भारतीय श्रमण संस्कृति के रक्षक पांच नागवंशीय राजा....!!
●भारतीय संस्कृति में नाग पंचमी का सच
लेखक :- साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा, महासचिव शंखनाद साहित्यिक मंडली
नाग पंचमी, भगवान बुद्ध और उनकी विचारधारा संस्कृति एवं सभ्यता के प्रहरी नागवंशीय राजाओं को समर्पित भारत का इतिहास क्रांति व प्रतिक्रांति का इतिहास रहा हैं, इसी इतिहास में क्रांति का प्रतिनिधित्व नागवंशीय आंदोलन ने किया।इस देश का इतिहास ही नागवंश के इतिहास से प्रारंभ होता हैं। शिशुनाग उस संघर्ष का नेतृत्व करने वाला पहला नागवंशी सेनानी था। ई.स.पूर्व 642 में मगध साम्राज्य का उदय हुआ, जिसके संस्थापक सम्राट शिशुनाग थे। यहाँ से नागवंशीय राजाओ का इतिहास शुरू होता है। यही लोग श्रमण संस्कृति का नेतृत्व करने वाले वीर सेनानी थे, तथागत बुद्ध की मानवतावादी विचारधारा को जिन नाग लोगों ने जम्बूद्वीप अर्थात भारत वर्ष में प्रसारित किया, नागपंचमी, उन्ही का पर्व है। नाग लोग भगवान बुद्ध के उपासक थे, नागपंचमी का सम्बंध नाग अर्थात साँप से न होकर पांच महापराक्रमी नागवंशीय राजाओ के प्रतीक ( टोटेम )के रूप था, जो गणतंत्र को मानने वाले थे। उन्होंने बुद्ध के विचारो पर चलकर जिन्होंने समता, स्वतंत्रता, बंधुत्व, न्याय के आधार पर अपना स्वतंत्र गणराज्य स्थापित किया था। नाग पंचमी तब से मनाई जाती है जब से भारत के कोने-कोने में नाग वंश के राजाओं ने बौद्ध सभ्यता के प्रति अपना पूरा योगदान दिया उन्हीं में से पाँच सर्वश्रेष्ठ नागराज- शेषदत्त नाग, नागराजा वासुकी, नागराजा तक्षक, नागराजा करकोटक, नागराजा ऐरावत इन महान राजाओं के याद में नाग पंचमी मनाया जाता है। ये सभी नागवंश के राजा भगवान बुद्ध के अनुयायी व बौद्ध धर्म के प्रचारक थे। उनका साम्राज्य भारत, यूनान ,मिश्र, चीन, जापान आदि देशों में भी रहा है। राजा शेषनाग का पूरा नाम शेषदत्त नाग था। उनके पूरे नाम की जानकारी हमें ब्रिटिश म्यूजियम में रखे सिक्कों से मिलती है। शेषनाग ने विदिशा को राजधानी बनाकर 110 ई.पू. में नाग वंश की नींव डाली थी। शेषनाग की मृत्यु 20 सालों तक शासन करने के बाद 90 ई.पू. में हुई। उसके बाद उनके पुत्र भोगिन राजा हुए, जिनका शासन–काल 90 ई.पू. से 80 ई.पू. तक था। फिर चंद्राशु( 80 ई. पू.– 50 ई. पू. ), तब धम्मवर्म्मन( 50 ई. पू.– 40 ई. पू. ) और आखिर में वंगर ( 40 ई. पू.– 31ई. पू. ) ने नाग वंश की बागडोर संभाली। राजा शेषनाग की चौथी पीढ़ी में वंगर थे। इस प्रकार नाग वंश के कुल मिलाकर पाँच राजाओं ने शासन किए। इन्हीं पाँच नाग राजाओं को पंचमुखी नाग के रूप में बतौर तथागत बुद्ध के रक्षक मुंबई की कन्हेरी की गुफाओं में दिखाया गया है। नागराज तक्षक ने ही विश्व प्रसिद्ध तक्षशिला विश्वविद्यालय की स्थापना की थी। प्लेटो, अरस्तू जैसे दार्शनिकों ने यहीं अध्ययन किया था। नागराजा करकोटक रावी नदी के प्रदेश में विशाल राज्य था। नागराजा ऐरावत भंडारा प्रांत में (पिंगाला) स्थित आज भी पिन्गालाई एरिया नाम से पहचाना जाता है। साथ ही साथ नागवंशी योद्धाओं में पदम्, कवल, ककोटिक,अस्तर, शंखपाल,कालिया और पिंगल नागवीर प्रसिद्ध है। इन पाँचों नागवंशीय राजाओं के गणतंत्र राज्य की सीमाएँ एक दूसरे से सटी हुई थीं। पांचों नागराजों की मृत्यु के बाद नाग कुल के लोग उनकी याद में हर साल नागराज स्मृति अभिवादन को नागपंचमी के रूप में मनाते थे।
वैदिक यज्ञवंशीय ब्राह्मणों की कलम ने नागवंशीय राजा को एक रेंगते हुए साँप में बदल दिया। श्रावण मास के महत्व से नागपंचमी के लिए आवश्यक 'नाग-नरसोबा' का चित्र कागज पर छपवाकर, उस कागज़ की बिक्री हुई। धीरे-धीरे यह प्रयोग सफल होने पर छोटे-छोटे किताब छापे गये इन किताबों कि बिक्री भी होने लगी। आर्थिक गरीबी के कारण बहुजन समाज इन कागज के नाग नरसोबा प्रवृत्ति की ओर आकर्षित हुए, क्योंकि वैदिक पंडित बहुजनों के मन में यह बात बैठाने में सफल रहे कि इन कागज के चित्र की पूजा करने से पुण्य मिलता है। परिणामस्वरूप "नाग-नरसोबा" और कुछ किताबें प्रसिद्ध हो गए परिणामस्वरूप यह पंचमी रेंगते हुये साँपो की हो गयी और नागराजाओं की पंचमी लुप्त हो गई। नाग यह शब्द संस्कृत भाषा में कहीं भी रेंगने वाले साँप के लिए नहीं आया। संस्कृत में नाग शब्द का अर्थ हाथी होता है। और हाथी के प्रतीक को बौद्ध संस्कार संस्कृति में पवित्र स्थान है इसलिए हाथी और नागपंचमी का निश्चित ही गहरा सम्बन्ध है।
नाग पंचमी यह नाग वंशियो का बड़ा त्योहार माना जाता है। लेकिन आर्यो की राजनैतिक चालाकी से मूल निवासी इसे साँप -सपेरों से जोड़कर देखते है। क्योंकि नाग वंशियो को तोड़कर ही आर्यो ने इन्हें पराजित किया था। और भगवान का डर दिखाकर खुद का संरक्षक भी बना लिया। नाग का मतलब सिर्फ़ सांप नहीं होता बल्कि नाग वंश भारत में एक प्रमुख वंश था। नाग का मतलब पाली भाषा में आदमी होता है। नाग पंचमी का बुद्ध सभ्यता में भी बड़ा महत्व है। बुद्ध सभ्यता में नागपंचमी या नागपंचशील सावन के महीने में गौतम बुद्ध के समय से मनाया जाता है। सावन के महीने में इसलिए मनाया जाता है क्योंकि भारत के प्राचीन समय में साल मापने का पैमाना वर्षा वास से किया जाता था। आज भी जो हम एक साल को एक वर्ष कहते है वह उसी वर्षा वास से आया है।
यह संस्कृत का श्लोक... नागोभातिमदेनकंजलरूहैः नित्योत्सवैः मंदिरम् ...। अर्थात जैसे हाथी मतवाले होने के बाद सुंदर दिखता है, वैसे ही कमल-पुष्पो से भरा तालाब खुबसूरत और सुंदर दिखते हैं... इस संस्कृत श्लोक में नाग शब्द का प्रयोग हाथी के लिए किया गया है... संस्कृत में सांप का पर्याय शब्द भुजंग, सर्प, तक्षक ऐसा कहा जाता है। जैसे... तक्षकस्स विषं दन्ते मणिनाभूषितः सर्पः किमसौ न भयंकरः इस श्लोक में देखिए सर्प, तक्षक यह शब्द आये है। आज भले ही नागपंचमी को रेंगने वाले सांप के नाम से जाना जाता है, लेकिन इसके बारे में ऐतिहासिक स्थिति अलग है। इसलिए बहुजनों को धार्मिक दायरे से बाहर आकर नागपंचमी को उत्सव के रूप में नहीं मनाना चाहिए बल्कि बहुजन नागवंशीय राजाओं की स्मृति को नमन करना चाहिए और नाग वंश के इतिहास से समाज को जागरूक करना चाहिए। इसलिए पहले जानो,फिर छानो(समझो) तब मानो।
इन पांच नागवंशीय राजाओं में :- पहले राजा- 'अनंत' राजा थे। जम्मू-कश्मीर का अनंतनाग शहर इन्हीं की याद दिलाता है। इन्हें 'शेष' भी कहा जाता था, जिन्हें सम्मान में 'शेषनाग' राजा भी कहा जाता है। दूसरे राजा- कैलाश मानसरोवर क्षेत्र का प्रमुख राजा 'वासुकी' नागराजा थे। 'वासुकी राजा' के आज भी लोकगीत गाए जाते हैं। तीसरे राजा- नागराजा 'तक्षक' थे, जिनके नाम से पाकिस्तान में तक्षशिला स्थापित है। चौथे राजा - राजा 'करकोटक ऐरावत' थे जिनके राज्य का क्षेत्र रावी नदी के पास था। पांचवे राजा - राजा 'पद्म' थे, जिसका गोमती नदी का क्षेत्र मणिपुर, असम था, इसी नाग वंशियो से नागालैंड बना। महाराष्ट्र का नागपुर भी नाग राजाओं के कारण है। ये पांचों नागवंशीय राजा श्रमण संस्कृति की रक्षा करते थे और असमानता, अन्याय वाली वर्ण संस्कृति को बढ़ावा देने वालों से इनका संघर्ष होता था। ये राजा अपनी प्रजा में भगवान बुद्ध के प्रेम, करुणा, मैत्री के विचारों को फैलाते थे। पांचों राज्य की प्रजा श्रमण संस्कृति के रक्षक अपने प्रिय महापराक्रमी राजाओ की स्मृति में हर साल एक उत्सव मनाती थी, इसे ही 'नागपंचमी' कहा जाता है। बाद में यह उत्सव लोक पर्व के रुप में पूरे अखण्ड भारत में मनाया जाने लगा। उससे वर्ण संस्कृति के लोगो मे खलबली मच गई, और उन्होंने नागवंशीय राजाओ के गौरवशाली इतिहास को मिटाने के लिए षडयंत्र करके योजनाबद्ध तरीके से नागराजा का सम्बंध साँप से जोड़ कर विकृत इतिहास रच दिया।
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