भारत छोड़ो आंदोलन के युवा क्रांतिकारी अमर शहीद रामफल मंडल....!!
• 19 वर्ष की उम्र में रामफल मंडल को हुई थी फांसी
लेखक :- साहित्यकार राकेश बिहारी शर्मा, महासचिव शंखनाद साहित्यिक मंडली
आजादी की लड़ाई में फांसी को गले लगाने वाले अखंड बिहार के प्रथम अमर शहीद युवा क्रांतिकारी रामफल मंडल जी है। इनका जन्म सीतामढ़ी जिला के ग्राम+पोस्ट-मधुरापुर, प्रखंड व थाना-बाजपट्टी में 6 अगस्त 1924 को हुआ था। वह अपने माता गरबी देवी व पिता गोखुल मंडल के तीसरे पुत्र थे। इनकी शादी 16 वर्ष की उम्र में जगपतिया देवी से हुई थी। चार भाइयों में रामफल मंडल देश व समाज की स्थिति को लेकर अधिक संवेदनशील थे।
आंदोलन में रामफल मंडल पर लगे आरोप :
सीतामढ़ी के गोलीकांड में अंग्रेजों ने बच्चे बूढ़े और औरत को गोलियों से मौत की नींद सुला दी गई थी। इसी के विरोध में रामफल मंडल ने 24 अगस्त 1942 को बाज़पट्टी चौक पर अंग्रेज सरकार के तत्कालीन सीतामढ़ी अनुमंडल अधिकारी हरदीप नारायण सिंह, पुलिस इंस्पेक्टर राममूर्ति झा, हवलदार श्यामलाल सिंह और चपरासी दरबेशी सिंह को गड़ासा से काटकर हत्या।
रामफल मंडल जी को कैद और केस की सुनवाई :
कांड संख्या- 473/42 केस की सुनवाई में माननीय सी.आर.सैनी न्यायलय भागलपुर में केस की सुनवाई की गई थी। 1 सितंबर 1942 को रामफल मंडल जी की गिरफ्तारी जेल सीतामढ़ी 5 सितंबर 1942 को भागलपुर केंद्रीय कारागार में तथा 15 जुलाई को कांग्रेस कमिटी बिहार प्रदेश में रामफल मंडल एवं अन्य के सम्बन्ध में तत्कालीन एसडीओ, इंस्पेक्टर एवं अन्य पुलिस कर्मियों की हत्या के आरोपो पर चर्चा हुई थी। जिसमें रामफल मंडल जी को फाँसी की सजा सुनाई गयी। जेल में रामफल मंडल जी 11 महीना रहे थे।
भागलपुर सेंट्रल जेल में 19 वर्ष की उम्र में रामफल मंडल को हुई थी फांसी :
शहीद रामफल मंडल ने कहा था कि भारत की आजादी में मुझे फांसी भी मंजूर है। आप लोग मेरे परिवार को देखते रहिएगा। बाद में यह सच साबित हुआ और अंग्रेजी सरकार ने उन्हें फांसी पर लटका दिया। वो युवा अवस्था में ही हंसते-हंसते फांसी का फंदा चूम लिया था। वर्ष 1942 के जब पूरे देश में अगस्त क्रांति की आग भड़की तो सीतामढ़ी भी इससे अछूता नहीं रहा। उसी समय बाजपट्टी में आजाद हिंद फौज का सैन्य प्रशिक्षण शिविर चलता था। यहां युवाओं को अंग्रेजों से लोहा लेने का प्रशिक्षण दिया जाता था। उस वक्त पुपरी थाने के दारोगा अर्जुन सिंह का बड़ा आतंक था। दर्जनों गांवों के लोग इससे परेशान थे। इसी बीच पता चला की 24 अगस्त 1942 को अर्जुन राय बाजपट्टी आने वाला है। इसके बाद बनगांव कोठी में बैठक कर अर्जुन राय को सबक सिखाने की योजना बनी। रामफल मंडल को सेनानायक बनाया गया था। 24 अगस्त को हजारों की भीड़ लाठी-डंडा, भाला, फरसा, गडासा आदि के साथ बाजपट्टी चौक पर दरोगा का इंतजार करने लगी, लेकिन इसकी भनक दरोगा को लग गई। वह सीतामढ़ी के तत्कालीन एसडीओ हरदीप नारायण सिंह को इसकी सूचना देते हुए लौट गया। इसके बाद एसडीआ हरदीप पुलिस इंस्पेक्टर राम मूर्ति झा, हवलदार श्याम लाल सिंह, चपरासी दरवेसी सिंह व चालक आदित्य राम के साथ बाजपट्टी पहुंचे, लेकिन उग्र भीड़ के सामने उनकी एक न चली। रामफल ने तलवार के एक ही वार से अग्रेज एसडीओ का सर कलम कर दिया। वही इस्पेक्टर राम मूर्ति झा को फरसा के प्रहार से मौत की नीद सुला दी। साथ ही रिवाल्वर लूट लिया। भीड़ से शेष दो लोगों को भी मौत की नींद सुला दिया। हालांकि चालक आदित्य राम फरार हो गया और सीतामढ़ी मजिस्ट्रेट के कोर्ट में बयान दिया। जिसके बाद रामफल मंडल, बाबा नरसिंह दास, कपिल देव सिंह, हरिहर प्रसाद समेत चार हजार लोगों के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज किया गया। रामफल के घर में आग लगा कर जमीन जोत लिया गया। उन पर पाच हजार रुपये का इनाम घोषित किया गया। इस बीच गांव के दफादार शिवधारी कुंवर ने छल से उन्हें गिरफ्तार करवा दिया। उन्हें डुमरा जेल में बंद कर दिया गया। करीब छह माह के बाद उन्हें भागलपुर सेंट्रल जेल भेज दिया गया। मामले की सुनवाई के बाद 15 अगस्त 1943 को रामफल मंडल को फांसी की सजा सुनाई गई। बाकि अन्य आरोपियों को उम्रकैद की सजा मिली। 23 अगस्त 1943 को सुबह भागलपुर सेंट्रल जेल में महज 19 वर्ष 17 दिन की अवस्था में उन्हें फासी दे दी गई।
भारतीय आजादी के आंदोलन में बिहार की भूमका :
स्वतंत्रता संग्राम में बिहार का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। 1857 की क्रांति से लेकर देश की आजादी तक, बिहार के वीर सपूतों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ संघर्ष में अग्रणी भूमिका निभाई। इस पावन भूमि ने हिलसा के वीर सपूत बालगोबिंद ठाकुर, ग्राम - कछियावां - 25 वर्ष , नारायण पांडेय, ग्राम -कछियावां- 18 वर्ष, भीमसेन महतो,ग्राम - इंदौत- 20 वर्ष , सदाशिव महतो, ग्राम -बढ़नपुरा-20 वर्ष, केवल महतो, ग्राम - बनवारा-32 वर्ष, सुखाड़ी चौधरी,ग्राम -हिलसा-18 वर्ष, दुखन राम, ग्राम -गन्नीपुर- 21 वर्ष, रामचरित्र दुसाध, ग्राम -बनवारीपुर-18 वर्ष, शिवजी राम, ग्राम -हिलसा-25 वर्ष, हरिनंदन सिंह, ग्राम - मलावा-19 वर्ष, भोला सिंह, ग्राम -बनवारा- 21 वर्ष, भीमसेन महतो, ग्राम - इंदौत- 20 वर्ष थे। इसी तरह पटना में 11 अगस्त 1942 को सचिवालय गोलीकांड बिहार के इतिहास वरन् भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का एक अविस्मरणीय दिन था। पटना के जिलाधिकारी डब्ल्यू. जी. आर्थर के आदेश पर पुलिस ने गोलियाँ चलाने का आदेश दे दिया। पुलिस ने 13 या 14 राउंड गोलियाँ चलाईं, इस गोलीकांड में सात छात्र शहीद हुए, लगभग 25 गम्भीर रूप से घायल हुए। 11 अगस्त 1942 के सचिवालय गोलीकांड ने बिहार में आंदोलन को उग्र कर दिया। उन शहीदों में उमाकान्त प्रसाद सिन्हा (रमन जी), रामानन्द सिंह, सतीश प्रसाद झा, जगत्पति कुमार, देविपदा चौधरी, राजेन्द्र सिंह, रामगोविन्द सिंह जी जैसे महान स्वतंत्रता सेनानियों को जन्म दिया, जिन्होंने अपने साहस और बलिदान से स्वतंत्रता की लड़ाई को एक नई दिशा दी और शहीद हो गये थे।
भारतीय आजादी के आंदोलन में बिहार की भूमका महत्वपूर्ण रही है, फर भी वर्तमान बिहार एवं बिहारियों की कुर्वानी को आकलन करने से यह महसूस होता है की कहीं न कहीं उन बिहारियों की उपेक्षा की गयी है, जिन्होंने अपनी कुर्बानी फांसी को गले लगाकर आजाद भारत के निर्माण में अपना योगदान दिया था। वैसे तो सम्पूर्ण भारत के निवासयों ने अपने-अपने स्तर पर देश की आज़ादी में अपनी अपनी भूमका निभायी, जिसमें उस समय के तत्कालीन बिहार की भूमिका अग्रणी रही है। उस समय के बिहार का चाहे "देवघर वद्रोह" (1857), "दानापुर वद्रोह" (1857), " बिरसा मुंडा आंदोलन, खूंटी" (1900), "चंपारण सत्याग्रह" (1918-19), "अंग्रेजो भारत छोड़ो" एवं "करेंगे या मरेंगे" (1942) आंदोलन हो, सभी में बिहार ने अग्रणी भूमिका अदा की है। आज अमर शहीद भगत संह, राजगुरु, सुखदेव, चन्द्रशेखर आज़ाद आदि का नाम बच्चा-बच्चा जानता है। परन्तु बिहारी शहीदों को जो सम्मान मलना चाहिए था, वह उचत सम्मान आज तक नहीं मल पाया है।
उदाहरण स्वरुप धानुक समाज के वीर अमर शहीद रामफल मंडल जी को ही लिया जाय। आप अवगत हैं की अमर शहीद रामफल मंडल जी ने बाजपट्टी, सीतामढ़ी में 1942 में अंग्रेजो भारत छोड़ो आन्दोलन में अग्रणी भूमका निभायी। और आजाद भारत बिहार के निर्माण में अग्रणी भूमका निभायी थी। वर्तमान बिहार के सन्दर्भ में फांसी पर लटकाए गए शहीदों को खंगालना शुरू कया तो एक तथ्य सामने आयी है की अमर शहीद रामफल मंडल वर्तमान बिहार के 1942 क्रांति के प्रथम बिहारी सपूत है जिन्हें फांसी पर लटकाया गया था। बिहार के प्रथम अमर शहीद बाबू रामफल मंडल आज भी उपेक्षित हैं।
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