स्वतंत्रता सेनानी प्रभु राम जी की छठी पुण्यतिथि पर दी भावपूर्ण श्रद्धांजलि....!!
●श्रद्धा पूर्वक मनाई गई संत शिरोमणि प्रभु राम जी महाराज की पुण्यतिथि
●संत शिरोमणि प्रभु राम जी की छठी पुण्यतिथि मनाई गई
●संत प्रभु राम जी ऋषि-कृषि एवं संत सेवा को ही अपना धर्म मानते थे
बिहारशरीफ-नालंदा 11 अक्टूबर 2025 : 10 अक्टूबर 2025 दिन शुक्रवार की देर शाम को स्थानीय बिहारशरीफ-छोटी पहाड़ी स्थित संगीतज्ञ रामसागर राम के आवास पर शंखनाद साहित्यिक मंडली के तत्वावधान में स्वतंत्रता सेनानी व लोकप्रिय आयुर्वेदाचार्य, प्रकांड रामायणी संत शिरोमणि प्रभु राम जी की छठी पुण्यतिथि शंखनाद के अध्यक्ष साहित्यकार डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह की अध्यक्षता में साहित्यकारों, कवियों एवं समाजसेवियों ने स्व. प्रभु राम जी के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर श्रद्धा भाव से मनाई गई। कार्यक्रम का संचालन शंखनाद के मीडिया प्रभारी नवनीत कृष्ण ने किया।
कार्यक्रम में संगीतकार व नालंदा जिले के प्रख्यात् नाटककार रामसागर राम, सुभाषचंद्र पासवान एवं लाल सिंह ने दिल को छू लेने वाले भजन- सब दिन होत न एक समाना एक दिन राजा हरिश्चन्द्र गृह कंचन भरे खजाना एक दिन भरे डोम घर पानी मरघट गहे निशाना सब दिन होत न एक समाना…,क्या तू लेकर जायेगा..., करीं हम कवन बहाना..., हर बात को तुम भूलो भले मगर माँ बाप को मत भूलना... सहित कई सुमधुर भजन-निर्गुण सुनाया।
मौके पर साहित्यिक मंडली शंखनाद के महासचिव राकेश बिहारी शर्मा ने बताया कि स्वतंत्रता सेनानी, प्रख्यात् आयुर्वेदाचार्य श्री संत शिरोमणि प्रभु राम जी बिहारशरीफ-छोटी पहाड़ी के शिक्षाविद् नाटककार रामसागर राम जी के पिता थे। ये पटना जिला के महाने नदी के तट पर स्थित बराह फतेहपुर में तपस्वी बाबा मठ के महंथ थे। स्वर्गीय प्रभु राम जी संत परम्परा के महान तपस्वी संत थे और ऋषि-कृषि व गौ सेवा तथा संत सेवा को ही अपना धर्म मानते थे। उन्होंने अपने समयावधि में कई उपद्रवियों को अपने आश्रम में रखकर संत बनाये हैं। वे हमेशा मानव सेवा एवं संतों सेवा में लगे रहते थे। आश्रम में जो भी व्यक्ति श्री प्रभु राम जी के सम्मुख आया वह खाली हाथ नहीं लौटा, उसकी इच्छाओं की पूर्ति श्री प्रभु महाराज जी ने की। उन्होंने बताया कि श्री प्रभु जी हमेशा यही कहते थे कि मानव सेवा में ही परमात्मा का वास होता है और यह परम्परा हमेशा चलती रहनी चाहिए। और इस तपस्वी बाबा मठ में सदियों से सेवा चल रही थी और आज भी उनके शिष्यों द्वारा गौ सेवा एवं संत सेवा, मानव सेवा निरंतर चल रही है।
मौके पर अध्यक्षता करते हुए साहित्यिक मंडली शंखनाद के अध्यक्ष साहित्यकार डॉ. लक्ष्मीकांत सिंह ने अपने उद्बोधन में कहा कि प्रभु राम जी ग्राम-खिरौना, पोस्ट-रहुई, जिला-नालन्दा के निवासी थे। ये स्वतंत्रता आन्दोलन में सक्रीय भागीदारी दिए थे। आजादी के बाद वैष्णव संप्रदाय के फतेहपुर पटना मठ में रहते हुए प्रवचन दिया करते थे। आयुर्वेदाचार्य, जड़ी बूटियों के महान ज्ञाता संत प्रभु राम जी दूर-दूर से आये हुए रोगियों को फ्री में इलाज करते थे। ये अपने जीवन में हजारों भजन व गीत गाये व लिखे। उन्होंने कहा कि संत शिरोमणि प्रभु राम जी भारत-नेपाल सीमा के पास स्थित कोसी नदी पर सन 1958 से 1962 के बीच कोशी बाँध बनाने में श्रमदान किये थे। जिसमें ये बांध बांधने में इनके कार्य कुशलता को देख कर इन्हें पुरस्कृत भी किया गया था। ये जीवनपर्यंत सरकारी लाभ लेने से इंकार किया। संत प्रभु राम जी वृद्धा पेंशन तक नहीं लिया। इनके दो पुत्र शिक्षक रामसागर राम एवं राम वृक्ष राम हैं, इनके पौत्र मशहूर गजलकार व कवि नवनीत कृष्ण एवं पुनीत हरे हैं।
शिक्षाविद् साहित्यकार राजहंस कुमार ने कहा कि स्वतंत्रता सेनानी स्व. प्रभु राम जी का व्यक्तित्व सभी के लिए अनुकरणीय है। उन्होंने समाज को नई दिशा देने के लिए उनके आदर्शों पर चलने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि स्वतंत्रता सेनानियों को सच्ची श्रद्धांजलि उनके आदर्शों का पालन करने से होती है।
शंखनाद के कोषाध्यक्ष भाई सरदार वीर सिंह ने कहा कि समाज सेवियों एवं संतों के ही मार्गदर्शन में समाज आगे बढ़ रहा है। गुरु और शिष्य की परंपरा को सदैव संतों ने ही आगे बढ़ाया है। संतों के दर्शन मात्र से ही इस कलयुग में भवसागर पार किया जा सकता है।
मौके पर प्रोफेसर डॉ. शकील अहमद अंसारी ने कहा कि स्वतंत्रता सेनानी स्व. प्रभु राम जी खिरौना गांव के गौरव थे। उन्होंने 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया और अंग्रेजों के विरुद्ध स्वतंत्रता की आवाज बुलंद की थी।
मौके पर शायर बेनाम गिलानी ने अपने संबोधन में कहा कि स्वतंत्रता सेनानियों को सम्मान देकर ही समाज उन्नति की ओर अग्रसर होता है। उन्होंने नालंदा को स्वतंत्रता सेनानियों की कर्मभूमि बताया और कहा कि यहां के विकास की नींव इन्हीं जैसे वीरों के संघर्ष पर ही टिकी है।
इस दौरान पुनीत हरे, डॉ. राज कुमार, मो. फुरकान, अनुव्रत ब्रह्मचारी, विकाश कुमार सिंह, छोटू कुमार, नीतीश कुमार सिंह, राजनीतिक सिंह, कामेश्वर प्रसाद, बेनाम गिलानी, सकलदेव सिंह, माला देवी, सत्येंद्र प्रसाद, अमित कुमार यादव सहित जिले के कई साहित्यकारों, कवियों व समाजसेवियों ने भाग लिया।
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