, बल्कि जीवन भर सामाजिक कुरीतियों और बुराइयों के खिलाफ कई स्तरों पर जूझते रहे। उनके अभिनय और निर्देशन में बनी भोजपुरी फिल्म ‘बिदेसिया’ आज भी लाखों-करोड़ों दर्शकों के बीच पहले जितनी ही लोकप्रिय है।
भिखारी ठाकुर एक सांस्कृतिक योद्धा :
मौके पर आरोग्य गुरु पत्रिका के संपादक सौरभ कुमार ने कहा कि पद्मश्री भिखारी ठाकुर एक सांस्कृतिक योद्धा थे। उन्होंने समाज में परिवर्तन लाने के लिये रंगमंच का सहारा लिया। उनके नाटकों का असर समाज पर बहुत ही गहरे स्तर पर पड़ता था। अपनी कला को चर्मोत्कर्ष पर ले जाकर सामाजिक विडम्बनाओं को बड़े ही सहज और सरल तरीके से अभिव्यक्त करने का हुनर था। भिखारी ठाकुर एक कालजयी रचनाकार थे। भिखारी ठाकुर की रचनाधर्मिता और उनकी कला आज भी रंगकर्मियों के लिए एक चुनौती है।
शिक्षाविद राज हंस ने कहा कि आज भोजपुरी के शेक्सपियर कहे जानेवाले लोक कलाकार भिखारी ठाकुर की पुण्यतिथि है। उन्हें इस दुनिया से रुखसत हुए 54 साल हो गये। 54 सालों के बाद भी उनकी रचनाएं, नाटक व गीत आज भी प्रासंगिक हैं।
फिल्मकार रणजीत चन्द्रा ने कहा कि लोकनाट्य के प्रवर्तक व भोजपुरी के शेक्सपियर भिखारी ठाकुर ने अपनी नाट्य शैली से समाज की कुरीतियों पर कड़ा प्रहार किया। वहीं, लोगों को जागरूक करने में भी भिखारी ठाकुर की महत्वपूर्ण भूमिका रही।
कार्यक्रम में संगीतज्ञ अशोक सिंह अपने सहयोगियों के साथ भिखारी ठाकुर के कई गीतों को सुनाया।
इस मौके पर प्रोफेसर (डॉ. ) शकील अहमद अंसारी, डॉ. सत्यनारायण प्रियदर्शी, कामेश्वर प्रसाद, राम प्रसाद सिंह, सुभाष चंद्र पासवान, शिवकुमार सिंह, धीरज कुमार, अरुण बिहारी शरण, स्नेहा कुमारी, सुमन सौरभ, आनवी कुमारी सहित शहर के कई गणमान्य लोगों ने भाग लिया।
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